दिल्ली के एक रिहायशी इलाके में दिन के ११ बजे ताबड़तोड़ गोलियां चलती हैं। पूरा का पूरा इलाका कांप कर रह जाता है। जब तक की लोग समझते, संभलते, बाहर निकलते, जानते कि आखिर माजरा क्या है? तब तक धीरे-धीरे पुलिस का काफिला उस इलाके को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लेता है। सारे रास्ते रोक दिए जाते हैं। लाउड स्पीकर से ये घोषणा कि सभी अपने-अपने घर में ही रहें, कोई बाहर ना निकले, क्योंकि आम आदमी और आतंकवादी में क्या फर्क होता है शायद ये कोई भी नहीं जानता।
थोड़ी देर बाद ही बाटला हाऊस का ये इलाका जो कि जामिया नगर में आता है वर्दी वालों से पट जाता है। जहां देखो, वहां पर सिर्फ और सिर्फ वर्दी। एनएसजी के कमांडों भी मौके पर पहुंच चुके थे। जिससे पता चलता है कि मामला कितना गंभीर था। रमजान के पाक महीने में, रोजे का १८वां दिन, जुमे का दिन, खलीउल्लाह मस्जिद के पास, ये लाइव एनकाउंटर, गंभीरता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। साथ ही ये इलाका मुस्लिम बहुल। पुलिस की भी पीठ थपथपानी होगी, इतने कारणों के बाद भी वो यहां गए और आतंकवादियों को पकड़ने की कोशिश की। कुछ वक्त और निकलता है और फिर पहुंचता है मीडिया। बस शुरू होजाती है लाइव एनकाउंटर रिपोर्टिंग।
लाइव एनकाउंटर रिपोर्टिंग यहां पर थोड़ी देर पहले ये हुआ, यहां पर उसके बाद ये हुआ, हां जी, आपने क्या देखा.....और आपने.....हम इस समय उस बिल्डिंग के ठीक पीछे हैं जहां पर थोड़ी ही देर पहले एनकाउंटर चल रहा था.....सबसे पहले हम ये दिखा रहे हैं.....सबसे पहले हम...नहीं हम...हमारे चैनल ने आपको बताया....देखिए हम आप को सामने से सही तस्वीरें दिखा रहे हैं तो दूसरों का चैनल देखना बंद कीजिए और हमारा देखिए.... अरे भाड़ में गई रिपोर्टिंग पहले सेल्समैनगीरी तो कर लें।
सच क्या अंदाज था रिपोर्टिंग का। रिपोर्टिग के बीच कैसे अपने चैनल को लोकप्रिय बनाया जाए, ये कला तो कोई इन रिपोर्टर से सीखे। हम यहां सबसे पहले...सबसे तेज...और कई रिपोर्टर तो ये तक भूल गए कि वो रिपोर्टिंग कर रहे हैं। वो तो प्रचार में जुट गए।
आतिर खान की रमजान लीला-स्टार के आतिर खान तो बार-बार लोगों को ये ध्यान दिलाने में लगे रहे कि ये रमजान का पाक महीना है और रोजे चल रहे हैं साथ ही आज जुमे का भी दिन है, इस बिल्डिंग के पास ही खलीउल्लाह मस्जिद है। वो शायद ये कहना चाहते थे कि रमजान के महीने में तो कभी भी आतंकवादियों की धरपकड़ नहीं करनी चाहिए थी। ऐसे समय में क्या आतिर खान को ये नहीं पता कि किस तरह की रिपोर्टिंग की जानी चाहिए। किन शब्दों का इस्तेमाल करना है और किन शब्दों से बचना ये तो इनको बेहतर जानना होगा। रिपोर्टर को तो खास तौर पर घी डालने का काम नहीं करना चाहिए। मैंने स्टार के ऑफिस में फोन कर के कहा कि इतने आदमियों के बीच में आतिर खड़ा होकर ये सब कह रहा है पब्लिक भड़क भी सकती है और सामने ही सामने लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिए।
