Sunday, June 14, 2009

रेप करोगे तो ऐसे ही पिटोगे, भीड़ ने जमकर धुना बलात्कारियों को, न्याय का नया रूप।

दिल खुश होगया, मज़ा आगया। आप सोच रहे होंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं। बताता हूं, जैसे ही मेरी नजर उस फुटेज पर पड़ी तो लगा कि ये क्या हो रहा है। भीड़ कैसे पागलों की तरह उस लड़के को पीट रही है। क्या कारण है कि पीट रही है क्या किया है उन लड़कों ने। ये पुलिसवाला कुछ कर क्यों नहीं पा रहा है, सिर्फ देख रहा है। अरे इस पुलिसवाले ने तो बंदूक भी निकाल रखी है पर लोगों को काबू क्यों नहीं कर पा रहा है। आखिर क्या कारण है।

गुस्सा भी क्या चीज है, कभी इतना गलत काम करवा जाता है कि जिंदगी भर खुद को उस घृणत कृत्य के लिए आप खुद को माफ नहीं कर सकते। पर कभी-कभी सही काम भी करवा जाता है ये गुस्सा।
लोग पहुंचे गए मुंह पर कपड़ा बांधकर और जैसे ही वो तीनों सामने पड़े तो लोग बेकाबू हो गए और फिर शुरू हुआ उन तीनों को पीटने का दौर

सूरत में हुई एक शर्मनाक हरकत जिसने बिगाड़ दी शहर की सूरत। तीन मनचले सुबह के समय पर निकले तफरी के लिए। उसमें से दो पुलिसवालों की औलाद। ट्यूशन पढ़ने गई नाबालिग लड़की और उसके दोस्त को गाड़ी में बहला फुसलाकर बैठा लिया। वो लड़की नाबालिग, सिर्फ 17 साल की। उन तीनों ने दो घंटे तक उस लड़की को नोचा, काटा, खाया, नहीं सुनी उसकी आवाज़, नहीं सुनी उसकी चीख और दो घंटे तक कार में करते रहे बलात्कार। लड़की के जिस्म को निचोड़ने के बाद फेंक कर चल दिए। लेकिन उस से पहले उन रईसजादों ने मोबाइल से उस लड़की की अश्लील वीडियो भी खींच ली। लड़की ने पुलिस से शिकायत की और मैडिकल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि भी हो गई।

पुलिस महकमा हरकत में आया और तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच सूरत के पुलिस कमिश्नर का तबादला भी कर दिया गया और मामले की सुनवाई फास्ट ट्रेक कोर्ट में करवाने का फैसला भी हो गया। पुलिस उन तीनों आरोपियों को मेडिकल जांच के लिए लेगई। बस फिर क्या था लोग खासे नाराज़ थे और उन्हें लग रहा था कि इन तीनों को बचाया जाएगा क्योंकि ये पुलिसवालों के बच्चे हैं। इसलिए लोग पहुंचे गए मुंह पर कपड़ा बांधकर और जैसे ही वो तीनों सामने पड़े तो लोग बेकाबू हो गए और फिर शुरू हुआ उन तीनों को पीटने का दौर। तीनों पिटाई से बाप-बाप करते रहे और पुलिस लोगों को बंदूक दिखाकर रोकने की कोशिश। पर लोग कहां रुकने वाले थे औरतों ने भी जमकर लात मारी। ना तो पुलिस का डंडा काम आया ना ही बंदूक लोगों ने तबियत से की धुनाई। अस्पताल में जिसे भी पता चला उसने ही अपने हाथ-पैर सब साफ कर लिए। लोगों ने तीनों को घेर करके मारा पुलिस यहां बचाती तो वहां से पड़ता और वहां से बचाती तो यहां से पड़ता। जब लोगों को तसल्ली होगई तब जाकर पुलिसवाले हालात को काबू में कर सके और तीनों को ले जा सके।

पहले तो बलात्कार, फिर नाबालिग से रेप, घंटों रेप, सड़क पर फैलाई दहशत, कार में किया रेप, फिर खींचा वीडियो इतना सब काफी था उन लड़कों को पीटने का कारण साथ ही पुलिसवालों की औलाद तो धुनाई तो तबियत से होनी ही थी। ऐसे ही न्याय से इस तरह के गंदे काम करने वालों से छुटकारा मिल सकता है आम जनता को। इसे ही कहते हैं भीड़ का कानून पर ये तब तक ही ठीक है जब तक की ये सही काम के लिए हो वर्ना ये ही ताकत गुंडागर्दी को भी जन्म देती है।

आपका अपना
नीतीश राज

15 comments:

  1. लड़कों द्वारा इस तरह की हरकतें क्षोभ पैदा करती हैं। दुखद!

