Tuesday, May 19, 2009

सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं मुलायम और मायावती, इसलिए कह रहे हैं सरकार में हमें भी ले लो, प्लीज़.....।

कांग्रेस को एक तरह से पूर्ण बहुमत मिला नहीं कि सभी छोटी पार्टियां लगी हुई हैं कि हमें भी गठबंधन में ले लो। सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं अब सभी। जनता ने कांग्रेस को बहुमत के करीब पहुंचा कर ये तो साबित कर दिया है कि अब क्षेत्रिय पार्टियों को काम करना ही पड़ेगा।

इस पूरे चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले मायावती के निशाने पर गर कोई था तो पार्टी के रूप में कांग्रेस और शख्स के रूप में राहुल गांधी। कांग्रेस के लिए मायावती का हर रैली में ये कहना था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश सरकार को पैसा मुहैया नहीं करा रही है, कांग्रेस झूठी पार्टी है और पता नहीं क्या-क्या। चुनाव के दौरान ही मायावती ने राहुल पर निशाना साधते हुए कहा था कि गरीबों के घर में सो जाने से कोई गरीबों के दर्द को नहीं समझ सकता और राहुल के गांवों के हर दौरे पर मायावती के निशाने पर ही राहुल गांधी होते थे। आज एक रैली में माया पलट गईं और कहने लगीं कि बिना शर्त के वो समर्थन देने को तैयार हैं क्योंकि मनमोहन सिहं ने उन्हें छोटी बहन कहा था। छोटी बहन तो संजय दत्त ने भी कहा था तो क्या उस पार्टी के साथ चलना चाहेंगी आप? नहीं। जवाब सभी जानते हैं।

आखिरकार मायावती को एकदम से हुआ क्या जो कांग्रेस की इतनी बुराई करती थी वो एकदम से कैसे सरकार के साथ चलने लगी है। जो वो कांग्रेस के पीछे हाथ धोकर पड़ गई कि सरकार में हमें भी ले लो प्लीज।
इस सब के पीछे एक बहुत बड़ी चाल है मायावती की। मायावती अब उत्तर प्रदेश से एसपी को खत्म करना चाहती हैं। इसलिए वो सरकार का हिस्सा बनना चाहती हैं क्योंकि यदि देखें तो राज्य में तो खुद माया काबिज हैं पर यदि केंद्र में भी हिस्सेदारी हो जाएगी तो अमर-मुलायम से वो पिछले सारे हिसाब बराबर कर सकेंगी।

लखनऊ में मायावती ने किया क्या है? एक अपनी महत्वाकांक्षी योजना में करोड़ों रु लगाए जा रही हैं। दूसरी तरफ मुलायम सरकार में बना लोहिया पार्क आज पानी को तरस रहा है। उस पार्क में कोई पानी भी देने वाला भी नहीं है। अरे अपनी लड़ाई में एक दूसरे का सर फोड़ो जो करना है करो पर जनता का तो भला रहने दो। पूरे शहर को नीला ही नीला कर दिया पोस्टरों से अखिलेश दास गुप्ता के पोस्तरों से। हर जगह नीली लाइट क्या है ये। विकास के नाम पर क्या किया?????

वहीं यदि देखें तो बार-बार दुत्कार दिए जाने के बाद भी अमर सिंह राष्ट्रपति को समर्थन पत्र देने अकेले ही पहुंच गए। अरे तुम समर्थन नहीं चाहोगे तो भी हमें तो आता ही है समर्थन देना। भई, यदि सरकार को बाहर से समर्थन देंगे तो भी तो सरकार के साथ तो रहेंगे ही कोई इतनी आसानी से हाथ तो नहीं डाल पाएगा। गर कोई डालने की हिम्मत करेगा तो जिस चीज में हम माहिर हैं हम वो करेंगे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मम्मी... मम्मी चिल्लाने लगेंगे अपने बचाव में। मम्मी कुछ तो ध्यान देंगी ही। यदि सरकार में शामिल नहीं होंगे तो मायावती जरूर से जेल में डलवाकर चक्की पिसवाएंगी। तो ये तो एसपी की मजबूरी है कि उसे हर हाल में, कैसे भी सरकार में शामिल होना होगा। पहलवानी के जोश में पूर्व पहलवान मुलायम सिंह ने लगता है कि कुछ काम ऐसे कर रखे हैं जो कि भविष्य में उनकी सेहत के लिए सही नहीं है।

वहीं कुछ ऐसे भी दल हैं जो कि लड़े तो एनडीए के साथ और अब सरकार में शामिल होने के लिए यूपीए गठबंधन में रास्ते खोज रहे हैं। हर बार पलटू राजनीति में माहिर अजित सिंह ये ही कर रहे हैं। जिगरा तो नीतीश कुमार के जैसा होना चाहिए था जो एनडीए के साथ चुनाव तो नहीं लड़े पर जब से उनके साथ आए तो उनके साथ ही हैं। बशर्ते कि नीतीश कुमार ने बिहार में बहुत काम किया पर इस मसले पर जनता का उल्लू खींचा।

सारी दुनिया कह रही थी कि तीन देवियां सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। पर एक देवी के सामने सभी देवियां फीकी पड़ गईं। ये राजनीति है कुछ भी करा सकती है। वैसे कांग्रेस को नकारों की फौज खड़ी करने से बचना चाहिए। साथ ही इन सभी को सबक भी सिखाना चाहिए चाहे वो लालू-मुलायम-पासवान ही क्यों ना हों।

आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. sahee baat . inhen sharm kabhee nahin aayegee kya ?

    ReplyDelete
  2. आप सही कह रहे हैं पर सता का नशा ऐसा होता है कि जो भी लंका की राजगद्दी पर बैठता है वो ही रावण बन जाता है. तो ये ही कैसे बच सकेंगे?

    रामराम.

    ReplyDelete
  3. आप सही कह रहे हैं भई कुर्सी है तो सब कुछ है वर्ना तो गली का कुत्ता भी नहीं सूंघेगा इन्हे।

    ReplyDelete
  4. सुना है माया मेम साहब अब सर्वजन की बजाय दलित राजनीति पर बैक हो रही हैं। :)

    ReplyDelete
  5. ya beshrmi tera asra.apne bhut shi aaklan kiya .

    ReplyDelete
  6. अगर इन सत्ता लोलुपों को ये कहा जाए कि तुम्हे संसद भवन के गेट पर खडे रहकर आने जाने वालों की जूत्तियां संभालनी हैं तो ये लोग उसके लिए भी झट से तैयार हो जाएंगे. बस सत्ता में भागीदारी मिलनी चाहिए.

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”