Wednesday, July 15, 2009

जब मैं स्कूल में था तब भी ये ही सुनता था अब मेरा बच्चा स्कूल में है तब भी ये ही सुन रहा हूं। आखिर कब तक सुनना पड़ेगा?

जब स्कूल में था तब से देखता, पढ़ता और सुनता आ रहा हूं कि हमारा देश कहीं आगे हो या ना हो पर जनसंख्या में नंबर 2 पर जरूर है। जब-जब ओलंपिक हुआ करते थे तो सारा देश खुद से सिर्फ और सिर्फ एक ही सवाल पूछा करता था कि जनसंख्या के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर वाले देश में ऐसा कोई नहीं, जो कि एक पदक दिला सके। अब तो ये भी माना जा रहा है कि 21 साल बाद 2030 तक भारत चीन को जनसंख्या के मामले में पछाड़कर पहले पायदान पर काबिज हो जाएगा। यदि ये ही हाल चलता रहा तो भारत की जनसंख्या तब तक 148 करोड़ हो जाएगी और चीन की 146 करोड़। तभी तो भारत के स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने जनसंख्या दिवस के दिन एक समारोह में कुछ बिल्कुल अलग-अलग ढंग के ज्ञान दिए। ऐसी बात कह दी जिसे कुछ तो सही मानेंगे और कुछ दरकिनार कर देंगे। पर ऐसा नहीं है कि ये आप पहली बार जानेंगे पहले भी कई लोग ये बात कह चुके हैं।

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 30 या उसके बाद ही शादी होनी चाहिए। वो ये नहीं कहते कि शादी की उम्र इतनी कर देनी चाहिए पर उनकी खुद की सोच ये है क्योंकि उनकी शादी भी 30 के बाद ही हुई थी। जहां तक मैंने समझा कि ऐसा वो क्यों सोचते हैं तो उसके पीछे की वजह ये हो सकती है। यदि 30 के बाद शादी करें तो कुछ चुनिंदा साल रह जाएंगे बच्चे पैदा करने के लिए। एक-दो साल मस्ती में निकल जाएंगे। जब आप पहले बच्चे के लिए जाएंगे और यदि उस पहले बच्चे की डिलीवरी के समय कुछ भी दिक्कत का सामना करना पड़ा तो जब तक दूसरे बच्चे के बारे में सोचेंगे तब तक उम्र ही निकल चुकी होगी और एक बच्चे से ही लोगों को सब्र करना होगा। क्योंकि खासकर भारत में 35 के बाद अब भी लड़कियों के लिए मां बनना ठीक नहीं माना जाता। यदि कोई रिस्क लेता है तो पैसा भी उसी तरह खर्च होता है और दोनों के ऊपर खतरा भी ज्यादा हो जाता है।

उन्होंने कहा कि गांवों में यदि बिजली पहुंचे तो लोग रात के बारह बजे तक टीवी देखेंगे और फिर वो इतना थक जाएंगे कि बच्चे पैदा करने के लिए वक्त ही नहीं मिलेगा। वैसे भी गांवों में सुबह जल्दी उठने का चलन है तो यदि कोई देर रात तक टीवी देखता है तो वो फिर इस काम में लिप्त नहीं होगा क्योंकि सुबह सूरज उगने तक तो खेत में जाना होता है वर्ना धूप होने पर भी लगे रहना पड़ेगा खेत में और वो कोई भी किसान नहीं चाहता।

हमारे इतिहास के टीचर ये कहा करते थे कि ठंडी में गांवों में लोग इसी काम में लिप्त रहते हैं क्योंकि दिन भी देर से होता है और जल्दी रात हो जाती है तो ज्यादा समय होता है साथ ही ठंड से बचने का उपाय और मनोरंजन के साधनों का अभाव। कई बार जब वो पढ़ाते रहते थे तो हम उनसे लड़ भी जाते थे कि जैसे आप इतनी आसानी से बता रहे हैं उतनी आसानी से बच्चे थोड़े ही पैदा हो जाते हैं। छोटे थे हम तब।

बचपन से ही मैं ये कई जगह पढ़ता और सुनता आया हूं कि हमारे देश में अशिक्षा और मनोरंजन के साधनों के अभाव ने आबादी में इजाफा करने में काफी योगदान किया है। वैसे ये किसी हद तक सच भी है कि यदि गांवों में बिजली की व्यवस्था अच्छी हो जाए तो जो खेत के काम 4 आदमी लग कर करते थे उसके लिए बिजली के औजारों की मदद से सिर्फ दो लोग ही आराम से कर सकेंगे। अशिक्षा के कारण गांवों के लोगों की धारणा बनी हुई है कि खेत में काम करने के लिए भी तो कोई होना चाहिए तो इसके खातिर वो कई बच्चे चाहते हैं। जितने ज्यादा बच्चे उतनी ज्यादा ताकत। और यदि पहली दो लड़कियां हो गई तब तो....।

स्वास्थ्य मंत्री जी के बयान से मैं तो काफी हद तक सहमत हूं। पर इस बयान में कई बातें जोड़ना चाहूंगा कि सिर्फ बिजली ही नहीं किताबों को भी घर-घर तक पहुंचाना होगा। हमें अपनी शिक्षा के स्तर को लोगों के हिसाब से सुधारना और बदलना होगा। शिक्षा के साथ-साथ कानून पर लोगों का विश्वास जगाना होगा। आज भी गांवों में पंचायत और उनके तालिबानी फरमान लोगों को सालते रहते हैं और लोगों को उन फरमानों को मानना पड़ता है क्योंकि हमारे कानून की प्रणाली में इतने पेंच हैं कि कोई भी इसमें उलझना नहीं चाहता। जहां तक शादी 30 साल के करीब या बाद में हो तो शहरों में तो अधिकतर लोगों की उम्र इतनी हो ही जाती है। हां, गांवों में ये नहीं है वहां आज कल भी लोग पेपरों में 18 साल देखते ही लड़की और 21 साल में लड़के की शादी कर देते हैं। कुछ की तो शादी उम्र की सीमा में नहीं बंधती, पहले ही हो जाती है।

यदि हमने जनसंख्या वृद्धि पर लगाम नहीं लगाई तो...कहीं ऐसा ना हो कि आने वाले दिनों में देश को प्राकृतिक आपदा से गुजरना पड़े। पर एक बात का अब भी जवाब नहीं मिल रहा कि जब मैं स्कूल में पढ़ता था तब भी सरकार ये बात जानती थी और आज जब मेरा बच्चा स्कूल में है तब भी ये ही बात दोहराई जा रही है इस पर काम क्यों नहीं हुआ। कब तक यूं ही हम बताया जाता रहेगा कब जाकर इसको कार्यान्वित किया जाएगा। आखिर कब?

आपका अपना
नीतीश राज

4 comments:

  1. सही प्रश्न है..सभी को सालता है ...

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  2. स्वास्थ्य मंत्री जी चिंता स्तवाभाविक है और वास्तव मे अब सम्य आ गया है इस पर ढ्कोसलेबाज़ी न करते हुये ठोस उपाय किये जाये।सहमत हूं आज़ाद साहब से आपसे और आप जैसा सोचने वालो से।अगर हम अब भी नही जागे तो शायद जीना भी मुश्किल हो जायेगा

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  3. Mr.Nitish Raj, I really appreciate your deep thinking.It is such a nice thoughtful blog.
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    ASTON MARTIN
    sapience

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”