Tuesday, August 5, 2008

'हम यहां और वो वहां'

यहां पर हम लड़ रहे थे और वहां विदेश मैं वो। यहां पर कोशिश हमारी भी पूरी थी, देश से बाहर वहां, कोशिश उनकी भी पूरी थी। वो वहां डट कर जम चुके थे, यहां पर हम भी डटने का ढोंग कर रहे थे। जब भी हमारी तरफ से कोई भी अंदर जाता तो पीछे से एक सुर में सभी कहते, ‘पूरा खेल के आईं’। पर बरसात के मौसम में झड़ी तो लग चुकी थी। ‘तु चल मैं आया’ कि तर्ज पर हमारे धुरंधर वापिसी की राह पकड़ चुके थे। और आते समय ये भाव होते कि यदि गेंद नीचे नहीं रही होती, तो गोली की तरह गेंद चार रन के लिए चली जाती। बॉल बैट पर पूरी नहीं आ रही, पिच ज्यादा टर्न ले रही है...बस.... नो..नो ....बच गया होता तो....ये बॉल तो मैदान के बाहर ही थी। खुद बाहर बैठा हर शख्स ये ही सोचता है। वैसे हमारी टीम पूरी टीम इंडिया की तर्ज पर ही है। जब चल गए तो राजा वर्ना बज गया बाजा।
मेरी टीम के एक मैंबर ने कहा कि खिलाड़ी जात ही अंधविश्ववासी होती है। तो अब ये बहाना हमारी टीम को मिल गया कि देखो यार, यहां हम आउट हो रहे हैं। लेकिन वहां टीम तो जमी हुई है। लेकिन क्या पता था कि 252 पर 5 और 269 पर पूरी टीम आउट हो चुकी थी। हमने कप्तान साहब से पूछा कि क्या हुआ, यहां हमारी टीम पूरी आउट नहीं हुई लेकिन वहां तो सारे वापस आ गए। मेंडिस ने इस टेस्ट में भी 10 विकेट ले ही लिए। कप्तान साहब ने विचारिक मुद्रा में थोड़ी देर शांत रहने के बाद, ना में मुंडी हिलाते हुए जो कहा वो बुदबुदाने से ज्यादा नहीं था, ये मैच भी नहीं जीत पाएंगे।
हम लोगों की दशा ऐसी ही थी। पहला मैच हम हार चुके थे। वहां टीम इंडिया भी पहला टेस्ट हार चुकी थी। सीरीज बराबर करने का चांस दोनों के पास। पर हमारी टीम के पास कुछ स्कोर ही नहीं था। लेकिन उधर टीम इंडिया के पास मौका था लाज बचाने का।
पहली ही बॉल पर कैच उछला और फिल्डर ने लपक कर कैच करने की कोशिश की पर बॉल हाथ में नहीं आई। लेकिन दूसरे छोर का बल्लेबाज बॉल को देखने के चक्कर में ये भूल गया कि दौड़ना भी है और रन आउट हो गया। पहली ही बॉल पर हमें सफलता मिल चुकी थी। और वहां पर टीम इंडिया को दूसरे ओवर में ही सफलता मिल गई। यहां पर हमें दूसरे और तीसरे ओवर में एक-एक सफलता और मिल गई। हम खुश थे कि अब तो मैच धीरे-धीरे मुट्ठी में आ रहा है। वहां पर भी तीसरे-चौथे ओवर में भारत को सफलता मिल गई।
यहां पर जब बल्लेबाज जमे तो लगा कि नहीं अब उनकी मंजिल दूर नहीं। एक बल्लेबाज जिसका पहली ही बॉल पर कैच उछला था वो ऐसे जमा जैसे फैविकॉल का जोड़। जहां चाह रहा था वहीं पर शॉट खेल रहा था। एक दो बार बीट हुआ लेकिन तब तक वो अपनी टीम को जीत के करीब ले जा चुका था। वो अंत तक नॉट आउट रहा।
वहां पर एक दो जोड़ियां हुई लेकिन टीम इंडिया के सिंह इज किंग ने कमाल किया। जब-जब जोड़ियों ने कदम जमाने चाहे तो उसने तोड़ दी जोड़ी। इस टेस्ट में भज्जी ने भी 10 विकेट झटके।
यहां हमारे सिंह को सफलता नहीं मिली।
वहां टीम इंडिया जीत के करीब पहुंच चुकी थी।
यहां हम मैच हार चुके थे।
वहां टीम इंडिया मैच जीत चुकी थी।
यहां हम पछता रहे थे क्योंकि पिछली हार से हमने कोई भी सबक नहीं लिया था।
वहां टीम ने पिछली हार से सबक लिया और जीत झोली भर चुकी थी।

यहां पर एक बात थी कि हम मैच हारने के बाद भी खुश थे। हम वो शर्मनाक हार भूल गए। हम भी उसी जीत में खो गए जहां पर सब खो रखे थे। हम भी हंस रहे थे और हमें हराने वाले भी। दोनों टीमें जोश के साथ उस समय को जी रही थी। पर हार तो हार है और जीत तो जीत।

आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. जब भी मौका लगे खुशियां मना लो..हार जीत तो लगी रहेगी..आखिर खेल है.

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  2. खेल हार जीत का ही खेल है इसे इंज्‍वाय किया जाना चाहिए

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  3. खेल है तो हार भी है और जीत भी ...केडबरी खाओ खुश हो जाओ :) सार्थक लेख

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  4. जिसका पहली ही बॉल पर कैच उछला था वो ऐसे जमा जैसे फैविकॉल का जोड़।
    बढ़िया लाइन है

    अजी हम तो बिना खेल के ही एंजाय करते रहते है.. फिर बाकी तो सबने उपर कह ही दिया

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  5. खेल को सिर्फ़ खेल की तरह से देखना चाहिये हार जीत तो होती रहती हे, हमेशा जीतना ही तो जरुरी नही...
    बहुत सुन्दर लेख हे आप का

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”