Friday, August 7, 2009

ये इबादत नहीं है...शक्ति प्रदर्शन का एक जरिया है।

कल रात 11 बजे जब मैं ऑफिस में था तब एक खबर आई कि दिल्ली में दो आतंकवादियों को धर दबोचा गया है। पहली नजर में लगा कि 15 अगस्त से पहले तो गिरफ्तारी लाजमी है ही और वैसे भी खुफिया तंत्र ने दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस से पहले अलर्ट जारी कर रखा है। फिर ख़बर में अपडेट हुआ कि दोनों को दरियागंज से पकड़ा गया है और दोनों आतंकी दिल्ली में अपने मोड्यूल से मिलने आए थे। दोनों आतंकी हिजबुल के थे और जम्मू-कश्मीर के रहने वाले और पाक में ट्रैनिंग लेकर के दिल्ली आए थे। दोनों के पास से एक-47, कारतूस, हैंड ग्रेनेड मिले थे यानी देखा जाए तो दोनों दिल्ली के किसी भी हिस्से में कोहराम मचा सकते थे और साथ ही मुंबई 26/11 जैसी वारदात को अंजाम दे सकते थे।

इस खबर के आने के लगभग 10-15 मिनट के बाद ऑफिस से गए हुए एक साथी का फोन आया कि आईटीओ पर पूरा जाम लगा हुआ है। एक बाइक पर ४-४ लड़के, किसी भी टू व्हीलर पर ३ से कम तो कतई नहीं निकले हुए हैं। मुझे पता था कि वो सब कहां जा रहे हैं मैंने तुरंत उनको बताया कि आज शब-ए-रात है और सारे मुसलमान इबादत के लिए जामा मस्जिद जाते हैं साथ ही इनकी तादाद कुछ ज्यादा ही होती है तो बेहतर ये कि पंगा मत लेना क्योंकि भीड़ पागल होती है और भीड़ के लिए कोई कानून नहीं होता है।

मेरे साथी ने जवाब दिया कि ट्रैफिक, जाम, इबादत और हुड़दंग में अंतर करना उन्हें आता है। ये हुड़दंग है, ये शक्ति प्रदर्शन है जिसे चाह रहे हैं ये लोग उल्टा-सीधा कहकर आगे निकल जा रहे हैं। इनकी तादाद भी इतनी ज्यादा है कि कोई पंगा क्या कुछ बोल नहीं सकता। पुलिस सिर्फ देख रही है और कुछ कर नहीं पा रही है उसमें भी सोने पर सुहागा दो हवलदार खड़े होकर ट्रैफिक संभाल रहे है बाकी सब बैठे हुए हैं। मैं भी सहमत था कि सच कायदे कानून को तो मानना चाहिए। खासकर टू व्हीलर पर ४-४ लोग बैठें हुए बिना हेल्मेट के हजारों लोग घूम रहे हैं क्यों। जब ऑफिस खत्म करके मैं भी गया तो ये ही हाल था हजारों की तादाद में आईटीओ पर कानून की धज्जियां पुलिस हेडक्वाटर के सामने ही उड़ाई जारही थीं। हमारे साथ आ रहे एक साथी की कार में भी कुछ लड़के बाइक से उतरकर जबर्दस्ती घुसने की कोशिश कर रहे थे। ये तो शुक्र है कि मौके पर पुलिस पहुंच गई वर्ना कुछ और ही होता।

मैंने तुरंत काउंटर किया कि याद है, कुछ दिन पहले कावड़ियों के कारण भी इसी तरह हम लोग त्रस्त थे, कितनी परेशानी होती थी। वो भी सहमत था मेरी बात से। मैं सोच में पड़ गया कि क्यों हमें जरूरत पड़ती है अपने धर्म को दिखाने के लिए शक्ति प्रदर्शन की। क्यों जरूरत पड़ती है हमें लाउडस्पीकर की और उस पर चीख-चीख कर लोगों को अपने अल्लाह का नाम दूसरों को जबर्दस्ती सुनाने की। क्यों हमें जरूरत पड़ती है लगातार, बार-बार घंटी बजाने की। लोग कहते हैं कि भगवान चीखने से नहीं साधना से मिलता है। तो क्या हमारा धर्म के नाम पर ये शक्ति प्रदर्शन ठीक है?

आपका अपना
नीतीश राज

(दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस के जज्बे को सलाम करना चाहूंगा कि दरियागंज जैसे इलाके से इतनी सफाई से दो आतंकी पकड़ लेना और वो भी इबादत की रात में एक कामयाबी ही कहूंगा। वर्ना यदि थोड़ी सी भी चूक हो गई होती तो बाटला जैसा इल्जाम फिर लग सकता था।)

1 comment:

  1. बात तो सही है।इस तरह से धर्म के नाम पर लोगों को परेशान करना,,,,और नियम कानून को ताक पर रख देना गलत है........इसे रोका जा सकता है.....लेकिन यह तभी रोका जा सकता है जब यह बात सभी धर्मों पर एक सी लागू की जाए......ताकी किसी एक को ऐसा ना लगे कि सिर्फ उसी के साथ यह सख्ती बरती जा रही है.....लेकिन शायद ऐसा कभी हो नही पाएगा.......वोट की राजनिति करने वाले ऐसी हिम्मत कभी नही दिखा सकते......

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”