क्या हवस-वासना के आगे हम अंधे हो जाते हैं? क्या हवस इतनी बड़ी चीज होती है कि कोई उस पर काबू नहीं रख पाए? ‘लस्ट’ याने काम भोग की इच्छा करना और यदि इस इच्छा के बीच में कोई आए तो उस को रास्ते से हटा देना। क्यों बरसात के समय में जानवरों के इलाकों में जाने की मनाई होती है। उसका कारण है कि जानवर जब संभोग करता रहे तो गर कोई उसे इस बीच तंग करे तो वो हमला कर देता है। क्या इंसान फिर से जानवर की तरह ही बनता जा रहा है?
एक मां सारे कष्टों को सहते हुए अपने बच्चों को अपना रूप देने की कोशिश करती है, सही इंसान बनाने की कोशिश करती है। पर क्या गलती हो गई थी उस मां से, जिसने अपनी बेटी को वो करने से रोका जो कि मां को गलत लगा था। शायद उस मां ने भी सोचा होगा कि बस बहुत हो चुका, अब आगे नहीं। बेटी को गलत करने से रोकना ही होगा। मां ने रोका और बेटी ने मां पर तब तक वार किए जब तक की वो मर नहीं गई।
एक, दो, तीन नहीं दर्जन से ज्यादा ब्वॉयफ्रेंड थे साक्षी के। वो अधिकतर अपने घर पर ही उनको बुलाती थी जब कि परिवार वाले घर पर नहीं होते थे। ऐसे ही उसने अपने एक ब्वॉयफ्रैंड को बुलाया और दोनों लिप्त हो गए उस कांड में जिसे की उसकी मां सत्संग से थोड़ा जल्दी वापस आने पर देख नहीं सकी। पर हवस-वासना की आग ने बेटी और उस लड़के से वो करवा दिया जो वो होश में नहीं कर सकते थे। पहले सर पर बीयर की बोतल, फिर सर पर प्रैस से चोट, फिर चाकू और पेचकस से वार। पूरा कमरा खून से लथपथ। उसके बाद लूटपाट की प्लानिंग। पुलिस ने अब तक ये ही जानकारी दी है। पर वहीं दूसरी तरफ पिता और पड़ोसियों की मानें तो ये कि साक्षी पढ़ने में अच्छी थी साथ ही अब वो पढ़ा भी रही थी। और कभी भी कोई शिकायत किसी के सामने नहीं आई थी।
क्या ये मानें कि २६ साल की जवान लड़की गर घर में अविवाहित होगी तो ऐसा होना स्वाभाविक है? क्या ये नारी का नैतिक पतन है? इस एक वाक्ये के कारण ही नहीं कई और भी वाक्ये सामने आए हैं पिछले कुछ समय में जो इस सवाल पर सोचने को मजबूर करते हैं।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
यह सम्पूर्ण समाज का पतन दर्शाता है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
behad sharmnak hadsa
ReplyDeleteहतप्रभ हूँ !
ReplyDeletedisgusting the whole episode left a very bitter taste in mouth
ReplyDeleteas zakir has said its the entire faliur of indian family system that such cases are on the rise
indian system does not permit grown ups to take their own descions and that is why the level of frustration makes them criminals
woman have been committin grimes before and its not that she was single or full of luct that she committed the crime its tht she had developed long lasting hate for her maother and she committed the crime as she got the chance
i am not JSUSTIFYING what she did i am merely saying its wake up time for the society to understand that family system is no more of relevance and kids who dont want to adhere to famliy system should be polietly told to find their own abode
अगर सही रुप मै देखा जाये तो कही ना कही मां बाप की गलती है, पहले तो आधुनिकता के नाम पर बच्चो को हद से ज्यादा आजादी दे देते है, ओर जब बच्चे भटक जाते है, तो उन्हे रोकने की कोशिश करते है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है, ओर अब इसे क्या कहे, मै तो बस जाखिर अली रजनीश की बात से सहमत हुं
ReplyDeleteएक लड़की ने माँ को मारा और सभी महिलाओं के पतन पर बात आ गई? पुरुषों ने अनेक माओं और पिताओं को कत्ल किया तब पुरुषों के नैतिक पतन की बात किसी ने नहीं की। जैसे यह पुरुषों की नैतिकता में शामिल हो?
ReplyDeleteKya kaha jaay.....
ReplyDeleteमहिलाओं का नहीं भाई.....समाज का
ReplyDeleteअनुराग जी से सहमत, ये समूचे समाज का नैतिक पतन है… सिर्फ़ महिलाओं की नहीं…
ReplyDeleteबाज़ारवाद से उभरी कामनायें समाज के पतन का कारण बन रहीं
ReplyDeleteजाकिर भाई और अनुराग जी से सहमत.
ReplyDeleteयहां सवाल महिला पुरुष का है ही नही. ऐसे वाकये होने लगे हैं यह खतरे की घंटी है. समय रहते हमे सोचना पडेगा. पर जिस जीवन शैली को आज हम जीने के आदि हो रहे हैं उसे देखते हुये कसूर सिर्फ़ बच्चों का ही नही है. यह जिम्मेदारी पूरे समाज की बनती है.
ReplyDeleteरामराम.
दुखद व निदंनीय घटना है।
ReplyDeleteमुझे तो यह भी समझ नहीं आया कि बच्चों को नज़रंदाज़ करके कौन सा सत्संग होता है?
ReplyDeleteहम आगे बदने के चक्कर मे कही पीछे रह गए हैँ आजादी के साथ अपने बच्चोँ क़ॉ कर्तव्य सीखाने मे नाकाम हो जाते हैँ .सत्संग से पहले घर की जिम्मेदारी आधिक है यह तो हमने सोचना है लेकिन अगर बच्चे कहना न माने तो उन्हेँ अपने हाल पर छोड दे और अपनी जिन्दगी दूभर ना करें समय उन्हेँ समझायेगा .....दीपा
ReplyDeleteI feel this may be a cooked up story to avoid hard work and finding the real criminal. People should take lesson from Aarushi kand where, parents were tortured on such baseless stories, by media and police.
ReplyDeletePlease do not hurry in concluding this event without significant evidence. May be the father knows best about his daughter and the girl is black painted by media and others and being used as a escape goat.
ये अलार्म है खतरे का,समाज अब नही जागा तो ये शायद रोज़ बजेगा।
ReplyDeleteसमाज किस कद्र अपनी इंसानियत खो रहा है यह वाकया यह बताता है ...
ReplyDeleteइस तरह की खबरें यहाँ आती रहीं हैं शर्मनाक होते हैं ऐसे हादसे
ReplyDeleteआज के दौर मे किस हद तक इंसान गिर जाता है यह एक़ आईना है
ReplyDeletejab tak ham khud nahin sudharenge tab tak aisa hi hoga.
ReplyDeleteAADHUNIKTA ke naam par NAR-NARI dono hi apne-apne astitava ko khote ja rahe hain.
bahut hi nindneey ghtna hai.
ReplyDeletenaitik mulyo ki jimmevari ma pita ki hi hoti hai.asi ghtnaye har un ma pita ke liye shiksha hai jo kbhi kbhi janbujhkar bhi asi bato ko laprvahi se lete hai aur jb nindra tutti hai to bhut der ho jati hai .