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Tuesday, June 19, 2012

टीम अन्ना विकल्प के साथ आओ, गुमराह मत करो

अन्ना टीम को क्या हो गया है?
इनका हाल ये है कि 2x2=5।
अन्ना टीम- आपने जो हल निकाला वो गलत हैं।
हमने पूछा कि सही क्या है।
सही जवाब क्या है ये तो पता नहीं पर ये आपका जवाब गलत है।

प्लीज अन्ना और अन्ना टीम, सारी दुनिया पर भ्रष्ट होने का आरोप लगा रहे हैं तो प्लीज कौन भ्रष्ट नहीं है वो भी तो बताइए। जनता जिस को चुनती है उसको आप भ्रष्ट करार दे देते हैं।

सवाल खड़े किए हैं तो जवाब भी तो ले कर आइए।

याद है आपको वो कहानी...शायद याद होगी...
एक चित्रकार था उसने अपने द्वारा बनाया हुआ एक चित्र रेलवे स्टेशन पर लगा दिया और फिर लिखा कि इसमें क्या गलती है वो बताइए। हर निकलने वाले शख्स ने उसमें अपनी टिप्पणी लिख दी या कलम चला दी।
दूसरे दिन फिर वो ही चित्र उसी स्टेशन पर उस चित्रकार ने वो ही चित्र लगाया और लिखा जो गलती हो उसे बताए नहीं कृप्या ठीक कर दें...दो दिन बाद भी उस तस्वीर में सिर्फ धूल चढ़ी लेकिन किसी ने गलती नहीं बताई।

अन्ना टीम, ये बहुत ही आसान होता है कि किसी पर उंगली उठा दी जाए पर ये बहुत मुश्किल होता है कि उंगली उठाते हुए उस का विकल्प भी साथ में दें

हर कांग्रेसी आपकी नजर में गुनहगार है और साथ है वो भ्रष्ट भी है। तो क्या बीजेपी या फिर बीएसपी या फिर एसपी में से कोई भी भ्रष्ट नहीं है। या फिर लेफ्ट को हम लोग क्यों चुन कर नहीं लाते सत्ता में, क्या वहां पर भी सब करप्ट हैं। यदि हैं तो कौन नहीं करप्ट है ये साथ में बताइए वर्ना लोगों को गुमराह करना छोड़ दीजिए या फिर राष्ट्रपति शासन लगावने की वकालत कीजिए।

धन्यवाद

Saturday, July 18, 2009

ये रेप की राजनीति है यूपी वालों, मायवती की दोगली नीति।

माया जी भी तो कुछ इसी लहजे में कभी मुलायम सिंह के परिवार की बेटियों को रेप के एवज में अपने मुस्लिम साथियों से ४ लाख देने की पेशकश कर चुकी हैं।

मैं किसी को गाली दूं तो सब ठीक पर जब कोई मुझे गाली दे तो मुंह तोड़ने की बात करूं। मैं तुम को तमाचा मारूं तो तुम को कोई अधिकार नहीं कि तुम मुझ पर कोई भी पलटवार करो। पर तुम मुझे मारो तो ये मेरा अधिकार है कि मैं तुम्हारी हड्डी पसली तोड़ दूं। ना शिकायत, ना केस, सिर्फ फैसला वो भी मेरे पक्ष में। कुछ यूं ही चल रहा है ये खेल यूपी में।

यूपी में सियासत में जो खेल चल रहा है उसकी आग बहुत पहले से लग चुकी थी। पर यहां एक छोटी सी भूल हो गई रीता बहुगुणा से। वो भूल गईं कि जिस कारण आज उनकी पार्टी केंद्र में अपने जनाधार जमाए बैठी है और बीजेपी विपक्ष में ही खूंटा गाड़े बैठी है उसके पीछे का सच क्या है? सिर्फ उसी हार के कारण आज भी बीजेपी में हाहाकार मचा रहता है। वरुण के जहरीले भाषण या फिर पीएम इन वेटिंग के आरोप या फिर मोदी की चुनाव के बीच में घपलेबाजी को हार की एक वजह माना जाता है। याने ज्यादा जुबान खोलेंगे तो समझो कि हारोगे।

