Tuesday, July 29, 2008

"सुषमा स्वराज चुप रहो..."

कैसा है ये मेरा देश? एक तरफ लोग मर रहे हैं और दूसरी तरफ इन्हीं मरे लोगों पर हमारे द्वारा चुने लोग सियासी चाल चल रहे हैं ये हमारे देश के नेता। सवाल उठता है कि क्या ये ही होती है राजनीति? कोई भी दीन-इमान नहीं। ये देश के राजनेता हैं, हमारे नेता हैं या फिर सिर्फ किसी पार्टी के। राजनीति मैं कोई अपना नहीं होता, सिर्फ होता है तो दल, उनकी अपनी पार्टी। अब तो पार्टी भी अपनी नहीं। उस पार्टी के लिए वो कुछ भी कर सकते हैं। कितने ही झूठे आरोप दूसरों पर लगा सकते हैं। जब से विश्वास मत मनमोहन सरकार ने हासिल किया है तभी से आरोपों का दौर चल निकला है। धमाकों के बाद तो ये और तेज होगया। सूरत अब भी बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। इसकी शायद किसी को परवाह नहीं। वो तो राजनीति करने में लगे हैं। हर दिन वहां से जिंदा बम मिल रहे हैं। सूरत में विस्फोटकों से भरी कार मिलने के बाद एक चैनल पर केंद्र सरकार के नुमाइंदे और राज्य सरकार के प्रवक्ता कुत्ते-बिल्ली की तरह एक घंटे तक लड़ते रहे। एक दूसरे पर आरोपों की झड़ी लगाते रहे। वैसे तो ये आए दिन चल ही रहा है लेकिन अब इसको आगे बढ़ाया बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुष्मा स्वराज ने। सुष्मा तो दो कदम आगे ही निकल गईं और केंद्र सरकार को इस घिनौनी वारदात का सरगना ही बता दिया।

सुष्मा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'जहां तक इन दो घटनाओं का सवाल है बैंगलोर और अहमदाबाद का मुझे इसमें एक साजिश की गंध आती है और ये बात मैंने कल भी कही थी एक पब्लिक मीटिंग में, और आज भी दोहराना चाहती हूं, कि मुझे इसमें एक मेजर कॉन्सपिरेसी की बू आती है कि ये कैश फोर वोट स्कैंडल से ध्यान बटाने के लिए और अमेरिका परस्ती के कारण जो मुस्लिम वोट इन से छिटक गया है उस को भाजापा का कृतिम भय दिखाकर अपने खेमें में लाने के लिए की गई साजिश है और मुझे लगता है कि इस साजिश का जल्दी ही पर्दाफाश होगा।' फिर आगे कहती हैं, 'दो राज्यों को टारगेट बनाया जाए और दोनों में एक तरह से ब्लास्ट हों और विश्वास मत के चार दिन बाद हों, विश्वास मत जीतने के 4 दिन के अंदर-अंदर दो राज्य सरकारें और दोनों राज्य बीजेपी शासित हों और दोनों जगह पर सीरियल ब्लास्ट हों, कहीं 18 तो कहीं 24 इसके कोई मायनें हैं कि नहीं और इसलिए जो मैंने बात कही है circumstancial avidence से प्रूव होती है।' तो ये है वक्तव्य बीजेपी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज के।

सुष्मा जी ने अपने ब्यान में केंद्र को उन 50 लोगों का क़ातिल करार दे दिया जिनकी इन ब्लास्ट में मौत हुई। क्या ये सच हो सकता है? किस आधार पर वो ये सब कह गईं इस राष्ट्र की जन्ता से? क्या उनके पास कोई भी ऐसे सबूत हैं जिससे ये केंद्र सरकार नंगी हो सके। इस देश की जनता ये जानना चाहती है। आप के माध्यम से बीजेपी ने पूरे दम के साथ इस खून खराबे की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर थोपी है। यदि आप के पास सबूत हैं और आप नहीं बता रहीं हैं तो फिर आप भी इन्हीं लोगों की श्रेणी में आजाती हैं। और यदि सबूत नहीं है तो चुप हो जाइए सुष्मा जी।।।।। यहां पर अभी सियासत का ये सियासी खेल मत खेलिए। सवाल तो ये भी उठता है कि क्या ऐसे काम आप और आपकी पार्टी ने किए हैं जब वो सत्ता में थी? या जब भी बीजेपी पर कोई भी मुसीबत आती है तो बीजेपी इस तरह से ही निपटती थी इन मुसीबतों से? शायद बीजेपी ही करती थी ऐसा। याद है देश को वो रथयात्रा जो कि एक विध्वंस पर जाकर खत्म हुई थी।

