Thursday, July 2, 2009

कौशिक जी, ये तो होना ही था, आपकी लड़कियां इतनी सुंदर जो नहीं हैं।



हमारे देश में कौन जानता है कि सीता गोसाई, मुधु यादव, प्रीतम सिवाच, रानी रामपाल, सुरिंदर कौर, सबा अंजुम, ममता खरब कौन हैं।

कौशिक जी ये तो होना ही था। इसका इल्म तो पहले से ही था हमें तो, आपको नहीं था ऐसा मैं सोच नहीं सकता। मुझे तो ये मालूम था कि ऐसा ही होगा। आपकी लड़कियों से कोई भी नहीं मिलने आएगा। आपकी कोई लड़की भी तो ऐसी नहीं कि जिसे कोई देखना पसंद करे। अधिकतर के पास तो रंग ही नहीं है, सभी तो काली हैं, शरीर ऐसा है कि कोई लड़की मानने को तैयार नहीं। खुद आप के घर के लोग उन्हें देखना पसंद नहीं करते। कौशिक जी, ये सब आप क्या सोचते थे कि दुनिया उमड़ पड़ेगी आपकी लड़कियों को देखने के लिए। नहीं, कतई नहीं।
हमारे देश में कौन जानता है कि सीता गोसाई, मुधु यादव, प्रीतम सिवाच, रानी रामपाल, सुरिंदर कौर, सबा अंजुम। चक दे के कारण ममता खरब को लोग जानने और पहचाने लगे वर्ना ममता खरब को भी कोई नहीं जानता। अरे, महिला हॉकी टीम की कप्तान कौन है? कौन बताएगा? यदि सर्वे कराया जाए तो शायद ही पूरे देश में आंकड़ा १०० को छू पाएगा। मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूं कौशिक जी, पूरे देश में १०० लोग भी नहीं बता पाएंगे। यदि महिला हॉकी टीम के परिवार, रिश्तेदार और आस-पड़ोस को छोड़ दें तो। आप तो महिला हॉकी टीम की बात कर रहे हैं मैं ये दावा करता हूं कि पूरे देश में ५०० से ज्यादा लोग ये नहीं जानते होंगे कि पुरुष भारतीय हॉकी टीम का कप्तान कौन है। शर्त वो ही कि परिवार वगैरा को छोड़ कर साथ ही इंटरनेट में सर्च नहीं कर सकेंगे। आखिरकार ये आपके देश का राष्ट्रीय खेल है। है कि नहीं है, मुझे तो इस पर भी कई बार शक होता है।

>अरे
कौशिक जी आप ने तो मुगालता पाल रखा है
कि आप की टीम गर कोई टूर्नामेंट जीतकर आएगी तो आपकी लड़कियों को कोई सर-आंखों पर बैठाएगा। जी कौशिक साहब आपको तो जाते हुए इस बात का एहसास हो जाना चाहिए था जब कि आपकी लड़कियां पूरी रात एयरपोर्ट पर खड़ी रहीं और उनका ट्रांजित वीजा नहीं आया। और इस कारण से वो इस टूर्नामेंट में एक दिन की देरी से पहुंची। नहीं जी नहीं, कतई नहीं बदल सकता इनका भविष्य। आप मेहनत करके देखना चाहते हैं तो देख लीजिए पर कोई फायदा नहीं, आप अपने मन के खुद मालिक हैं। अरे हमारे देश में तो हमारे खेल मंत्री पुलेला गोपीचंद को भी नहीं जानते।
आपके देश के पीएम भी दो दिन बाद बधाई संदेश भेजते हैं। अब से कुछ देर पहले ही पीआईबी ने प्रेस रिलीज जारी किया गया है। गर ये ही हाल पुरुष हॉकी टीम के साथ हुआ होता तो पहाड़ टूट जाता और इससे भी अधिक यदि ये ही हाल यदि भारतीट क्रिकेट टीम यानी टीम इंडिया के साथ हुआ होता तो भूचाल आजाता।
कोई नहीं जानता कि रानी रामपाल हमारी टीम में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी हैं। १६ साल की इस बाला ने इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल किए हैं। रानी पुरुष टीम के दिवाकर राम की तरह मानी जा रही हैं। पर लोग उसे क्यों जानेंगे वो सानिया मिर्जा कि तरह सुंदर जो नहीं है। वो सायना नेहवाल की तरह गुड लुकिंग भी नहीं है। वर्ना हमारे खेल दिग्गज तो ये कहते हैं कि आजकल सानिया मिर्जा को बहुत पीछे छोड़ दिया है सायना ने। पर कहीं देखी थी सायना की वो खबर जब सायना ने चीन की वॉग को हराकर चैंपियनशिप जीती थी। शायद नहीं। सानिया क्वार्टर फाइनल में भी पहुंचे तो खबर हो जाती है।
मुझे किसी भी खिलाड़ी से कोई शिकायत नहीं पर सोच ये है कि चेहरा और कद देख कर खासकर देश के मामले में प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। एक दो अखबार को छोड़ दें तो किसी ने भी महिला टीम की तस्वीर नहीं छापी। क्यों छापें काली लड़कियों को, बिक्री नहीं होगी पेपर की, है ना.......


