Friday, July 17, 2009

अपनों से दुनिया के सामने आंख मिलाते हुए सच का सामना।

खुशवंत सिंह ९३ साल के हैं अब भी वो साल में ४० के करीब किताब लिखते हैं। सारी दुनिया जानती है कि उन्होंने ऐसा साहित्य भी लिखा जिस पर फिल्म बनी और ऐसा जिस किताब की बिकरी ने दुनिया में नए आयाम खड़े किए। उन्हीं किताबों में से एक किताब में औरतों का जिक्र था और खुलकर जिक्र था। वो आत्मकथा कैसे लिखी गई उसके पीछे भी एक छोटी सी कहानी है। खुशवंत सिंह की पत्नी का इंतकाल हो चुका था और उनकी बेटी उनको खाली बैठा देख कर यूं ही पूछ बैठी कि आप तो एक तरह से पूरा विश्व घूम चुके हैं और भारत सरकार में आपने काम किया, कई अखबारों में और कई मैगजीन में काम किया तो आपके पास लिखने को तो काफी होगा तो क्यों ना आप आत्मकथा लिखें।

ये सवाल सुन कर आश्चर्य में पड़े खुशवंत सिंह जी थोड़ी देर तक चुप रहे और फिर उसके बाद उन्होंने अपनी बेटी से कहा कि मेरी जिंदगी का ‘सच’ शायद तुम पढ़ नहीं पाओगी और साथ ही तुम नहीं चाहोगी कि तुम्हारे पापा का सच दुनिया पढ़े। बेटी ने जोर दिया कि ऐसी सच्चाई तो आप की होगी नहीं कि आपके बच्चों को शर्मींदा होना पड़े। खुशवंत सिंह जी एक लेखक नहीं चाहते थे कि उनकी सच्चाई दुनिया को पता चले। सच बात तो है कि जिंदगी में हमने बहुत कुछ ऐसा किया होता है जो कि हम कभी नहीं चाहेंगे कि दुनिया के किसी को पता चले और जब वो ही बात अपनों को पता चलती है तो अंदर-बाहर तूफान आना तो स्वाभाविक ही है। खुशवंत जी ने बेटी को फिर समझाने की कोशिश की पर वो चाहती थी कि उनके पिता के बहुरूपिय व्यक्तित्व को दुनिया जाने। यहां पर खुशवंत जी ने कहा कि जब लिखूंगा तो सच लिखुंगा और वो सच तुम्हारी मां को भी इस सच के पवित्र दलदल में घसीटेगा। बेटी नहीं मानी और बोली कि उसके अंदर है इतनी हिम्मत है की वो अपने माता-पिता का सच सुन सके। तब आई थी खुशवंत सिंह की आत्मकथा।

सच तो सिर्फ सच होता है ना घटाया जा सकता है और ना ही बढ़ाया। ठीक इसी तर्ज पर लोगों के निजी जवाबों को सामने लाता सच की तरह ही एक कार्यक्रम स्टार प्लस पर ‘सच का सामना’ आ रहा है। इसमें हॉट सीट पर बैठे प्रतियोगी से इतने निजी सवाल पूछे जाते हैं जिनका जवाब सिर्फ और सिर्फ वो ही जानता है और कोई नहीं। वहां पर एक महिला प्रतियोगी से पूछा जाता है कि क्या आप कभी अपने पति की हत्या करना चाहती थीं। और ये जवाब देना है सामने बैठे पति के सामने। एक शख्स से पूछा जाता है कि क्या शादी के बाद भी आपने कभी किसी गैर औरत के साथ संबंध बनाए थे, पत्नी के सामने देना होगा ये जवाब। महिला से पूछा जाता है कि क्या आपके पति को पता नहीं चले तो क्या आप किसी गैर मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाना पसंद करेंगी। एक हां या फिर ना में घर तबाह। पति से पूछा जाता है कि क्या आपकी कोई नजायज औलाद है। पत्नी सामने है परिवार बैठा है, जवाब आप को देना है, जवाब दो।

जो दुनिया के सामने आपके दिल के अंदर, मन के अंदर है जो आपके अपने नहीं जानते उसे वो आप की ही जुबां से निकाल कर दुनिया के सामने रखते हैं। वो दुनिया को बताते हैं कि आप सच में पंडित के भेष में पंडित ही हैं या फिर कोई बहुरूपिया।विदेशी प्रोग्राम की कॉपी है सच का सामना। विदेशों में कई घरों को बर्बाद कर चुके इस रिएलिटी शो को बाद में बंद करना पड़ा था। पर भारत में टीवी के दीवानों को सच का सामना पसंद आता है कि नहीं या फिर हम ख्याली पुलाव वाले कार्यक्रमों को ही तबज्जो देते रहेंगे ये कुछ दिनों में ही साफ हो जाएगा। पर क्या एक करोड़ की कीमत के लिए कोई अपना संबंधों की बाजी दांव पर लगाना पसंद करेगा? मुझे लगता है जो सच्चा होगा वो ही जीतेगा।

आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. मैने भी इस कार्यक्रम का थोड़ा सा हिस्सा देखा है।मुझे समझ मे नही आया कि आप पत्नी को पर पुरूष गमन की इच्छा रखने वाली साबित करके उन्के परिवार को सुख-शांति से रहने की शुभकामना कैसे दे सकते हैं।मै तो समझ नही पाया इस सच मापने के पैमाने को और सामने लाये जाने वाले सच की समाज के लिये ज़रुरी होने के पैमाने को।

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  2. आपकी भूमि‍का अच्‍छी लगी।

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  3. दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनोंको न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कईदूसरे फायदेमिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगतीहै बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भीश्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदारने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लालके लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था। जय हिन्द जय मां

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”