थोड़ी ही देर में सभी चैनलों पर फर्जी रिपोर्टिंग शुरू हो गई। १०-२० लोगों को इक्ट्ठा करके रिपोर्टरों ने ये कहलवाना शुरू किया कि मस्जिद तो बहुत दूर है और मस्जिद का इस एनकाउंटर से कोई भी लेना देना नहीं है। आतिर का किया दीपक चौरसिया ने धोना शुरू किया। साथ ही एल १८ से मस्जिद की दूरी को भी बताया। काबिले तारीफ था ये सब। दूसरे चैनलों पर भी एहतियातन देखा कि सब पर ये शुरू हो चुका था कि मस्जिद का कुछ भी लेना देना नहीं है। लोग जुमे की नवाज अता करने जा रहे हैं और कोई भी दिक्कत की बात नहीं। दूसरी तरफ नीरज राजपूत और जावेद हुसैन सबसे पहले...सबसे पहले...सबसे पहले का राग अलापते रहे। ज्यादा स्टार देख रहा था इसलिए उसके बारे में बता पा रहा हूं। लेकिन फिर रुख मैंने सभी चैनलों का किया सभी चैनलों पर कमोबेश कुछ ये ही हाल चल रहा था। लेकिन स्टार और इंडिया टीवी ने एक साथ ये बताया कि एनकाउंटर खत्म हो गया है। जबकि ज़ी टीवी, आजतक, एनडी,न्यूज २४ सभी पर एनकाउंटर जारी ही चलता रहा। तकरीबन आधे घंटे बाद ये पट्टी उनकी ब्रेकिंग न्यूज के बैंड से हटी।
एनडीटीवी का अपना एक अलग ही स्टाइल है। एनडीटीवी के एक रिपोर्टर के पास जमायत-ए-इस्लामी के सदस्य के तौर पर डॉ इस्माइल आकर कहते हैं कि हम को विश्वास में तो लेना ही चाहिए था। क्या हम एनकाउंटर से मना कर देते। लेकिन हमें तो पता चलना ही चाहिए था। रिपोर्टर ने तपाक से कहा कि जनाब गृह मंत्रालय को नहीं पता तो आप कौन। और आतंकवादियों का कोई दीन इमान तो होता नहीं किसी को भी गोली मार सकते थे। शायद उन शख्स के ये बात दिमाग में घुस गई हो लेकिन पता नहीं। एक शख्स सामने आए और कहा कि हमें वहां तक ना जाने दें लेकिन मीडिया को तो जाने दें। कैसे और क्यों जाने दें? इस सवाल का जवाब नहीं था। लोग क्यों नहीं सोचते कि हर चीज एक साथ संभव नहीं है। मीडिया को लाइफ सेविंग जैकेट दें या खुद के लिए रखें। मीडिया के पास ट्रेनिंग के नाम पर कुछ भी नहीं है। और मीडिया के नाम पर तकरीबन १५० लोग होंगे पुलिस बल से भी ज्यादा। बेकार में सवाल करने की लोगों की आदत है। फिर एक ने सवाल उठाया कि फर्जी एनकाउंटर भी तो हो सकता है ये।
उस रिपोर्टर का जवाब था कि सन २००० में लाल किले पर हमले के बाद भी यहां पर एनकाउंटर हुआ था। इसी जगह पर दो आतंकवादियों को मार गिराया गया था।साथ ही यहां पास में ही जाकिर नगर में सिमी का दफ्तर थोड़ी ही दूर पर २००१ में दिल्ली पुलिस ने सील कर दिया था। ये थी अलग और बिना किसी लाग लपेट के निश्पक्ष रिपोर्टिंग। ये ना तो सरकार के साथ थे और ना ही अपनी धारणा बना रहे थे बस रिपोर्टिंग कर रहे थे।
एक नियम के तहत ही रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जानी चाहिए रिपोर्टर को नहीं तो उनपर भी बैन लगाने के बारे में सरकार को सोचना चाहिए और कदम उठाना चाहिए। लेकिन जानता हूं कि सरकार कोई भी कदम ना तो उठाएगी और ना ही उठा सकती है।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
Saturday, September 20, 2008
‘लाइव एनकाउंटर-मीडिया का रोल’, अनाप-शनाप बकना नहीं चलेगा।
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
कुछ लोग बस मुँह चलाना जानते है.. ऐसे ही लोगो की वजह से देश रसातल में जा रहा है.. आपका लेख़ काबिल ए तारीफ़ है.. बहुत ही पैनी नज़र से देखा है आपने और उतनी ही धार से प्रस्तुत भी किया..
