Monday, September 22, 2008

दहशत भरा मास्टरमाइंड

1993 में मुंबई ब्लास्ट के मास्टर माइंड का जो रोल था वो ही रोल आतिफ का इन दिनों हुए सीरियल ब्लास्ट में था। जैसे उस समय में साजिश रची गई थी कि किसी को कानों कान पता नहीं चल पाया था और पूरा का पूरा मुंबई दहल गया था। पूरा देश उस ब्लैक फ्राइडे को भुला नहीं पाया। फिर धीरे-धीरे देश में कुछ वारदातें ऐसी हुई जिसमें पुलिस के पास खंगालने को कुछ नहीं बचता था। पुलिस सिर्फ और सिर्फ टोह लेती रह जाती थी और आतंक के ये सौदागर देश के किसी हिस्से पर क़हर बरपा जाते। पुलिस सोच रही थी कि इस के पीछे कौन है?
दिल्ली ब्लास्ट से बेनकाब हुआ उस आतंकवादी का नाम जो कि देश में कई जगहों पर दहशत का मास्टरमाइंड था। आतिफ। दिल्ली तो दिल्ली, वाराणसी, जयपुर और अहमदाबाद में भी धमाके इसी के दिमाग का नतीजा था। ये इतना शातिर था कि ब्लास्ट के बाद के कोई भी सबूत नहीं छोड़ता था। पुलिस के अनुसार वो कहता था कि ब्लास्ट होगया यानी कि सबसे बड़ा सबूत खत्म होगया। इतनी बारिकी-बारिकी जानकारी और ध्यान वो रखता था कि कहीं भी किसी से गलती ना हो जाए। जब वो १२ लोगों के साथ अहमदाबाद २४ तारीख को गया तब वो ट्रेन से अहमदाबाद गए थे। उसने हिदायत दे रखी थी सभी को कि सब साथ तो हैं पर कोई भी आपस में बात नहीं करेगा। सब ऐसा जाहिर करेंगे कि एक-दूसरे को जानते ही नहीं। कब कौन क्या पहनेगा, धमाकों से पहले कोई सेव करवाए गा या नहीं ये भी खुद आतिफ ही तय करता था। धमाके करने में उसे सुकून मिलता था। अखबारों में सुर्खियों खून से सनी हुई वो चाहता था। तेज, चालाक, अक्लमंद, आतिफ सब कुछ अपने ही हाथ में रखता था। मतलब कमाल खुद के हाथ में रहती थी।
पूरे मॉड्यूल में यदि आतिफ सबसे ज्यादा करीबी था तो वो मोहम्मद शकील के। शकील ने इकबालिया बयान में कहा है कि आतिफ से कोई मेल पर बातें करता था जिसे की आतिफ बहुत ही पढ़ा लिखा शख्स मानता था। लेकिन कौन था वो आदमी और कहां से मेल आते थे वो नहीं जानता। आतिफ इनको अपने नौकरों की तरह ही रखता था। जभी वो कुछ भी इन लोगों के साथ शेयर नहीं करता था। सबसे कहता कि अपने काम से काम रखो। यदि आतिफ और उस अनजान का प्लान कामयाब होता तो २० सितंबर को एक बार फिर दिल्ली दहलती और इस बार जगह होती नेहरू प्लेस, वो भी एक साथ २० बमों के साथ। अब बात आतिफ के और साथियों की जो कि सारे आजमगढ़ के हैं।
मोहम्मद शकील जिस पर सबसे ज्यादा विश्वास आतिफ करता था। ये वो शख्स जो कि दूसरों को धमाकों के लिए प्रेरित करता था, सबसे ज्यादा बरगलाता था, जेहादी तकरीर देता था। सन २००० से दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था। जामिया में एम ए इकनॉमिक्स के दूसरे साल का छात्र था। आतिफ से ४ साल से दोस्ती। और अहमदाबाद के मणिनगर में साइकिल पर रखा था बम।
आतंक का एक और चेहरा सामने आया है उसका नाम है जिया-उर्र-रहमान। ये भी आतिफ का साथी। पुलिस की माने तो कंप्यूटर की पढ़ाई कर चुका ज़िया धमाकों के लिए सामान मुहैय्या कराता था औऱ दिल्ली में कनाट प्लेस के सेंट्रल पार्क में इसी ने धमाका किया था...चार साल से आतिफ-शकील का साथ, आतिफ को सामान पहुंचाने का काम करता था, एल 18 फ्लैट दिलवाने में जिया की अहम भूमिका। जामिया यूनिवर्सिटी में बीए 3 का छात्र और साथ ही ‘ओ’ लेवल का डिप्लोमा।
अब बात पूरे ग्रुप के सबसे स्मार्ट सदस्य शाकिब निसार की। मैनेजमेंट की पढ़ाई कर चुके शाकिब ने धमाकों से पहले उन सभी इलकों का जायज़ा लिया था। इन सब पर कोई शक ना करे साथ ही यदि मकान में कोई भी कुछ पूछने आए तो शाकिब घर में मौजूद रहे। यदि पूछताछ हो तो सबके बारे में बता सके की ये सब भी घर पर थे। शाकिब के आज वाले युवाओं के सारे शौक, एमबीए का छात्र, नेट पर चैटिंग का शौक, साथ ही कई लड़कियां उसकी मित्र। वो नेहरू प्लेस में काम कर चुका था जहां पर अब इनका निशाना था। करोल बाग की रेकी शाकिब ने ही की थी।
इन सबके बारे में जो सुराग़ मिले हैं वो एल १८ में से बरामद लैप टॉप और पेन ड्राइव से मिले हैं। सबसे दुखद बात ये है कि सारे के सारे पढ़े लिखे नौजवान हैं जो कि बहक रहे हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