रीता जी शायद भूल गईं और उसी जहरीले भाषण की तरफ बढ़ गईं। वो विवादास्पद ज्ञान उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को यूं ही नहीं दिया उसके पीछे कारण था यूपी की वो २१ सीटें। राहुल की मेहनत के पांच साल ने यूपी में फिर से कांग्रेस के पैर मजबूत किए हैं। कम से कम तीन साल तो हैं ही यूपी में विधानसभा चुनाव को तो अभी से वो कवायद शुरू हो चुकी है लोगों को अपना बनाने की। उस जनाधार या यूं कहें उस वोट बैंक को अपना बनाने की कोशिश जो कि कांग्रेस को केंद्र के साथ-साथ यूपी की गद्दी को भी दिला दे।

उस इज्जत की कीमत तो आप २५ हजार दे रही हैं पर उस कीमत को चुकाने के लिए ५ लाख खर्च कर रही हैं।

उसी कड़ी में रीता बहुगुणा शायद वो कह गईं जो उनके लिए आज आफत बन चुकी है ना निगलते बनता है ना उगलते। अपने भी पराए हो गए, घर फूंक दिया गया, १४ दिन कि न्यायिक हिरासत साथ ही रातें जेल में, जमानत भी नहीं मिली। शायद रीता बहुगुणा याद कर रहीं थी दो-ढाई साल पुरानी ‘वो’ बात जब कि खुद मायावती ने कुछ इसी तरह की टिप्पणी की थी। माना कि प्रत्यक्ष रूप से नहीं परोक्ष रूप ही सही मायावती ने महिलाओं पर निशाना तो साधा ही था। तो रीता को लगा कि कोई कार्रवाई नहीं होगी पर उन्हें क्या पता था कि वो मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल रही हैं।

पर एक सवाल उठता है कि मायावती जी को क्यों गलत लगा रीता बहुगुणा का कहा। क्यों आग लग गई उनको? माया जी भी तो कुछ इसी लहजे में कभी मुलायम सिंह के परिवार की बेटियों को रेप के एवज में अपने मुस्लिम साथियों से ४ लाख देने की पेशकश कर चुकी हैं। क्या तब नहीं हुआ महिलाओं का अपमान। तो अब क्यों हुई लाल माया। ये तो औरतों की ही दोगली नीति है, एक मर्द के परिवार की महिलाओं को कहोगे तो कुछ नहीं पर यदि खुद के लिए उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल होता है तो घर फूंकावा दोगे, आग लगवा दोगे, धमकी दोगे कि घर से निकले तो बच नहीं पाओगे। हमें गुस्सा आ गया तो चूहों की तरह बिल में घुस जाओगे। ये तो सरासर गुंडाराज है।

माना कि कांग्रेस ने एक गलती की। कांग्रेस ने एक कानून बनाया जो कि औरतों की इज्जत की कीमत लगाता है। उस इज्जत की कीमत चुकानी पड़ती है राज्य सरकार को जिसमें वो घृणित कृत्य हुआ होता है। उसके पीछे के कई कारण है कि राज्य में कानून व्यवस्था की चूक की कीमत तो राज्य सरकार को ही चुकानी पड़ेगी। पर उस इज्जत की कीमत तो आप २५ हजार दे रही हैं पर उस कीमत को चुकाने के लिए ५ लाख खर्च कर रही हैं। हेलिकॉप्टर से डीआईजी जगह जगह जाते हैं और खर्च करते हैं करीब ५ लाख सिर्फ फ्यूल में। क्या ये बेहतर नहीं होता कि उस जिले के वरिष्ठ अधिकारी उस पीड़ित परिवार को मुआवजा दे देते।

मायावती जी आप को अपने जीते जी पूरे राज्य में मूर्तियां लगवाने से फुर्सत मिले तो आप इस ओर सोचेंगी ना। आप का क्या जाता है कि कोई कितना खर्च करता है। हर कीमत के पैसे तो हमें ही भरने होंगे। पर अच्छा तो ये होता कि आप धौंस ना दिखाते हुए जब रीता बहुगुणा ने माफी मांगी तो आपको बड़प्पन दिखाते हुए माफ कर देना चाहिए था। सही तो ये ही होता कि मुआवजे के लिए तेल में ५ लाख ना फूंके जाते और ये रकम पीड़ित के परिवार को मिल जाती। मूर्तियां का मोह छोड़ों माया जी कल से हाल खराब है बिजली नहीं आई है। काश आपने पैसे राज्य सरकार की उन्नति में लगाए होते तो आज ये यूपी की हालत ही कुछ और होती।

