Friday, September 26, 2008

क्या हैं हम, SOFT NATION या WEAK NATION?

SOFT NATION या WEAK NATION की पहली कड़ी में आज बात जड़ की।

आतंकवाद का आतंक हमारे देश में सर चढ़कर क्यों बोल रहा है? हर बार बैठकों का दौर शुरू होता है और नतीजा वो ही ढाक के तीन पात। फैसले ऐसे कि जिस पर अमल करते हुए आज भी आतंकवाद हमारे सर पर चढ़कर नाच रहा है। देश की जनता हमेशा ही डर के साए में जीने को मजबूर है। आतंकवाद का ये दानव हमारे देश में इतना क्यों और कैसे फल फूल रहा है इसका जवाब शायद है भी हमारे पास ही। हमारे पुराने उदाहरण इस बात के सबूत रहे हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा देते से लगते हैं।
आपको याद होगा 1989। वो काला साल जब कि आतंकवाद के खिलाफ हमने पहली बार घुटने टेके थे। पूरे देश और विश्व की नज़र हम पर टिकी थी कि हम कैसे उस वारदात से निपटते हैं। ऐसा नहीं था कि इस से पहले देश में आतंकवाद का नामोनिशान नहीं था। पर ये वो वाक्या था जब हमारी सरकार ने लड़ने का हौसला छोड़ कर के आतंकवादियों के नापाक इरादों के सामने घुटने टेक दिए थे।
8 दिसंबर 1989, दोपहर के लगभग चार बजे, मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद को उनके घर से महज 500 मीटर की दूरी पर जब कि वो अस्पताल(जहां वो इंटर्नसिप करती थीं) से वापस आते हुए किडनेप कर लिया गया। चार आतंकवादियों ने इस वारदात को अंजाम दिया था। पूरे देश में हड़कंप मच गया। वीपी सिंह की सरकार थी उस समय और सरकार में देश के गृहमंत्री की एक बेटी रुबैया सईद का अपहरण देश की सुर्खियां बटोरने लगा। अपहरण के लगभग दो घंटे के भीतर ही आतंकवादी संगठन कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट अपनी शर्ते रख देता है। जेकेएलएफ के एरिया कमांडर शेख अब्दुल हमीद समेत पांच खुंखार आतंकवादियों को छोड़ने की मांग करता है जिनके नाम थे गुलाम नबी बट, नूर मोहम्मद कलबाल, मुहम्मद अल्ताफ और जावेद अहमद जांगर। देखते ही देखते श्रीनगर में सरकार पहुंचने लगी। कश्मीर का अवाम बहुत गुस्से में था कि कैसे कोई अविवाहित लड़की को अगवा कर सकता है साथ ही लोगों का मानना था कि ये इस्लाम और कश्मीरियत पर हमला है। फारुक अब्दुल्ला उस समय लंदन में छुट्टियां मना रहे थे। तुरंत देश लौटे और फिर कई लोग आतंकवादियों से वार्ता करने के लिए सामने आए। चाहे वो वेद मारवाह हों या एबी गनी लोन की बेटी शबनम लोन या फिर इलाहाबाद हाई कोट के जज मोती लाल भट्ट।
5 दिन बाद 13 दिसंबर की सुबह लगभग 3.30 बजे दो केंद्रीय मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और मोहम्मद खान श्रीनगर पहुंचे। फारुख अबदुल्ला नहीं चाहते थे कि आतंकवादियों की मांग को माना जाए। पर सरकार झुक गई और शाम 5 बजे सरकार ने सभी पांचों आतंकवादियों को छोड़ दिया और ठीक दो घंटे बाद शाम 7 बजे रुबैया सईद को छोड़ दिया गया। इस पूरी वारदात के पीछे जिस शख्स का नाम सामने आया था वो था यासीन मलिक। जो कि आज भी भारत में रहकर के पाकिस्तान का पैरोकार बना हुआ है।
यदि उस दिन सरकार ने ये सौदा नहीं किया होता तो शायद आतंकवाद का ये रूप हम आज नहीं देख रहे होते। वो पहली नाकामयाबी थी हमारी सरकार की आतंकवाद के खिलाफ। वो आतंकवादी छोड़ दिए गए जिन्होंने सैंकड़ों को मौत के घाट उतारा था और उन्हें पकड़ने में ना जाने कितने ही हमारे फौजी शहीद हुए थे। उस समय वीपी सिंह की सरकार को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ था। इसी तरह का गुल कुछ सालों बाद बीजेपी सरकार ने भी खिलाया था। उसके बारे में भी बात करेंगे। बीजेपी ने वीपी सरकार से समर्थन वापस लिया था। लेकिन इस मुद्दे पर नहीं। उसने समर्थन वापस लिया था रथ यात्रा पर निकले बीजेपी के लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की बिहार में गिरफ्तारी पर। शायद बीजेपी के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था हिंदुत्व के वोट बैंक की राजनीति ना कि आतंकवाद।

कई दिनों से ये बहस चल रही है कि हम क्या हैं एक Soft Nation या फिर Weak Nation। लेकिन इन दो उदाहरण से ये साफ जाहिर होगया होगा कि हम क्या हैं। Soft Nation रूस भी है पर वो Weak Nation नहीं है। पर हम Soft Nation के साथ साथ Weak Nation भी हैं। जब ही आतंकवाद सर चढ़कर बोल रहा है।

अगली बार भी नजर डालेंगे सरकार के रुख पर जो हमें बताता है कि हां, हम Soft नहीं Weak Nation हैं। और साथ ही उने देशों पर भी जो कि Soft तो हैं पर Week नहीं।

आपका अपना
नीतीश राज

10 comments:

  1. WEAK not WEEK, week means Hafta WEAK means Kamzor...

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  2. जी हां, माफी चाहूंगा कि कई जगह weak की जगह week गलती से लिखा गया। Thanks Anonymous.

