एक बार दशहरे के समय हमारे मोहल्ले के कुछ लड़के टोली बनाकर चंदा लेने आए। हर साल आते थे इस साल भी आए। चंदा दे दिया गया, लडकों के हैड ने कहा कि इतने से तो क्या होगा, यदि देना है तो एक पत्ता तो ढीला करना ही होगा, नहीं तो वापस ले लीजिए। घर के बड़ों ने बात को सुल्टाने के लिए 10 रुपये और जोड़कर 61 रुपये कर दिए। हम भीख नहीं मांग रहे अंकल, देना है तो 101 दो नहीं तो...। ये तो दादागीरी है, जाइए नहीं देते। जब मैं आया तो घर के बाहर हल्ला मचा हुआ था। पापा उन्हें ज्ञान दिए जा रहे थे और वो भी ढीठ की तरह एक ही बात पर अड़े हुए थे। मैं जानता था उन सब को और उनकी करतूतों को। चंदे के नाम पर वसूली करके, प्रोग्राम तो करवाते पर बाद में बचे उन पैसों से खूब मजे किया करते थे। सोचिए पूरे स्टेट में 100 से ज्यादा घर थे तो सोचिए मनमानी से कितनी रकम जुड़ती होगी। मैंने भी समझाया तब तो वो सब चले गए, पर उस समय से हर घंटे हमारे घर में कई आवारा लड़के आते और मुझे बुरा-भला कह कर या धमका कर चल जाते। मैंने फैसला किया की जितनी बार आएंगे तो उस हैड के घर मैं भी उतनी ही बार जाऊंगा और धमका कर के आऊंगा। ये मैं जानता था कि वो खुद मेरा कुछ नहीं बिगाड़ेगा। धीरे-धीरे चार-पांच रोज बाद तक ये सिलसिला चलता रहा और फिर ना वो आए ना ही मैं गया। बाद में मेरे घरवालों को इस बात का पता चला। सब ने मुझे कुछ दिनों के लिए घर से चले जाने के लिए भी कहा। पर मैं उनसे कहता कि मैंने ये सब शुरू नहीं किया है, कैसे कोई बिन बात के मेरे पापा और बड़ों का अपमान कर सकता है, वो भी बिना बात के। उस शख्स ने दीवाली के कुछ दिन बाद मेरे को अकेले कुछ लड़कों के साथ पकड़ा। उसका इरादा क्या था उसका पता मुझे लग ही रहा था। पर मैं जानता था कि ये मेरा कुछ भी नहीं करेंगे क्योंकि बात ही इतनी फैल चुकी थी। उसने समझाने के उद्देश्य से मुझे ज्ञान दिया, मैंने भी ज्ञान लिया, फिर दिया और फिर दोनों तरफ से ज्ञान का आदान-प्रदान होने लगा। वो स्टेट के कुछ गुंडों में से एक था, मेरे ज्ञान और साहस पता नहीं किस कारण वो झुका और फिर हमारे घर आकर उसने पापा-मम्मी से माफी मांगी। आज भी यदि कभी मेरे पापा-मम्मी उस को दिख जाते हैं कहीं भी तो बिना पैर पढ़े वो नमस्कार नहीं करता। मैं भी उसे आज तक भैय्या कह कर ही संबोधित करता हूं।
चलिए एक सीन तो ये था अब दूसरे सीन पर चलते हैं।
'मैं यूपी की हूं और हिंदी ही बोलूंगी और यूपी के लोगों को हिंदी ही बोलनी चाहिए, महाराष्ट्र के भाईयों से माफी मांगती हूं'। जया बच्चन ने ये बात द्रोण की म्यूजिक लॉन्च पार्टी में कही थी। बात बढ़ी और फिर हरे हो गए आगे-पीछे के जख्म। राज ठाकरे लगे फिर से अपना भोपूं बजाने। जया ने लिखित माफी मांग ली।
