Thursday, August 7, 2008

'तू डाल डाल, मैं पात पात'

अपील तो अपील है इसे माने या ना मानें, हमारी मर्जी पर डिपेंड करता है। ये तो हमारे पर निर्भर करता है कि अपील को हम लेते किस तरह से हैं। आप इस में कुछ रोक टोक तो लगा नहीं सकते हैं। आप फिर अपील करेंगे और हम फिर देखेंगे कि आप की अपील में कितना दम है। गौर करेंगे की आप की अपील को सुनें या फिर अपनी राजनीति की रोटियां उस अपील के जरिए सेक लें। हमारे नेताओं को असल में रोटियां सेकनी आती हों या ना आती हों पर राजनीति की रोटियां और वो भी जलती हुई गांड़ियों पर, चिताओं पर, सरकारी संपत्तियों पर, कमाल की तंदूरी रोटियां सेकने में उन्हें महारत हासिल हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर पूरे फसाद को राजनीति से दूर रखने की अपील की थी। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। पूरा एक दिन भी नहीं बीता कि शब्दों के बाणों से अग्नि फिर बरसने लगी। अब फिर बीजेपी मिले सुर मेरा तुम्हारा गाने में लगी हुई है, नहीं छोड़ेंगे अमरनाथ मुद्दा। बीजेपी को लग रहा है कि सरकार के साथ खड़े होने में पार्टी को सियासी नुकसान है और एक महीने से हाथ में रही बाजी अब कहीं कांग्रेस के पक्ष में ना चली जाए।
एक दिन और जलता रहा जम्मू। दो जगहों पर लोगों ने कर्फ्यू को तोड़ा। वहीं अमरनाथ संघर्ष समिति ने बातचीत से इनकार नहीं किया है पर वो जमीन वापस दिए जाने से कम किसी भी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे। अमरनाथ को लेकर शुरू हुई ये लड़ाई अब घाटी और जम्मू के बीच अहम की जंग में तब्दील हो गई है। जम्मू को इस बात से ऐतराज है कि राज्य सरकार क्यों हर बार घाटी के दबाव में झुक जाती है और वहीं घाटी के लोगों को इस बात का दर्द है कि आखिर उनके रहते ज़मीन हासिल करने की जम्मू के लोगों की मांग क्यों पूरी हो?

अब ये बताना जरूरी है कि ये अहम कि लड़ाई आखिर शुरू कहां से हुई थी।


अमरनाथ यात्रियों के ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने अमरनाथ बेस कैंप के पास यानि बालताल औऱ दोमेल में 800 कैनाल यानि 90 हैक्टेयर ज़मीन देने की मांग साल 2005 में सरकार के सामने रखी। करीब दो साल की माथापच्ची के बाद राज्य की पीडीपी-कांग्रेस सरकार मई 2008 में जंगल की ज़मीन सिर्फ 2 महीने के लिए 2 करोड़ 31 लाख के रेंट पर किराए पर देने के लिए राज़ी हो गई।
फैसले के तीन-चार दिन तक सब शांत रहा। अचानक घाटी की हुर्रियत कॉन्फ्रेंस सहित अलगाववादी ताकतों ने श्रीनगर सहित तमाम घाटी इलाकों में अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि ज़मीन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को हमेशा, हमेशा के लिए दे दी गई। बस घाटी के लोग उतर आए सड़कों पर और शुरू हो गया बवाल। यहीं राज्य की पीडीपी- कांग्रेस सरकार को चाहिए था कि अफवाह का मुकाबला करती, लोगों को बताती कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को ज़मीन कड़ी शर्तों पर सिर्फ औऱ सिर्फ दो महीने के लिए किराए पर देने की बात हुई है। और साथ में ये भी बताती कि ज़मीन पर किसी भी पक्की इमारत का निर्माण वो नहीं कर सकते। अमरनाथ यात्रा खत्म होते ही ज़मीन खाली करा ली जाएगी। लेकिन ये ही गलती कांग्रेस की सरकार को भारी पड़ गई और इन्होंने निज़ी फायदे के लिए कर दिया खेल, और इस मसले पर कुछ भी नहीं बोले।
जैसे ही कश्मीर में बवाल शुरू हुआ पीडीपी ने सरकार से समर्थन खींच लिया। पीडीपी की भी इसमें चाल थी वो जानती थी कि घाटी में यदि वोट बैंक बनाए रखना है तो ये तो करना ही होगा। लेकिन पीडीपी की भी थू थू हो रही है। जब कैबिनेट ज़मीन देने के प्रस्ताव को अमली जामा पहना रही थी तो उसमें उप मुख्यमंत्री, कानून मंत्री और वन पर्यवारण मंत्री तीनों पीडीपी के थे। कश्मीर में बवाल बढ़ता देख राज्य की कांग्रेस सरकार ने श्राइन बोर्ड से ज़मीन वापस ले ली। सियासी फायदे के लिए फिर मैदान में उतरी सियासी पार्टियां-बीजेपी और तमाम हिंदु संगठन औऱ अमरनाथ संघर्ष समिति के बैनर तले 30 जून से शुरू कर दिया जम्मू में बवाल। शुरूआत में राजनीतिक संगठनों ने आंदोलन को जिंदा रखने के लिए जम्मू के लोगों को हवा दी। उन्हें बताया कि राज्य सरकार घाटी के लोगों के दबाव मे फैसले लेती है और यही से शुरू हो गया वो खेल जिसकी आग आज भी सुलग रही है। जिस जंग को पहले राजनीतिक पार्टियों ने शुरू किया था अब उसमें शामिल हो गए आम लोग और अब हर रोज जल रहा है जम्मू।
आपका अपना
नीतीश राज

4 comments:

  1. नीतीश जी यह सब अपनी अपनी रोटिया सेक रहे हे,अपने अपने वोट वटोरने की लगी हे सब को,लोग मरे जले इन्हे कोई मतलब नही ,कही यह चिंगारी मेरे देश को ही ना ले बेठे,अब कोन बचाये इस देश को इन रक्षाशो से,धन्यवाद

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  2. "Really very painful situation, and more painful and tragdy is that everyone is feeling helpless,............."

    Regards

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  3. सचमुच बहुत अच्छा. लिखते रहिए.
    ---
    यहाँ भी आयें;
    उल्टा तीर

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  4. "जिस जंग को पहले राजनीतिक पार्टियों ने शुरू किया था
    अब उसमें शामिल हो गए आम लोग और अब हर रोज
    जल रहा है जम्मू।"

    सर जी , स्थिति तो बहुत भयानक हो चुकी है ! और आम
    लोगो की शिरकत इसे और गंभीरतम बना रही है !

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”