ये पैगाम नहीं दौड़ती भागती जिंदगी के लिए एक सीख है।
जिंदगी बहुत तेज चलती है और हर दिन भागता-दौड़ता हुआ सा लगता है। कई बार तो लगता है कि जीवन में सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी अब कम पड़ रहे हैं। इस भागती दौड़ती जिंदगी में उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई? छात्रों की तरफ से आवाज आई हाँ। फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, वहां पर समा गये। फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, कि क्या अब बरनी भर गई है। छात्रों ने एक बार फ़िर कहा हाँ। अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था समा गई और बैठ गई। अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे। फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना? जी सर अब तो पूरी भर गई है, सभी ने एक स्वर में कहा। सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उन कपों की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई।
मतलब ये कि अभी भी उस जार में अंदर सामान जाने की जगह थी।
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं। छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है। अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ। टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है। पहले तय करो कि क्या जरूरी है। बाकी सब तो रेत है।
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले, मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया। इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप तो बनती ही है।
बहुत दिन हो गए कि मैं अपने एक मित्र से मिला ही नहीं हूं। जबकि पहले हम पास- पास रहा करते थे तो बहुत ही आना-जाना हुआ करता था पर अब जब से उसकी जॉब चेंज हुई और हम लोग सिफ्ट हुए तब से दूरियां रिश्तों में तो नहीं बढ़ी पर हां मिलने के दिनों में जरूर बढ़ गई। गलती मुझसे भी हुई जब भी वो मेरे को फोन करता तो मैं काम में बिजी रहता और बाद में कॉल नहीं कर पाता था। आज उसका मेल मिला। मुझे दो कप का ये ऑफर अब तक के मिले सभी ऑफरों में से नायाब लगा। तुरंत मैंने उसको फोन किया और अपनी गलती की कीमत दो प्याले चाय से दूर करने की बात कही।
आपका अपना
नीतीश राज
is post ke liye to aapke sath do cup chai pi jani chahiye.. bahut shukriya is post ke liye..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है भाई।
ReplyDeleteआप नही जानते आपने इसे बांटकर हमें भी कुछ दे दिया है....
ReplyDeleteज़िन्दगी मे मौका मिला तो आपके साथ चाय जरूर पियून्गा।दिल को छू गयी आपकी ये पोस्ट्। बधाई आपको
ReplyDeleteमेरी भी ये ही इच्छा है काश ये पूरी हो।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सीख दी हे आप ने इस लेख मे धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगा आपका यह लेखन..!!
ReplyDeleteनीतीश जी इस रचना के लिए आपको कोटिश: बधाई !
ReplyDeleteसशक्त लेखन !
मज़ा आ गया सर... 1 साल आपके साथ काम करने के बावजूद भी आपके व्यक्तित्व के इस पहलू से मैं परिचित नहीं था...
ReplyDeleteअक्षर अक्षर सच। जो पहले भर लो, वही रह जाता है।
ReplyDeleteBahut Barhia Nitish jee...to kab pila rahe hain chaai???
ReplyDeleteसच है आपकी इस पोस्ट में ...जो मन भाये वह जरुरी है .इस लेख ने बहुत कुछ सिखा दिया है शुक्रिया ..
ReplyDeleteनीतीश जी,
ReplyDeleteइस प्रेरक प्रसंग के हार्दिक साधूवाद,
आपने दुखती रग पर हाथ रखा है.
उदय
अच्छा लिखा है... सब सवाल ये है कि किसने लिखा है... आपने या किसी से inspire हुए हो
ReplyDeletebahut sahi khyaalaton se awgat karaya
ReplyDeleteshukriyaa
बहुत सशक्त कहानी है, यदि हम इस से सीख ले लें तो!!
ReplyDelete-- शास्त्री
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नीतिश जी, ये अनमोल सीख हैं, जो जीना सिखाती हैं, जीने का अंदाज सिखाती हैं। आज आपको पढ़ने के बाद लगा कि मैंने जिंदगी को कैसे जिया, और जिंदगी के जार में पहले क्या भरा।
ReplyDeletehello sir,
ReplyDeleteyour post was too good & realistic !! now i will be reading & waiting for your more blog postings!! all d very best!!