Saturday, October 18, 2008

एक घर की राजनीति, राहुल गांधी और सोनिया गांधी, 'बड़ा कौन'?

उत्तर प्रदेश में कुछ दिनों पहले एक बात देखने को मिली। एक मां और बेटे के बीच लोकप्रियता का अंतर। उत्तरप्रदेश में सोनिया गांधी को ज्यादा जाना जाता है या फिर राहुल गांधी को? ये सवाल काफी दिनों से खड़ा हो रहा था जब से पिछली बार राहुल का नाम कांग्रेस के कुछ चाटुकारों ने प्रधानमंत्री के पद के लिए सुझाया था। कई बार एक और नाम सामने आया वो था प्रियंका गांधी का। कई बार तो ये लगता रहा कि प्रियंका गांधी यदि पार्टी की बागडोर संभाल लें तो राहुल का क्या होगा? शायद लोग राहुल को उस नेता के चश्में से ना देखें या फिर भावी प्रधानमंत्री के रूप में उनको ना भी सोचें। लोगों को राहुल गांधी को याद रख पाने में भी दिक्कत हो 'शायद'। यदि प्रियंका राजनीति में उतर जाएं तो कहीं राहुल का हाल क्यूबा के नए राष्ट्रपति राउल कास्त्रो जैसा ना हो जाए। सारी दुनिया जानती है कि राउल कास्त्रो में बहुत गुण थे लेकिन अपने बड़े भाई फिदेल कास्त्रो के सानिध्य में रहकर उनकी पूछ उतनी नहीं हुई जितनी की होनी चाहिए थी। राउल कास्त्रो की ही कई नीतियों के कारण ही क्यूबा को कई राजनीतिक फायदे हुए। राउल और फिदेल की रणनीतियों में बहुत अंतर था। राउल नई सोच का समर्थन करते थे जबकि फिदेल परंपरावादी थे। शायद इसलिए प्रियंका गांधी राजनीति में अभी तो नहीं आ रही हैं।
तो क्या राहुल को लोग अभी तक अपने जहन में नहीं बैठा पाए हैं या राहुल की पहुंच लोगों तक अभी हो ही नहीं पाई है। जबकि राहुल गांधी जहां भी जाते हैं सुरक्षा को धत्ता बैठाते हुए कहीं पर भी, किसी से भी मिलने लगते हैं।
रायबरेली में होने वाली जनसभा के कारण ये तो पता चल गया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी में कौन कितने पानी में है। कांग्रेस की अध्यक्ष और महासचिव के अंतर के बारे में जानने का लोगों को मौका भी मिला। माना ये भी कि सोनिया गांधी के मुकाबले अभी लोग राहुल गांधी को सचमुच नहीं पहचानते और ना ही उतना जानते। जबकि राहुल गांधी पिछले कई सालों से भारत खोज में जुटे हुए हैं और जगह-जगह जाकर अपनी हाजिरी लगा रहे हैं। बावजूद इसके राहुल गांधी को लोग अभी उतना नहीं पहचानते हैं।
जहां एक तरफ माया ने अपनी माया दिखाते हुए धारा १४४ लगवा दी, वहीं सोनिया से मिलने लालगंज में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसा पहली बार हुआ है कि सोनिया का इतना असर देखने को मिला। इससे पहले कभी भी इतना तो असर नहीं ही देखा गया। वहीं यदि नजर डालें तो हाल ही में राहुल गांधी अपने परिवार के द्वारा उत्तर प्रदेश में गोद लिए हुए गांव में गए। हर जगह काफी चर्चा हुई राहुल की मेहनत की। राहुल ने वहां जाकर मजदूरी की, मिट्टी ढोई। बच्चों से हाथ मिलाए, लोगों से मिलते रहे, बात करते रहे, उनके साथ खाना खाया, चाय पी, लोगों की कुटिया में घुसकर लोगों से मिले और साथ ही गंदे कुर्ते में ही पूरे दिन रहे। लेकिन तभी गांव की एक महिला सामने आती है और लोगों से पूछती है कि ये गोरा सा लड़का कौन है? एक तरफ तो वो लोगों से मिल रहे थे। ऐसा भी नहीं कि पिछले दिनों उस गांव में चर्चा नहीं रही होगी कि कौन आ रहा है। फिर भी उस ग्रामीण महिला के सवाल से बहुत कुछ जाहिर होता है। उस महिला से लोगों ने पूछा, कि क्या इंदिरा गांधी को जानती हो, वो बोली हां। सोनिया गांधी को जानती हो, वो बोली हां, तो ये उसी सोनिया गांधी के लड़के हैं, राहुल गांधी । तो ये अंतर है राहुल और सोनिया में। उस ग्रामीण महिला को भी पता है कि सोनिया कौन है। शायद ये कहा जा सकता है कि राहुल को जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए हैं राजनीति में राजनीतिन करते हुए और सोनिया पुरानी खिलाड़ी हो चली हैं इस फील्ड की।
ऐसा नहीं है कि इंदिरा गांधी की तरह पूरी पावर ना पाते हुए भी पीछे से ही सही उस ‘पावर’ का उपयोग करती सोनिया गांधी ने कई चाल ऐसी चली कि जो इस चुनाव में कांग्रेस के लिए हार का सबब बन सकती हैं। जैसे देश की अंदरुनी सुरक्षा, सबसे कमजोर गृहमंत्री को बचाना, नटवर सिंह को विदेश मंत्रालय देना, ए के एंटनी को रक्षा मंत्री बनाना जो कि देर से निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं(जैसा कि हाल ही में स्टोल्ट वेलोर जहाज में फंसे भारतीय के मामले में) महंगाई पर रोक ना लगा पाना, आदि। ऐसे कई मुद्दे हैं जिसके कारण वो घिरी हुई हैं। कई को तो वो ठीक कर सकतीं थी पर कई मुद्दों को उन्होंने ठीक किया ही नहीं।
शायद लोगों को बहू ज्यादा याद है पोते से। या यूं कहें कि सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री के पद को ठुकरा कर जो राजनीतिक चाल चली थी वो इतनी कामयाब हो गई कि लोग उस अवसर को आज भी अपने जहन में बैठाए हुए हैं। उस चाल ने उनका कद बढ़ा दिया और लोग ये मानने लगे हैं कि सोनिया गांधी वो ही महिला हैं जो कि एक ऐसे पद को ठुकरा चुकी है जिसके लिए हर पार्टी के लोग दल बदल करते रहते हैं और सब के सामने लड़ने से भी नहीं हिचकते।

