Monday, June 29, 2009

इससे सिर्फ हमें परेशानी हुई, फायदा पता नहीं किस का हुआ

शनिवार को जब मेट्रो स्टेशन पहुंचा तो घड़ी सुबह के 7.40 बजा रही थी। ऑफिस के लिए थोड़ा लेट हो चुका था, सोचा कि जल्दी से ट्रेन मिलजाए तो बेहतर। जहां तक मुझे पता था कि एक 7.41 पर और यदि ये छूट गई तो दूसरी 7.50 पर है। याने कि 10 मिनट की और देरी। रविवार का दिन होने की वजह से स्टेशन पर भीड़ नहीं थी कुल 30-35 लोग होंगे। स्टेशन के बाहर मूवमेंट देखी थी, एक दो चैनल की ओबी वैन भी पहुंची हुईं थी, तो सोचा कि शायद ओपनिंग वगैरा होगी तो वीआईपी आ रहा होगा, पुलिस-सेना के जवान भी दिखे, कुछ स्कूली बच्चे भी थे।

स्टेशन की डिस्पले प्लेट बता रही थी कि ट्रेन 6 मिनट के अंदर स्टेशन पर पहुंचेगी। पर 6 मिनट गुजरने के बाद भी समय 6 मिनट ही लगा रहा पर फिर 12 मिनट हो गया। फिर अचानक ही स्टेशन के बाहर कुछ आवाज़ आई। लगा जैसे कि दो-चार पटाखे फूटे हैं फिर धुंआ-धुंआ। मेरे को समझते देर नहीं लगी कि ये मॉक ड्रिल चल रही है। और फोर्स वगैरा इसी मॉक ड्रिल का ही हिस्सा है। थोड़ी देर में एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड की गाड़ियां, हॉर्न के साथ बड़े अफसरों की गाड़ियां भी पहुंच गई। मैं सोच रहा था कि चलो इसके जरिए लोगों को ये तो पता चलेगा कि कभी आपात स्थिति आ जाए तो क्या करना होगा। ये सब नजारा मैं प्लेटफॉर्म से देख रहा था, सभी यात्री भी देख रहे थे। तभी मेरी नज़र स्टेशन की डिस्पले पर पड़ी जिसमें अभी तक 15 मिनट लिखा आ रहा था वहां पर लिखा आ गया कि मॉक ड्रिल के कारण ट्रेनें लेट हो सकती हैं। ये जब लिखा आया तब तक 20-25 मिनट बीत चुके थे। फिर एनाउंसमेंट हुई कि आज मॉक ड्रिल के कारण ट्रेनें लेट हो सकती हैं। फिर डिस्पले हुआ कि मॉक ड्रिल के कारण अभी ट्रेनें नहीं चलेंगी असावधानी के लिए खेद है। एनाउंसर भी बार-बार ये ही एनाउंस करने लगा। फिर एनाउंसमेंट हुई कि जल्दी से प्लेटफॉर्म खाली कर दीजिए, ये भी मॉक ड्रिल का हिस्सा है।

अब यहां से शुरू होती है परेशानी। पता ये चला कि अब ये मॉक ड्रिल एक घंटे तक तो चलेगी ही। मतलब साफ था कि मैं और लेट होने जा रहा हूं। मैंने तुरंत ऑफिस फोन करके इसकी जानकारी दे दी। जब हम प्लेटफॉर्म से बाहर निकल रहे थे तो कुछ लोग मेट्रो कर्मचारी से भिड़ गए। यदि ये मॉक ड्रिल का पहले से पता था तो ये एनाउंसमेंट पहले से होनी चाहिए थी जिससे समय बेकार नहीं जाता। पर पुलिस ने किसी की एक नहीं सुनी और सबको आपातकालीन रास्ते से बाहर निकाल दिया। कुछ नौजवान लड़के-लड़कियां तो बेचार गेट पर सुरक्षाकर्मियों से अनुरोध करते नज़र आए कि आज उनकी परीक्षा है और सेंटर पर ९।३० तक पहुंचना है तो कैसे पहुंचेंगे ऊपर से टिकट का किराया भी ले लिया है। पैसे वापस करने के नाम पर कुछ नहीं दे रहे हैं। ऐसे में वो बेचारे जाएं तो जाएं कहां?

