Tuesday, July 28, 2009

सावन की पहली बारिश, चलो थोड़ा रुमानी हो जाएं

बारिश में भीगने का एक अलग आनंद होता है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता और जो कर पाता है वो कवि बन जाता है। ये एक ऐसी अनुभूति है जो आपको अंदर तक भीगो कर रख देती है। सावन के तीसरे सोमवार को २००९ की पहली बारिश हमारे यहां पर हुई। इससे पहले बारिश तो हुई है पर उसने उमस को जन्म दिया और धरती की तो दूर हमारी प्यास तक नहीं बुझा पाई। पर आज दोपहर से जो बारिश शुरू हुई उसने देर रात तक धरती और हमें तर किया।
झमाझम सावन बरस रहा था और मैं दोनों हाथ फैलाए सड़क पर अपने अंदर मन तक भीगने को महसूस कर रहा था।

आज दोपहर में जब मैं थ्री व्हीलर में बैठने जा रहा था तो दो-चार बूंदों ने हमारा स्वागत किया तो फ्लाइओवर के नीचे रूक कर अपने को भीगने से बचा लिया। इस बात का पूरा भरोसा था कि ये बारिश चंद मिनट के लिए ही होगी और ऐसा हुआ भी। फिर ठहरे हुए हम राह पर निकल पड़े। करीब ६-७ किलोमीटर का सफर तय किया होगा कि थ्री व्हीलर के सामने के शीशे पर एक दम से मोटी-मोटी बूंद गिरने लगी। बादलों और बूंदों की रफ्तार से इस बात को समझने में देर नहीं लगी कि आज कुछ मिनट तक तो राम जी दिल खोलकर बरसेंगे।

थोड़ी देर में ही काले बादलों ने थ्री व्हीलर में मुझे पूरा भीगो दिया। मैंने कहा, अरे यार, पूरा भीग गया....(थोड़े अंतराल के बाद)...चलो अच्छा है कि बारिश तो हुई। थ्री व्हीलर वाला बोला, सर इस बारिश को कौन बुरा कह सकता है खासतौर पर यहां पर और वो भी इस वक्त पर। यकीनन इस मौसम की पहली बारिश थी ऐसा लग रहा था।

अब भीग गया था तो सोचा कि थोड़ा रुमानी हो ही लिया जाएं। मैंने मोबाइल, पर्स, पेपर्स सब बैग में डाला और जींस को नीचे से मोड़ दिया। अब भीगो जी भरकर। थ्री व्हीलर को घर से करीब सौ मीटर दूर रोकर पैदल आने का फैसला किया। झमाझम सावन बरस रहा था और मैं दोनों हाथ फैलाए सड़क पर अपने अंदर मन तक भीगने को महसूस कर रहा था। बारिश करीब १५-२० मिनट तक लगातार होती रही। वो सौ मीटर का सफर मैंने २०-२५ मिनट में पूरा किया होगा जब तक की बारिश बंद नहीं हो गई थी।

मैं दोनों हाथ फैलाए सड़क पर चल रहा था, पीछे बैग टंगा हुआ था। दुनिया देख रही थी एक जवान में छोटा बच्चा। वो अल्हड़ बच्चा, वहां कूदता जरूर है जहां पानी जरूर होता है। बारिश इतनी तेज थी कि आधी सड़क तक पानी भर गया था। मैं अपने बचपन में लौटता हुआ उस छोटे बच्चे के साथ पानी में छप-छप कर रहा था जिसकी मम्मी उसे इस तरह कूदने पर डांट रही थी। मुझे कूदता देख उन्होंने अपनी छतरी बंद की और हमारे संग अपने बचपन के दिनों में लौट चलीं।

आपका अपना
नीतीश राज

8 comments:

  1. लोग बाग़ समझे तब न

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  2. सही है मौका देख रुमानी हो लेना चाहिये.

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  3. बारिश में भीगे संस्मरण बढ़िया रहे....

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  4. सावन में बारिश में भीगने में आनन्द आता है।
    बहुत बढ़िया संस्मरण हैं।

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  5. कल की बारिश में किया तो कुछ ऐसा ही पर घर के आंगन में ..बहुत इन्तजार करवाया इस बार बारिश ने :)

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  6. ज़िन्दगी जीने का ये सबसे सही अंदाज़ है...बचपन को कभी भुलाईये नहीं...जीवन में हमेशा आनंद रहेगा...बहुत अच्छा लगा आपका बारिश में भीगना...वर्ना आजकल कौन भीगना पसंद करता है...और मुझे कहना पढता है:
    खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    नीरज

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  7. मैं बचपन भूल-सा गया था। अब अगली बारि‍श में बचपन को वापस लाऊँगा:)

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
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