Saturday, July 11, 2009

दोस्त के पिता का इंतकाल और निगमबोध घाट का हादसा

उसका जवाब होता कि, सिर्फ वो सांस ही खुद ले सकते हैं।
सुबह-सुबह पता चला कि हमारे साथ काम करने वाले एक सहयोगी के बाबूजी की हालत नाजुक है। वैसे भी उसके पिताजी काफी दिन से बीमार चल रहे थे। उनकी किडनी जवाब दे चुकीं थी उपर से वो डायबेटिक भी थे। काफी दिन से उनका इलाज गंगाराम और एम्स में इलाज चल रहा था। बार-बार खून चढ़ाया जाता और बदला जाता, पहले तो उनका हर रोज डायलिसिस होता था पर फिर थोड़ा अंतराल के बाद होने लगा। अब तो आते-आते उनके शरीर के कई हिस्सों में दर्द होने लगा था। जब भी कोई उससे पूछता कि तुम्हारे पिताजी कैसे हैं? उसका जवाब होता कि, सिर्फ वो सांस ही खुद ले सकते हैं। तो उसके जवाब ही पूरी तबीयत बयान कर देते हैं। साथ में ये वो जरूर जोड़ता कि वो दिमाग से अब भी बहुत पक्के हैं, वहां कमजोरी की कोई झलक नहीं दिखती यानी यार्दाश्त हमसे भी अच्छी।
मैं निगम बोध घाट देर से पहुंचा, पर वक्त पर पहुंचा। उसके पिताजी अपनी अंतिम यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके थे। मेरा सहयोगी अंतिम चक्कर लगा कर मुखाग्नि देने को झुक चुका था।
हम में से कुछ ने तो सुबह ही ये मान लिया था
कि शायद ही अब वो बचें। पर जहां तक हमारी बात थी तो हमें उसकी छुट्टी की आदत पड़ चुकी थी। वो एक-दो दिन की छुट्टी करता और फिर ऑफिस ज्वाइन कर जाता। हमें इस बार भी ऐसा ही लग रहा था। पर पता नहीं कैसे बातों ही बातों में एक सहयोगी के मुंह से निकल भी गया कि अरे अब तो वो लंबी छुट्टी पर गया। ये महज सुबह का इक्तेफाक भर था पर शाम का सच बन गया।
मैं निगम बोध घाट देर से पहुंचा, पर वक्त पर पहुंचा। उसके पिताजी अपनी अंतिम यात्रा के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके थे। मेरा सहयोगी अंतिम चक्कर लगा कर मुखाग्नि देने को झुक चुका था। मैं हाथ जोड़कर कायदे अनुसार उस सेज पर एक लकड़ी रख ऑफिस से ही आए एक दूसरे साथी के पास खड़ा होगया। वो अपने रीति-रिवाज के साथ उस काम को अंजाम देने में लगा था जिसे इस धरती पर सबसे बड़ा(कड़ा या भारी) माना जाता है। हम सब शून्य में ताक रहे थे और पुजारी, हवा में हम रुकावट ना बनें, हमें वहां से हटाने में लगे थे।
सभी कोने में खड़े हो गए और फिर अंकल जी के बारे में बात शुरू हो गई।मैं उसके पास पहुंचा तो उसने कहा कि आज १० तारीख है, मुझे भी याद है ये तारीख क्योंकि पिछले महीने ही उसने और मैंने पार्टी का प्रोग्राम बनाया था और कल तक सब ठीक था और आज...। यहां हम बात कर रहे थे और उधर ‘कपाल क्रिया’ का वक्त आ गया। सहयोगी ने जा कर इस काम को भी पूरा किया और वापस आ कर बैठ गया। जब भी कपाल क्रिया होती है तब उसके बाद घी डाला जाता है। वहां पर अधिकतर को इस बारे में नहीं पता था। मेरा सहयोगी गया और चला आया पर पंडित जी ने नहीं बताया कि क्या करना होता है। घी का पूरा एक कैन वहां पर रखा हुआ था पर उसका इस्तेमाल नहीं किया गया। एक दो हमारे से बड़े भी खड़े थे उनमें से एक ने कहा कि जाकर देखो तो घी कुछ है या नहीं। तो छोटे ने जाकर देखा और पाया कि घी वैसा का वैसा ही रखा हुआ था। उसने वेदी पर पूरा घी डाल दिया।
जिसे जहां से लूटने का मौका मिल रहा है वो वहां लूटने में लगा है।
वक्त आ गया था कि जब हम अपने अजीज को
वहां जलती हुई और चिताओं के साथ नित्य अकेला छोड़ चलें। जैसे ही शमशान घाट से बाहर निकल कर पार्किंग में आए तो मेरे होश उड़ गए। आज मैं कार से नहीं बाइक से आया क्योंकि शाम को जाम में एक बार फंसे तो रात कब हो जाएगी पता नहीं चलेता। मेरी बाइक की डिक्की टूटी हुई थी और उसमें रखा सामान गायब था। कहीं रास्ते में बारिश ना आजाए और मेरे को रुक कर अपने पर्स को पन्नी में डाल कर डिक्की में ना रखना पड़े तो ये काम मैंने घर पर ही कर लिया था। अलबत्ता जब मेरे साथियों ने पूछताछ की तो किसी ने बताया कि बंदर डिक्की तोड़ गया है और वो बटुआ लेकर भागा है। थोड़ी मशक्कत के बाद मेरा बटुआ मुझे मिल गया जो-जो चीज बटुए में थी वो भी मिल गई। हां, करीब ५०० का चूना लग गया पर ये बहुत बढ़िया रहा कि मेरे कार्ड मुझे मिल गए वर्ना बहुत दिक्कत होती। वो लोग भी जानते हैं कि जिसका भी पर्स मारेंगे वो कुछ कहेगा नहीं क्योंकि गम में आया है। तो थोड़ा सावधान रहिएगा।
इसे कहते हैं कलयुग। एक पंडा शव के ऊपर पड़ने वाले घी की चोरी करना चाहता था और वहीं दूसरी तरफ गम में डूबे लोगों को चूना लगाया जा रहा था। इल्जाम लगाया जा रहा है कि बंदर बटुआ लेकर भागा। बंदर को और कोई समान नहीं मिला डिक्की में से, देखिए ये भी एक अलग बात है कि बंदर को भी इतना ज्ञान हो गया है कि ये दुनिया सिर्फ पैसों से ही चलती है।
जिसे जहां से लूटने का मौका मिल रहा है वो वहां लूटने में लगा है। यहां मैं कमाना जैसे शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहा क्योंकि कमाते तो मजदूर लोग हैं लूटते तो लुटेरे हैं। शुरू से अंत तक लुटिए, अब अंतिम पड़ाव पर भी आपको चैन नहीं। हम सब उसके घर आगए और प्रार्थना की, भगवान वो जहां भी हों उनकी आत्मा को शांति दीजिएगा।

आपका अपना
नीतीश राज

4 comments:

  1. अफसोस होता है स्थितियाँ देख कर!!

    ReplyDelete
  2. बहुत अफ़्सोसजनक लगा.

    रामराम.

    ReplyDelete
  3. यह लूटने की प्रवृत्ति बढ़ रही है और यह खतरनाक है!

    ReplyDelete
  4. पता नही किसी का हक मार कर लूट कर इन लोगो को केसे चेन मिलता है, बहुत ही गलत बात

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”