सबसे बड़ी बात मुझे देखने में ये लगी कि मॉक ड्रिल बस मॉक ही होती है। इसमें कई खामियां नज़र आईं। जब आर्मी ने ये बात साफ कर दी कि स्टेशन के बाहर तीन ग्रेनेड से हमला किया गया है, तो फिर लोगों को स्टेशन से बाहर क्यों भेजा जा रहा है? जहां पर सबसे ज्यादा खतरा है साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि बाहर ही हो सकता है कोई और आतंकवादी।

दूसरी कि जब लोगों को बाहर निकाला जा रहा था तो मैं एक साइड हो गया और काउंटर के पास खड़ा हो गया। कई बार फिर मैंने आपातकाल रस्ते से जाने की कोशिश की पर मुझे रोक दिया गया। तकरीबन १५ मिनट के बाद जब किसी का मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं गया तो एक अधिकारी को बुलाकर मैंने कहा कि आपका ये अभ्यास बेकार है। उन्होंने तुरंत पूछा कि क्यों, और साथ ही वो मेरे से पूछताछ भी करने लग गए। मैने बताया कि १५ मिनट से मैं यहां पर आपकी आंखों के सामने खड़ा हूं पर किसी ने भी ये जरूरत नहीं समझी कि वो मुझसे पूछे कि मैं कौन हूं, क्यों खड़ा हू?

बाहर पहुंचा तो वो ही बच्चे अपने टिकट वापसी के पैसे का अनुराध कर रहे थे। उन बच्चों का कहना भी सही है जहां पर ये मेट्रो स्टेशन बना हुआ है वो बस स्टैंड से लगभग दो किलोमीटर दूर है। एक बार तो पैदल चल कर आया जा सकता है पर दूसरी बार वापस जाने के लिए तभी पैदल चलना बहुत मु्श्किल है ऊपर से ये गर्मी।

जब स्टेशन के बाहर निकला तो देखा कि काफी मीडिया वालों की तादाद बढ़ चुकी थी। एक अफसर अपने लोगो पर गुस्सा हो रहा था क्योंकि कई गाड़ियों के ड्राइवर गाड़ी खाली छोड़कर यहां-वहां चले गए। अधिकारी ने कहा कि यदि ऐसे गाड़ी कोई छोड़ कर जाता है तो आतंकवादी गाड़ी को लेकर भाग सकता है। यहां पर भी ढीलापन।

जहां पर आग लगी है उसको बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी पहुंची। पर ये क्या, पाइप किस रास्ते से अंदर लाया जा रहा है शायद गलत रास्ता पकड़ लिया। पानी शुरू तुरंत नहीं किया गया क्योंकि पाइप छोटी पड़ गई।

इतनी दिक्कत के बाद सवा-डेढ़ घंटे के बाद ये ऑपरेशन खत्म हुआ। यदि लोगों को पता होता तो कोई मेट्रो की तरफ कूच नहीं करता। मेरी राय तो ये है कि लोगों को पहले बताया जाना चाहिए था कि ऐसा कुछ होगा। जिससे कि जो जानना या देखना चाहता वो भी आ सकता था। ट्रेन के कारण गंतव्य तक पहुंचने में लेट नहीं होते। काफी वोलेन्टियर मिल जाते हैं इन कामों के लिए। दूसरा ये कि यदि करना ही था तो वीक डे में करते तो पता चलता कि ३०-३५ की जगह जब १५०-२०० लोगों को हेंडल करना पड़े तो क्या होता है। तीसरा, यदि ड्रिल की बात मेट्रो कर्मचारियों को पहले से पता थी तो एक निर्धारित समय के बाद से किसी भी यात्रियों को टिकट बांटने ही नहीं चाहिए थे। चौथा, इतने लूज प्वाइंट के बाद तो पुलिस अधिकारियों को अपनी सेना के बारे में जरूर सोचना चाहिए जो कि बहुत आलसी ढंग से इस ड्रिल में लगी हुई थी।

