Monday, July 28, 2008

'मेरे पापा कहां गए?' जवाब दो मोदी


एक बच्चा रो रहा है, मासूम सा बच्चा, पूछ रहा है अपनी पूरी मासूमियत के साथ, सब से कि बताओ 'मेरे पापा कहां गए'? क्या जवाब है किसी के पास। मोदी जवाब दो उस रोते हुए बच्चे के इस मासूम सवाल का। क्या जवाब है तुम्हारे पास। तुम्हारे पास तो कतई नहीं है मोदी। नहीं तुम्हारे में इतनी हिम्मत ही नहीं कि पोछ सको उस मासूम के आंसू किसी के भी आंसू और दे सको जवाब। होता तो तुम आतंकवादियों के निशाने पर नहीं होते। क्या किसी के पास भी है उस छोटे से बच्चे के सवालों का जवाब? वो बच्चा कह रहा है कि वो अनाथ हो गया है। पूरी जिंदगी बिना पिता के साये के कैसे काटेगा। 'जवाब दो मोदी, जवाब दो'।
वैसे, अब बात धमाकों के आतंक की, बैंगलोर और अहमदाबाद के बाद रविवार को सूरत को दहलाने की फिराक में थे आतंकवादी। अहमदाबाद के बाद सूरत ही था उनके निशाने पर। हमें अपने ही देश में अपनों से खतरा है। हमारे देश में ही कुछ ऐसे बैठें हैं जो कि हमारी ही जड़ काटे जा रहे हैं। बैंगलोर में 7 ब्लास्ट और अहमदाबाद में सिलसिलेवार 16 धमाके इस बात के गवाह हैं कि आतंकवादियों के हौसले पहले से ज्यादा बुलंद हो रखे हैं। सुबह ही सूरत में एक काले रंग की वैगन आर कार मिली, जो की विस्फोटकों से भरी हुई थी। यदि बम निरोधक दस्ते की बात मानें तो उस में इतना बारूद था कि 25 धमाके तो आराम से किए जा सकते थे। तो खुद सोचिए कि वो २५ जगह कहां-कहां हो सकती थी। मतलब की बारूद के ढेर पर अब भी बैठ हुआ है गुजरात। सूरत से ही एक जिंदा बम भी निष्क्रिय किया गया। यदि इस बम में विस्फोट हो जाता तो इतना नुकसान होता कि आंकलन भी नहीं हो पाता क्योंकि इसमें काफी अधिकमात्रा में विस्फोटक थे। चलिए ये तो शुक्र मनाइए कि उस बम का क़हर ढाने से पहले ही बम निरोधक दस्ते ने उसे निष्क्रिय कर दिया।
अहमदाबाद के साथ-साथ सूरत में भी हलचल बढ़ गई थी। पूरे देश की निगाहें सूरत पर थी। शाम होते-होते एक और कार बरामद की गई। ये कार भी विस्फोटकों से भरी हुई थी। ये एक लाल रंग की वैगन आर कार थी। ये कार भी पिछली कार की सीरीज में ही थी। इन दोनों कारों के नंबर भी फर्जी थे। समय रहते लोगों की सूझबूझ से पुलिस ने इस कार को भी अपने कब्जे में कर इस में से बरामद 4 जिंदा बमों को निष्क्रिय कर दिया और विस्फोटकों से भरी ये कार जिस काम के लिए इसका इस्तेमाल होना वाली थी, नहीं हो सकी। लेकिन इस बात से साफ जाहिर हो गया कि आतंकवादियों के क्या मनसूबे क्या थे। वो पूरे गुजरात को हिला के रख देना चाहते थे। पूरे देश को दिखा देना चाहते थे कि वो क्या कर सकते हैं और साथ ही खुफिया तंत्र कितना लचर हो चला है कि वो कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वो खुफिया विभाग के मुंह पर तमाचा मारना चाहते थे।
पहले ई-मेल भेज कर धमकी के साथ-साथ सूचना देना कि देखो हम ये करने वाले हैं। हमें रोक सको तो रोक लो। फिर जगह-जगह विस्फोट होते हैं और फिर वो आगे-आगे हमारी खुफिया एजेंसी पीछे-पीछे। वो और आगे निकलते जाते हैं और खुफिया तंत्र और पीछे रहते जाते हैं। वो देश छोड़ कर विदेश में बैठ, अपना नेटवर्क चलाते हैं हम देश में उनकी तलाश जारी रखते हैं। कुछ वक्त के बाद जैसा इनवैस्टिगेशन जयपुर ब्लास्ट में हुआ, कुछ हिरासत में लिए गए, कुछ से पूछताछ चली फिर वो ही हाल 'ढाक के तीन पात'।
क्यों आतंकवादियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं। यदि देश में सक्रिय देश के विरोधी संगठनों पर भी खुफिया विभाग कुछ कार्रवाई नहीं कर पाती य़ा उन पर नजर नहीं रख
सकती तो फिर मानिए कि देश का ऊपर वाला ही रखवाला है।
वैसे, पूरे देश में अलर्ट घोषित कर दिया गया है। दिल्ली, मुंबई, भोपाल जैसे शहरों के साथ ही और महानगरों में हाई अलर्ट जारी किया गया है। हमें आतंकवादियों से खतरा है या फिर देश में बैठे कुछ गद्दारों से। लेकिन कुछ भी हो उन मांओं का क्या जिन्होंने अपनी आंख के तारे खो दिए। उन बच्चों का क्या जो की अनाथ हो गए। उस बूढ़े बाप का क्या दोष जिसको अपने ही बेटे की अर्थी को कंधा देना पड़ा। उस मां-बाप का क्या जो बैठे तो थे अपनी बेटी को डोली में विदा करने के लिए, लेकिन विदा कर रहे हैं हमेशा के लिए। क्या इन सबने किसी का कुछ भी बिगाड़ा था? इस खामोश सवाल का जवाब कौन देगा? क्या सरकार में है इतना दम जो जवाब दे सके। या फिर वो जवाब देंगे जिन्होंने इस को अंजाम दिया है। नापाक इरादे वालों क्या है तुम्हारे पास कोई जवाब। तुम्हारे भी तो होंगे कहीं पर कोई
अपने। क्या तुम दे सकते हो इस सब सवालों के जवाब। क्या मोदी दे पाएंगे उस रोते हुए मासूम बच्चे के सवाल का जवाब, 'मेरे पापा कहां गए'?


