Friday, September 12, 2008

मुंबई का किंग कौन?

"अगर के एल प्रसाद को अपनी वर्दी, कुर्सी और बैच जो कि उसके कंधे पर लगे हैं, उनका इतना ही गुरूर है तो वो उसे उतारकर सड़क पर आकर बयान दें तब उन्हें पता चलेगा कि मुंबई किसकी है।" ये कहना है राज ठाकरे का और वो भी किसी दो कौड़ी के आदमी के बारे में नहीं, मुंबई के ज्वाइंट कमिश्नर के बारे में। आपको ये बता दूं कि ये के एल प्रसाद वो ही हैं जिन्होंने एक रोज पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कहा था कि 'मुंबई किसी के बाप की नहीं'। राज ठाकरे ने पलटवार करते हुए अपनी पीसी में मुंबई के ज्वाइंट कमिश्नर को खुले शब्दों में चुनौती दे डाली कि वर्दी है तो इतना बोल रहे हो यदि वर्दी उतारकर सामने आओ तो दिखाते हैं हम अपनी गुंडागर्दी जिससे कि पूरा मुंबई आजकल थरथर कांप रहा है। और ये भी कोई बड़ी बात नही कि आने वाले दिनों में के एल प्रसाद की वर्दी को नुचवाकर ये मुंबई का नया उभरता हुआ गुंडा राज ठाकरे फिकवा दे या फिर सबसे सरल उपाय तबादला करवा दे। इस कहते हैं दादागीरी। सीधे-सीधे चैलेंज है पुलिस को, कि मैं तो चुप नहीं रहूंगा चाहे जो हो सके तो वो कर लो। क्या पुलिस की इतनी हिम्मत है कि वो राज ठाकरे पर इस धमकी के ऊपर कोई भी कदम उठा सके? हम सब को जवाब पता है...शायद नहीं। राज ठाकरे की एक दहाड़ के सामने दुम हिलाती है पुलिस। लेकिन ये ख़ौफ़ कब तक, आखिर कब तक रहेगा ये ख़ौफ़? सरासर गुंडाराज चल रहा है मुंबई में।
बेशक राज ठाकरे सरकार नहीं हैं पर वो आदेश देता है तो महाराष्ट्र की सरकार की जुबान पर ताला लग जाता है। वो जज भी नहीं है पर फिर भी दंड सुनाने का अधिकार सिर्फ उसने अपने पास सुरक्षित रखा है। जिसे चाहे वो अपने आगे झुका सकता है, जिसे चाहे वो कुछ भी कह सकता है गाली तक दे सकता है और कानून उस शख्स के खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठा सकता है। वो चाहे तो जिस किसी की फिल्म की रिलीज पर महाराष्ट्र में पाबंदी लगा सकता है, और वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। इस शख्स की सनक के सब गुलाम बन चुके हैं।