ReplyDeletebahut satik reporting aapki. reporter bhi sikhen kuch.
ReplyDeleteसब प्रबुद्ध लोग जानते है नीतिश ....बाकी आज ही किसी ब्लॉग पे वर्तिका नंदा ने मीडिया समीक्षा पर एक खरी रिपोर्ट लिखी है.उसे पढियेगा ...अब इस देश को वाकई एक कानून की जरुरत है .वरना कल को कोई भी एक चैनल खोलकर बैठ जायेगा
ReplyDeleteबहुत निंदनीय बात है कि ऐसे वीर और निडर पुलिसकर्मी के भारत माता के प्रति बलिदान होने के बाद भी स्थानीय आबादी के एक समूह ने जिस तरह पुलिस कार्रवाई पर आपत्ति जताई और यहां तक कि मुठभेड़ को फर्जी करार देने की कोशिश की और यह सब भी पूरे देश के समक्ष टी. वी. पर । इसकी जितनी निंदा की जाए बहुत कम है । हम सभी लोगों को एकजुट होकर ऐसी राष्ट्र विरोधी मानसिकता की हर सम्भव कड़ी निंदा करनी चाहिए । नहीं तो देश के सच्चे सपूत को श्रद्धांजली पूरी नहीं होगी ।
ReplyDeleteशर्मा जी हमें गर्व है आप पर । ईश्वर आपकी दिव्यात्मा को शान्ति व सद्गति प्रदान करे ।
सनातन हिंदू धर्म की जय । उत्तरांचल की पावन भूमि की जय । भारत माता की जय । राष्ट्र की जय ।
डॉ अनुराग मैंने वर्तिका जी की पोस्ट भी पढ़ी और सच कुछ तो कदम अब उठाने ही होंगे सरकार को। जैसे की बच्चों का अब रिएलिटी शो में आने पर पाबंदी लगाई जा रही है।
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है! सच कह रहे हैं-अनुराग से सहमत हूँ.
ReplyDeletenitish ji, आपने खरी बात लिखी है। अच्छा
ReplyDeletenitish ji, आपने खरी बात लिखी है। पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDeleteनीतेश जी मे अपने देश के बारे इतना तो नही जानता !!! लेकिन जितना भी आज तक जान पाया हु उस मे सब से ज्यादा आग लगाने वाला ओर इस देश कॊ खराब करने वाला हमारा यह मीडिया ओर यह टी वी चेनल हे जिन पर कोई लगाम नही.
ReplyDeleteधन्यवाद एक सच्चे लेख के लिये
भाई आपने घटना के रिपोर्टिंग की समीक्षा में जो संवेदनशीलता दिखायी है, वह प्रशंशा के योग्य ही नहीं सभी पत्रकारों के लिये अनुकरणीय है। जनता को भी इन पत्रकारों पर नजर रखनी चाहिये। इसमें से कुछ भेड़िये हैं जो भेड़ की खाल ओढ़े हुए हैं।
ReplyDeleteसच्चाई दिखाने का हरसम्भव प्रयास किया जाना चाहिये।
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों में मुस्लिम धार्मिक नेताओं का सामने आकर टी वी पर आतंकवाद की निंदा करना व निर्दोष के मरने को धर्म विरुद्ध बताया जाना अत्यन्त सराहनीय कदम है।
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