घर के उस कोने यानी बाथरूम में जाकर खूब देर तक रोता रहता। इस बात से अनभिज्ञ कि हर किसी के भाग्य में बहनें नहीं होती।
आप को लगेगा कि क्या कह रहा हूं मैं पर हां, एक अदद बहन का इंतजार। कुछ लोग तो दूर की रिश्ते की बहन के खत के कारण डाकिये की राह तकते हैं कि देर से ही सही पर समय रहते शायद राखी पहुंच जाए। हम दो भाई, हमारी कोई बहन नहीं आज के दिन हम नासमझ हमेशा इसी इंतजार में कि कोई तो हमारी बहन भगवान ने बनाई ही होगी जो आज के दिन हमारी सूनी कलाइयों में वो धागा बांधेगी और फिर जिसे हम रक्षा का वचन देंगे। पर इंतजार-इंतजार ही रहा। मेरे बड़े भाई शायद जल्द ही इस बात को समझ गए पर मैं इंतजार में ही लगा रहा।
कई बार मेरा, जानने वाले खूब मजाक उड़ाते, कहते कि अपने पापा-मम्मी से कहो तो शायद बहन मिल जाए। तब सब हंसते और मम्मी उनको झेंपते हुए डांटने लग जाती। हमारी समझ में नहीं आता पर मेरी बहन मुझे नहीं मिलती।
मैं आखिर कब तक राह तकता। मैंने खुद बहन बनाना शुरू कर दिया। स्कूल में, पड़ोस में, पापा के जानने वालो की बेटियों को बनाता बहन। पर जब उनके भाई आगए तो उन्होंने मुझे दूध में मक्खी की तरह निकाल दिया। मेरी कलाई फिर सूनी रह जाती। आज के दिन मैं सड़कों पर, रेलवे स्टेशन पर कुछ लड़कियां राखी बांधती और पैसे लेती, मैं इस बात से अनभिज्ञ उनसे राखी बंधवाता और खुश होता कि एक बहन ने राखी बांधी है। पर सच्चाई ने पर्दा उठाया और मैं मायूस घर वापस आ बैठता।
पूरे खानदान के नौ भाइयों की इकलौती बहन। इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी रहेंगी....इस बार नहीं, शायद हर बार।
ये देखकर मम्मी मेरी कलाई में राखी बांधती। मैं खाना नहीं खाया करता था, मम्मी मुझे प्यार से मेरी मनपसंद खीर बनाकर कृष्ण जी को भोग लगाकर, उन्हें राखी बांधकर, फिर मुझे राखी बांधती और खिलाया करती। कुछ वक्त नखरा करता पर बच्चा अपनी मनपसंद चीज के सामने कितनी देर टिकता, फिर खा लेता।
आज के दिन मेरे दोस्त मुझे खेलने के लिए बुलाते तो दूर से उनके हाथों में ढेर सारी राखियां देखकर ही मैं खेलने नहीं जाता। और घर के उस कोने यानी बाथरूम में जाकर खूब देर तक रोता रहता। इस बात से अनभिज्ञ कि हर किसी के भाग्य में बहनें नहीं होती।
इंतजार खत्म हुआ पापा जी का तबादला हमारे पुश्तैनी घर के पास हुआ। तब से पोस्ट के साथ-साथ मेरी चचेरी बहन मुझे राखी बांधती। कभी बुआ या उनकी बच्चियां यानी मेरी बहनें मुझे राखी बांधती। मेरी चचेरी बहन, पूरे खानदान के नौ भाइयों की इकलौती बहन। इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी रहेंगी....इस बार नहीं, शायद हर बार।
आपका अपना
नीतीश राज
इस बार सभी नौ भाइयों की कलाई सूनी रहेंगी....इस बार नहीं, शायद हर बार।
ReplyDelete-क्या कहें भाई!! नियति के आगे किसका जोर!
भावुक बना दिया आपने। यह इन्तजार तो मेरा आज भी जारी है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
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बहुत भावुक और मर्मिक. बहन का जानकर बडा कष्ट हुआ. पर क्या किया जा सकता है नियति अपना खेल जारी रखती है. आपके दुख को बहुत नजदीकी से महसूस कर पा रहे हैं.
ReplyDeleteरामराम.
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteविश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!