Friday, August 15, 2008

खबरें ये भी हैं, जो आपके सरोकार की हैं

क्या आप सोच सकते हैं कि ये बारिश जो कि कवियों के लिए कविता है और शायरों के लिए शायरी किसीकी जान भी ले सकती है। बारिश जब अपना कहर बरपाए तब नदियां उबलने लग जाती हैं और फिर होते हैं हादसे। देश जहां आजादी की 61वीं सालगिरह मना रहा है वहीं ठीक एक दिन पहले कई मां के लाल उनसे दूर होगए। कर्नाटक में मैंगलोर के पास एक स्कूल बस नदी में गिर गई जिसमें ग्यारह लोगों की जान चली गई। इन ग्यारह लोगों में से 7 बच्चे हैं। 25 लोगों को बचा लिया गया है, इनमें 20 बच्चे हैं। जिस रोड पर ये हादसा हुआ वो गुरुपुर नदी के साथ-साथ थी। बीती रात से ही जोरदार बाऱिश के कारण नदी का पानी सड़क पर आगया। मैंगलोर में भामी हिरिया मिडिल स्कूल के बच्चों को लेकर एक मिनी स्कूल बस जा रही थी। बस में 28 बच्चे थे और साथ में कुछ लोग ऐसे भी थे जो कि कोई सवारी नहीं मिलने के कारण उस में चढ़ गए थे, लेकिन शायद किस्मत उन के साथ खेल खेल चुकी थी। उस समय वहां तेज़ बारिश हो रही थी और पानी सड़क पर भर गया था। सड़क पर पानी इतना था और बारिश भी ज्यादा हो रही थी कि बस का ड्राइवर रास्ता भटक गया। पानी इतना ज्यादा था कि सड़क और नदी में फर्क कर पाना उस ड्राइवर के लिए मुश्किल होगया। बस, हादसा हो गया, चंद पलों में बस नदी में बह गई।
वहां पर मौजूद लोगों को हर जगह से चीखें ही सुनाई दे रही थी। लोग जहां दखते वहां पर उन्हें एक हाथ दिखाई देता मदद के लिए। जितने भी हाथ हिलते दिखते मानो जैसे कह रहे हों कि बचा लो मुझको। आस पास के लोगों ने समझदारी दिखाई और लगभग 10 बच्चों को तत्काल बचा लिया गया और अब तक 20 बच्चे बचा लिए गए हैं। ज्यादातर बच्चों की उम्र दस से बारह साल के बीच है। घायल बच्चों का बैंगलोर के वेनलॉक अस्पताल में इलाज चल रहा है। बारिश की वजह से वहां पर और बसें नहीं चल रही थी। बसों के अभाव और बारिश की वजह से जो लोग इस बस में चढ़ गए थे उनके लिए ये सफर आखिरी बन गया।