जब मैं अपनी गाड़ी लेने जा रहा था तो मुझसे कई लोगों ने पूछा कि ऐसे समय में हमें क्या करना चाहिए। मैंने उन्हें जवाब तो ये दिया कि पुलिस और आर्मी जैसे संचालित करें उस समय तो वैसा ही करना चाहिए। पर मेरा दिमाग कुछ और जवाब देना चाह रहा था। जब भी कभी ऐसा हो तो सबसे पहले ....भागो....किसी ने भी हमें ये नहीं बताया कि हम क्या करें। हमें रोक के रखा, हमारा समय खराब किया और हमें ही नहीं पता कि ऐसे समय में क्या करें।

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, June 26, 2009

नहीं रहे किंग ऑफ पॉप, माइकल जैक्सन का निधन


कह सकते हैं कि आज पॉप का एक युग खत्म हो गया। पॉप के बेताज बादशाह माइकल जैक्सन अब हमारे बीच नहीं रहे। काफी दिन से बीमार चल रहे माइकल को आज रात करीब सवा तीन बजे अपने घर पर दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद उन्हें अस्पताल में दाखिल करा दिया गया। पर माना ये जा रहा है कि जब डॉक्टर की टीम उनके घर पर पहुंची तब वो अपनी अंतिम सांस ले चुके थे। इधर जैसे-जैसे ये ख़बर उनके चाहनेवालों को लगी वो उकला मेडिकल सेंटर पर जमा होने लगे। इमरजेंसी वार्ड को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया पर चाहनेवालों की भीड़ है कि वो कम ही नहीं हो रही है। हर जगह कोने-कोने में देखे जा सकते हैं उनके चाहनेवाले। साथ ही शुरुआत में पुलिस ने लॉस एंजिलिस में जैक्सन के घर की तरफ जाने वाले रास्ते को बंद कर दिया है जो कि बाद में खोल दिया गया।


संगीत और माइकल का साथ


माइकल का दूसरा नाम भी था और वो था पॉप संगीत। आज भी सब मानते हैं कि ये विवादास्पद सिंगर सिर्फ म्यूजिक के लिए ही बना था। माइकल ने संगीत की दुनिया में एक छत्र राज किया। साथ ही इस पॉप के सरताज को वैको जैको के नाम से भी जाना जाता था। जैक्सन ने लोकप्रियता का वो रिकॉर्ड कायम किया, जिसे शायद ही कोई तोड़ पाए। इस शख्स ने की आवाज ने संगीत की पहचान बदल दी। माइकल जैक्सन ने नाच और गाने के मतलब को ही बदल दिया। अलग अंदाज में रहने वाले शख्स काला चश्मा, लंबे बाल, और अनोखे अंदाज वाले शख्स ने दुनिया को अपना दीवाना बना दिया। इक्यावन साल की उम्र और ना जाने कितने मुकाम। कामयाबी का जो सिलसिला ग्यारह साल की उम्र में शुरू हुआ, वो बस आगे चलता ही गया। अस्सी और नब्बे के दशक में तो सिर्फ और सिर्फ माइकल ही माइकल का नाम था। भारत में भी माइकल का जलवा काफी देखा जाता रहा, भारत में भी बहुत चाहनेवाले हैं।
जैक्सन के थ्रिल को दुनिया भर में पहुंचाया उनके एल्बम थ्रिलर ने। जरा सोचिए। 1982 में इस एल्बम की 10 करोड़ से भी ज्यादा कॉपियां बिकीं। सबसे ज्यादा बिकने वाले और गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवा चुके इस एलबम की लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आई है। ऐसा नहीं है कि यहीं आकर रुक जाती है जैक्सन की कामयाबी की दास्तान-डेंजरस, थ्रिलर, ऑफ वॉल, बैड, हर एलबम अपने में ही कामयाबी का एक मुकाम है। उनके बेहतरीन गीतों में आई वॉंट यू बैक, डोंट स्टॉप टिल यू गेट एनफ़, बिल्ली जीन, बैड, ब्लैक और व्हाइट, अर्थ सॉंग शामिल हैं।
माइकल अगले महीने अपना अंतिम शो लंदन के -टू-एरीना में 10 कंसर्ट की एक श्रृंखला पेश करने वाले थे और उसके टिकट कई महीने पहले ही बिक चुके थे। 2001 के बाद ये पहला लाइव शो होता। माइकल जैक्सन वर्ष 2006 में 'वर्ल्ड म्यूज़िक अवॉर्ड्स' के दौरान अपने प्रशंसकों के बीच आए थे और तब उन्होंने अपने गाने 'वी आर वर्ल्ड' की कुछ पंक्तियाँ गाकर सुनाई थीं। उन्होंने अपना आख़िरी वर्ल्ड टूर 12 साल पहले किया था. 1996-97 में उन्होंने दुनिया के 58 शहरों में 82 लाइव शो किए थे।


