Thursday, July 23, 2009

मरवा दी आतंकवादियों से अपनी बेटी, चुप क्यों बैठे हो, क्या वो हत्यारे तुम्हारे भाई हैं?

क्यों मेरे ब्लॉगर भाइयों, देश की सेना पर सवाल उठाने से तो तुम्हारे हांथ नहीं कांपते पर आतंकवादियों के खिलाफ....।


सभी को याद होगी शोपियां की वो घटना जिसने भारत में एक बहस को जन्म दिया था। कई बार ये भारत कहता रहा है कि जम्मू-कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है फिर भी भारत की अवाम और निजाम दोनों पर ये इल्जाम लगता रहा है कि वो उनके साथ अपनों जैसा व्यवहार नहीं करते। राज्य में घुसपैठियों-आतंकवादियों के कारण हमेशा ही सेना अपनी जान दांव पर लगाकर रक्षा करती रहती है। पर जब शोपियां केस हुआ तो इस इल्जाम ने राज्य में सेना के होने पर ही सवालिया निशान लगा दिया। 29 मई को शोपिया में दो युवतियों के साथ रेप फिर हत्या का मामला सामने आया था। पूरा जम्मू-कश्मीर लामबंद हो गया था। अलगाववादियों ने आह्वान किया कि शोपिया चलो। अलगाववादियों के भड़काने पर तब पूरा कश्मीर सड़कों पर उतर आया। सरकार ने भी एक नहीं दो-दो बार जांच और पोस्टमार्टम करवाए। पहला पोस्टमार्टम करने वालीं डॉक्टर से वहां के लोगों और भाइयों ने कुरान पर हाथ रखवाकर पूछा कि क्या रेप हुआ तो वो फूट पड़ीं और बता दिया कि लगता तो है कि १५-१८ लोगों ने रेप किया था। तो देश भर से आवाज़ उठी कि जिन्होंने भी रेप किया है उन्हें सज़ा जरूर मिलनी चाहिए।

फिर एक लड़की शिकार हुई है वहीं श्रीनगर के शोपियां में। पर इस बार ये बर्बरता पुलिस ने नहीं आतंकवादियों ने मचाई है।


अब अलगाववादियों की बारी थी और ४७ दिन तक कश्मीर की सड़कों पर कोहराम मचा रहा। मजलिस-ए-मुशव्वरात ने हड़ताल का आह्वान किया सभी दुकानें और बिजनेस प्रतिष्ठान पर वो ऐसे हावी हो गए जैसे कि वो खुद सरकार हों और जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा।


आप सोच रहे होंगे कि मैं गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा हूं? क्योंकि फिर एक लड़की शिकार हुई है वहीं श्रीनगर के शोपियां में। पर इस बार ये बर्बरता पुलिस ने नहीं आतंकवादियों ने मचाई है लेकिन हर बार आवाज़ उठाने वाले अलगाववादी इस पर पूरी तरह से खामोश हैं। करीब तीन-चार दिन पहले तीन आतंकवादी रात में एक लड़की के घर में रुके, फिर खाना खाया और जाते-जाते उस लड़की को खाने का नजराना उसकी मौत के रूप में दे गए वो भी बिना वजह। उन्होंने लड़की को गोलियों से भून दिया। और ये सब हुआ महज शोपियां से दस किलोमीटर की दूरी पर। उस दसवीं की छात्रा के जनाजे में कोई नेता, अलगाववादियों की तरफ से कश्मीरियों का रहनुमा, यहां तक कि गांव के लोग भी शरीक नहीं हुए। ना ही किसी पार्टी ने हड़ताल का आह्वान किया ना ही किसी ने कोई पुकार लगाई ना ही कोई सड़कों पर उतरा। क्योंकि वो तीनों आतंकवादी थे।

उस दसवीं की छात्रा के जनाजे में कोई नेता, अलगाववादियों की तरफ से कश्मीरियों का रहनुमा, यहां तक कि गांव के लोग भी शरीक नहीं हुए।


मैं इधर पुलिस वालों को क्लीन चिट देने नहीं बैठा हूं। मैं यहां पर देश के धोखेबाजों से पूछने बैठा हूं कि एक लड़की की मौत पर बवाल तो वहीं दूसरी की मौत पर सौतेली नीति क्यों? यदि एक मौत की कीमत अलगाव है तो दूसरी मौत की कीमत भी अलगाव होनी चाहिए। क्यों अब वहां के कट्टरपंथी आगे नहीं आ रहे हैं उन लोगों को सजा दिलाने के लिए आवाज़ क्यों नहीं उठा रहे हैं। क्या वो आतंकी उनके भाई है?