आपका अपना
नीतीश राज

Tuesday, May 19, 2009

सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं मुलायम और मायावती, इसलिए कह रहे हैं सरकार में हमें भी ले लो, प्लीज़.....।

कांग्रेस को एक तरह से पूर्ण बहुमत मिला नहीं कि सभी छोटी पार्टियां लगी हुई हैं कि हमें भी गठबंधन में ले लो। सरकार में रहने का सुख भोगना चाहते हैं अब सभी। जनता ने कांग्रेस को बहुमत के करीब पहुंचा कर ये तो साबित कर दिया है कि अब क्षेत्रिय पार्टियों को काम करना ही पड़ेगा।

इस पूरे चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले मायावती के निशाने पर गर कोई था तो पार्टी के रूप में कांग्रेस और शख्स के रूप में राहुल गांधी। कांग्रेस के लिए मायावती का हर रैली में ये कहना था कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश सरकार को पैसा मुहैया नहीं करा रही है, कांग्रेस झूठी पार्टी है और पता नहीं क्या-क्या। चुनाव के दौरान ही मायावती ने राहुल पर निशाना साधते हुए कहा था कि गरीबों के घर में सो जाने से कोई गरीबों के दर्द को नहीं समझ सकता और राहुल के गांवों के हर दौरे पर मायावती के निशाने पर ही राहुल गांधी होते थे। आज एक रैली में माया पलट गईं और कहने लगीं कि बिना शर्त के वो समर्थन देने को तैयार हैं क्योंकि मनमोहन सिहं ने उन्हें छोटी बहन कहा था। छोटी बहन तो संजय दत्त ने भी कहा था तो क्या उस पार्टी के साथ चलना चाहेंगी आप? नहीं। जवाब सभी जानते हैं।

आखिरकार मायावती को एकदम से हुआ क्या जो कांग्रेस की इतनी बुराई करती थी वो एकदम से कैसे सरकार के साथ चलने लगी है। जो वो कांग्रेस के पीछे हाथ धोकर पड़ गई कि सरकार में हमें भी ले लो प्लीज।
इस सब के पीछे एक बहुत बड़ी चाल है मायावती की। मायावती अब उत्तर प्रदेश से एसपी को खत्म करना चाहती हैं। इसलिए वो सरकार का हिस्सा बनना चाहती हैं क्योंकि यदि देखें तो राज्य में तो खुद माया काबिज हैं पर यदि केंद्र में भी हिस्सेदारी हो जाएगी तो अमर-मुलायम से वो पिछले सारे हिसाब बराबर कर सकेंगी।

लखनऊ में मायावती ने किया क्या है? एक अपनी महत्वाकांक्षी योजना में करोड़ों रु लगाए जा रही हैं। दूसरी तरफ मुलायम सरकार में बना लोहिया पार्क आज पानी को तरस रहा है। उस पार्क में कोई पानी भी देने वाला भी नहीं है। अरे अपनी लड़ाई में एक दूसरे का सर फोड़ो जो करना है करो पर जनता का तो भला रहने दो। पूरे शहर को नीला ही नीला कर दिया पोस्टरों से अखिलेश दास गुप्ता के पोस्तरों से। हर जगह नीली लाइट क्या है ये। विकास के नाम पर क्या किया?????