ये दादागीरी नहीं है तो और क्या है। अभी मेरी पिछली पोस्ट पर डॉ अनुराग ने कमेंट किया था कि अगले महीने उनका मुंबई जाना हो रहा है। वहां पर चल रही भाषावाद की हवा से वो काफी नाखुश भी हैं और पशोपेश में भी। आपको सच बताऊं तो ऑफिस से मेरे एक सहयोगी को मुंबई जाना था लेकिन वो मुंबई नहीं गए। क्यों? जबकि हमारा भरा पूरा ब्यूरो है वहां पर, लेकिन वहां कि हवा ही ऐसी चल रही है कि हर कोई डरने लगा है। गुंडों से शायद हमलोग अकेले तो लड़ सकते हैं लेकिन परिवार के साथ नहीं। सच माने तो राज ठाकरे का कद ये हो चुका है कि कोई भी इस बड़बोले से पंगा नहीं लेना चाहता और लगता तो ये भी है कि सब के सब इसके रहमोकरम पर ही हैं।
इस दादागीरी और गुंडागर्दी के आग सदी के महानायक तक को झुकना पड़ा। पहले ब्लॉग, फिर हर चैनल पर घूम-घूम कर माफी मांगनी पड़ी। चाहे द लास्ट लियर के लिए दिए जा रहे इंटरव्यू की बात हो या चाहे कोई और, लेकिन हर जगह वो माफी मांगते हुए दिखे। बिग बी यानी अमिताभ बच्चन इस मुद्दे पर कुछ जुमलों को ही हर इंटरव्यू में बोलते नजर आए। माफी मांगने से थोड़े ही कोई छोटा हो जाता है, भई बीत गई सो बात गई, अब आगे क्या, माफी हमने मांग ली है, इसकी जांच हो रही है यदि लगे कि हमने गलत किया है तो हमें जो सजा देना चाहेंगे हमें मंजूर है। हर जगह बचते-बचते अमिताभ ने सभी सवालों के जवाब दिए। कैमरे पर माफी मांगे जाने को लेकर तो बिल्कुल कन्नी काट गए। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि राज तो मेरे दोस्त के हैं और मैं उन्हें अपनी फिल्म देखने का न्यौता देता हूं। अब सवाल ये उठता है कि क्या सदी का महानायक डर गया? हर जगह जा जा कर उन्हें माफी क्यों मागनी पड़ रही है? क्या बिग बी पर द लास्ट लियर के प्रोड्यूसर की तरफ से कोई दबाव है? या फिर फिल्म सही सलामत मुंबई या यूं कहें कि महाराष्ट्र में रिलीज हो जाए ये चाहते हैं अमिताभ। पर जो भी कारण हो जब सदी के महानायक को डरना पड़ सकता है इस नेता रूपी गुंडे से तो फिर आम आदमी की तो औकात ही क्या है। यदि राज ने न्यौता स्वीकार कर लिया तो राज की राजनीति समझ में जरूर आजाएगी ये तो साफ है।
ये मराठियों की एकजुटता की जीत है या फिर राज ठाकरे के गुंडों का ख़ौफ़ लेकिन भाषावाद का ये घटिया प्रकरण आखिरकार खत्म तो हो गया। अब तो ये लड़ाई राज ठाकरे बनाम मुंबई के ज्वाइंट कमिश्नर के बीच हो चली है। पर इसमें जया और अमिताभ बच्चन को पूरे मामले में शर्मिंदगी बहुत उठानी पड़ी है। साथ ही जाते जाते राज ठाकरे ने जया बच्चन को नसीहत भी दे डाली है कि हो सके तो आगे से लिखे हुए डायलॉग ही पढ़ें तो बेहतर। पर इस प्रकरण ने ये तो बता ही दिया कि, 'मुंबई का किंग कौन?.........राज ठाकरे'

