वहां पर मौजूद लोगों को हर जगह से चीखें ही सुनाई दे रही थी। लोग जहां दखते वहां पर उन्हें एक हाथ दिखाई देता मदद के लिए। जितने भी हाथ हिलते दिखते मानो जैसे कह रहे हों कि बचा लो मुझको। आस पास के लोगों ने समझदारी दिखाई और लगभग 10 बच्चों को तत्काल बचा लिया गया और अब तक 20 बच्चे बचा लिए गए हैं। ज्यादातर बच्चों की उम्र दस से बारह साल के बीच है। घायल बच्चों का बैंगलोर के वेनलॉक अस्पताल में इलाज चल रहा है। बारिश की वजह से वहां पर और बसें नहीं चल रही थी। बसों के अभाव और बारिश की वजह से जो लोग इस बस में चढ़ गए थे उनके लिए ये सफर आखिरी बन गया।
खबर नंबर 2
क्या आप ने कभी सोचा है कि नारे भी किसी की जान ले सकते हैं। हां, ये सच है कि नारे भी जान लेते हैं। ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि मैंने देखा की कहीं पर भी इस बात की ज्यादा चर्चा नहीं हुई। कई अखबारों ने तो हद ही कर दी कि इस खबर को छोटे से कॉलम में जगह देकर छोड़ दिया गया। वीएचपी ने देश भर में अमरनाथ की आग को सुलगाते हुए चक्का जाम का आहवान 13 अगस्त को किया था। इस जाम ने दो लोगों की जान ले ली। ये दो जानें थी जो कि बच सकती थी लेकिन वो बच नहीं पाई। दोनों ही हादसों में लगा कि जिंदगी क्या इतनी सस्ती हो सकती है।
ये दो घटनाएं कानपुर और अंबाला की हैं। अंबाला में तो उस बेटे के ऊपर पहाड़ टूट पड़ा जब कि उसका बीमार पिता उसी की गोद में बिना इलाज के ही दम तोड़ गया। बेटा चिल्लाता रहा, अपने पिता की जिंदगी की भीख मांगता रहा, चीख-चीख कर कहता रहा जाने दो हमें लेकिन ये सियासत के ठेकेदार टस से मस नहीं हुए। वो अपने बीमार पिता को अस्पताल नहीं ले जा सका, और उस शख्स का पिता जिंदगी की ये जंग हार गया। वो पिता जिंदगी जीना चाहता था, वो जिंदगी से लड़ रहा था लेकिन उसे क्या पता था कि मौत के रूप में ये जाम उसकी जीने की इच्छा पर भारी पड़ेगा। बेटा अपने पिता को बार-बार चूम रहा था और लोगों से गुहार कर रहा था। लेकिन उस बेचारे की नहीं सुनी गई और उसके ऊपर से पिता का साया उठ गया। जब तक मदद मिलती तब तक तो देर हो चुकी थी।
फिर प्रवीण तोगड़िया ने आकर बयान दिया कि उस बीमार आदमी को उठाकर हमारा आदमी ले गया। लेकिन उनसे कोई तो पूछे कि समय की कीमत समय निकल जाने के बाद कुछ नहीं रहती। जब वो चीख रहा था पुकार रहा था तब क्यों नहीं सुनी उस की पुकार। क्या जाम ही है हर चीज का हल। काम धाम कुछ करते नहीं हो और बन बैठे हो देश के ठेकेदार। शर्म आनी चाहिए, शर्म।
कानपुर में एक लड़के को करंट लग गया और अस्पताल लेजाते वक्त जाम ने उसकी भी जान ले ली। वो अपना हक चाहता था, वो जीना चाहता था लेकिन वो इस लड़ाई को जीत नहीं पाया। डेढ़ घंटे तक वो इस जाम में फंसा रहा और जिंदगी से लड़ता रहा। डेढ़ घंटे का समय काफी लंबा होता है। उसकी गाड़ी वीएचपी की जाम में ऐसी फंसी कि उसकी जिंदगी को ही खत्म करगई।
वहीं वीएचपी के कार्यकर्ता इस देश की सरकार से ये पूछते रहे कि देशभक्ति की कीमत जान देकर क्यों चुकाई जाती है? यहीं पर हम भी इनसे सवाल पूछ रहे हैं कि क्या किसी की जिंदगी की कीमत इतनी कम होती है कि वो यूं ही कोईं भी ले सकता है। इन बेचारों को राजनीति से कोई मतलब नहीं, शायद उन्हें ये भी नहीं पता कि अमरनाथ की आग में देश क्यों जल रहा है, लेकिन इन सियासतदारों को तो अपनी राजनीति चमकानी है और इसके लिए एक दो लोगों की जान क्या मायने रखती हैं।
आपका अपना
नीतीश राज
(62वें जश्न पर सबको बधाई)
अति दुखद खबरें!!
ReplyDeleteबहुत ही दुःखद खबर है। सच में इन सियासत के ठेकेदारों को देश से नही अपने से ही मतलब है।
ReplyDeleteअन्धै अँधा ठेलिए, दोनों कूप पडंत
ReplyDeleteस्वार्थियों की दुनिया में अच्छी बातें सुनने कों , लगता है हम तरस ही जायेगें
चन्द्र मोहन गुप्त
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को
ReplyDeletekhabre to wakai kaafi dukhad hai
ReplyDeleteदोनों खबरें दुखद है .. आज कल सब अपना सोचते हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही ह्रदय विदारक हादसे हैं ! शर्मनाक !
ReplyDeleteवंदे मातरम् !
sahi hai aur durbhagya se yahi humare bhagya main hai.fir bhi swatantrata divas ki badhai aapko,aur swatantra lekhan ki bhi
ReplyDeleteदोनों ही खबरें अफसोसजनक और दुखद है।
ReplyDeleteदुखद।
ReplyDeleteमेरे मन में कल्पना है कि अन्तत सबसे विकसित समाज वह होगा जिसमें व्यक्ति को यात्रा की आवश्यकता ही न हो। काम या सुविधायें अन्तत: व्यक्ति के दरवाजे पर पंहुचें।
पर यह दूर की कल्पना है। बीच में तो इन त्रसदियों से कलपना ही है।
अति दुखद
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप को,,,,