11 comments:

  1. ' really very shameful and painful too. kitnee dukh kee baat hai kee education ka bhee ye log kitna galat fayada utha rhen hain, kya hoga aise naujvano ka jo desh ke future ke nam pr ek kalank hain.."

    regards

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  2. सबसे अधिक दुःख यही हुआ जान कर की यह लोग पढ़े लिखे थे और सिर्फ़ सुर्खियाँ बटोरने के लिए यह सब करते थे ..कितने घर उजाड़ गए इनके यह शौक .

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  3. sahi kaha aapne.ye to bahke hue log hai.abhi bahkaane waale samne nahi hai

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  4. आपका आतन्क पर लेखन सबसे धारदार और इन्फर्मेटिव पाया है मैने।
    धन्यवाद।

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  5. पढ़े-लिखे नौजवान अगर ये सब करें तो तकलीफ की बात है. कभी तो इन्हें सदबुद्धि मिले, और ये ऐसा करना छोडें.

    ऐसे आतंकवाद को तर्क की किसी भी कसौटी पर जायज नहीं ठहराया जा सकता.

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  6. आख़िर ये पढ़े लिखे नौजवान जब ऐसा कर रहे हैं तो
    बहुत कष्ट कारक स्थिति है ! क्या इन लोगो में ज़रा सी
    रहम नही है ? शायद हमारे नैतिक मूल्य बदल रहे हैं !
    आप जिस तरह से लिखते हैं वो बेमिसाल है हर दृष्टी से !
    इस लेख के लिए आपको धन्यवाद !

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  7. पढ-लि‍खकर भी जो इंसान नहीं बना तो इनसे वो अनपढ़ भला जो दूसरों की जान के साथ तो नहीं खेलता। आखि‍र इनकी हसरत क्‍या है, मजहब क्‍या है, इनकी मानसि‍क दि‍वालि‍यापन के लि‍ए आखि‍र कौन जि‍म्‍मेदार है। जवाब सबको मालूम है और शायद नहीं भी मालूम...

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  8. लानत हे ऎसी साजिस रचने वालो पर, अब पढ लिखा हो याह अनपढ मरने वाले तो मर गये ना
    धन्यवाद इस लेख खॆ ळीय़ॆ

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  9. सबसे दुखद बात ये है कि सारे के सारे पढ़े लिखे नौजवान हैं जो कि बहक रहे हैं।

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  10. बहुत अफसोस होता है कि इतना पढ़ लिख कर भी भटक जाते हैं यह नौजवान और हम हर बात का दोष अशिक्षा में खोजते हैं.

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
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