माइकल और वो दिन


जितना बड़ा नाम, उतना बड़ा संघर्ष। 1958 में अमेरिका के इंडियाना प्रांत के गैरी के एक ग़रीब घर में पैदा हुए माइकल जोसेफ जैक्सन नौ भाई बहनों में सातवें नंबर पर थे। जैक्सन के जीवन को अगर करीब से देखें, तो इस कामयाब जिंदगी के पीछे ऐसी-ऐसी मुश्किलें हैं, जो पहाड़ों तक को हिला कर रख दे। क्या मालूम है आपको कि जैक्सन दीवालिया भी हुए। जैक्सन ने अपने जीवन में अथाह संपत्ति देखी, तो एक वक्त ऐसा भी आया, जब खबर उनके दीवालिया होने तक की आई। जैक्सन पर उन्हीं दिनों एक म्यूजिक कंपनी ने करोड़ों डॉलर के मुआवजे का दावा भी ठोक दिया था।
किंग ऑफ पॉप के चाहने वालो को 1993 में गहरा धक्का लगा था, जब उनपर बाल उत्पीड़न के आरोप लगे थे। कोर्ट के चक्कर, पुलिस का जोर और दुनिया भर के ताने। लेकिन माइकल अडिग रहे और आखिरकार 2005 में उन्हें दुर्व्यवहार के आरोपों से बरी कर दिया गया।
खबरें ये भी आईं कि जैक्सन को स्किन कैंसर हो गया। वो कई दूसरी गंभीर बीमारियों से भी जूझते रहे। लेकिन जैक्सन ने इस बात से हमेशा इंकार किया कि वो बीमार हैं।


अंतिम पल

माइकल जैक्सन ने तो दुनिया को अलविदा कह दिया और उनके चाहनेवाले स्तब्ध हैं। कहीं गम है तो कहीं गम में भी खुशी ढूंढी जा रही है। कुछ इतने गमगीन हो गए हैं फूट-फूट कर रो रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ उनके चाहनेवाले नाच गा कर उनको अलविदा कर रहे हैं। ये ही है पॉप के बादशाह को सच्ची श्रद्धांजलि।


आपका अपना
नीतीश राज

Thursday, June 25, 2009

क्या सिर्फ लुटना लिखा है इनकी किस्मत में?