बिना किसी बात के दूसरों पर झूठे आरोप लगाना ही सियासत है। पर शवों पर राजनीति के इस खेल को खेल कर ये राजनीतिक पार्टियां देश की राजनीति को गरक में ले जा रही है। देखना तो अभी ये है कि ऐसे और कितने घिनौने खेल ये लोग हमारे साथ खेलते हैं और राजनीति में लिप्त 'ये' कितने नीचे जाते हैं।

आपका अपना
नीतीश राज

6 comments:

  1. सुषमा जी का दिमाग हिल गया है, छिछोरी बयानबाजी चालू आहे

    देश में अब एक नये दल की जरुरत है, जिसमें नेता न हों, प्रोफेशनल हों

    ReplyDelete
  2. Dost aapke blog ko padkar man to mera bhi kaha ke keh doon ki Shushma ka dimag chal gaya hain . Par neta vahi karta hain jisse janata ko bewakoof banaya ja sake.Jab tak hum khade hokar yeh na keh de ki hume bewakoof banana band kare. Jab tak inki ghinoni chale asar dikhati rahengi vo aise chale chaltey rahenge. aaj shayad jarrorat hain aam aawaj ko ak udgosh ka roop dene ki or keh dene ki bas karo hume apna bharat vapas chahiye tumse. Tab humara kauf in netao ko in kaamo se rokega. OR tab vapas kuch ache log sata main aakar humare desh ko raah dikhayenge. nahi chahiye aise neta jo aarakshan ke naam par,bhasha ke naam par,rajya ke naam par,hume aapas main lada rahe hain ..

    Kamal Mudgal

    ReplyDelete
  3. पहला कमेंट है कि प्रोफेशनल की जरूरत है,... अच्छा सुझाव है... लेकिन फिर हमारे देश की कीमत ना खत्म हो जाए, हमारे मर्म कहीं बिक ना जाएं। डर सिर्फ इस बात का ही है...।
    और कमल मुदगल भाई आपको बताता हूं कि जब ये सुषमा जी ने कहा उसके बाद वो प्रेस कॉन्फ्रेंस से ऐसे उठीं कि जैसे ओलंपिक में गोल्ड मैडल लेकर उठीं है...शर्म उनके चेहरे पर नहीं थी। कई रिपोर्टरों ने उनको रोका कि ये आप क्या कह रहीं है...क्या कोई पार्टी ऐसा कर सकती है...लेकिन उनको तो अपनी बात पूरी करनी थी... और सारी दुनिया जानती है कि वो एक अच्छी वक्ता हैं और जब वो बोलती हैं तो अच्छे-अच्छों की जुबान पर ताला चढ़ जाता है। देश कह रहा है कि मत खेलो हमसे... जनता भी ये ही कह रही है... अहमदाबाद में मुस्लिमों ने भी बढ़ चढ़कर घायलों की मदद की। ऐसा काफी समय बाद हुआ है...नहीं डर रहा वहां का मुस्लमान। मेरे देश के लोग समझ रहे हैं भाईचारे को। एक बात मैं अपने आर्टिकल में लिख नहीं रहा हूं वरना कहीं भी कुछ हो गया तो मेरे ऊपर सांप्रदायिक दंगे भड़काने का आरोप भी लग सकता है..। समझ तो हमारी है दोस्त, कि हमें लड़ना है या एकजुट 'होना' है...।

    ReplyDelete
  4. गलती तो हमारी ही हे हम ने इन नेताओ को सर पे चढा कर रखा हे, मेने कही पढा हे एक तावायफ़ की बेटी मुख्या मन्त्री बनती हे लोग उन्हे पुजते हे, भगवान का रुप मांनते हे, ओर वो तिरंगे को भी अपने पांव तले सरे आम रखती हे, वाह री जनता एक नाचने वाली की बेटी जो सब को पेर की नोकं रखती हे उसे ही पुजे, जब हंमी इन्हे सर पर बिठाये गे तो यह सब तो ओर ज्यादा करे गे ना.. अब बेब्कुफ़ो को बेबकुफ़ कोन बना सकता हे, हम जागे तभी बात बने....

    ReplyDelete
  5. कोई सी पार्टी देख लो बस आरोप लगाने है अकल से कोई किसी का रिशता नही है, बस बकवास करनी है ,चाहे लालू हो या सोनिया या हमारे तथाकथित ग्रह मंत्री . अब यह रोग भाजपा मे भी आना ही था ,
    ”हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा,
    बर्बाद गुलिस्ता करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था’
    लेकिन हमारे पास तो फ़ौज है जी उल्लुओ की गिद्धो की

    ReplyDelete
  6. नेता जब भी मुँह खोलेंगे, बस बुरा ही बोलेंगे।
    मरे हुए को रूपये की गड्डी से तौलेंगे

    ReplyDelete

पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”