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  3. अब सॉफ्ट हों या वीक; अगर सुधरे नहीं तो फेल्ड नेशन जरूर बन जायेंगे।

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  4. सही कहा आपने। हम वीक है जभी सारी समस्या खत्म नही होती

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  5. आपकी बात सौ प्रतिशत सही है !

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  6. सौ फीसदी सहमत हूँ....कंधार मामले में भी ऐसा हुआ जिन यात्रियों को बंधक बनाया उनके परिवार वालो ने उस वक़्त इतना हड़कम मचाया ...मीडिया की गैर जरूरी तवज्जो ने आख़िर कर अटल सरकार को भी घुटने टेकने पड़े ,मेरे एक कजिन भाई आर्मी में कैप्टेन है ..कितने निराश थे वो मुझे आज याद है

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  7. डॉक्टर अनुराग, कंधार मामले और कई और देशों की बात भी अगली से अगली किश्त में। लेकिन अगली किश्त में बात रूस के थिएटर एटैक की याद तो होगा ही आप को। उस अटैक के कारण अमेरिका ने भी कई नए और महत्वपूर्ण कदम उठाए थे आतंकवाद के खिलाफ।

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  8. सत्य वचन हैं जी आपके, लेकिन SOFT और WEAK हमें बनाया किसने? अव्वल तो ये हमारे खून में है, फ़िर बाकी की कसर सेकुलरवादियों ने पूरी कर दी है, भारत की नसों में ताकत बची ही नहीं है… और जब देशवासियों में ही अनुशासन और देशप्रेम नहीं है तो नेताओं से क्या अपेक्षा करना… सिर्फ़ एक बात बताईये, कितने लोग हैं जो "जन-गण-मन" बजते वक्त दो मिनट के लिये भी सीधे खड़े हो पाते हों?

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  9. सुरेश जी,
    पहली बात का पहले जवाब। हमें वीक बनाया हमारे नेताओं की गलत रणनीतियों ने। यदि इंजन ही खराब होगा तो गाड़ीं क्या खाक चलेगी, गाड़ी को तो लेट होना ही है फिर। और ऐसा नहीं है कि हर कोई इंजन बन जाए। मानता हूं कि कमी हमारी भी है कि जो नेता एक बार दुष्कर्म कर रहा है तो उस को दूसरी बार मौका देना ही नहीं चाहिए। नहीं करो वोट मत दो एक भी वोट यदि लगता है कि कोई नेता देश की सेवा करपाने के लिए सक्षम नहीं है। और यदि सोचते हो कि जिसको वोट दे रहे हो वो सेवा करेगा और नहीं करेगा तो भीड़ का कानून तो है ही। जो आज कल सामने आ रहा है।
    जहां तक रही सेकुलरवादी ताकतों की बात तो उस पर आप मेरे से बेहतर जानते हैं और लिखते रहे हैं।
    और तीसरी बात बहुत लोग हैं जो जन-गण-मन के समय साइकिल, स्कूटर, गाड़ी को बीच सड़क पर रोककर गान को सम्मान देते हैं, बाहर निकलकर सीधे खड़े हो जाते हैं। यदि आप के सामने उदाहरण नहीं आए तो मैं कुछ नहीं कर सकता। लेकिन सभी को ये बताना कि नहीं तुम्हारे कारण ही देश ऐसा है वो ग़लत है।
    हम दोषी कितने हैं इसका राग अलापना बंद करके सीधे जड़ पर जाकर चोट करें तो बेहतर।

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  10. गल्तिया तो हमारी सरकार की ही हे, ओर इस सरकार को चलाने वाले हमारे नेता जो अपनी मां ओर बहिन को भी बेचने मे कोताही ना करे, फ़िर देश क्या चिझ हे इन के सामने, इर इन नेताओ को यहाम तक पहुचाने वाले हम, यानि गलती हम लोगो की ही हे, हम मे से कितने लोग वोट डालते हे??? शायद १०, २० % फ़िर हम सरकर को कोसते हे, ओर जो वोट डालते हे उन मे ८०% बेचारे गरीब हे जो कुछ पेसो के बदले अपना किमती वोट इन लुच्चे नेताओ की झोली मे डाल देते हे, सब से पहले हमे अपने वोट का पता होना चाहिये एक वोट की कितनी ताकत हे फ़िर दल बदलू, ओर इन बेकार के नेताओ को हटाओ,ओर वोटो से पहले देखो कोन सी पार्टी क्या वादे करती हे...ऎसी छोटी छोटी बाते बहुत बडॆ बडॆ मायाने रखती हे जिन पर हम ध्यान नही देते, जब तक हम नही जागेगे तब तक हमारे देश की नाव यु ही हिच्कोले खाती रहेगी, अभी भी समय हे...
    आप के लेख से मे १००% सहमत हू, लेकिन हमे जागाना होगा...
    धन्यवाद

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”