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  2. अत्यंत ही निंदनिय कृत्य है. न्याय मे विलंब की आशंका और इतनी जघन्य घटनाओं में जनता का आक्रोश स्वाभाविक है. ऐसा ही होगा.

    रामराम.

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  3. ताऊजी से सहमति, न्याय में बिलंब की आशंका जनता में स्वाभाविक आक्रोश उत्पन्न कर देती है

    जब न्याय की राह में वह लोग बाधा उत्पन्न करेंगे जिन पर न्याय का भार है तब जनता के हाथ में न्याय के नये रूप खोजने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता.

    न्यायालय में तो इन दरिंदों को बचाने के लिये कोई अब्बास काज़मी आजाता और वह कहता कि अमुक लड़के तो अभी नाबालिग हैं, उस समय पर यहां थे ही नहीं, और न जाने क्या क्या...

    न्याय मनुष्य के लिये है, मनुष्य न्याय के लिये नहीं है.

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  4. जब कंही से किसी न्याय की उम्मीद नही रह जाती तब जनता या भीड़ अपना कानून लागू कर देती है।भीड़ का इस तरह कानून को अपने हाथ मे लेना इस बात का सबूत है नीतिश भाई कि उन्हे मौजूदा कानून पे विश्वास नही रहा।आपको नागपुर मे भरी अदालत मे महिलाओं द्वारा एक बलात्कारी गुण्डे को पीट-पीट कर मार डालने की घटना तो याद होगी।उस समय भी कानून अपने हाथों मे लेने के सारे देश मे हल्ला मचा था मगर क्या बदला,कुछ नही। और शायद इसिलिये अब सूरत मे हो रहा है और आगे भी होता रहेगा आखिर कब तक़ जनता अपराधियों को बच कर निकलते देखती रहेगी। अब वो बेबस नही है उसे अपनी ताक़त का अंदाज़ा हो गया है।समय आ गया है देश के कर्ताधर्ताओं को इस बारे मे न केवल सोचना होगा बल्कि ठोस कदम भी उठाने पड़ेंगे वर्ना उनका नम्बर भी लग……………………॥

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  5. nitish
    thanks is baat ko apnae blog par kenae kae liyae . sab taraf kewal aur kewal ladkiyon kae kapdo par paabandi ki baat hotee haen par aap ne is khabar ko dae kar yae bataya haen ki aap bhi sehmat haen meri tarah ki jo ladko kae bheed nae kiya sahii kiyaa

    rachna

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  6. युवकों की ये हरकतें और जनता का व्यवहार दोनों ही न्याय-व्यवस्था की क्षीणता के परिणाम हैं। जब लोग यह देखते हैं कि न्याय व्यवस्था उन का कुछ बिगाड़ नहीं सकती तो अपराध बढ़ते हैं। लोग जब देखते हैं कि व्यवस्था न्याय नहीं कर सकती तो खुद न्याय करने पर आ जाते हैं। यह एक समाज के लिए अव्यवस्था के सिवा कुछ नहीं। लेकिन यह अव्यवस्था भी हमारे स्वार्थी राजनीतिज्ञों की ही देन हैं। जिन्हों ने न्यायपालिका और अन्वेषण करने वाली पुलिस दोनों के ही आकार को बढ़ती जनसंख्या के अनुरूप नहीं रखा। खुद मुख्य न्यायाधीश इस बारे में क्या कहते हैं यहाँ देखा जा सकता है।
    http://teesarakhamba.blogspot.com/2009/06/blog-post_13.html

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  7. वास्तव में समाज को ऐसा ही कुछ करना चाहिए था बल्कि ऐसे लोगों को इससे भी कुछ ज्यादा सजा देनी चैह्ये. ताकि बलात्कार और हत्या जैसा काम करने वाले इसे करने से पहले हज़ार और लाख बार सोचें. किसी की जान लेना और किसी की इज्जत से खिलवाड़ करना जघन्य अपराध है है और इसकी सजा भी बहुत कड़ी होनी चाहिए. समाज को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई इस सजा से बच न सके.