जिससे प्यार किया, उसने ही रेप किया। वो लड़की अपनी शादी छोड़ अपने प्यार के पास आई नई जिंदगी बसाने के लिए पर उस प्यार ने उसकी अस्मत को किया तार-तार। प्रेमी इतना जालिम निकला कि अपने दो दोस्तों से भी उसके शरीर को नुचवाता रहा। एक दिन नहीं, दो दिन नहीं, पांच महीने तक वो हर रोज़ यूं ही लुटती रही। पांच महीने बाद भी वो शख्स जिससे हुई थी सगाई, आज भी अपनी मंगेतर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार है। ये घटना है राजकोट, गुजरात की।

क्या करे वो नारी वो तो दूसरों पर भी विश्वास नहीं कर सकती और अपने उसे मजबूर कर रहे हैं कि वो उन पर विश्वास ना करे।

फिर राजकोट, गुजरात। इसमें भी जानने वालों ने ही लूटा विश्वास। प्रेमिका नाबालिग और प्रेमी उसे भगा लेजाने के लिए उतावला। लड़की ने घऱ की खातिर भागने से कर दिया मना तो लड़के ने अपने दोस्तों और एक महिला की मदद से उसे कर लिया अगवा और १७ दिन तक करता रहा बलात्कार। लड़का, उसके दोस्त और वो महिला अब पुलिस की गिरफ्त में।

सूरत, गुजरात। यहां भी जाननेवाले ही बन गए भक्षक। १७ साल की नाबालिग स्कूली छात्रा के साथ तीन दरिंदों ने किया कार में लगातार तीन घंटों तक सामूहिक बलात्कार। लड़की रोती रही, चीखती रही पर दया नहीं आई। लड़की को चुप रखने के लिए उसके बनाए कई एमएमएस। तीनों पुलिस की गिरफ्त में, मेडिकल जांच के दौरान लोगों ने की थी उनकी जमकर पिटाई।

मुंबई। १९ साल की छात्रा के साथ उसके ७ जाननेवालों ने किया गैंगरेप। सभी आरोपी लगभग १९-२० साल के। सातों ने किया दरिंदों की तरह कई घंटों तक रेप और फिर बनाया उसका एमएमएस ताकि लड़की अपनी जुबान ना खोले। तीन आरोपी गिरफ्त में चार अब भी फरार।

फिर मुंबई। २ जुलाई तक अभिनेता शाइनी आहूजा जेल में और उसके बाद गारंटी के साथ वो जमानत पर रिहा भी हो जाएंगे। फिर शुरू होगी शाइनी की वो ही ‘पेज 3’ वाली जिंदगी। आरोप है कि शाइनी ने अपनी नौकरानी के साथ मुंह काला किया और मुंह काले होने के सबूत भी पुलिस को मिल गए हैं। पर पत्नी ने एक नया शगूफा छोड़ दिया है कि आदमी नहीं औरत भी बलात्कार करती है, सच तो है पर इस केस में कितना सच, कोई कह नहीं सकता।

दिल्ली। यहां भी एक नौकरानी ने अपने मालिक पर बलात्कार का इल्जाम लगाया। मेडिकल जांच में रेप की पुष्टि होने के बाद मेडिकल व्यवसायी को गिरफ्तार कर लिया गया है। आरोपी का कहना है कि नौकरानी एक गेंग के साथ मिलकर उसे ब्लैकमेल कर रही है।

कुलगाम, कश्मीर। अब एक शिक्षक की घिनौनी करतूत। अपनी ही साली के साथ उसने पहले रेप किया फिर मोबाइल से उसका एमएमएस बनाया और फिर लोगों में बेचा। इन सारी करतूत ने उसको पहुंचा दिया सलाखों के पीछे। वो परिवार आज अधर में खड़ा है एक तरफ उसकी बड़ी बेटी है जो अपने बच्चे के साथ खड़ी है और दूसरी तरफ छोटी बेटी अपने आंचल को हटाने के लिए इंसाफ मांग रही है।

