Friday, July 18, 2008

उन बूढ़ी आंखों के लिए....

मेरी हर भावना कहती है
कर लोगी तुम, करना है तुमको
करनी ही होगा तुमको।
वो बूढ़ीं आंखें जिसे अब
कुछ कम दिखाई देता है
पर देखना है उनको,
तुमको, उस पर्दे पर,

जहां देखने की चाह थी उनको
उन प्यासी आंखों को
जो दूर से बैठी आज भी
देखती है तुमको, तुम्हरी आंखों को।

झिलमिल करता वो सितारा
टिमटिम करता वो सितारा
अब भी आंखों में थकान लिए
पूरी रात का जागा हुआ
विश्वास के साथ देखता
तुम्हारी ओर,
उसी चमक के साथ
उसी विश्वास के साथ
जो मेरी भावनाओं का विश्वास है
उस बूढ़ी आंखों का विश्वास है
उस झिलमिलाते सितारे का विश्वास है
तुम्हारी आंखों के लिए
करोगी ना....,करोगी तुम उस विश्वास को पूरा,
जो है मेरी आंखों में
उस सितारे की आंख में
करोगी तुम उस विश्वास को पूरा
करोगी ना....।

तुम करोगी जानते हैं हम,
यह विश्वास है, हमारा विश्वास
मत झपकाना अपनी पलकों को
किसी भी गलती पर।
देख लेना समझ लेना
हमारी आंखों को, कि
झपक कर ही क्या
बन्द हो रखी हैं वो आंखें
उस विश्वास के लिए,
पल भर के भीतर
उन आंखों के खुलने तक
जिसे करना है तुमको अब पूरा।

आपका अपना
नीतीश राज

अब से आपको मेरी कविता मेरे अन्य ब्लॉग पर मिलेंगी, जिसका यूआरएल(URL) http://poemofsoul।blogspot.com/
और इस ब्लॉग को नए ब्लॉग के साथ लिंक भी कर दिया गया है।
एक बार उधर भी नजर।

2 comments:

  1. बहुत बढिया रचना है।अति सुन्दर।

    जहां देखने की चाह थी उनको
    उन प्यासी आंखों को
    जो दूर से बैठी आज भी
    देखती है तुमको, तुम्हरी आंखों को।

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  2. वाह! बहुत सुन्दर.बहुत बधाई.

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”