श्रीलंका से सीरीज गवांने का दुख तो है पर उस से ज्यादा है पांडवों का नहीं चलना। सब से ज्यादा उम्मीदें इन से ही थीं और ये ही नहीं चले। अब एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं क्योंकि जो होना था वो होगया। हम सीरीज हार गए। पर सवाल ये हैं कि क्या ये पांडव हीं हैं इस हार के सबसे बड़े दोषी? क्या ये हीं हैं जो हैं हार के गुनहगार? भई, सबसे ज्यादा अनुभव इन के पास ही था। जब टीम देश से रवाना हो रही थी तो कप्तान कुंबले ने कहा था कि मेंडिस की काट हमारे अनुभवी बल्लेबाज ढूंढ निकालेंगे। लेकिन मेंडिस ने तो रिकॉर्ड ही बना दिया। पहली सीरीज में सबसे ज्यादा विकेट लेने का कीर्तिमान हासिल कर लिया।
कुंबले जी के दो अरमान थे कि सचिन इस टूर में लारा का रिकॉर्ड तोड़ दें लेकिन सचिन ने तो अरमानों पर ऐसा पानी फेरा कि अब कभी कुंबले अरमान ही नहीं करेंगे, और वो भी खासतौर पर सचिन से। दूसरा अरमान था कि सीरीज हम बेहतर अंतर से जीतें। लेकिन यहां पर पूरी टीम ने और बाकी बचे अनुभव ने लुटिया डूबो दी। कुंबले अब कहते फिर रहे हैं कि बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले....।
जहां तक सचिन की बात है तो सचिन एक लेजेंड हैं। उनके ऊपर पिछले समय में भी कई आरोप लगे लेकिन जब उन्होंने वापसी कि तो सबके मुंह बंद होगए। सचिन क्रिकेट मे गॉड की भूमिका रखते हैं खासकर भारत के लिए तो और ब्रैडमैन से उनकी तुलना यूं ही नहीं की जाती। लेकिन क्या सचिन की चोटें और उम्र अब उन पर हावी होने लगी हैं। दबाव जो कि धोनी की तरफ से उन पर आया है वो भी कुछ कम नहीं है। यहां पर बीसीसीआई को एक सलाह है कि एक-दो सीरीज बांग्लादेश और कीनिया के साथ रखकर सचिन का रिकॉर्ड बनावा दें और फिर सचिन को कहें की गुरू अब क्या बुढापे में भी खेलोगे, संन्यास ले लो। वैसे सचिन की किस्मत मैं ये नहीं था कि विदेशी धरती पर वो रिकॉर्ड बनाए। ऑस्ट्रेलिया के साथ होने वाली 4 टेस्ट मैचों की सीरीज में शायद वो ये रिकॉर्ड बना लें। पहला टेस्ट बैंगलोर में चिन्नास्वामी स्टेडियम में 9 अक्टूबर से 13 अक्टूबर तक होगा। भगवान ने चाहा तो इसी मैदान पर हम सचिन को ये कीर्तिमान हासिल करते देखेंगे।
दादा, द्रविड़ और लक्ष्मण तो पहले से ही निशाने पर हैं और अब इस प्रदर्शन ने तो और भी सवालिया निशान लगा दिए हैं। वहीं द्रविड़ ने 4 मैच में 179 रन बनाए जिसमें सर्वाधिक 68 रहे और मैदान में सिर्फ 4 कैच में उनका योगदान रहा। दादा ने 4 मैच में 132 रन बनाए, सर्वाधिक 35 रन और 2 कैच लपके। वहीं लक्ष्मण ने 4 मैच में 215 रन बनाए, सर्वाधिक 61 नाबाद और 4 कैच लपके। ये आंकड़े हैं पूरी सीरीज के। लेकिन कप्तान साहब ने तो कमाल कर दिया जहां दूसरी टीम के गेंदबाज कमाल कर गए, वहीं कुंबले ने 4 मैच में सिर्फ 11 विकेट लिए और सर्वश्रेष्ठ रहा 30 पर 3 विकेट। बल्ले से मात्र 29 रन चार मैचों में। इनसे अच्छा तो भज्जी का प्रदर्शन रहा जिन्होंने सीरीज में 20 विकेट झटके और बेस्ट रहा 102 पर 6 विकेट, एक मैच में 10 विकेट भी लिए और 77 रन भी बनाए।
क्या लगता है कि इन आंकड़ों के साथ ये पांडव फिर वापसी कर पाएंगे, मुझे तो नहीं लगता कि वापसी संभव हो पाएगी। इनमें से जो भी खिलाड़ी एक सीरीज के लिए बाहर हुआ तो उस को मान लेना चाहिए कि अब टीम इंडिया में वापसी के दरवाजे उसके लिए बंद हो गए और हो सके तो फिर उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए।
आपका अपना
नीतिश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
wow, very special, i like it.
ReplyDeleteWe should have a great day today.
ReplyDeleteProbably I can say with this blog make, more some interesting topics.
ReplyDeleteHi there!
ReplyDeleteThanks to the blog owner. What a blog! nice idea.
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