दिल्ली। रक्षक ही बन गए भक्षक। एक महिला ने लगाया चार सिपाहियों और एक एसएचओ के खिलाफ रेप का आरोप। महिला के मुताबिक पहले महिला को मारा पीटा गया और फिर उसके साथ बलात्कार किया गया। पति सट्टा का काम करता था और उसे ढूंढती पुलिस आई थी और फिर महिला को थाने लेगई थी और फिर उसके साथ रेप हुआ। पर मेडिकल जांच में कुछ नहीं निकला और पति-पत्नी से पूछताछ में कई जगह विरोधाभास कमेंट सामने आए। वैसे जांच कमेटी बना दी गई है और दिल्ली पुलिस इस केस को अपनी नाक का प्रश्न बना चुकी है। अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है और लगता भी नहीं की होगी।


नोएडा/दिल्ली। चार महीने तक स्वेच्छा से महिला एक ब्लू लाइन बस मालिक के साथ रहती रही, इस आश्वासन में कि एक दिन वो शादी करेगा। पर एक दिन उस बस मालिक ने मना कर दिया और उस महिला को कैद करके उसके साथ बलात्कार करता रहा। बस मालिक पर केस दर्ज पर वो फरार। पति से अनबन के बाद वो महाराष्ट्र से अपने दो बच्चों के साथ भागकर दिल्ली आई थी तभी नौकरी की तलाश के बीच इस बस मालिक की प्रेमिका बन गई थी और साथ रहने लगी थी। पर उसे क्या पता था कि वो जहां शादी के सपने संजो रही है वो शख्स उसे रखैल बनाकर रख रहा था।

इंदिरापुरम/गाजियाबाद। दो लड़कों ने अपने पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप किया और फिर उसका एमएमएस बनाया और फिर उसे ८ महीने तक ब्लैकमेल करते रहे और खेलते रहे उसकी अस्मत के साथ।

रेप...रेप...रेप...हर जगह सिर्फ और सिर्फ ये ही आवाज सुनाई दे रही है। और ये आवाज़ कुछ ही दिन से आ रही है। क्या हो गया है इस समाज को। शर्मसार हूं इन घटनाओं से और आप भी होंगे और आपको होना भी चाहिए। जिस देश में हम नारी की पूजा करते हैं उसके लिए घर, घर से बाहर हर जगह अपने ही अपनों को छल रहे हैं। क्या करे वो नारी वो तो दूसरों पर भी विश्वास नहीं कर सकती और अपने उसे मजबूर कर रहे हैं कि वो उन पर विश्वास ना करे। क्या करे वो लड़की जो कि अपने ही घर में सुरक्षित नहीं है। शिक्षक ही ऐसे कर्म कर रहा है कि वो क्या शिक्षा देगा। रक्षक ही बना हुआ है भक्षक। अनपढ़ क्या, पढ़े लिखों ने भी उनको अपना शिकार बनाया है। क्या करे वो लड़की जो बाहर भी नहीं निकल सकती, घर के पड़ोस में भी सुरक्षित नहीं, अपने दोस्तों, अपने प्रेमी, घर में भी किसी पर विश्वास नहीं कर सकती। क्या सिर्फ लुटना लिखा है इनकी किस्मत में?

आपका अपना
नीतीश राज

Friday, June 19, 2009

अगर मुंबई जैसा हमला होता तो यूपी पुलिस महीने भर तक कामयाब नहीं होती।

1950-60,1970-80 के दशक में कई फिल्में आई थीं जिसमें हीरो राह भटक कर अपनी जिंदगी की राह ऐसी जगह पर ले जाता था जो उसे आम जिंदगी से दूर ले जाती है। एक ऐसी जगह जहां की राह तो आसान है पर वहां से वापसी मुश्किल। जब वो छुपते-छुपाते, भागते हुए अपने घर या फिर कहीं पैसे लेने या फिर किसी अपने के पास जाता है तो उसके आने की खबर पुलिस को मुखबिर पहले से ही दे चुका रहता है। फिर शुरू होता है चूहे-बिल्ली का खेल, चोर आगे और पुलिस पीछे। फिर हीरो एक घर से दूसरे घर छलांग लगाकर भागता है, सीटी बजाकर अपने घोड़े को बुलाता है और पुलिस की आंखों में धूल झोंक जंगल में कहीं दूर निकल अपने अड्डे तक पहुंच जाता है।

चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, कौसांबी, इलाहाबाद, फतेहपुर के जवान तैनात और एसटीएफ, पीएसी और एसओजी के लगभग ५०० से ज्यादा जवान उस गांव को घेर लेते हैं।

ठीक उसी फिल्मी अंदाज में तीन दिन पहले(१६ जून, २००९) भी हुआ। एक डाकू अपने कुछ साथियों के साथ एक गांव में अपने संबंधियों से मिलने के वास्ते आता है। मुखबिर पहले से ही इस बात की खबर पुलिस तक पहुंचा देता है क्योंकि उस डाकू के सर पर पचास हजार का इनाम। पुलिस रात से ही घात लगा कर बैठ जाती है। सुबह -१० बजे जब वो अपने रिश्तेदार के पास पहुंचता है तो पुलिस फिल्मी अंदाज में उस को ललकारती है और फिर गोलियों की आवाज़ से पूरा गांव गूंज उठता है।

उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के इतिहास में अब तक का सबसे लंबा एनकाउंटर।

दोनों ओर से मोर्चाबंदी के बीच गांव में पहले से ही उस इनामी डाकू के हमदर्द मौजूद उसे पुलिस से बचाते हैं। पर इस बीच-बचाव में मौके का फायदा उठाते हुए वो सटीक निशानेबाज डाकू फिर से पुलिस को वो आघात देता है जिस के कारण वो मई २००८ से पुलिस की हिट लिस्ट के पहले नंबर पर शुमार हो गया था जब उसने एसओजी के एक जवान को मौत के घाट उतार दिया था। पुलिस के आला अफसर मुठभेड़ को अंजाम देने में लग जाते हैं। पर वो चतुर डकैत उनको घेर लेता है तो अपने आला अफसरों को बचाने में दो कांस्टेबल शहीद हो जाते हैं। पुलिस उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश कर सकती थी पर अब पुलिस उसे कभी भी बर्दाश नहीं कर सकती थी। पुलिस के लगभग १०० जवान उस गांव में मौजूद उस एनकाउंटर को अंजाम देने में जुट जाते हैं और साथ ही नजाकत को समझते हुए आधा दर्जन जिलों की पुलिस चित्रकूट, बांदा, हमीरपु, कौसांबी, इलाहाबाद, फतेहपुर के जवान तैनात हो जाते हैं और एसटीएफ, पीएसी और एसओजी के लगभग ५०० से ज्यादा जवान उस गांव को घेर लेते हैं। पीएसी के कंपनी कमांडर बेनी माधव सिंह और दो सिपाहियों शमीम और गनर इकबाल शहीद हो गए। इतना ही नहीं पीएसी के आईजी एके गुप्ता और बांदा के डीआईजी सुशील कुमार सिंह जख्मी हो गए।

वो १३-१४ फीट ऊंची छत थी जो कि वो ऐसे ही कूद गया वो भी गोलीबारी के बीच।

एक दिन यानी २४ घंटे कब-कब में गुजर जाते हैं पर पुलिस इधर-उधर भागती रहती है पर उसे कोई भी कामयाबी नहीं मिलती। पुलिस के और दस्ते आस-पास के जंगल को घेरने के लिए जाते हैं। दूसरे दिन पुलिस का एक कांस्टेबल शहीद और आईजी, डीआईजी समेत एक दर्जन से ज्यादा पुलिसवाले घायल। जबकि पहले दिन के बाद पुलिस ने कहा था कि अगली सुबह वो डाकू नहीं देख पाएगा।