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  8. न्याय में देर और न मिलने का यकिन और लम्बी कानुनी प्रक्रिया.. इन हरकतों को जन्म दे रही है...

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  9. आखिर लोग धैर्य भी कितना रखे। न्याय में लगातार बिलम्ब का यह परिणाम है।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  10. कानून को हाथ में लेने को मैं सही नहीं मानता, मगर इस घटना पर कोई अफसोस नहीं हो रहा. इसे मेरा दोगलापन कह सकते है या रोष भी.

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  11. logon ne jo kiya sahi kiya...aise darindon ko zinda nahi chhodna chahaiye

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  12. वाकई मजा आ गया पढ़कर/देखकर। इन्तज़ार तो इस बात का है कि ऐसे ही रोज-ब-रोज़ भीड़ के जत्थे किसी भ्रष्ट आईएएस अफ़सर या किसी रिश्वतखोर अफ़सर/बाबू को दफ़्तरों से निकाल-निकाल कर पीटे… क्योंकि बलात्कारी दरिन्दे तो शायद कानून की पकड़ में आ भी जायें, लेकिन सरकारी ऑफ़िसों में व्यवस्था के साथ रोज़मर्रा का बलात्कार आखिर जनता क्यों सहे? धुलाई तो भ्रष्ट कर्मचारी की होनी चाहिये, लेकिन ऐसा करने के लिये भीड़ से उठने वाले हाथ भी तो ईमानदार हों।

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  13. कोई भी व्यक्ति, कोई नागरिक कानून का पालन ना करे यह अच्छा नही, लेकिन जहां जिस देश मै कानून बस कुछ लोगो के हाथ की गुडिया बन जाये वहा तो ऎसा ही होगा, मुझे यह सजा भी कम लगी, काश इन तीनो के हाथ पेर भी तोड दिये जाते ताकि जन्म भर इन्हे देख कर लोग ऎसा गंदा काम करने से पहले हजार बार सोचते.
    मजा आ गया

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  14. लड़की का जीवन नष्ट हो गया ! बलात्कारी धुनें गए ,आप कह सकते थे कि न्याय व्यवस्था पंगु हुई है जनता का रोष 'उचित' है ! उक्त लड़की आपकी परिजन होती तब भी आप पिटाई को 'उचित' मानते या फिर कहते मजा आ गया दिल खुश हो गया ! ये बलात्कार की गंभीर घटना थी ! कोई कामेडी फिल्म नहीं !
    आप खुश हुए मतलब , बलात्कारी पिटे तो लड़की की इज्जत वापस बहाल हो गई क्या ? और ये सुरेश चिपलूनकर भी ???

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  15. जब भी भीड़ इस प्रकार से अपना न्याय देती है,चाहे उनके लात घूँसे तथाकथित अपराधियों के शरीर पर पड़ते हैं परन्तु असली चोट न्याय व्यवस्था पर ही होती है। प्रत्येक बार लज्जा से सिर उस ही का झुकना चाहिए। जब सभ्रान्त लोग भी इस तरीके से सहमत होने लगें तो समझ लेना चाहिए स्थिति इतनी चिन्ताजनक है कि अब लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम भी शायद हमारी न्याय प्रणाली को नहीं बचा सकेगा।
    जिस देश में न्याय की आशा ही लोगों को न रह जाए वहाँ सड़कें,स्कूल,हस्पताल आदि बनाना भी बेमानी है। जीने की बुनियादी आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान हो सकते हैं किन्तु सामाजिक प्राणी की तरह जीने के लिए न्याय भी बुनियादी आवश्यकता है। जिस समाज मे व्यक्ति न्याय की अपेक्षा न रख सके वह समाज समाज कहलाने का अपना अधिकार खो देता है। हमारे देश में यही हो चुका है।
    स्त्री का तो आत्मसम्मान से जीने का अधिकार या तो था ही नहीं या बहुत पहले ही छिन चुका है परन्तु अब समाज को भी समाज कहलाने का अधिकार नहीं रहा है। वैसे जहाँ आधी जनसंख्या अधिकारहीन हो वह पहले भी समाज था इस बात में शक है।
    आइए,मिलकर अफ़सोस करें।
    घुघूती बासूती

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मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”