आपका अपना
नीतीश राज


नोटभारतीय महिला हॉकी टीम ने कप्तान सुरिंदर कौर की अगुवाई में रूस में एफआईएच चैंपियंस चैलेंज टू जीता है। जो कि पिछले २५ साल में भारत ने पहली बार जीता है। ये भारतीय महिला टीम ने रचा है इतिहास। अब उसे सीधे चैलेंज वन के लिए क्वालिफाई कर लिया है। पहले तो जाते हुए टीम को ट्रांजित वीजा के लिए पहले एयरपोर्ट पर फिर होटल में रात भर इंतजार करना पड़ा था और अब जीत कर लौटने पर महिला टीम का स्वागत के लिए कोई भी अधिकारी हॉकी इंडिया की तरफ से नहीं पहुचा। सिर्फ ये शिकायत है कौशिक साहब की। अब हॉकी इंडिया के महासचिव मोहम्मद असलम खानापूर्ती करने में लगे हुए है। हॉकी इंडिया अब सारी टीम को एकत्र करके टीम के सम्मान में कार्यक्रम करेगी। पर असलम साहब टीम के स्वागत के लिए अधिकारी क्यों नहीं पहुंचे? हां, एक बात और एम के कौशिक साहब टीम के कोच हैं।


6 comments:

  1. महत्वपूर्ण और विचारणीय प्रविष्टि । धन्यवाद ।

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  2. बहुत ही पते की बात कही है आपने इस लेख में।

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  3. सब लोग "समलैंगिकता" पर बहसियाने में लगे हैं ना, सो फ़ुर्सत नहीं मिली होगी… इसकी बजाय तो हमे एक "गे" टीम बनानी चाहिये, जो आते-जाते "न्यूज़ आईटम" बना करेगी… :)

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  4. मैं स्वयं एक खिलाड़ी रही हूँ और मानती हूँ कि कुछ खेलों के साथ सरासर अन्याय होता है तो कुछ को बहुत अधिक मान मिलता है। जहाँ तक खेल मंत्रालय का प्रश्न है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। परन्तु आम जनता तो वही देखेगी जो उसे पसंद आएगा। हम उनपर अपनी पसंद नहीं लाद सकते। कुछ खेल अधिक तमाशाजनक होते हैं, अधिक दर्शनीय से!कुछ ऐसे नहीं होते। फिर अलग अलग देशों में अलग अलग खेलों को अधिक देखा जाता है।
    यह भी कहा जा सकता है कि किसके विषय में अधिक हल्ला या कहिए हाइप पैदा की जाती है। किसको बढावा देकर अधिक दर्शक, अधिक धन कमाया जा सकता है। खिलाड़ी के लिए हर खेल में मेहनत है। हर विजय में उल्लास है। यह वही जान सकता है जिसने कभी कोई खेल प्रतिस्पर्धा जीती हो। वह एड्रेलीन का चरम बहाव और भी गहरा जाता है यदि तालियों की गूँज भी उसमें सम्मिलित हो जाए। यदि समाचार पत्रों में नाम आ जाए, फ़ोटो आ जाए तो क्या बात! आज के जमाने में यदि टी वी पर आपका मैच दिखाया जाए, या कोई साक्षात्कार ठीक खेल के बाद हो जाए तो सोने में सुहागा हो जाता है। अन्यथा खिलाड़ी तो वैसे ही खेलता जाता है, अपने लिए। क्योंकि खेलना ही उसकी पसन्द है, उसका प्यार है, उसकी नियति है।
    हाँ, यदि आप किसी खेल को बढावा देना चाहें, उस खेल में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति चाहें तो खिलाड़ियों को धन व सम्मान देना ही होगा, अन्यथा खिलाड़ी रोजी रोटी के चक्कर में या अवसाद में खेलना छोड़ देंगे। खेल एक हाई मैन्टेनेन्स काम है। पैसा व मेहनत तो लगते ही हैं सो कुछ पुरुस्कृत होने की आशा भी होती है।
    फिर शोषण आदि के भी बहुत से मुद्दे हैं परन्तु क्रिकेट के पागल इस देश में यह सब सोचने की फ़ुर्सत या आवश्यकता किसे है? हम तो बस यही रोना रो सकते हैं कि भारतीय खिलाड़ी पदक नहीं लाते, क्यों नहीं लाते यह सोचने का कष्ट क्यों करें?
    घुघूती बासूती

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  5. बहुत अहम और विचारणीय मुद्दा ऊठाया आपने. धन्यवाद.

    रामराम.

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  6. sahee ko sahee kahaa jaaye bas itanii duaa hai

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
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