"अगर मैंने मुंबई और महाराष्ट्र के मराठी भाषी लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया है तो इसका मुझे दुख है। एक हिंदी फिल्म के म्यूज़िक लॉच पर मैंने हिंदी बोलने को लेकर जो कुछ कहा वो बिना किसी छल कपट से कहा था। मैं उस शहर को बदनाम क्यों करूंगी जिसने हमें सबकुछ दिया। क्या हमलोग भी इस शहर के नहीं हैं। मैं इस शहर का मरते दम तक निरादर नहीं करूंगी।"
पर एमएनएस को मंजूर नहीं, लिखित में नहीं, 'कैमरे के सामने ही माफी मांगनी होगी'। महाराष्ट्र का अपमान कैमरे के सामने किया तो कैमरे के सामने ही माफी मांगो। ये कहना है खुद राज ठाकरे का। ये भी एक अजीब और अपने किस्म की दादागीरी है।
वैसे तो, राज ठाकरे को अपनी ये चोंच 8 अक्टूबर तक बंद रखने का फरमान है। पर वो बोल रहे हैं और अपने नापाक इरादों से मराठियों को बरगलाने में लगे हुए हैं। ये तो महाराष्ट्र के गुंडे हैं जो कि देश के गुंडे बनते जा रहे हैं। कभी किसी ने ये सोचा कि देश के और किसी भी प्रांत में राज ठाकरे क्यों नहीं आते-जाते हैं क्योंकि राज को डर रहता है कि कहीं जिंदगी के लाले ना पड़ जाएं। क्या राज ठाकरे को अक्ल नहीं आई है कि देश के अब भाषावाद में बांटने में तुले हुए है। क्या जब तक राज ठाकरे को कोई पीटेगा नहीं तब तक उसको चैन नहीं मिलेगा? या फिर देश के दूसरे हिस्सों में मराठियों को पीटा नहीं जाएगा तब तक राज ठाकरे नाम का बदनुमा जानवर अपनी चोंच बंद नहीं करेगा। ये तो देश के दूसरे हिस्सों के लोगों की अपने देश के साथ ईमानदारी है कि जो अब तक ये सब कुछ सुनने में नहीं आया। वरना कसर तो इन ठाकरे परिवार ने नहीं छोड़ी है। भाषा का मुद्दा बनाकर राज ठाकरे क्या साबित कर देना चाहते हैं कि राजनीति सिर्फ इससे ही चलती रहेगी। अपने गुंडे भेज कर लोगों के ऑफिसों में, दुकानों पर, घर पर उत्पात मचाना। कब तक सहेंगे लोग जिस दिन बिदक गए तो मंच पर चढ़कर मारेंगे और तब इस चोंच से बाप- बाप के अलावा कुछ नहीं निकलेगा। राज को सलाह है, अपनी चोंच बंद रखो राज ठाकरे।
ऐसा नहीं है कि मैं जया बच्चन के समर्थन में हूं। किसी भी मंच पर चढ़कर लोगों की भावना से खेलना गलत है और जबकि उस मुद्दे पर जिसमें आप पहले ही हाथ जलाए बैठे हैं। माना ये कि हंसी मजाक में कह दिया गया और फिर उसे लेना भी उसी अंदाज में चाहिए था। मंच पर इस बात से पहले क्या बात चल रही थी ये भी बहुत ही कम को पता है। प्रियंका चोपड़ा जब अंग्रेजी के चंद शब्दों के बाद हिंदी में बोलने लगी तो ये लाइन जया बच्चन ने हंस कर कही थी। लेकिन इस बात को प्रेजेंट इस अंदाज में किया गया जैसे कि जया बच्चन ने देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ कर दिया हो। उनको इस बात का इल्म हो गया कि इस बात पर उनके द्वारा चुटकी नहीं ली जानी चाहिए थी। तो उन्होंने माफी मांग ली। अब ये क्या कि नहीं कैमरे पर ही माफी मांगो। ये तो एक तरह से दूसरो को जलील करना ही हुआ। बाल ठाकरे के नक्शेकदम पर चलते हुए राज चाहते हैं कि इस मुद्दे से वो घटिया लोकप्रियता बटोर लें और उनकी राजनीति चलती रहे लेकिन लोगों को ये 'राज-नीति' समझनी ही होगी, खासतौर पर भाषा की इस राजनीति को । वैसे ही देश जगह जगह से जल रहा है एक आग और नहीं चाहिए हमें।
