Sunday, July 6, 2008

हो सके...तो पढ़ना जरूर

इस दौड़ती-भागती जिंदगी में, ऊपर से महानगरीय जिंदगी में (‘करेला वो भी नीम चढ़ा’) अपने लिए वक्त निकाल पाना बहुत मुश्किल होता है। मुझे याद आती हैं चंद लाइनें जो हमेशा से ही मेरे दिल की गहराइयों में बसी हुई हैं। जब पहली बार अपने सहयोगी के कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर उसे स्क्रीन सेवर के रूप में देखा तब से ही वो मेरे जहन में उतर गई। हो सके तो, पढ़ना जरूर। जो एहसास मुझे उसे पढ़कर मिलता था, जिंदगी के बारे में, जिंदगी जीने के बारे में, जानता हूं वैसा ही जज़्बा आप भी महसूस करेंगे। मैं इन लाइनों को लिखने वाले का हमेशा से ही कायल रहा हूं। तो पढ़िए आप भी इन को और जिंदगी के फलसफे को महज़ 9 लाइनों में जान लीजिए।

सबसे ख़तरनाक होता है,
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का
सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर
घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।।

कभी सुबह दफ्तर जाते वक्त और फिर दफ्तर से आने के बाद, इसे पढ़िए और जो दिल में उठें जज्बात, वो लिख डालिए, और आप, जो हमसे बहुत दूर बैठे हैं, आप भी।

आपका अपना,
नीतीश राज

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”