वहीं यदि देखें तो बार-बार दुत्कार दिए जाने के बाद भी अमर सिंह राष्ट्रपति को समर्थन पत्र देने अकेले ही पहुंच गए। अरे तुम समर्थन नहीं चाहोगे तो भी हमें तो आता ही है समर्थन देना। भई, यदि सरकार को बाहर से समर्थन देंगे तो भी तो सरकार के साथ तो रहेंगे ही कोई इतनी आसानी से हाथ तो नहीं डाल पाएगा। गर कोई डालने की हिम्मत करेगा तो जिस चीज में हम माहिर हैं हम वो करेंगे। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मम्मी... मम्मी चिल्लाने लगेंगे अपने बचाव में। मम्मी कुछ तो ध्यान देंगी ही। यदि सरकार में शामिल नहीं होंगे तो मायावती जरूर से जेल में डलवाकर चक्की पिसवाएंगी। तो ये तो एसपी की मजबूरी है कि उसे हर हाल में, कैसे भी सरकार में शामिल होना होगा। पहलवानी के जोश में पूर्व पहलवान मुलायम सिंह ने लगता है कि कुछ काम ऐसे कर रखे हैं जो कि भविष्य में उनकी सेहत के लिए सही नहीं है।

वहीं कुछ ऐसे भी दल हैं जो कि लड़े तो एनडीए के साथ और अब सरकार में शामिल होने के लिए यूपीए गठबंधन में रास्ते खोज रहे हैं। हर बार पलटू राजनीति में माहिर अजित सिंह ये ही कर रहे हैं। जिगरा तो नीतीश कुमार के जैसा होना चाहिए था जो एनडीए के साथ चुनाव तो नहीं लड़े पर जब से उनके साथ आए तो उनके साथ ही हैं। बशर्ते कि नीतीश कुमार ने बिहार में बहुत काम किया पर इस मसले पर जनता का उल्लू खींचा।

सारी दुनिया कह रही थी कि तीन देवियां सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी। पर एक देवी के सामने सभी देवियां फीकी पड़ गईं। ये राजनीति है कुछ भी करा सकती है। वैसे कांग्रेस को नकारों की फौज खड़ी करने से बचना चाहिए। साथ ही इन सभी को सबक भी सिखाना चाहिए चाहे वो लालू-मुलायम-पासवान ही क्यों ना हों।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, May 16, 2009

सारे आंकड़े फास, बीजेपी का सूपड़ा साफ, कांग्रेस के हाथ सरकार

इंतजार की घड़ी खत्म हुई और कांग्रेस इतनी बड़ी जीत के साथ सामने आएगी शायद ही किसी ने सोचा हो। और बीजेपी को ज़ोर का झटका ज़ोर से ही पड़ा। बीजेपी का हाल ये होगा ऐसा भी किसी ने सोचा नहीं होगा। सबसे ज्यादा खराब स्थिति भी गर सोची जा रही थी तो बीजेपी को १३० सीटों से कम कोई नहीं सोच रहा था। बीजेपी के दिग्गज कह रहे थे कि इस बार तो बीजेपी यूपी में अपना परचम फिर से लहराएगी पर ऐसा हो ना सका। इस बार तो बीजेपी सबसे खराब स्थिति के नंबर को भी नहीं पकड़ पा रही। पीएम इन वेटिंग का वेट और बढ़ गया। नहीं चला आडवाणी जी का जादू और शायद अब वो कभी पीएम नहीं बन पाएंगे। आडवाणी जी का सुनहरा सपना टूट गया। आखिरकार ये साबित हो गया कि देश पर नहीं चला लौह पुरूष जादू। गुजरात को छोड़ दें तो मोदी अपनी साख के मुताबिक कहीं पर भी आंकड़े नहीं बटोर पाए। इस बार के चुनाव के नतीजों के बाद यदि ये सोचा जाए कि बीजेपी को फिर से जुगत लगानी होगी अपना नया पीएम इन वेटिंग ढूंढने में। मोदी का गढ़ है गुजरात पर मोदी देश के नेता नहीं हैं, नतीजे तो ये ही कहते हैं।

कांग्रेस के लिए सबसे खराब स्थिति में भी १४० का आंकड़ा छूने की बात कही जा रही थी। यहां तो कांग्रेस २०० के आंकड़े के पार जा पहुंची। यहां पर सिपाहासलार की भूमिका में सोनिया पर जनता ने विश्वास किया। पीएम मनमोहन सिंह के कामों पर जनता ने मोहर लगाई। लोगों ने राहुल गांधी के जज्बे को पहचाना। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं पर भरोसा किया और जनता को साथ चलने के लिए राजी किया। जब ही तो यूपी में राहुल की मेहनत रंग लाई या यूं कहें देश में उनको पहचान मिली। राहुल के साथ युवा जुड़े और देश को आगे बढ़ाने की राह पर निकल चले। दिल्ली में शीला दीक्षित के काम को लोगों ने ७-० से जीता दिया। दिल्ली और पंजाब में टाइटलर और सज्जन कुमार को हटाना अच्छा रहा। इससे सिखों का वोट मनमोहन सिंह और कांग्रेस को मिला। राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र, केरला, आंध्र प्रदेश सभी जगह कांग्रेस ने बढ़त बनाई।