राजनीति क्या-क्या ना कराए। अभी तक जो शख्स बिग बी के बगल में बैठकर ये कहता था कि बिग 'बी' तुम ही अकेले नहीं हो मैं भी तो बिग 'बी' हूं। बाल ठाकरे भी चुप नहीं बैठे वो भी इस भाषावाद की लड़ाई में कूद पड़े। मराठी और हिंदी की लड़ाई में अमिताभ का साथ किसी ने दिया था तो वो बाल ठाकरे ही थे पर कल के सगे आज पराए हो गए। बार ठाकरे सामना में लिखते हैं--
"अमिताभ पूरे देश के महानायक हैं और ऐसा महानायक सदी में एक बार पैदा होता है। कोई भी प्रांत और भाषा की दीवार उनकी कला को रोक नहीं सकती लेकिन अब जया बच्चन ही कह रही हैं कि हम यूपी वाले हैं। इसका मतलब क्या है। अमिताभ बच्चन और उनका परिवार जब मुंबई आया था तब उन्हें कोई नहीं पहचानता था लेकिन मुंबई ने उन्हें पहचान दी, बड़ा किया। पूरी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को महाराष्ट्र की राजधानी ने आसरा दिया लेकिन इन लोगों ने मुंबई और महाराष्ट्र को क्या दिया। ये सवाल जया बच्चन के बयान की वजह से खड़ा होता है।"
बाल साहेब तो शाहरुख पर भी बिफर पड़े। पर बाल ठाकरे को ये कौन समझाए कि यदि बालासाहेब खुद दिल्ली में आकर रहने लगें तो भी वो सबको ये ही बताएंगे कि वो मुबई के ही है। चाहे दिल्ली उन्हें कितना ही कुछ दे दे पर वो रहेंगे तो मुंबई के ही ना। जब वो खुद को मुंबई का बताने से नहीं हिचकते तो फिर क्यों दिल्ली का कोई भी ये मानने से पीछ रहेगा कि वो दिल्ली का नहीं है। मैं बालासाहेब ठाकरे का काफी सम्मान करता हूं पर लगता है कि उम्र का असर अब उनके लेखन पर दिखने लगा है और वो दूर की बातें नहीं सोच पा रहे हैं। वैसे तो अब उनको लिखना ही बंद कर देना चाहिए।
वैसे जया बच्चन के साथ हमेशा से साथ खड़े रहने वाले अमिताभ मुंबई लौट आए हैं और जैसे कि अभिषेक बच्चन ने कहा कि फैसला अमिताभ ही करेंगे की इस पर क्या करना चाहिए। तो देखना ये होगा कि राज की भाषा की इस आग में अमिताभ पानी डालते हैं या पेट्रोल।
आपका अपना
नीतीश राज
(कल बजरंग दल के कार्यकर्ता एक इलाके में गए और वहां के लोगों को निकालकर पीटा। फिर उन्हें एक जगह इकट्ठा कर उनसे वंदे मातरम, भारत माता की जय के नारे लगवाए। ये सब बांग्लादेशी थे। ये आग फैल रही है ना फैले तो बेहतर।क्योंकि भेड़चाल चलने वाले कम नहीं हैं देश में।)
(फोटो साभार-गूगल)
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
देश बांटने मे लगे है... दोनों गलत है साहब.. जया जी को भी सोच कर बोलना चाहिये..