आपका अपना
नीतीश राज

(फोटो साभार-गूगल)

12 comments:

  1. लगता है मुम्बई फिर एक ज्वलनशील पदार्थ पर बैठ गई है।

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  2. नीतिश जी अब तो मुम्बई को बोम्बे कहते भी डर लगने लगा है !
    पुराने समय की आदत अनुसार बोम्बे ही बोलता हूँ ! और अब तो
    मुझे आपकी चिंता भी लगने लगी है ! आप इतना जो कुछ उनके
    ख़िलाफ़ (ठाकरे & क.) जहर उगल रहे हैं !:)

    भाई आपके प्रश्न् ज्वलंत हैं और ठाकरे विरुद्ध कमिश्नर ही झगडा
    शेष बचा हो ! पर जब चाहेंगे ये फ़िर नोटंकी खडी कर लेंगे ! मुम्बई
    में तो इनकी दादागिरी सिद्ध हो चुकी है !
    और ये जिस रास्ते चल रहे
    है वो रास्ता साफ़ दिख रहा है की अगर बाकी भारत में एंटी मराठी
    माहोल बना तो यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण होगा !

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  3. जब मुम्‍बई के ज्‍वाइंट कमि‍श्‍नर को वह शख्‍श धमका सकता है , तो जाहि‍र है कि‍ मामला गंभीर है और राह आसान नहीं है।

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  4. aise logon ki vajah se hi mumbai dhire-dhire mar rahi hai,aur ye bimari achhi tarah se ilaaz na hone ki vajah se mumbai ke bahar desh ke dusre hisson bhi phail rahi hai.unki chonch par dhakkan zaruri hai kam-se kam kanoon ko to pehal karni chahiye

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  5. जब तक ताऊ का हाथ भतीजे के सर पर है तो इस भतीजा का ये हिजड़ा नुमा फौज कुछ भी नहीं कर सकती है ताऊ। बस अपना आर्शीवाद बनाए रखिएगा इस भतीजे पर।

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  6. इमानदार ओर नेक अफसरों का मनोबल कितनी बार टूटता है ,ओर उन्हें सरकार द्वारा बेईज्ज़त भी किया जाता है.....ऐसे में लोग चुप्पी ओढ़ लेते है....सरकारी अफसर दरअसल मोहरा है .....हर चीज़ में उन्हें आगे कर दो.....आजकल वैसे भी कोई समझदारी भरा निर्णय कोर्ट ही लेता है ,बाकी सभी राज्नैतिग को साँप सूंघ गये है ...देखना सरकार की यही अकर्मण्यता एक दिन राज जैसे छिछोरे ओर घटिया लोगो को बढ़ावा देगी .....मै अमिताभ बच्हन का कोई फैन नही हूँ पर यहाँ उन्होंने माफ़ी इसलिए मांगी की एक फ़िल्म जिससे कई लोग जुड़े रहते है ..उन्हें कोई नुकसान न हो फ़िर अगले हफ्ते शायद उनके बेटे की फ़िल्म रिलीज़ होने वाली है......हैरान हूँ फ़िल्म इंडस्ट्री वाला कोई व्यक्ति अभी तक इस के ख़िलाफ़ नही आया ?शबाना ,जावेद ....ओर हर बात में सामने आने वाले महेश भट्ट (उनकी अपनी फ़िल्म १९२० )जो अगले हफ्ते रिलीज़ हो रही है....हम क्यों पड़े इस झगडे में ?वाला माहोल है.....मेरे कजिन कश्मीर में पोस्टेड है वो अक्सर बताते है की कैसे आर्मी का मनोबल बार बार टूटता है......पर किसी को देश की पड़ी नही है.......

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  7. लगता है महाराष्ट्र में गुंडा राज क़ायम करने की कोशिशें की जा रही हैं...

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  8. apke vicharo se sahamat hun par is samasya ka nirakaran kaise kiya ja sakata hai . prantiy bhashavaad ki lahar desh ko aag me jhok rahi hai..

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  9. यह जनता की बेवकूफी है कि उनको अनावश्यक विषयों कि मदद से इतनी आसानी से घुमायाफिराया जा सकता है.

    इस सटीक विश्लेषण के लिये आभार !!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

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  10. सबका समय आता हैअ जी..
    देखते रहें.

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  11. क्या एक गुण्डे से भारत बर्ष थर थर कांप रहा हे, क्यो, सिर्फ़ इस कुर्सी के लिये, लेकिन कोई तो माई का लाल इसे भी ललकारे गा, ऎसी बाते अपने देश मे हो रही हे तो अजीब लगता हे,देवी देवताओ के इस देश मे यह रावण फ़िर से कहां से आ गये.

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  12. ये दादागीरी नहीं है तो और क्या है
    अफ़सोस की बात है की यह सवाल लाजवाब है. दिलों में ज़हर भरने वाले न सिर्फ़ खुले घूम रहे हैं बल्कि सम्माननीय भी बन रहे है - यह स्थिति न सिर्फ़ दुखदायी है, घातक भी है.

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”