खबर नंबर 2

क्या आप ने कभी सोचा है कि नारे भी किसी की जान ले सकते हैं। हां, ये सच है कि नारे भी जान लेते हैं। ये मैं इसलिए लिख रहा हूं कि मैंने देखा की कहीं पर भी इस बात की ज्यादा चर्चा नहीं हुई। कई अखबारों ने तो हद ही कर दी कि इस खबर को छोटे से कॉलम में जगह देकर छोड़ दिया गया। वीएचपी ने देश भर में अमरनाथ की आग को सुलगाते हुए चक्का जाम का आहवान 13 अगस्त को किया था। इस जाम ने दो लोगों की जान ले ली। ये दो जानें थी जो कि बच सकती थी लेकिन वो बच नहीं पाई। दोनों ही हादसों में लगा कि जिंदगी क्या इतनी सस्ती हो सकती है।
ये दो घटनाएं कानपुर और अंबाला की हैं। अंबाला में तो उस बेटे के ऊपर पहाड़ टूट पड़ा जब कि उसका बीमार पिता उसी की गोद में बिना इलाज के ही दम तोड़ गया। बेटा चिल्लाता रहा, अपने पिता की जिंदगी की भीख मांगता रहा, चीख-चीख कर कहता रहा जाने दो हमें लेकिन ये सियासत के ठेकेदार टस से मस नहीं हुए। वो अपने बीमार पिता को अस्पताल नहीं ले जा सका, और उस शख्स का पिता जिंदगी की ये जंग हार गया। वो पिता जिंदगी जीना चाहता था, वो जिंदगी से लड़ रहा था लेकिन उसे क्या पता था कि मौत के रूप में ये जाम उसकी जीने की इच्छा पर भारी पड़ेगा। बेटा अपने पिता को बार-बार चूम रहा था और लोगों से गुहार कर रहा था। लेकिन उस बेचारे की नहीं सुनी गई और उसके ऊपर से पिता का साया उठ गया। जब तक मदद मिलती तब तक तो देर हो चुकी थी।
फिर प्रवीण तोगड़िया ने आकर बयान दिया कि उस बीमार आदमी को उठाकर हमारा आदमी ले गया। लेकिन उनसे कोई तो पूछे कि समय की कीमत समय निकल जाने के बाद कुछ नहीं रहती। जब वो चीख रहा था पुकार रहा था तब क्यों नहीं सुनी उस की पुकार। क्या जाम ही है हर चीज का हल। काम धाम कुछ करते नहीं हो और बन बैठे हो देश के ठेकेदार। शर्म आनी चाहिए, शर्म।
कानपुर में एक लड़के को करंट लग गया और अस्पताल लेजाते वक्त जाम ने उसकी भी जान ले ली। वो अपना हक चाहता था, वो जीना चाहता था लेकिन वो इस लड़ाई को जीत नहीं पाया। डेढ़ घंटे तक वो इस जाम में फंसा रहा और जिंदगी से लड़ता रहा। डेढ़ घंटे का समय काफी लंबा होता है। उसकी गाड़ी वीएचपी की जाम में ऐसी फंसी कि उसकी जिंदगी को ही खत्म करगई।
वहीं वीएचपी के कार्यकर्ता इस देश की सरकार से ये पूछते रहे कि देशभक्ति की कीमत जान देकर क्यों चुकाई जाती है? यहीं पर हम भी इनसे सवाल पूछ रहे हैं कि क्या किसी की जिंदगी की कीमत इतनी कम होती है कि वो यूं ही कोईं भी ले सकता है। इन बेचारों को राजनीति से कोई मतलब नहीं, शायद उन्हें ये भी नहीं पता कि अमरनाथ की आग में देश क्यों जल रहा है, लेकिन इन सियासतदारों को तो अपनी राजनीति चमकानी है और इसके लिए एक दो लोगों की जान क्या मायने रखती हैं।


आपका अपना
नीतीश राज

(62वें जश्न पर सबको बधाई)

11 comments:

  1. अति दुखद खबरें!!

    ReplyDelete
  2. बहुत ही दुःखद खबर है। सच में इन सियासत के ठेकेदारों को देश से नही अपने से ही मतलब है।

    ReplyDelete
  3. अन्धै अँधा ठेलिए, दोनों कूप पडंत
    स्वार्थियों की दुनिया में अच्छी बातें सुनने कों , लगता है हम तरस ही जायेगें

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  4. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को

    ReplyDelete
  5. khabre to wakai kaafi dukhad hai

    ReplyDelete
  6. दोनों खबरें दुखद है .. आज कल सब अपना सोचते हैं ...

    ReplyDelete
  7. बहुत ही ह्रदय विदारक हादसे हैं ! शर्मनाक !

    वंदे मातरम् !

    ReplyDelete
  8. sahi hai aur durbhagya se yahi humare bhagya main hai.fir bhi swatantrata divas ki badhai aapko,aur swatantra lekhan ki bhi

    ReplyDelete
  9. दोनों ही खबरें अफसोसजनक और दुखद है।

    ReplyDelete
  10. दुखद।
    मेरे मन में कल्पना है कि अन्तत सबसे विकसित समाज वह होगा जिसमें व्यक्ति को यात्रा की आवश्यकता ही न हो। काम या सुविधायें अन्तत: व्यक्ति के दरवाजे पर पंहुचें।
    पर यह दूर की कल्पना है। बीच में तो इन त्रसदियों से कलपना ही है।

    ReplyDelete
  11. अति दुखद

    स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप को,,,,

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”