Thursday, June 18, 2009

धोनी के हाथ में कमान नहीं

आधी रात तक टीवी के आगे आंख गड़ाए रखना, मैच के जुनून के कारण घर में सभी से झगड़ा करके टीवी के सामने डटे रहना, एक भी गेंद नागा जाने नहीं देना। हर गेंद पर विश्लेषण करते रहना और लग रहा था कि टीम इंडिया यदि कैसे भी 125-130 तक दक्षिण अफ्रीका को रोक दे तो फिर जीत हाथ में होगी। हुआ भी वो ही भारत ने उनको रोक तो दिया और यदि डीविलियर्स के साथ भारतीय गेंदबाजों ने चूक ना की होती तो ये स्कोर और भी शायद कम होता। पर 131 का टारगेट ठीक था और लग रहा था कि टीम जीत जाएगी। टीम इंडिया की बैटिंग आई तो लगा कि दोनों ओपनर पिछली हार से सबक ले चुके है। 6 ओवर तक बिना विकेट खोए टीम इंडिया का स्कोर 47 रन हो चुका था। अब लगा कि 84 गेंद पर 83 रन जीत के लिए टीम इंडिया को चाहिए थे तो जीत के भरोसे के साथ अधिकतर लोग सो गए पर सुबह ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया।

सुबह सबको पता चला कि भारत 12 रन से हार गया। मुझे याद है कि जब मैंने मैच देखना बंद किया था ठीक उसके एक रन के बाद ही गंभीर आउट हो गए। और भारत ने मात्र 22 रन के अंतर पर अपने 5 विकेट खो दिए। जिसमें गंभीर,रैना, रोहित, कप्तान धोनी, सुपर हीरो यूसुफ पठान सब पवेलियन लौट चुके थे। हाइलाइट्स देखने के बाद लगा कि ये कैसा गेम खेली है टीम इंडिया। रैना ने पिछले तीनों मैच में ऐसी ही गैर जिम्मेदाराना शॉट खेलकर अपना विकेट खो दिया। कप्तान धोनी ने फर्राटा दौड़ लगाने के बाद अपना विकेट गंवा दिया। यदि युवराज पूरी तरह से फिट होते तो शायद वो रन हो जाता वर्ना वो रन किसी भी कीमत पर नहीं था। साथ ही साथ धोनी ने ये भी देखना उचित नहीं समझा कि उनके सहयोगी अपनी क्रीज से एक कदम भी नहीं आगे बढ़े हैं और धोनी सुपरफास्ट तरीके से आधी क्रीज पार कर गए और आउट होकर चलते बने। आईपीएल के हीरो यूसुफ पठान तो कैच प्रैक्टिस कराके चलते बने। और इस तरह भारत ने महज 22 रन के अंदर आधी टीम लौट गई। दिल पे लेने वाले अधिकतर आहत हुए। तो क्या कारण था कि टीम इंडिया टी-20 में इस बार क्यों हारी?

धोनी मान रहे हैं कि जब टीम का सलेक्शन हुआ तब ही काफी खिलाड़ी 100 फीसदी फिट नहीं थे
सुपर 8 में सुपर फ्लॉप, आईसीसी वर्ल्ड टी 20 में इस बार भारत ने 5 मुकाबले खेले और सिर्फ 2 में ही जीत हासिल की वो भी उन टीमों के साथ जो शायद इस टूर्नामेंट की सबसे कमजोर टीमें थी। 2007 में टीम इंडिया ने सुपर 8 में तीन मैच खेले थे और दो में जीत दर्ज की थी पर इस बार 2009 में टीम इंडिया ने फिर 3 मैच खेले और तीनों में हार का मुंह देखना पड़ा।

अब बात सामने आती है क्यों ऐसा हुआ? क्यों टीम इंडिया सुपर 8 में अपने सारे मैच हार गई? क्यों टीम इंडिया को इस वर्ल्ड कप की सबसे फेवरेट टीम माना जा रहा था पर फिर भी वो हर क्षेत्र में फेल रही? क्यों टीम इंडिया के खिलाड़ी इस वर्ल्ड कप में पर्फोर्म नहीं कर पाई? क्या हुआ जो कि एकजुट टीम बिखरी हुई नजह आई? पहली बार ऐसा क्या हुआ कि कप्तान और कोच आमने-सामने आकर खड़े हो गए? क्यों इस बार चयनकर्ता और बोर्ड एक ही सुर में बोलते हुए कोच के पीछे पड़ गए उस कोच के पीछे जिसे वो अब तक का सबसे बेहतरीन कोच मान रहे थे?