ReplyDelete"मैं यूपी की हूं और हिंदी ही बोलूंगी और यूपी के लोगों को हिंदी ही बोलनी चाहिए, महाराष्ट्र के भाईयों से माफी मांगती हूं'।"
यहाँ up के बजाये वो कहती की हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है.... तो शायद कोई बवाल नहीं होता..
मैं इस धरती का वासी हूँ, मैं कौन सी भाषा बोलूँ?
ReplyDeleteबहुत हैरानी होती है ये देखकर कि भाषा के नाम पर अलगाववाद पनपाने वाले लोग लोकतंत्र विराधी गतिविधियों के कारण दंडित क्यों नहीं होते। आपने सही कहा-
ReplyDeleteराजनीति क्या-क्या ना कराए।
jati-pati or bhasha ke naam par desh ko bantane ki koshish theek nahi kahi ja sakati . eses rajanetaao ko deshadrohi manakar jail me daal dena chahiye.
ReplyDeleteइस देश में शासन की, सरकार की, कानून की क्या ज़रूरत है? सरकार राज है ना! राज साहब को ही तो तै करना है कि हम कौन-सी भाषा बोलें, अपने आप को कहां का बतायें!
ReplyDeleteवैसे मुझे अच्छा नहीं लगा, जब जया जी उनकी धमकी के आगे घुटने टेक बैठीं. अगर उन जैसे ताकतवर लोग ऐसा क्रेंगे तो फिर हम जैसे अकिंचनों को तो अपने मुंह पर स्थायी पट्टी ही बंधवा लेनी चाहिए. व्यवसाय ही तो सब कुछ नहीं. कभी तो कोई खतरा उठाइये!
हम तो बहुत डरे हुए है भाई ,अगले महीने बॉम्बे ओह सॉरी मुंबई जाना है ...हमने तो अपने दोस्त को कह दिया है भाई की हमें एअरपोर्ट पर ही लेने आ जाये ,हमने टैक्सी वाले से हिन्दी में कह दिया की भैय्या फलां जगह जाना है ओर राज भाई या उनके गुर्गे वहां खड़े हुए तो ?बाप रे
ReplyDeleteअरे, चुनाव का समय आने को है और आप चोंच बन्द करने की नसीहत दे रहे हैं।
ReplyDeleteआप तो बाकी लोगों को नसीहत दें कि उन्हें सुने नहीं!
ये सब चर्चा पाने का ओछा हथकंडा है, जिस पर रेअक्ट कर के हम उन घटिया लोगों को खुशी दे रहे हैं...बेचारे राज ठाकरे...क्या करें...कोई पूछता ही नही, न कोई मुद्दा है न कोई काम, ऐसे लोगों का यही कम है की शरीफों और सीधे सधे लोगों, खास कर उन्हें जिन्हें लोग चाहते हों, परेशां कर क्र थोडी चर्चा पा लेना, छोडिये, ये हर जगह हो रहा है, किस किस पर रोयेंगे....
ReplyDeleteare bhaiya raj aur jaya ke jhagde me hume kahe pitwane chale ho.raj jaise logo jinda hi isi baat se hain,ye log zahar ugalna band kar de to khud ghut-ghut ke mar jayenge
ReplyDeleteये नेता लोग पता नही क्यों, कभी भाषा के नाम पर,कभी धर्म के नाम पर, कभी किसी और नाम पर देश को बाटंने में लगे हुए।
ReplyDeleteक्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रसित विघटनवादी तत्वों द्वारा राष्ट्र को विखण्डित करने का एक कुत्सित प्रयास है यह।
ReplyDeleteअफसोसजनक....दुखद....निन्दनीय!!
ReplyDelete---------------
आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
आपने बहुत ही सटीक भाषा में लिखा है पर मुझे तो ऐसा लगता है की
ReplyDeleteजब तक चुनाव नही हो जाते तब तक इस बीमारी से पीछा नही छूटेगा !
बहुत शर्मनाक और निंदनीय है ये सब !