कांग्रेस ने जो दो-तीन गलती पिछली बार की थी उससे उनको सबक लेना होगा। शिवराज पाटील को हटाना फायदेमंद रहा पर ये ध्यान में रखना होगा कि कहीं फैसले लेने में ज्यादा देर ना हो जाए। नटवर सिंह को विदेश मंत्री के पद से हटाना भी सही फैसला था। पर इस बार थोड़ा सोच-समझकर चलना होगा वर्ना जनता सब जानती है।

तीसरे मोर्चे को काफी नुकसान हुआ सीट और पैसे दोनों मामलों में। अब इनकी दादागीरी नहीं चलेगी। पासवान-लालू लोग खरीद-फरोख्त का धंधा नहीं कर सकेंगे, सौदेबाजी नहीं कर सकेंगे। ये अच्छा हुआ कि नीतीश कुमार के काम को लोगों ने पहचाना और वोट दिया और उनकी पार्टी को जीता दिया। पर नीतीश कुमार को अभी फैसला करना होगा कि वो किस करवट बैठेंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Tuesday, April 21, 2009

अफजल गुरु को कोई भी सरकार फांसी नहीं देगी, किसी भी पार्टी में इतना दम नहीं है।

सारा देश संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ता हुआ देखना चाहता है। पर शायद अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वोट बैंक होने के कारण अभी फिलहाल तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। माना तो ये जाता है कि भारत में सुप्रीम कोर्ट के ऊपर कोई अदालत नहीं, पर मेरा विश्वास इस बात से डगमगा रहा है। सुप्रीम कोर्ट एक घृणत कृत्य के लिए एक शख्स को फांसी मुकर्रर करता है। उसको इस सज़ा तक पहुंचाने में लाखों खर्च होते हैं और जेल में रखने पर भी लाखों खर्च। फांसी की सज़ा तो कोर्ट ने सुना दी पर यहां पर हमारा संविधान थोड़ा लचीला हो जाता है। राष्ट्रपति के पास सज़ायाफ्ता मुजरिम एक माफीनामा भेज देता है कि उसे जो सज़ा मिली है उसमें रहम किया जाए। मतलब ये कि इसके बाद आप गारंटी के साथ काफी सालों तक जिंदा रह सकते हैं।

हमारी सरकारें ये नहीं चाहती कि राष्ट्रपति कोईं भी फैसला लें क्योंकि उस फैसले से अगले चुनावों में वोट बैंक पर असर पड़ेगा। अभी राष्ट्रपति के पास 28 मामले फांसी के पड़े हुए हैं और उसमें अफजल गुरु का नंबर 22वां है। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल तीन आरोपियों की याचिका भी है। यूपीए के शासन काल में उस पर भी फैसला नहीं हो सका। 1998 में जो फैसले सुप्रीम कोर्ट ने फांसी के सुनाए थे उन मामलों पर भी फैसला लिया जाना बाकी है।

जब किसी को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सज़ा सुनाई जाती है तो फिर वो राष्ट्रपति के पास याचिका क्यों डालते हैं? उसके चुनिंदा कारण ही होते होंगे, जैसे कि घर के अकेला चिराग होना, मुजरिम पर बूढ़े मां-बाप का निर्भर होना, या ये गलती जो हुई है वो अनजाने में हुई है और साथ ही अभी उम्र बहुत कम है। जब याचिका डाली गई और 10-15 साल तक कोई फैसला नहीं हो रहा है तो उस याचिका का क्या औचित्य रह गया? बड़े-बूढ़े मर गए और जवान आदमी जेल में पड़ा-पड़ा सड़कर बूढ़ा हो गया।

