Saturday, August 9, 2008

“हां, सेल्समैन बन गया है मीडिया”

जो जितना अच्छा सेल्समैन वो उतना ही बड़ा और बढ़िया एड़िटर। इस बात को साबित करने की होड़ बहुत दिन से चल रही थी और बहुत लोग जुगत में भी थे और अब ये बात साबित भी हो गई है। आपको माल बेचना आता है कि नहीं। अपने सामान यानी शो को बेकने की कला जिसको भी आगई वो सबसे आगे और जो नहीं बेच पाया तो समझो कि उस की खैर नहीं। ज्यादा दिन तक वो कुर्सी उस शख्स का भार सहन नहीं कर पाएगी।
अब उस कुर्सी पर बैठने के लिए मार्केटिंग के गुणों का होना भी जरूरी है। अब सभी चैनलों में कुछ लोग सिर्फ और सिर्फ इस के लिए होते हैं कि दूसरे चैनल कर क्या रहे हैं। कब दूसरा चैनल अधिकतर राइवल चैनल क्या दिखा रहा है और साथ ही साथ उसने उस कार्यक्रम की मार्केटिंग कब से और किस ढंग से की। चैनल अब प्रोग्राम से ज्यादा इस बात की ओर ज्यादा अग्रसर हो चले हैं या यूं कहें कि ज्यादा तबज्जो देने लगे हैं कि कैसे अपने इस टाइम बैंड को बेचना है। अब बेचने के हिसाब से प्रोग्राम तय किए जाते हैं। किस तरह के प्रोग्राम किस टाइम बैंड पर जाएगा, लोगों की नब्ज किस तरह पकड़नी है इन सब पर देश और विदेशों में भी बैठकें होती हैं।
यहां पर पहले बात छेड़ते हैं न्यूज चैनलों की। अब हर न्यूज चैनलों पर आप को बड़ी ही आसानी से हास्य के फूहड़ शो देखने को मिल जाएंगे। एक हंसइया, कम से कम दो, नहीं तो तीन चैनलों पर तो आराम से दिख जाएगा वो भी एक ही समय पर। वो ही बे-सर पैर की बात और वो ही द्वि अर्थी संवाद। पता नहीं ये जज लोगों को क्या उस प्रोग्राम में सरीक होने का और उस हंसइयों को झेलने का भी पैसा मिलता है। शायद इसे ही मार्केटिंग कहते हैं।
तो अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या न्यूज चैनल अब इंटरटेनमेंट चैनल बन गए हैं? क्योंकि अब हर चैनल के कुछ टाइम बैंड तो फिक्स हैं जहां पर ये हंसोड़े आप को हर रोज बिना नागा दिख ही जाएंगे। यदि ये ही चीज इंटरटेनमेंट चैनलों पर चलनी ही है तो फिर न्यूज चैनलों पर ये क्यों दिखाए जाते हैं? तो जवाब शायद है कि ये न्यूज चैनलों पर इन कार्यक्रमों की मार्केटिंग।
अब कुछ टाइम बैंड ऐसे हैं कि जहां पर आप भविष्य देख सकते हैं हर रोज। कुछ लोग इन भविष्यफल बताने वालों से खुश हैं तो कुछ त्रस्त।
ये सब चलता है तो क्या न्यूज चैनलों की परिभाषा बदल गई है? क्या न्यूज चैनलों पर राशिफल, नाच गाने जैसे कार्यक्रम होने चाहिए। इसी कारण से हमेशा ये आवाज़ उठती रहती है कि जो न्यूज़ चैनल ये सब दिखाते हैं उनको अलग श्रेणी में रखना चाहिए।
अब तो ख़बरों को भी बेकने के अंदाज से ही बनाया जाता है। खबर ऐसे जैसे कि दूसरे को रोचक लगे। अलग-अलग प्रयोग किए जाते हैं। इस पर कई बार लगता है कि खबर को बेचने के चक्कर में खबर की असलियत ही मर जाती है।
अब तो चैनल पर दिखने वाली हर चीज टीआरपी को ध्यान में रखकर की जाती है। एडिटर टीआरपी ही खाते, सोते, पहनते हैं। हर समय सिर्फ इस की ही बात होती है। एक स्क्रीन को दुल्हन मान कर, उस पर किस तरह से लीपा पोती की जाए कि वो और भी हसीन लगने लगे। कई बार तो ऐसा लगता है कि स्क्रीन पर कंटेंट ज्यादा हो गया, तस्वीरों के मुकाबले। तस्वीरें तो लगता है कि छुप ही गई हैं। कोई बैंड ऊपर से, नीचे से साइड से, बीच से हर जगह चलते रहते हैं, स्क्रीन को भर दिया जाता है। दर्शक एक को पढ़ने के चक्कर में कुछ भी नहीं पढ़ पाता। लेकिन कोशिश ये की जाती है कि स्क्रीन को कैसे लुभावना बनाया जाए। जैसे कि स्क्रीन एक दुकान हो ना कि कोई एक बार आजाए तो जा ना सके कुछ टीआरपी दिए। न्यूज चैनलों में कई बार तो खबर ढूंढने से भी नहीं मिलती।
इंटरटेनमेंट चैनलों में एक अलग तरह की होड़ है। जब आईपीएल के मैच चल रहे थे तो सेट मैक्स चैनल की टीआरपी सबसे ज्यादा थी। कोई भी चैनल आसपास तक नहीं फड़क पाया था इस चैनल के। इंटरटेनमेंट चैनल जैसे स्टार, जी सभी ने अपने आने वाले क्रार्यक्रमों की मार्केटिंग जोर-शोर से शुरू कर दी लेकिन उस दौरान कोई भी नया प्रोग्राम लॉन्च नहीं किया। जो भी किया गया वो सुपर फ्लॉप रहा।
कभी-कभी सोचने पर लगता है कि क्या टीआरपी ही सिर्फ सबकुछ है। खासतौर पर न्यूज चैनल जो कि समाज का एक आयना होते हैं कि क्या वो सिर्फ और सिर्फ टीआरपी के लिए या फिर पॉपुलरिटी के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कुछ भी अनाप सनाप दिखाने को तैयार हो जाते हैं। क्या इन पर ऐसे में लगाम लगाने की जरूरत नहीं है?


