यंगिस्तान की हार, यंगिस्तान को धूल चटा दी, यंगिस्तान इसे एक सबक समझे, और ना जाने क्या-क्या सलोगन सुनने में आ रहे हैं। कल से ही कई लोगों की जुबान पर ये बात आ रही थी और आज सुबह अधिकतर अखबार इसी पटे हुए हैं। पर मेरा सवाल ये है कि क्या सचमुच में यंगिस्तान की हार हुई है? और हां, यहां पर एक बात साफ कर दूं कि जिम्बॉब्वे की टीम फिसड्डी नहीं है जैसा कि कई जगह बताया जा रहा है।
हां, यंगिस्तान की हार तो हुई है, जो मैदान में खेल रहा है हारेगा तो वो ही। पर क्या इस हार के जिम्मेदार भी पूरी तरह से वो ही हैं? हार की पूरी वजह भी यंगिस्तान ही है?
नहीं, इस हार को यदि प्रतिशत में देखूं तो 10 फीसदी गलती यंगिस्तान टीम की है जो कि कल मैदान में उतरी थी। जी हां, सिर्फ 10 फीसदी गलती मानता हूं टीम की। वन डे में 285 का लक्ष्य किसी भी दूसरी टीम के लिए कम मुश्किल चुनौती नहीं होता। पर क्या इस टीम के पास कोई भी ऐसा गेंदबाज था जो दूसरी टीम और लक्ष्य के बीच दीवार की तरह खड़ा हो जाता। जवाब है, नहीं। तीनों तेज गेंदबाज वन डे में अपनी पारी की शुरूआत कर रहे थे। तीनों ने पूरे 10 ओवर नहीं फेंके और साथ ही तीनों ने 6 की रन रेट से रन दिए। सफल इसमें विनय कुमार ही रहे पर महंगे भी साबित हुए। पर ऐसा क्यों हुआ कि तीन नए गेंदबाजों को एक साथ ही मैदान में उतारना पड़ा? क्या हमारे पास नेहरा, जहीर, प्रवीण को छोड़ कर गेंदबाज नहीं हैं।
नहीं ऐसा नहीं है, हमारे पास गेंदबाज हैं पर उनको मौका नहीं दिया गया। इरफान पठान, श्रीशांत, आरपी सिंह, अजीत अगरकर, जोगिंदर शर्मा को टीम के साथ भेजा जा सकता था पर क्यों नहीं टीम में शामिल किया गया ये तो सेलेक्टर्स ही बेहतर बता सकते हैं। उथप्पा, मनीष पांडे, रायडू, अभिषेक तिवारी, अभिषेक नायर इन नामों पर भी चर्चा हो सकती थी। शायद हुई भी हो पर इस टीम के साथ किसी भी सीनियर खिलाड़ी को ना भेजने के पीछे क्या लॉजिक था ये तो श्रीकांत एंड कंपनी ही बता सकती है। 70 फीसदी गलती सेलेक्टर्स की है।
20 फीसदी गलती है भारतीय टीम के सीनियर खिलाड़ियों की। जब कई खिलाड़ी छुट्टी मांग रहे हैं तो क्या भारतीय टीम के कप्तान धोनी को नहीं चाहिए था कि वो छुट्टी पर ना जाएं। क्यों सभी खिलाड़ियों ने एक साथ आराम की मांग की? और कैसे सेलेक्टर्स ने सभी को छुट्टी या आराम दे दिया। नेहरा ने ऐसा कौन सा पहाड़ तोड़ा था कि जिस कारण उन्हें आराम की जरूरत थी। सचिन तेंदुलकर ना तो वर्ल्ड टी-20 में गए फिर उनको आराम की जरूरत क्यों आ पड़ी।
हमारे टीम के सीनियर खिलाड़ियों से तो सिर्फ ये ही लगता है कि वो सभी अपने लिए खेलते हैं टीम या फिर देश के लिए नहीं खेलते। सब के सब आईपीएल में पैसा कमाने के लिए खेल सकते हैं पर देश की बात आए तो आराम की दरकार करते हैं। और सोने पर सुहागा सेलेक्टर्स, अपने ही पसंदीदा और क्षेत्र के खिलाड़ियों को ही टीम में शामिल करने में लगे रहते हैं।
इस हार को यंगिस्तान की हार मत कहिए, ये हार तो है हमारे बूढ़े सेलेक्टर्स और हमारे स्वार्थी सीनियर खिलाड़ियों की। इन सबको ये समझना चाहिए कि ये हार भारत की है और ये हार रिकॉर्डस में दर्ज भी जरूर होगी।
आपका अपना
नीतीश राज