Saturday, July 18, 2009

ये रेप की राजनीति है यूपी वालों, मायवती की दोगली नीति।

माया जी भी तो कुछ इसी लहजे में कभी मुलायम सिंह के परिवार की बेटियों को रेप के एवज में अपने मुस्लिम साथियों से ४ लाख देने की पेशकश कर चुकी हैं।

मैं किसी को गाली दूं तो सब ठीक पर जब कोई मुझे गाली दे तो मुंह तोड़ने की बात करूं। मैं तुम को तमाचा मारूं तो तुम को कोई अधिकार नहीं कि तुम मुझ पर कोई भी पलटवार करो। पर तुम मुझे मारो तो ये मेरा अधिकार है कि मैं तुम्हारी हड्डी पसली तोड़ दूं। ना शिकायत, ना केस, सिर्फ फैसला वो भी मेरे पक्ष में। कुछ यूं ही चल रहा है ये खेल यूपी में।

यूपी में सियासत में जो खेल चल रहा है उसकी आग बहुत पहले से लग चुकी थी। पर यहां एक छोटी सी भूल हो गई रीता बहुगुणा से। वो भूल गईं कि जिस कारण आज उनकी पार्टी केंद्र में अपने जनाधार जमाए बैठी है और बीजेपी विपक्ष में ही खूंटा गाड़े बैठी है उसके पीछे का सच क्या है? सिर्फ उसी हार के कारण आज भी बीजेपी में हाहाकार मचा रहता है। वरुण के जहरीले भाषण या फिर पीएम इन वेटिंग के आरोप या फिर मोदी की चुनाव के बीच में घपलेबाजी को हार की एक वजह माना जाता है। याने ज्यादा जुबान खोलेंगे तो समझो कि हारोगे।

रीता जी शायद भूल गईं और उसी जहरीले भाषण की तरफ बढ़ गईं। वो विवादास्पद ज्ञान उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को यूं ही नहीं दिया उसके पीछे कारण था यूपी की वो २१ सीटें। राहुल की मेहनत के पांच साल ने यूपी में फिर से कांग्रेस के पैर मजबूत किए हैं। कम से कम तीन साल तो हैं ही यूपी में विधानसभा चुनाव को तो अभी से वो कवायद शुरू हो चुकी है लोगों को अपना बनाने की। उस जनाधार या यूं कहें उस वोट बैंक को अपना बनाने की कोशिश जो कि कांग्रेस को केंद्र के साथ-साथ यूपी की गद्दी को भी दिला दे।

उस इज्जत की कीमत तो आप २५ हजार दे रही हैं पर उस कीमत को चुकाने के लिए ५ लाख खर्च कर रही हैं।

उसी कड़ी में रीता बहुगुणा शायद वो कह गईं जो उनके लिए आज आफत बन चुकी है ना निगलते बनता है ना उगलते। अपने भी पराए हो गए, घर फूंक दिया गया, १४ दिन कि न्यायिक हिरासत साथ ही रातें जेल में, जमानत भी नहीं मिली। शायद रीता बहुगुणा याद कर रहीं थी दो-ढाई साल पुरानी ‘वो’ बात जब कि खुद मायावती ने कुछ इसी तरह की टिप्पणी की थी। माना कि प्रत्यक्ष रूप से नहीं परोक्ष रूप ही सही मायावती ने महिलाओं पर निशाना तो साधा ही था। तो रीता को लगा कि कोई कार्रवाई नहीं होगी पर उन्हें क्या पता था कि वो मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल रही हैं।

पर एक सवाल उठता है कि मायावती जी को क्यों गलत लगा रीता बहुगुणा का कहा। क्यों आग लग गई उनको? माया जी भी तो कुछ इसी लहजे में कभी मुलायम सिंह के परिवार की बेटियों को रेप के एवज में अपने मुस्लिम साथियों से ४ लाख देने की पेशकश कर चुकी हैं। क्या तब नहीं हुआ महिलाओं का अपमान। तो अब क्यों हुई लाल माया। ये तो औरतों की ही दोगली नीति है, एक मर्द के परिवार की महिलाओं को कहोगे तो कुछ नहीं पर यदि खुद के लिए उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल होता है तो घर फूंकावा दोगे, आग लगवा दोगे, धमकी दोगे कि घर से निकले तो बच नहीं पाओगे। हमें गुस्सा आ गया तो चूहों की तरह बिल में घुस जाओगे। ये तो सरासर गुंडाराज है।

माना कि कांग्रेस ने एक गलती की। कांग्रेस ने एक कानून बनाया जो कि औरतों की इज्जत की कीमत लगाता है। उस इज्जत की कीमत चुकानी पड़ती है राज्य सरकार को जिसमें वो घृणित कृत्य हुआ होता है। उसके पीछे के कई कारण है कि राज्य में कानून व्यवस्था की चूक की कीमत तो राज्य सरकार को ही चुकानी पड़ेगी। पर उस इज्जत की कीमत तो आप २५ हजार दे रही हैं पर उस कीमत को चुकाने के लिए ५ लाख खर्च कर रही हैं। हेलिकॉप्टर से डीआईजी जगह जगह जाते हैं और खर्च करते हैं करीब ५ लाख सिर्फ फ्यूल में। क्या ये बेहतर नहीं होता कि उस जिले के वरिष्ठ अधिकारी उस पीड़ित परिवार को मुआवजा दे देते।

मायावती जी आप को अपने जीते जी पूरे राज्य में मूर्तियां लगवाने से फुर्सत मिले तो आप इस ओर सोचेंगी ना। आप का क्या जाता है कि कोई कितना खर्च करता है। हर कीमत के पैसे तो हमें ही भरने होंगे। पर अच्छा तो ये होता कि आप धौंस ना दिखाते हुए जब रीता बहुगुणा ने माफी मांगी तो आपको बड़प्पन दिखाते हुए माफ कर देना चाहिए था। सही तो ये ही होता कि मुआवजे के लिए तेल में ५ लाख ना फूंके जाते और ये रकम पीड़ित के परिवार को मिल जाती। मूर्तियां का मोह छोड़ों माया जी कल से हाल खराब है बिजली नहीं आई है। काश आपने पैसे राज्य सरकार की उन्नति में लगाए होते तो आज ये यूपी की हालत ही कुछ और होती।

आपका अपना
नीतीश राज

3 comments:

  1. बहुत असोसजनक, दुखद एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम!!

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  2. खुद के उद्धार से फ़ुरसत मिले तो दलितों,पिछड़ो के विकास की बात करें। राजनीति का यही उद्देश्य बाकी रह गया है लगता है।

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  3. मायावती एक मंझी हुई राजनीतिज्ञ हैं, yअह तो देख लिया। यही चाहती हूँ की अब की बार जनता उनकी राजनीति से अधिक उनके विकास कार्यों (सभी वर्गों के लिए, न की सिर्फ़ दलित वर्ग) के आधार पर फैसला लें, वरना उनके जैसी अपरिपक्व मंत्री तो देश को डुबो देगी।

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मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”