तो क्या है इन सब के पीछे की बात। पहली बात तो ये कि टीम इंडिया को फेवरेट क्यों माना जा रहा था क्योंकि भारत पूर्व चैंपियन था। वर्ना भारत ने पिछले वर्ल्ड कप 2007 से 2009 वर्ल्ड कप तक सिर्फ 5 मैच 20-20 टीम की तरह खेले और उसमें 3 में हार मिली। पिछले वर्ल्ड कप का जादू टीम इंडिया नहीं दिखा सकी। पिछली बार ये सभी देशों के लिए एक नया फॉरमेट रहा पर भारत के पास मजबूत, चुस्त, फुर्तीले, जवान, जोशीले, खिलाड़ी थे जिन्होंने अपने जोश के कारण टीम को जीत दिला दी। और साथ ही पिछला वर्ल्ड कप धोनी ने एक चैलेंज की तरह लिया था पर इस बार ऐसा नहीं था। 'हमारे सारे खिलाड़ी टूर्नामेंट से पहले बुरी तरह थके हुए थे' कोच ने कहा। कप्तान ने इससे अलग कहा, नहीं हम थके नहीं थे पर बाद में पलट गए कि हम थके जरूर थे पर उतने नहीं जितना श्रीलंका सीरीज से पहले। अब धोनी मान रहे हैं कि जब टीम का सलेक्शन हुआ तब ही काफी खिलाड़ी 100 फीसदी फिट नहीं थे। अरे, धोनी साहब हार गए तो अब सब बोलने लगे।

वर्ल्ड कप 2007 से 2009 वर्ल्ड कप तक सिर्फ 5 मैच 20-20 टीम की तरह खेले और उसमें 3 में हार मिली।

यदि देखा जाए तो भारत के खिलाड़ी हर जगह दूसरी टीम के साथ चैक मेट किए गए। जिस खिलाड़ी को शॉट पिट गेंदें खेलने में दिक्कत होती थी तो दूसरी टीम ने इस पर खूब होमवर्क किया और उस खिलाड़ी को कोई दूसरी गेंद नहीं फेंकी गई। रोहित और रैना आईपीएल में मजबूत दिखे पर यहां पर बुत बन कर ही रह गए खासकर कि रैना जिनसे शॉट पिच गेंदें खेली ही नहीं गई। सुपर 8 में तीन में से दो बार रैना इस गेंद का ही शिकार बनें। वहीं धोनी ने बाद में खुद कबूला कि हां वो 100 फीसदी नहीं दे पाए। जहां तक गेंदबाजी की बात है तो दूसरी टीम के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित होने वाले ईशांत शर्मा को कुछ यूं मार्क किया गया कि ईशांत को बांग्लादेश के खिलाफ सिर्फ दो विकेट मिले और अब तक खेले 8 मैचों में सिर्फ 4 विकेट का उनका कैरियर रहा। वहीं ईशांत के कारण ही आरपी सिंह बाहर बैठे जो कि पिछली बार टीम विनर साबित हुए थे। सेलेक्टर को इस बात पर ध्यान रखते हुए ईशांत को और ट्रेनिंग देनी चाहिए। हर कीमत पर फील्डिंग भारत के लिए सबसे बड़ा सवाल खड़ा करती नजर आई। खुद धोनी ने इस बार रन आउट और स्टंपिंग छोड़ी। साथ ही युवराज के घुटने की चोट इतनी ज्यादा थी कि वो झुक नहीं पा रहे थे। इंग्लैंड से भारत सिर्फ ३ रन से हारा था उसका कारण यदि सीनियर खिलाड़ियों को माना जाए तो वो कम नहीं है। सरासर वो धोनी की गलती थी कि आरपी सिंह के 1 ओवर होते हुए भज्जी को ओवर दिया गया और भज्जी ने 10 रन उस ओवर में दे दिए। साथ ही अंतिम गेंद पर यदि युवराज थोड़ा झुक जाते और अपने पैर के नीचे से गेंद को नहीं निकलने देते तो शायद वो चौका नहीं होता पर अनफिट युवी वो चौका नहीं रोक सके और भारत 3 रन से हार गया।

कोच ने इल्जाम लगाया कि थकी हुई टीम उनको मिली वर्ल्ड कप से पहले मिली थी। वहीं सेलेक्टर कहते हैं कि आईपीएल से नुकसान नहीं हुआ और दूसरे देशों को तो फायदा हुआ फिर गैरी कैसे कह रहे हैं। सेलेक्टर ऐसा कैसे कह सकते हैं। दूसरे देश के खिलाड़ी अनुभव लेकर अपनी टीम के साथ जाकर मिल गए पर वहीं टीम इंडिया के खिलाड़ी साथ होकर भी साथ नहीं थे। हम आईपीएल में आपस में ही लड़ रहे थे, कोई ये तो बताए कि हम टीम की तरह न्यूजीलैंड के दौरे के बाद कब खेले? पिछले 12 महीने में भारत ने 11 महीने क्रिकेट खेली है। क्यों झूठ कहने पर तुले हुए हैं बोर्ड और चयनकर्ता।