आपका अपना
नीतीश राज

11 comments:

  1. आतकवाद का तवा गरम है आप भी अपनी रोटी सेक लो। यह एकजुटता दिखाने का समय है राज साहब। आप भी घटिया मानसिकता दिखाने वाले आस्तिन के साप तो नही बनो। बाहर के आतंकवादियो से निपट भी लेंगे पर आप जैसो से कैसे निपटा जाये???? कुछ तो शर्म करो-----

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  2. जवाब मोदी से ही क्यों? सोनिया मनमोहन से क्यों नहीं मांगे जाने चाहिए? आतंकवाद के विरुद्ध काम करने वाली प्रमुख खुफिया एजेंसी कौन सी है? रॉ, आईबी या गुजरात पुलिस? कल को आतंकवादी पोस्टर ईमेल पर यह कहें के चौबीस घंटों के भीतर सारे हिंदू इस्लाम कुबूल कर लें वरना भारत में परमाणु बम गिरा दिया जाएगा, तो आप क्या करेंगे? पड़ोस के आस्तीन के सौंप के खिलाफ रण नीति पर तुंरत अमल करेंगे या फ़िर मस्जिद जाकर कलमा पढ़ लेंगे?

    आप सामंजस्यवादी लगते हैं दूसरा ही उपाय अमल में लायेंगे, टाडा और पोटा जो की सरकार के पास आतंकवाद से लड़ने के लिए दो अचूक हथियार थे उन्हें सिस्टम से किसने छीना? क्या मोदी ने? आपकी मदाम ने कभी अपने रौल और बियंका के साथ इटालियन दूतावास में शरण ली थी, याद है?

    वैसे कश्मीर समस्या को नोबल शान्ति पुरस्कार के लालच में किसने जन्म दिया था? मोदी ने? हाथों में आया कश्मीर और बाकि पाकिस्तान किसने छोड़ दिया था? शायद वह भी मोदी ने.