1999-2004 तक के अपने कार्यकाल में एनडीए ने किसी भी याचिका पर सुनवाई नहीं की। क्या जवाब है इस पर बीजेपी का? कि पहली बार सत्ता पर बैठे थे तो सुख भोगना था भोग लिया, फैसला कैसे सुनाते। वो ही काम अब यूपीए ने भी किया। पूर्व राष्ट्रपति नारायणन और डॉ. कलाम ने किसी भी याचिका पर गौर नहीं किया। तो क्यों राष्ट्रपति इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं करते? कब तक सिर्फ और सिर्फ रबड़ स्टेंप की तरह वो देश पर अपनी मुहर लगाते रहेंगे?

माना कि राष्ट्रपति के लिए प्रक्रिया थोड़ी जटिल है पर राष्ट्रपति चाहें तो सब हो सकता है। राष्ट्रपति किसी भी केस को लेते है और उस केस पर गृहमंत्रालय से राय मांगते हैं। कैबिनेट के साथ मिलकर गृहमंत्रालय एक रिपोर्ट तैयार करके जिस राज्य की वो घटना होती है उस राज्य से इस पर राय मांगते है। अब वो राज्य सरकार जब चाहे उस पर अपनी राय बना कर भेजे क्योंकि कोई समय सीमा इस पर निर्धारित नहीं है। और सरकारें वोट से चलती हैं इसलिए एक वर्ग को नाराज़ करके कोई भी सरकार, अपनी सरकार नहीं गिराना चाहेगा।

तो....अफजल गुरु को कोई भी सरकार फांसी नहीं देगी।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, April 18, 2009

कांग्रेसियों, अफजल गुरू और कसाब को सरबजीत के साथ मत तोलो। केस मत लटकाओ, उन्हें लटकाओ।

वो हंस रहा है, वो मुस्कुरा रहा है, वो ठहाके लगा रहा है। आज वो भीख नहीं मांग रहा, आज वो जवाब दे रहा है। ये सब वो कर रहा है दुनिया को ये दिखाने के लिए कि उसे किसी का डर नहीं है, कैद में भी वो जी रहा है मौज में। ये सब वो वहां कर रहा है जहां पर सिर्फ उसे जिंदा रखने का खर्च लाखों में आ रहा है। वो ठहाके लगा रहा है कानून व्यवस्था पर, कानून प्रणाली पर, कानून के नियमों पर। वो इस बात पर हंस रहा है कि यहां पर एक देशद्रोही, एक आतंकवादी के ऊपर ट्रायल चलाने के लिए भी 36 पेंच हैं। वो जानता है कि वो बेवकूफ बना सकता है, तो बना रहा है। और ऐसा सब वो कर रहा है कानून के मंदिर में, वहीं पर बैठ वो उड़ा रहा है कानून की धज्जियां, हंस रहा है उसी कानून पर, ठहाके लगा रहा है।

और ऐसा भी नहीं है कि वो कोई अच्छा आदमी है। वो तो है एक ही रात में करोड़ों के मन में दहशत पैदा करने वाला अजमल आमिर कसाब

जी हां, मुंबई में बंद है कसाब नाम का वो शख्स जिसने अपने पाकिस्तान साथियों के साथ मिलकर 26/11 को मुंबई दहलाई थी। ऐसी साजिश जिसने पूरे मुल्क से लेकर दुनिया को एक नए तरीके के हमले से दो-चार कराया था। 26/11 की रात को जब उसे पकड़ा गया था तो उसे इस बात का इल्म भी नहीं था कि भारत में एक आतंकवादी को जिंदा पकड़ने के बावजूद उसे इतने आराम से रखा जाएगा। तभी तो वो सिर्फ अपने आप को मार देने की बात कर रहा था। अब तो वो अपने इकबालिया बयान से भी पलट गया। अब क्या? उसका वकील ये कहने से पीछे नहीं हट रहा है कि कसाब तो बच्चा है। शायद उस वकील को ये नहीं पता कि बच्चे कैसे होते हैं।