जून 2008 में किटप्लाई कप
जून-जुलाई 2008 में एशिया कप
जुलाई-अगस्त 2008 में भारत का श्रीलंका दौरा
अक्टूबर-नवंबर 2008 में भारत के दौरे पर ऑस्ट्रेलिया
नवंबर-दिसंबर 2008 में इंग्लैंड का भारत दौरा
जनवरी-फरवरी 2008 में भारत का श्रीलंका दौरा
फरवरी-अप्रैल 2009 में भारत का न्यूजीलैंड दौरा
18 अप्रैल से द.अफ्रीका में आईपीएल
5 जून से आईसीसी वर्ल्ड टी-20
अब 26 जून 2009 से वेस्टइंडीज दौरा

तीसरा सबसे बड़ा कारण है इस कप के शुरूआत में ही धोनी की सहवाग संग लड़ाई। इसने टीम को खेमों में बांट दिया। कप्तान को आकर मीडिया के सामने, दुनिया के सामने बयान देना पड़ा। वहीं, दूसरी तरफ धोनी ने अपना कूल टेंप्रामेंट खो दिया और मीडिया के साथ वाकयुद्ध में उलझ गए जो कि सरासर गलत था खासकर कि किसी भी टूर्नामेंट से पहले। इससे साफ पता चलता था कि धोनी टीम पर अपना वर्चस्व कायम रखना चाहते थे और वहीं टीम में गुट बनने लगे थे। युवराज, गंभीर, रैना सब अलग-थलग रहे पूरे टूर्नामेंट के दौरान। वहीं उपकप्तान के नाम पर गंभीर के नाम का सुझाव देना भी किसी संशय को जन्म देता है। युवराज का उपकप्तान बनते ही युवी का मीडिया से पीसी में कहना कि हम अभ्यास आपसे(मीडिया से) पूछ कर नहीं करेंगे और हम जानते हैं कि हमें कब प्रैक्टिस करनी है, कल के नतीजे बता देंगे कि हमें प्रैक्टिस करनी चाहिए थी या नहीं। अगले दिन इंग्लैंड से हार गई टीम। और टीम के कुछ खिलाड़ी हार के बाद हंसते हुए दिखाई दिए कैमरे पर। जब युवी पीसी में ये बात कर रहे थे तब दूसरी तरफ वहीं धोनी प्रैक्टिस कर रहे थे इससे साफ लगता है कि धोनी के हाथ में कमान नहीं रह गई है।

आपका अपना
नीतीश राज

3 comments:

  1. पैनी नज़र का पैना आब्ज़र्वेशन है भैया।सच कह रहे है आप लगता तो नही कमान धोनी के हाथ मे रह गई है हालांकि उनके हाथों मे कमान थमाई ज़रूर गई है।

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  2. धोनी पता नहीं क्यों बदले बदले से नजर आ रहे है ..ऐसा लगता है भारतीय टीम अधिक आत्मविश्वास का शिकार हुई है .बांग्लादेश के खिलाफ भी युवराज अगर रन नहीं बनाते तो मुश्किल हो जाती....
    धोनी की अपनी बैटिंग में वो फार्म नहीं है ..ठीक है हर प्लेयर के साठ ऐसा होता है पर वे उसे स्वीकार क्यों नहीं कर रहे ...इंग्लेंड के खिलाफ उन्होंने छक्का मारने का प्रयास भी नहीं किया ...उस मैच में उनकी कई गलती रही...
    लचर फील्डिंग .आखिरी ओवर में बाय के पञ्च रन ...जो बाद में मंहगे पड़े ...
    इशांत को खिलाना .आर पी को आखिरी ओवरों में बोल्लिंग नहीं देना ....जडेजा को आगे भेजना ....
    मै धोनी का फेन रहा हूँ....पर अगर वे हार को इमानदारी से स्वीकारते तो अच्छा लगता .

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  3. sabse sahi aur seedhi vajah ye hai ki itihaas gavaah hai ki World cup me Bharat ek khaas pattern follow karta hai...gar is team se koi ummeed na ho to ye sabko chakit karegi aur achha khelegi...agar ummeed ho to kharaab..ise favourite maana jaaye to bahut hi kharaab...2007 wc ho ye is baar ki 20-20 wc,bharat ki team isse zyada mazboot kabi nahi rahee...pichhli baar ki team to is baar ki team ke saamne kuch nai thi...Joginder aur agarkar jaise bowlers ke saath hum jeete...

    jahaan tak Dhoni ki baat hai mera ye manna hai ki wo bahut zyaada thak chuke hai...bahut adhik cricket khel chuke hai wo aajkal,unko mental aur physica aram chahiye

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”