अगर कहीं मुंबई जैसा हमला हो जाता तो शायद यूपी पुलिस तो कुछ भी नहीं कर पाती।

दूसरा दिन, ४८ घंटे तक इस एनकाउंटर को चलते हुए हो जाता है। जबकि पुलिस आधुनिक हथियार के साथ वहां पर तैनात और बाद में पता चलता है कि वो डाकू गिरोह के साथ नहीं एकेला है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के इतिहास में अब तक का सबसे लंबा एनकाउंटर।


चित्रकूट के राजापुर थाने के जमौली गांव के एक मकान में छुपकर डाकू घनश्याम केवट पूरे दो दिन से पुलिस से लोहा ले रहा था। पुलिस ने जहां-जहां पर वो मौजूद हो सकता था उस जगह को हथगोलों से बर्बाद कर दिया था। कई घर तबाह कर दिए गए। पुलिस बिल्कुल उसके नजदीक तक पहुंच गई और इस बार अपने एक और जवान को खो बैठी।


५०वां घंटा-फिल्मी स्टाइल से दूसरी मंजिल की छत से एक शख्स कैमरे में कैद होता है जो खुद डाकू घनश्याम केवट था। दूसरी मंजिल की छत पर मौजूद वो शख्स जुड़ी हुई दूसरी छत पर उतरता है और फिर वहां से नीचे कूद जाता है। उस छत से वो ऐसे कूदता है जैसे की सिर्फ कोई छोटी सी हर्डल हो पर वो १३-१४ फीट ऊंची छत थी जो कि वो ऐसे ही कूद गया वो भी गोलीबारी के बीच। फिर देखते ही देखते वो वहां से फरार हो गया। बिल्कुल फिल्मी अंदाज में वो वहां से लगभग १००० पुलिसवालों की आंखों में धूल झौंक कर भाग निकलता है।


ये सब हो रहा था एडीजी बृजलाल की आंखों के सामने क्योंकि इस ऑपरेशन की कमान अब मौके पर पहुंचकर उन्होंने खुद संभाल ली थी। नन्हू उर्फ घनश्याम केवट जंगल की तरफ भाग गया लेकिन पुलिस का घेराबंद इतना सख्त था कि फिर से जंगल में उसे घेर लिया गया। पहली गोली उसे जांघ पर लगी और दूसरी सीने पर और और इस तरह यूपी-एमपी पुलिस के ज्वाइंट ऑपरेशन ने दो दर्जन मामलों में नामजद डाकू नन्हू उर्फ घनश्याम केवट को खत्म कर दिया।
ऑपरेशन तो खत्म हो गया। पर इस एनकाउंटर ने उठा दिए हैं कई सवाल---
) पुलिस के पास पूरा असला और वहीं डाकू के पास सिर्फ एक हाईरेंज राइफल फिर भी तीन दिन लग गए।
) करीब १००० पुलिसवाले और वो एक डाकू तो क्या एनकाउंटर इतनी देर तक ही चलना चाहिए था।
) पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग की सख्त कमी दिखी। हमारी पुलिस को पता ही नहीं है कि कैसे ऐसी घटना से पार पाएं। वर्ना एक डाकू इतनी देर तक किसी भी पुलिस के सामने नहीं रुक सकता था।
) क्या इस एनकाउंटर के समय सिर्फ घनश्याम डाकू ही वहां पर अकेला था कहीं ऐसा तो नहीं कि वो पूरे अपने गिरोह के साथ हो और सिर्फ अपनी जान गंवा कर अपने साथियों की जान बचा ली हो।


सबसे बड़ा सवाल उठा है पुलिस की कार्यप्रणाली पर। अगर कहीं मुंबई जैसा हमला हो जाता तो शायद यूपी पुलिस तो कुछ भी नहीं कर पाती। वो कसाब और उसके साथी एक महीने तक यूपी एसटीएफ से नहीं खदेड़े जाते और वो इनको चकमा देकर भाग जाते। और अंत में एडीजी बृजलाल ने माना कि देरी उनसे हुई और उनके पास रॉकेट लॉन्चर नहीं था।

आपका अपना
नीतीश राज

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”