वाह भई, चित भी मेरी पट भी मेरी। हम तो करेक्टर के हिसाब से काम करते हैं। यदि स्क्रीप्ट में ये डिमांड है कि हमें अपने पार्टनर के साथ कोई अंतरंग सीन देना है तो हम वो भी करने के लिए तैयार हैं पर ये डिमांड स्क्रीप्ट की होनी चाहिए। हमें लगना चाहिए कि ये फिल्म की डिमांड है। आप भी जानते हैं यदि बीच का सीन होगा तो वहां पर साड़ी पहनकर तो हम जाएंगे नहीं। यदि कोई एक प्रेमिका की भूमिका में है या फिर पत्नी की भूमिका में है तो फिल्म की स्क्रीप्ट के हिसाब से ही काम करना होगा। हमारी कोशिश ये होती है कि कैसे भी हम फिल्म में वो फील लेकर आएं की देख कर लगे कि हां ये रिएल है। ये बात आपको आज कल के अधिक्तर एक्टर कहते सुनते नजर आजाएंगे।
सही बात है कि रिएल का संबंध रील से होता है। इसलिए कई निर्देशक आज भी इसी फिराक में रहते हैं कि कैसे भी जिंदगी के हर कौण को दर्शाती फिल्म बनाई जाए। उस फिल्म में ये सीन अच्छे भी लगते हैं और ये भी दर्शाते हैं कि इनकी उपयोगिता थी फिल्म में, इन सीन की जगह थी फिल्म में। फिल्म को चलाने के लिए जबरन ठांसे नहीं गए हैं। इन फिल्मों में कोई भी हीरो एक साथ 20-25 गुंडों को मारता नजर नहीं आएगा।
कब तक हमारे एक्टर दोहरी जिंदगी पर मुहर लगाते रहेंगे। कब तक अपनी हवस/वासना को पूरा करने के लिए ये ढोंग करते रहेंगे। अपने चेहरे पर नकाब ओढ़े रहेंगे हमारे अदाकार। एक उदाहरण के तौर पर देखें तो, जी हां, पुरानी फिल्मों में किस सीन के लिए दो फूलों को जोड़ दिया जाता था या फिर कैमरा पैन कर दिया जाता था किसी सुंदर जगहों पर। पुरानी फिल्मों में एक हीरो 100 गुंडों की फौज को खत्म कर देता था जबकि गुंडों के पास हथियार होते थे। याने वो फिल्में काल्पनिक चरित्रों पर बनती थीं अधिकतर फिल्में जिन में मारधाड़ होती थी वो रील में रिएल का मिश्रण नहीं होती थीं। आज की फिल्मों में भी किस सीन होते हैं पर यहां फूल नहीं 'स्मूच' को पांच मिनट तक दिखाया जाता है, बहाना है रील में रिएल के तड़के का। पर वहीं दूसरी तरफ एक हीरों आज भी 20-25 गुंडों पर भारी पड़ता है और उन्हें खत्म कर देता है। क्या ये सचमुच संभव है? क्या ये रिएल है? कहीं तो रिएल हो, या तो वो किस रिएल हो सकता है या फिर एक हीरो 20-25 गुंडों पर भारी पड़ सकता है।
20वीं मंजिल से हीरो कूद जाता है, या खुदा हीरो सही सलामत, पर दूसरी मंजिल से विलेन कूदता है तो हाथ-गोड़ तुड़वा बैठता है। अच्छा समझ में आया विलेन का पाप का घड़ा भर गया होगा। किस रिएल कर रहे हो तो फाइट सीन भी रिएल करो। फिर देखते हैं कि गुलाम में हीरो आमिर खान विलेन पर कितना भारी पड़ता है।
अरे, अपनी हरकतों के नाम पर लोगों को बरगलाना बंद करो। यदि है हिम्मत तो काम करो हॉलीवुड के हीरो-हीरोइन की तरह, उदाहरण तो देते हो हर बात पर तो उनके जैसा काम भी करो। वो जो काम करते हैं तो उसके पीछे लॉजिक देने की कोशिश करते हैं। यदि वो दूसरी मंजिल से छलांग लगा रहे हैं और पीछे तार से उनको पकड़ा हुआ है तब भी वो ये दिखाएंगे कि छलांग मारने पर उनको लगी है। पर हमारे हीरो 10वीं मंजिल से छलांग लगाने के बाद भी ठीक से खड़े हो जाएंगे। उनको देखा-देखी कई बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं या फिर अपाहिज हो चुके हैं।