आपका अपना
नीतीश राज

5 comments:

  1. ये बात सही है कि सोनिया गांधी के पद नही करने को त्याग बता कर कांग्रेस ने जो आक्रामक मार्केटिंग की थी उसका फ़ायदा आज तक मिल रहा है।तमाम आलोचनाओं और विरोद्ग के बावजूद सोनिया का कद और लोकप्रियता काफ़ी बढी थी,जो राहुल के लिये बरगद साबित हो रही है।सटीक विष्लेशन किया है आपने।

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  2. आख़िर ख़ुद का बोया ख़ुद को ही काटना पङता है ! सटीक विशलेषण के लिए धन्यवाद !

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  3. सच कहूँ तो कई युवा ब्रिगेड का फेन मै भी हूँ .....सचिन पायलट ,उमर अब्दुल्लाह ,सिंधिया ,हरियाणा से वो नौजवान संसद .कम से कम पढ़े लिखे लोग है.....अपराधियों .ओर गुंडों से बेहतर है .

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  4. हमे इस सोनिया( नाम भी नकली) ओर राहुल के सिवा ओर कोई दिखता ही नही, जब की देश का सत्या नाश इसी सोनिया ने ओर इस के चमचो( काग्रेस) ने किया है, अगर इस बार भी यह इमानदार गुण्डो, बदमाशो ओर अपराधियो की सरकार आ गई तो हम सब का राम नाम सत्य तो पक्का है, बाकी मे मै डां अनुराग जी की टिपण्णी से सहमत हु,लेकिन इस विदेशी परिवार से बिलकुल नही....

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”