मेरा सवाल ये है कि ४० पेज का इकबालिया बयान जो कि मैजिस्ट्रेट के सामने दिया गया था कसाब उस से कैसे मुकर सकता है। बयान देते समय उस पर किसी भी पुलिस का दवाब नहीं था।
मेरा सवाल ये है कि क्यों उस आतंकवादी को इतनी सहुलियत देने पर आमादा है हमारी सरकार। क्या जानती नहीं है कि वो पाकिस्तानी आतंकवादी है जिसने मुंबई को एक ऐसा घाव दिया है जो कि कभी भरा नहीं जा सकता।
मेरा सवाल ये है कि कैसे कसाब इकबालिया बयान से पलट रहा है। एक तरफ तो उसने अपने मां-बाप का पता-ठिकाना सही बताया अब बयान को दबाव में बता रहा है। मां को जो ख़त लिखा था क्या वो भी भारतीय पुलिस ने दबाव में लिखवाया था।
मेरा सवाल है कि उस जैसे क़ातिल, दरिंदे को हम कैसे छोड़ सकते हैं, क्यों नहीं फांसी पर चढ़ा देते। क्यों मामले को टाल रहे हैं और कसाब को भी अफजल गुरू की तरह मौका देने की भूल कैसे कर सकते हैं।

अफजल गुरु को कांग्रेस फांसी पर नहीं लटकाएगी क्योंकि उस से हताहत होगा हमारे देश का अल्पसंख्यक समुदाय जो कि बहुत बड़ा वोट बैंक है। पर क्या कसाब को भी वोट बैंक की राजनीति में तोला जा रहा है? सरबजीत की दुहाई मत दो, वो तो अकेला है। कांग्रेसियों, अफजल गुरू और कसाब को सरबजीत के साथ मत तोलो। केस मत लटकाओ, उन्हें लटकाओ। वर्ना गर चुनाव जीते तब भी हार जाओगे।

आपका अपना
नीतीश राज

Saturday, October 18, 2008

एक घर की राजनीति, राहुल गांधी और सोनिया गांधी, 'बड़ा कौन'?

उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों पहले एक बात देखने को मिली। एक मां और बेटे के बीच लोकप्रियता का अंतर। उत्तरप्रदेश में सोनिया गांधी को ज्यादा जाना जाता है या फिर राहुल गांधी को? ये सवाल काफी दिनों से खड़ा हो रहा था जब से पिछली बार राहुल का नाम कांग्रेस के कुछ चाटुकारों ने प्रधानमंत्री के पद के लिए सुझाया था। कई बार एक और नाम सामने आया वो था प्रियंका गांधी का। कई बार तो ये लगता रहा कि प्रियंका गांधी यदि पार्टी की बागडोर संभाल लें तो राहुल का क्या होगा? शायद लोग राहुल को उस नेता के चश्में से ना देखें या फिर भावी प्रधानमंत्री के रूप में उनको ना भी सोचें। लोगों को राहुल गांधी को याद रख पाने में भी दिक्कत हो 'शायद'। यदि प्रियंका राजनीति में उतर जाएं तो कहीं राहुल का हाल क्यूबा के नए राष्ट्रपति राउल कास्त्रो जैसा ना हो जाए। सारी दुनिया जानती है कि राउल कास्त्रो में बहुत गुण थे लेकिन अपने बड़े भाई फिदेल कास्त्रो के सानिध्य में रहकर उनकी पूछ उतनी नहीं हुई जितनी की होनी चाहिए थी। राउल कास्त्रो की ही कई नीतियों के कारण ही क्यूबा को कई राजनीतिक फायदे हुए। राउल और फिदेल की रणनीतियों में बहुत अंतर था। राउल नई सोच का समर्थन करते थे जबकि फिदेल परंपरावादी थे। शायद इसलिए प्रियंका गांधी राजनीति में अभी तो नहीं आ रही हैं।
तो क्या राहुल को लोग अभी तक अपने जहन में नहीं बैठा पाए हैं या राहुल की पहुंच लोगों तक अभी हो ही नहीं पाई है। जबकि राहुल गांधी जहां भी जाते हैं सुरक्षा को धत्ता बैठाते हुए कहीं पर भी, किसी से भी मिलने लगते हैं।
रायबरेली में होने वाली जनसभा के कारण ये तो पता चल गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी में कौन कितने पानी में है। कांग्रेस की अध्यक्ष और महासचिव के अंतर के बारे में जानने का लोगों को मौका भी मिला। माना ये भी कि सोनिया गांधी के मुकाबले अभी लोग राहुल गांधी को सचमुच नहीं पहचानते और ना ही उतना जानते। जबकि राहुल गांधी पिछले कई सालों से भारत खोज में जुटे हुए हैं और जगह-जगह जाकर अपनी हाजिरी लगा रहे हैं। बावजूद इसके राहुल गांधी को लोग अभी उतना नहीं पहचानते हैं।
जहां एक तरफ माया ने अपनी माया दिखाते हुए धारा १४४ लगवा दी, वहीं सोनिया से मिलने लालगंज में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसा पहली बार हुआ है कि सोनिया का इतना असर देखने को मिला। इससे पहले कभी भी इतना तो असर नहीं ही देखा गया। वहीं यदि नजर डालें तो हाल ही में राहुल गांधी अपने परिवार के द्वारा उत्तर प्रदेश में गोद लिए हुए गांव में गए। हर जगह काफी चर्चा हुई राहुल की मेहनत की। राहुल ने वहां जाकर मजदूरी की, मिट्टी ढोई। बच्चों से हाथ मिलाए, लोगों से मिलते रहे, बात करते रहे, उनके साथ खाना खाया, चाय पी, लोगों की कुटिया में घुसकर लोगों से मिले और साथ ही गंदे कुर्ते में ही पूरे दिन रहे। लेकिन तभी गांव की एक महिला सामने आती है और लोगों से पूछती है कि ये गोरा सा लड़का कौन है? एक तरफ तो वो लोगों से मिल रहे थे। ऐसा भी नहीं कि पिछले दिनों उस गांव में चर्चा नहीं रही होगी कि कौन आ रहा है। फिर भी उस ग्रामीण महिला के सवाल से बहुत कुछ जाहिर होता है। उस महिला से लोगों ने पूछा, कि क्या इंदिरा गांधी को जानती हो, वो बोली हां। सोनिया गांधी को जानती हो, वो बोली हां, तो ये उसी सोनिया गांधी के लड़के हैं, राहुल गांधी । तो ये अंतर है राहुल और सोनिया में। उस ग्रामीण महिला को भी पता है कि सोनिया कौन है। शायद ये कहा जा सकता है कि राहुल को जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए हैं राजनीति में राजनीतिन करते हुए और सोनिया पुरानी खिलाड़ी हो चली हैं इस फील्ड की।
ऐसा नहीं है कि इंदिरा गांधी की तरह पूरी पावर ना पाते हुए भी पीछे से ही सही उस ‘पावर’ का उपयोग करती सोनिया गांधी ने कई चाल ऐसी चली कि जो इस चुनाव में कांग्रेस के लिए हार का सबब बन सकती हैं। जैसे देश की अंदरुनी सुरक्षा, सबसे कमजोर गृहमंत्री को बचाना, नटवर सिंह को विदेश मंत्रालय देना, ए के एंटनी को रक्षा मंत्री बनाना जो कि देर से निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं(जैसा कि हाल ही में स्टोल्ट वेलोर जहाज में फंसे भारतीय के मामले में) महंगाई पर रोक ना लगा पाना, आदि। ऐसे कई मुद्दे हैं जिसके कारण वो घिरी हुई हैं। कई को तो वो ठीक कर सकतीं थी पर कई मुद्दों को उन्होंने ठीक किया ही नहीं।
शायद लोगों को बहू ज्यादा याद है पोते से। या यूं कहें कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर जो राजनीतिक चाल चली थी वो इतनी कामयाब हो गई कि लोग उस अवसर को आज भी अपने जहन में बैठाए हुए हैं। उस चाल ने उनका कद बढ़ा दिया और लोग ये मानने लगे हैं कि सोनिया गांधी वो ही महिला हैं जो कि एक ऐसे पद को ठुकरा चुकी है जिसके लिए हर पार्टी के लोग दल बदल करते रहते हैं और सब के सामने लड़ने से भी नहीं हिचकते।

आपका अपना
नीतीश राज
“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”