ये वो ही शोपियां है ना जहां पर उन दो मासूमों की मौत के बाद बाद सियासत की आग भी खूब लगी थी। अलगाववादियों ने सेना पर निशाना साधा था, राज्य से बाहर निकालने की बात कही थी। लोगो का जीना मुहाल हो गया था। पर अब क्या हुआ कश्मीर के चाहने वाले, मौकापरस्त कौम कहां है? क्यों आगे आकर इसी सरकार से दर्ख्वास्त करती कि इन आतंकवादियों को निकालो यहां से। पर पहले खुद इन्हें पनाह देना बंद करना होगा। अफसोस, इस घटना पर अब कोई आवाज उठानेवाला भी नहीं है।


क्यों मेरे ब्लॉगर भाइयों, देश की सेना पर सवाल उठाने से तो तुम्हारे हांथ नहीं कांपते पर आतंकवादियों के खिलाफ लिखने पर तुम्हें क्या हो जाता है। जनतंत्र है...जनतंत्र.....जवाब दो


आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. gajzab ka aaveg aur aavesh hai aapki lekhni me
    ye barqrar rahe
    shubhkaamnaayen...........

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  2. पहली बात तो शोपिया काण्ड में भी किसी सेना या पोलिस का हाथ था ये साबित नहीं हुआ है ...किसी के ये कहने पे की उस रात वहां एक ट्रक गुजरा था जो सुरक्षा बालो का था इल्जाम प्रूव हो गया .पहले डॉ को भी धार्मिक आधार पे रद्द कर दिया गया ...निजी प्रेम संबंधो ओर निजी झगडो में हुए मर्डर को भी वहां अलगवादी अपने मन मुताबिक रंग देते है ओर इस्तेमाल करते है ....टी वी पर १५ सोलह साल के लड़को को पत्थर फेंकते देख आप वहां की मानसिकता को समझ सकते है ...

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  3. डॉ अनुराग से सहमत, पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट के अनुसार और जज की बेंच द्वारा जाँच के पश्चात पता चल चुका है कि उन दोनों के साथ बलात्कार और हत्या उनके "अपनों" द्वारा ही की गई थी, खामख्वाह बवण्डर खड़ा किया गया था, जैसा अमरनाथ भूमि विवाद के समय खड़ा किया गया था…

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  4. मानवाधिकार के पैरोकारों की पोल तो गुजरात में तीस्ता शीतलावाड के फर्जीवाडे से ही खुल चुकी है. पेट्रो डालरों से पंचमढ़ी और जाने कहाँ -कहाँ आलीशान बंगलों में बैठकर ये देश की सुरक्षा और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करते रहते हैं. क्या यह भारतीय जनता की अतिशय सदाशयता नहीं है जिसका ये बेजा फ़ायदा उठाते हैं.
    थू! है इन गद्दारों पर..........

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  5. मैं यहां पर ये साफ कर दूं कि इस लेख में शोपियां की दो घटनाओं का जिक्र है। यहां पर एक लड़की को मारा गया है लेकिन इस बार आतंकवादियों ने मारा है उन्हें,पर दुनिया चुप है। सवाल उस पर खड़े किये गए हैं कि क्यों अब अलगाववादी नेता चुप हैं क्यों। आतंकवादी मारते हैं उनकी बेटियों को तो भी वो चुप्पी क्यों साध लेते हैं। माना शोपियां में किसने किस को मारा ये साफ हो गया है पर बवाल पर नहीं उस शांति पर मुझे एतराज है। ये पुराने गड़े मुर्दे नहीं है।

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  6. khamoshi unki mazboori hai aur hangamaa karna naukari.sharm aati hai apne desh me hi hum gaddaron se nipat nahi paa rahe hain.sahmat hun aapse.yahi doglaapaun padosi ko taqat de raha hai.

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”