आपका अपना
नीतीश राज

फोटो साभार-गूगल

7 comments:

  1. सटिक आकलन किया है आप ने ....इसके किये आप बधाई के पत्र है ... बहुत खूब ...धन्यवाद ...

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  2. लिखा तो सटीक है..
    किंतु कुछ सुझाव भी तो रखें
    जिनका समर्थन, या उस पर बहस की गुंज़ाइश हो ।

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  3. डॉ अमर मेरी तरफ से ये बताने की कोशिश है कि सीधे शब्दों में की न्यूज चैनलों पर अब टीआरपी का ही खेल चल रहा है। और सच बताओं तो ये खेल दर्शकों की वजह से ही शुरू हुआ। लेकिन अब जल्दी ही एक बिल लाया जा रहा है जिसमें अब तक टीआरपी देने वाली टेम कंपनी के अलावा भी सरकार दो और कंपनी को ये काम सौंप रही है जो बताएगी की टीआरपी किस चैनल की ज्यादा है। यदि देखा जाए तो पूरे देश में दूरदर्शन सबसे ज्यादा देखा जाता है। लेकिन उसकी रेटिंग सबसे नीचे है। टेम कंपनी ने सिर्फ मैट्रो में ही ६२०० घरों के आँकड़ो के खेल पर ही ये रेटिंग निर्भर होती हैं। अब सिर्फ इंतजार है इस बिल के पास होने का।

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  4. टी आर पी का खेल है, व्यवसायिक उपक्रम हैं-और क्या उम्मीद की जाये. अच्छा विश्लेषण.

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  5. jabhi to kehte hai jo bikta hai wohi dikhta hai,thoda sa ax yani action aur thoda sa sex,ho gaya news channel.sateek likha apne,aur ha apni taareef khud itni kartehi ki samajh me nahi aata kaun sachha aur kaun jhoota hai.afsos is baat ka bhi ki ye hansod ab news channel aur reporting ko bhi apna subject bana rahe hai aur we dikha bhi rahe hai.khair badlega sab ek din isi umeed ke saath aapko bahut bahut bahut badhai is dumdaar post ke liye

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  6. कोई शक नही......अब तो फेरी भी लगाने लगा है.....

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  7. अब मे क्या बोलु, सभी ने मेरे हिस्से का थोडा थोडा बोल दिया हे, धन्यवाद

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”