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  3. "क्या किसी के पास भी है उस छोटे से बच्चे के सवालों का जवाब? वो बच्चा कह रहा है कि वो अनाथ हो गया है। पूरी जिंदगी बिना पिता के साये के कैसे काटेगा। 'जवाब दो मोदी, जवाब दो'।"

    लगता नही की कभि जवाब मिलेगा । अगर मिल जाए तो अगली पोस्ट में जरूर बताना कि उन्होनें क्या कहा।;)

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  4. अरे ab जी, आप भूल रहे हैं, पोटा से होते हुए ही सबसे ज्यादा आतंकवादी हमले हमारे ऊपर हुए। आपके अनुसार ये सबसे ज्यादा अचूक अस्त्र है सरकार के पास। शायद भूलने की आदत बन चुकी है। भूल गए आप क्या हुआ है अफजल गुरू का, आप समर्थक जान पड़ते हैं उसके। उसी पोटा के तहत दोषी ठहरया गया था उसे, आरोपी नहीं। क्या फैसला होगया? यदि सजा मिल गई हो तो मुझे बताना, सरकार पर दोष नहीं देना। वहां भी खरीद-फरोख्त हो जाएगी। जैसे कभी पहले हुई थी। मेरी ऊंगली ऐसा नहीं की केंद्र सरकार को छोड़ सिर्फ राज्य सरकार के ऊपर ही उठ रही है। घेरे में तो सभी हैं। ये सरकार के नुमाइंदों को मैं कल देख चुका हूं रात १० से ११ कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ रहे थे। मेरा नहीं तेरा दोष। खुफिया विभाग ये कहते हुए पल्ला झाड़ रहा था कि हम तो रिपोर्ट सौंप देते हैं। कार्रवाई फिर राज्य सरकार जानें। अरे हर हफ्ते ये रुटीन रिपोर्ट जारी होती है। देश तो कुछ गद्दारों की वजह से हमेशा बारूद के ढेर पर बैठा है। आप का काम यहीं खत्म नहीं होजाता। एक दूसरे के ऊपर आरोपों की झड़ी लगाने वाले इन लोगों के समर्थक आप थोड़ा लिखने से पहले सोचें कि लिखना क्या चाहते हैं। खुले तौर पर स्वीकार करो कि मोदी के गुलाम हो। लोगों को भूलने की आदत कुछ ज्यादा ही होती है। मोदी के रहते ही गोधरा हुआ(सर कलम कर दो सबके, इसने ही कहा था(तब आप लोग गए थे मस्जिद कलमा पढ़ने नहीं क़त्ल करने), अक्षरधाम हुआ। मोदी के चाहनेवालों उठों औऱ भ्रम से बाहर निकलो।

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  5. मोदी के चाहने वालों को कितनी ठेस पहुंची हैं, कल की ही दो और घटनाएं हुई, ऐसे वक्त पर राज ठाकरे ने फिर बिग बी पर निशाना साधा। इसे कहते हैं आस्तिन के सांप। इन से बचो। करात ने कहा कि सोमनाथ को दक्षिणपंथियों की वजह से निकाला। लाइमलाइट में ये आना चाहते हैं। इन से बचो।

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  6. गोधरा के भक्षकों को तो ये बात कैसे हज़म हो सकती है।

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  7. राज जी आपने मुद्दा तो सही उठाया लेकिन बेवक्त उठाया। माना कि कुछ दिन बाद इस को कोई भी पूछेगा नहीं पर बारिश सावन में ही हो तो अच्छा लगता है। साथ ही यहां कहना चाहूंगा कि मोदी के खिलाफ कोई कुछ कर भी नहीं सकता।

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  8. अपनी अपनी सोच, मोदी दमन का सहारा लेते हैं; यह उनकी शासन शैली है. और रास्ता भी क्या है? इंदिरा को छोड़ सब प्रधानमंत्री नपुंसक थे, केवल बाजपेयी ने 'बुद्धा' के द्वारा कुछ दम दिखाया था. पर कारगिल और कांधार ने सारी हवा निकाल दी. आज वह तेवर मोदी में दिखाई पड़ते हैं. कम से कम वह अपने लल्लू-पंजू भाई-भतीजे-बेटे-लुगाई-साले को तो हमारे ऊपर नहीं थोपेगा! हाँ, उसके शासन में खून बहेगा पर क्या आज नहीं बह रहा? कल नहीं बहा था? कब नहीं बहा था?

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  9. सही तमाचा मारा है आपने, लेकिन इस बड़बोले ने कितनों की जान ली है, ये शायद खुद भी नहीं जानता।

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  10. आपकी पोस्‍ट का शीर्षक आपत्तिजनक है.....शिवराज,सोनिया और मनमोहन का नाम क्‍यों छोड़ दिया...जिस देश मे शिवराज जैसे चूहे गृहमंत्री हों वहां और हो भी क्‍या सकता है

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”