कुछ बातों और चीजों की आदत सी पड़ जाती है। मस्लन रात के काम और दो-चार पैग के हैंगोवर को मिटाने के लिए सुबह उठते के साथ ही गर्मा गर्म चाय और साथ में दिमाग को पटरी पर लाने के लिए अखबार। सुबह यदि ये दोनों चीज ना मिलें तो लगता है कि दिन की शुरूआत अभी हुई नहीं और जो हुई है वो अधूरी-अधूरी सी है। सुबह से ही ये दोनों मेरे दिन भर की जरूरत बन जाती हैं।
काले हरफों पर दिन भर आंख यूं गड़ी रहती है, ना जाने,
क्यों ये लगता है, इन अक्षरों में मेरी महबूबा रहती है।
पर ये महबूबा बने हरफ जब सच्चाई बताते हैं तो महबूबा जैसा ही दर्द देते हैं। लगता है कि इसके रंग से ही अखबार को भी काला कर दूं। पिछले दिनों कई ख़बरें ऐसी आई जिसने ये सोचने पर मजबूर किया कि क्या कोई कानून इन लोगों के खिलाफ नहीं बनना चाहिए जो ये ग़लत काम कर रहे हैं।
ख़बर-बिहार में एक हॉल्ट को हटाने पर दो ट्रेनें फूंकी गई, एक स्टेशन को जला दिया गया। श्रमजीवी एक्सप्रेस की दो बोगियां जलाई गईं। रेलवे ट्रैक उखाड़ दिए गए।
गांवों के लोगों ने इस काम को यूं अंजाम दिया जैसे कि कूड़े या कचड़े को जलाया गया हो। इस काम को अंजाम देने के बाद वो अपने आप को किसी हीरो से कम नहीं समझ रहे होंगे पर मेरे लिए वो विलेन से भी बदत्तर हैं। उन लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं था कि उनकी इस करतूत से कितना नुकसान हुआ होगा राष्ट्रीय संपत्ति को। वो हॉल्ट इस लिए बंद किया गया था क्योंकि उस जगह से कोई भी आमदनी रेलवे को नहीं हो रही थी। तो लंबी दूरियों की ट्रेन को क्यों रोक कर ईंधन, समय को बर्बाद किया जाए। वैसे भी अधिकतर ट्रेन राजगीर से पटना के बीच ११ जगहों पर रुकती है जबकि दोनों स्टेशनों के बीच महज दूरी है ९९ किलोमीटर। याने कि हर ९ किलोमीटर के बाद ट्रेन रुकेगी। सुपरफास्ट ट्रेनें हर ९ किलोमीटर के बाद रूकती हैं बिहार में।
भई, क्यों जला दी आपने ट्रेन? तो एक शख्स दूसरे का मुंह तकता है कि भई क्यों जला दी। अरे, तू भाग रहा था तो मैं भी तेरे पीछे-पीछे भाग लिया। मुझे क्या पता तू किस लिए भागा। कोई अलग जवाब देता कि लोगों ने जला दी हमें क्या मालूम। कौन लोग? नहीं पता। फिर पीछे से कुछ दस-बारह लोग सामने आएंगे और बातों को घुमाने लगेंगे। वो कौन? किसी राजनीतिक पार्टी के मुंह बोले भाई लोग।
ख़बर-ऑस्ट्रिया के शहर वियना में गुरुद्वारे में फायरिंग, संत रामानंद और गुरू निरंजन दास पर हुआ हमला। संत गुजर गए और गुरूजी घायल। हमलावर गिरफ्तार।
धीरे-धीरे शाम तक देश में ये ख़बर फैलने लगती है। पंजाब में कुछ जगहों पर सेना तैनात और कुछ जगहों पर एहतियातन कर्फ्यू लगने लगता है। पर रात गहराती है वहीं दंगाई सड़कों पर। सबसे पहले जालंधर फिर फिरोजपुर, धीरे-धीरे पंजाब के और शहर और फिर हरियाणा जलने लगता है। हर जगह ट्रकों, बसों, में आग लगा दी जाती है। जलांधर कैंट स्टेशन पर हिमगिरी एक्सप्रेस आग के हवाले। घर लूट लिए गए, हाईवे की सभी दुकानें लूट ली गईं। २४-२५-२६ मई तीन दिन में पंजाब में चारों तरफ हाहाकार मच जाता है। क्या है ये सब? क्या लोगों के अंदर से कानून का ख़ौफ़ निकल गया है।
पहली बात दोनों घटनाओं में लोगों ने राष्ट्रीय संपत्ति को हानि पहुंचाई। क्यों? क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं जिसके तहत कोई कार्रवाई इन लोगों पर हो सके। भीड़ है भीड़ पर कोई कानून नहीं लागू होता। दूसरे देश में रंजिश की वहज से कत्ल हो जाता है तो भी यहां पर जिस शख्स की दुकान लूटी गई जिसके घर जलाए गए, उन्होंने क्या बिगाड़ा था। उसकी दुकान या घर लूट लेने से क्या बदला पूरा हो गया? ऐसा नहीं है।
क्या मिल जाता है इन लोगों को ऐसा करके। टैक्स मैं भरता हूं मेरी जरूरतें पूरी हो नहीं पाती फिर भी टैक्स भरता हूं। उन ट्रेनों, बसों में मेरा भी हिस्सा था जिन्हें फूंक दिया गया, मेरे पैसों को फूंक दिया गया? क्या है किसी के पास जवाब।
पंजाब के उन इलाकों में जहां दंगाइयों ने दुकान लूटी, घर लूटे काफी समय तक कोई भी लूटपाट की घटना वहां नहीं होगी। क्योंकि वो दंगाई नहीं लुटेरे थे जिन्होंने बहती गंगा में हाथ धोए हैं।
जब भी ऐसी खबरें पढ़ता हूं तो चाय मुंह का स्वाद सुबह-सुबह ही कसेला कर जाती है।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
भीडतंत्र के लिए कोई उपाय सोचना ही होगा।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आपने जिन दो घटनाओं का जिक्र किया है...उन दोनों में ही ट्रेन को जलाने का मतलब समझ में नहीं आता..!ये सार्वजनिक सम्पति तो हम सबकी है...!सरकार ये पैसे हम से ही वसूलेगी..!इसलिए अपना घर जला कर कोई खुश होता है तो...उसे क्या कहें...
ReplyDeleteभीड़ की ये बीमारी बहुत तेजी से फ़ैल रही है। छत्तीसगढ जैसे शांत ईलाके मे भी मामूली सड़क दुर्घटना पर भीड़ गाड़ियां फ़ूंकने लगी है।ये संकेत अच्छे नही है और सरकारी हो या निजी किसी भी संपत्ति का बेवजह नष्ट होना कोई अच्छी बात नही है। आपकी सवाल बहुत सही है और आपकी चिंता भी जायज है।
ReplyDeleteइस भीड़ तंत्र के पीछे जिस का हाथ है पहले उसे बेनकाब करना होगा। साथ ही ऐसे कार्य करने वालों को मौके पर ही अच्छी तरह धुन दिया जाना चाहिए। तभी कुछ हो सकेगा।
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