लव सीन देते हुए तो सबसे बड़ा झूठ सामने आता है। कोई पति-पत्नी कितनी देर फोरप्ले करेंगे, उस पर विराम तो लगना है ही तो क्या हमारे अदाकार उन सीन्स को करने का कलेजा रखते हैं। क्या अभी तक कोई हीरो या हीरोइन ने अपने प्राइवेट पार्टस किसी भी मूवी में दिखाए हैं सेक्स के दौरान। सेक्स सीन करेंगे तो मिलेगा 'ए' सर्टिफिकेट और फिर फिल्म चलेगी नहीं तो सिर्फ 17-18 स्मूच सीन से ही काम चलाते हैं। यदि रिएल्टी का शौक चढ़ आया है तो लो अपने फैसले मत बनो प्रोड्यूसर-डायरेक्टर के हाथ की कठपुतली। वैसे हर बात के लिए स्क्रीप्ट का हवाला पर जहां फंसने वाली बात आए तो डायरेक्टर का हवाला। 'ए' सर्टिफिकेट ना दे दिया जाए उसके लिए प्रोड्यूसर और डायरेक्टर एडी चोटी का जोर लगा देते हैं। याद आता है कि अभी हाल ही में रिलीज हुई राज में कंगना रनाउत के एक शॉट में बाथरूम में नेकेड सीन दिया तो कोहराम मच गया। बाद में पता चला कि कंगना ने Body coloured thin skin tight ड्रेस पहन रखी थी। ए सर्टिफिकेट के डर के कारण फैशन के लिए भी मधुर भंडारकर को दिल्ली तक के चक्कर लगाने पड़ गए थे। सब जानते हैं कि यूए सर्टिफिकेट मिल जाएगा तब भी कोई फर्क तो पड़ना नहीं है।
वहीं दूसरी तरफ हॉलीवुड में एक डायरेक्टर अपनी पत्नी को सेक्स सीन समझाता है और वो भी दूसरे एक्टर के साथ कि कैसे इस सीन को अंजाम देना है। वो अदाकारा एक मूवी के लिए लगभग 85 करोड़ लेती हैं और वहीं एक्टर 130 करोड़ के करीब चार्ज करते हैं। हमारे यहां पर इतने में मूवी बन जाती है।
क्या हमारा समाज इतना परिपक्व हो गया है कि वो सेक्स सीन्स को हजम कर सके। मुझे लगता है कि समाज तो हजम कर जाएगा क्योंकि जब बॉलीवुड की मूवी हजम कर जाते हैं तो अपने देश के अदाकारों को हजम क्यों नहीं कर पाएंगे। पर असल बात ये है कि कितना सोचा जाता है किसी फिल्म में रिएल इनपुट के नाम पर? सिर्फ अधिक से अधिक जिस्म दिखा दो और कुछ नहीं, अभी किस करने पर ज्यादा जवाब नहीं देना होता है तो उसकी छूट मिली हुई है।
बस प्रेमी सैफ किस अभिनेत्री को किस कर रहे हैं उससे करीना को एतराज नहीं होना चाहिए और करीना किस को किस कर रही हैं इससे सैफ को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। फिर तो गाड़ी चलने दो स्क्रीप्ट की डिमांड के नाम पर और करते रहो किस, बरगलाते रहो दुनिया को पर कुछ रिएल मत करो।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
पता नहीं इन लोगों का स्क्रीप्ट डिमान्ड और पब्लिक डिमान्ड तय करने का पैमाना क्या है? मीडिया वाले, सिनेमा वाले सभी झट से बोल जाते हैं कि पब्लिक डिमान्ड पर ऐसा दिखाना पड़ता है। आपका आलेख सार्थक लगा।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
जब तक गजनी जैसी बिना सर-पैर की वाहियात फिल्मे हिट होती रहेंगी, कोई क्यों अच्छी फिल्मे बनाकर खतरा मोल लेगा? सिर्फ फिल्म वालों का दोष नही है वे वही दिखाते हैं जो लोग देखना चाहते हैं ..मूल में वही आदिम वृति है "मैं सर्वशक्तिमान हूँ" नायक में दर्शक अपनी छवि खोजता है ..अभी औसत भारतीय दर्शक इतना परिपक्व नही हुआ है की वास्तविकता को स्वीकार कर सके.वह अभी भी फंतासिओं की दुनिया में रहना चाहता है ..और फिल्म वाले इसी ग्रंथि का लाभ उठाते हैं. जिस दिन लोग सिर्फ अच्छी चीजें देखना चाहेंगे वाहियात चीजें खुद ब खुद खत्म हो जाएँगी. एक उदहारण देती हूँ ७०-८० के दशक में बलात्कार के दृश्य फिल्मों में रखे जाते थे ताकि हीरो के प्रति लोगों में सहानुभूति बढे ..पर क्या कारन सिर्फ यही था? यह बात सोंचने वाली है.
ReplyDeleteइसिलिये तो बालीवुड मुम्बई को मायानगरी कहते हैं।माया महा ठगनी,उन्की बाते वे ही जाने।
ReplyDeleteBilkul sahi kaha aapne.....sahmat hun aapse..
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