Thursday, August 7, 2008

"सियासतदारों जाओ और जम्मू की आग बुझाओ"


30 जून को पहली बार एक चिंगारी ने आग पकड़ी थी, और तभी से जल रहा है जम्मू। जम्मू में लगी हुई है आग। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन वापस देने की मांग पर लगातार फूंकी जा रही है गाड़ियां, जलाए जा रहे हैं घर। घरों में दुबके-सहमें हुए हैं लोग। आए दिन किसी के मरने की ख़बर आती है। कभी किसी पुलिसवाले की जान गई तो कभी किसी के घर से उठती रहीं चीखें। लेकिन ये आग अभी भी नहीं बुझी है। कर्फ्यू तोड़कर भी लोग हंगामा करने से बाज नहीं आ रहे। उपद्रव भीड़ और पुलिस के बीच हर दिन झड़प हो रही है। 100-150 से भी ज्यादा बार इन झड़पों में भीड़ के निशाने पर रहीं गाड़ियां, दुकानों और सरकारी संपत्ति। इन्हें ये भी नहीं मालूम कि इन नुकसानों की भरपाई आने वाली जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए सरदर्द बन जाएगी।
तीन दिन पहले पुलिस चौकी फूंकी दी गई। 7 पुलिसवाले घायल हो गए और लगातार ख़बर मिलती रही कि कुछ पुलिसवाले बंधक बनाए जा चुके हैं। पुलिस और लोगों की इस झड़प में 5 पुलिसवालों की मौत भी हो चुकी है और अब तक 10 लोग भी इस हिंसा का शिकार हो चुके हैं।
जम्मू और घाटी के बीच चल रही इस जंग में अब 37 दिन बाद सियासत चमकाने नेता वहां का रुख कर रहे हैं। सर्वदलीय बैठक में यह फैसला लिया गया कि एन एन वोहरा को राज्यपाल के पद से नहीं हटाया जाएगा। अब एक कमेटी का गठन भी कर दिया गया है जो जम्मू-कश्मीर के उन हिस्सों में जाएगी जहां पर आग का क़हर बरपा है। ये कमेटी लोगों से भी बात करेगी। लेकिन जो हाल इस समय इस राज्य का लग रहा है उससे तो कतई नहीं लगता कि ये कमेटी वहां पर जाकर कुछ ठोस कर भी पाएगी। समस्याओं पर जब सियासी समाधान की कोशिश होती है, तो वो किसी बंद कमरे में लंबी मेज के चारों और बैठे बड़े-बड़े नेताओं के सामने होती है। लेकिन, वो भूल जाते हैं कि बंद कमरे के बाहर सियासत फिर भी रुकती नहीं।
बीजेपी की सुषमा स्वराज ने फिर मुंह खोल दिया और कांग्रेस की पूर्व सरकार पर इसका ठीकरा फोड़ दिया है। इस में तो कोई दो राय नहीं कि अमरनाथ की आग कांग्रेस की लगाई हुई है। पर अभी वक्त है उस आग पर पानी डाल कर इसे शांत करने का। ये नहीं कि इस आग में घी डालकर दूर खड़े होकर मजा लेने का। यदि मजा लिया तो ऐसा ना हो कि इस देश के स्वर्ग पर जो नजर लग गई है उस पर पड़ी इस कालिख की कालक इतनी चढ़ जाए और हमारे हाथ उस कालिख से इतने काले हो जाएं कि फिर कभी चाह कर भी साफ ना हो सकें।

आपका अपना
नीतीश राज

8 comments:

  1. ये आग नहीं बुझेगी और इस कमेटी के बाद तो और भड़केगी...कोई नहीं रोक सकता है जम्मू को जलने से...अभी तो शुरुआत है...

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  2. अफसोसजनक स्थितियां हैं.

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  3. इन सारे मसलो के लिये सुरेश चिपलून्कर जी ने कुछ सवाल ऊठाये थे जो आज भी प्रासंगिक है
    "क्या आप धर्मनिरपेक्ष हैं..?
    जरा फ़िर सोचिये और इस देश के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजिये.....
    १. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?
    २. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?
    ३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ७०% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, ३०% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?
    ४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?
    ५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?
    ६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?
    ७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?
    ८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर ३०% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?
    ९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?
    १०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?
    ११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?
    १२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?
    १३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?
    १४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?
    १५. क्या आप मानते हैं - संस्कृत सांप्रदायिक और उर्दू धर्मनिरपेक्ष, मन्दिर साम्प्रदायिक और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष, तोगडिया राष्ट्रविरोधी और ईमाम देशभक्त, भाजपा सांप्रदायिक और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष, हिन्दुस्तान कहना सांप्रदायिकता और इटली कहना धर्मनिरपेक्ष ?
    १६. अब्दुल रहमान अन्तुले को सिद्धिविनायक मन्दिर का ट्रस्टी बनाया गया था, क्या मुलायम सिंह को हजरत बल दरगाह का ट्रस्टी बनाया जा सकता है ?
    १७. एक मुस्लिम राष्ट्रपति, एक सिख प्रधानमन्त्री और एक ईसाई रक्षामन्त्री, क्या किसी और देश में यह सम्भव है, यह सिर्फ़ सम्भव है हिन्दुस्तान में क्योंकि हम हिन्दू हैं और हमें इस बात पर गर्व है, दिक्कत सिर्फ़ तभी होती है जब हिन्दू और हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक कहा जाता है ।
    ऐसे ही कुछ सवाल आज की इस पोस्ट मे भी उठाये गये है

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  4. netaon ko sansad aur cd ki aag bujhaane se fursat mile tab na

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  5. " bhut dukhdayee or karunapurn situation hai, aam insaan kya kr sektta hai, sirf seh sktta hai or kuch nahe"......

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  6. नीतीश जी.पंगेबाज जी की टिपण्णी से मे सहमत हु,ओर हमे सुरेश चिपलून्कर का यह लेख जरुर पढना चाहिये, वही सब सवालो का जवाव हे.. बाकी यह चिंगारी कही ज्यादा ना बढ जये, लेकिन इसे रोकेगा कोन, सभी तो अपनी अपनी रोटिया सेंक रहे हे.

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  7. मैं खुद भी सहमत हूं कई प्वाइंट से लेकिन कुछ प्वाइंट पर लगता है कि कहीं हम अति तो नहीं कर रहे हैं। लेकिन पंगेबाज अरुण जी जो आपने सुरेश चिपलून्कर की तरफ से बताया है वो काफी हद तक सही है। तभी तो इसे हम भारत,अपना हिंदुस्तान कहते हैं। हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं। ये तमगा हमने अपनी रजामंदी से ही तो लिया है। और दूसरे मुल्कों में हिंदूवासियों के साथ क्या हो रहा है इस पर हम टिप्पणी नहीं कर सकते। वो उनकी पॉलिसी हो सकती है लेकिन हमारी तो अलग है। लेकिन गांधी जी के कई उसूल अब समय के साथ कांग्रेस को भी बदल देने चाहिए। ये मेरी सोच है।

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  8. Dear Nitish its really good to have so deepin information about this matter. Even lots of people might not been aware of the exact matter that is the base of Amarnath Issue. Good piece of information. Keep it up & good luck for the future.

    R.S. Rawat

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”