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इस पात्र का नाम जैसे मैंने बताया जीवन है, इस का उल्लेख कक्षा सात के पाठ्यक्रम की समाजशास्त्र (भाग-१) नामक पुस्तक में किया गया है। इसमें छोटी सी कहानी दी हुई है, जो की काफी नैतिक है, कुछ इस तरह से है वो कहानी(सार में):----
जीवन के माता-पिता उसका दाखिला करवाने के लिए स्कूल जाते है। प्रधानाचार्य उनका प्रवेश फार्म भरते हैं बेटे का नाम पूछते हैं। “जीवन।” ’पिता का नाम?’ “अनवर रशीद”। ‘बच्चे का धर्म क्या है?’
‘कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं है कोई धर्म नहीं लिखिए’।
”जाति?” ‘इसकी भी आवश्यकता नहीं है’।‘जब ये बड़ा हो जाएगा और किसी धर्म को अपनाने की इच्छा जाहिर करेगा तो?’
अगर ऐसा होता है तो वह अपनी पसंद का धर्म अपना सकता है।‘
आप भी समझ गए होंगे कि किस बात पर ये बखेड़ा है। सिर्फ अंत के इन दो सवालों पर ही धर्म के ये ठेकेदार इस अध्याय को पाठ्यक्रम से हटवाना चाहते हैं। वहीं लेकिन ये सरकार भी अड़ी हुई है जिसने कि अब तक कोई भी फैसला नहीं लिया है। लेकिन पता नहीं इन नेताओं का कब थूक कर चाट लें।
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जबकि चैलेंज है ये मेरा राज ठाकरे को कि यदि वो मुंबई की बारिश की समस्या का हल ढूंढ ले तो जानें। लेकिन सारी मुंबई जानती है कि बरसात की समस्या ऐसी है कि जो किसी भी हाल में खत्म नहीं की जा सकती, इसलिए मुद्दे कुछ ऐसे उठाए जाएं जिसमें कुछ करना ना पड़े सिर्फ गुंड़ों को काम मिलता रहे क्योंकि खुद राज ठाकरे की सोच भी तो गुंड़ागर्दी वाली है। यदि इस समस्या का हल निकल जाए राज ठाकरे तो मुंबई का बच्चा-बच्चा मराठी बोलेगा सिर्फ तुम्हारी पार्टी मनसे ही नहीं।
अब तीसरी बात, क्या आडवाणी जैसे नेता को ये शोभा देता है कि वो किसी नेता को दलाल कहें। और वो भी उस जैसे नेता को जिसको कुछ दिन पहले आपने भाई कहा था। याने भाई का भाई क्या कहलाया? मतलब आप क्या कहलाए? खुद सोचिए। क्या आप को ये सब बातें शोभा देती हैं। मेरे हिसाब से तो नहीं।
वैसे नेताओं की जात ही कुछ ऐसी होती है कि जो देश के बारे में नहीं व्यक्ति विशेष के बारे में सोचते हैं। लेफ्ट को भाजापा फूटी आंखें नहीं सुहाती थी लेकिन अब लाल कंपनी भगवा के साथ हो चली है। वहीं दूसरी तरफ बुश को दुश्मन मानते हुए
माया के साथ चलने से भी कोई गुरेज नहीं। व्यक्ति विशेष की राजनीति छोड़ो देश के बारे में सोचो।
आपका अपना
नीतीश राज
नीतिश जी नेता कितने भही गिरे काम करे हमें या आपको उन्हें गोली मार देने का कोई अधिकार नही है.... आप यह समझ ले... आपकी भावना समान्नीय है लेकिन...
ReplyDeleteइन्हे गोली से उड़ा तो दें.......... पर यह नेता रक्तबीज हैं एक को मरोगे हज़ार कुर्सी झपटने पिल पड़ेंगे.............. किस किस को मरोगे गोली? सब हमारे आपके बीच से निकले हुए लोग हैं, नमूने हैं भारतीय समाज के, जैसे हांडी के चावल पकने का पता एक दाने से चल जाता है कुछ वैसे ही हिन्दुस्तानियों की महानता और नैतिकता का पता इन नेताओं और सरकारी अधिकारीयों को देखकर
ReplyDeleteगोली मार देनी चाहिये …नही……मार दीजिये
ReplyDelete:)
राजनेता आसमान से नहीं टपकते - वे आप और हम जैसे ही लोग होते हैं जो किस्मत की वजह से कुर्सी पर जा बैठते हैं। उन्हें गोली मारने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होने वाला क्योंकि आप १ को गोली मारोगे और १०,००० उसकी कुर्सी लपकने को तैयार बैठे हैं। साधारण आदमी की भाषा में आपको ये भी बता दूं कि आज भारत का हर आदमी अपने देश को भूल कर अपनी जेब क्यों भरने में लगा हुआ है - इसका मूल कारण है "भारतीयों में देशभक्ति की कमी"। और इस कमी का मूल कारण है "देशभक्ति का न सिखाया जाना"। हम लोग हिंदी-अंग्रेजी तो पढ़ लेते हैं लेकिन देशभक्ति के पाठ हमें कोई नहीं सिखाता। बच्चे के आसपास जब सारे वयस्क अपनी "इंपोर्टेड" चीज़ों को दिखलाने में गर्व महसूस करते हैं तो ऐसे में बच्चा क्या सीखेगा? नेताओं को गोली मारने से अच्छा है कि एक देशभक्ति की मुहिम चलाई जाये सारे देश में। सारे हिंदुस्तान को ये बतलाया जाये कि हम सब एक हैं, भारत बहुत तरक्की करेगा अगर हर बच्चा बड़ा होकर देश के लिये सोचेगा और काम करेगा। किसी भी विषय पर फैसला लेते समय ये देखें कि उसका देश पर क्या असर पड़ेगा, ऐसे माहौल में पैदा होने वाले राजनेता ही असली "लीडर" बनेंगे।
ReplyDeleteराजेश जी, अधिकार मांगा किसने है लेकिन यदि ये ही चलता रहा तो इसी देश का कोई लाल अधिकार छीन भी लेगा।
ReplyDeleteअनिल जी, आपने सही कहा कि राजनेता आसमान से नहीं टपकते और वैसे ही हमलोग भी आसमान से नहीं टपके। ये लोग नेता नहीं गुंडें हैं। दो दिन पहले भिंड में पूर्वमंत्री कांग्रेस के और वर्तमान भाजापा के मंत्री पागलों की तरह एक दूसरे पर लाठियां बरसा रहे थे। ये नेता हैं....नहीं...गुंडे...हैं। और आप की बात से मैं बिल्कुल इक्तफाक नहीं रखता कि देश को देशभक्त चाहिए। कतई नहीं। देश में बहुत देश भक्त हैं। पता नहीं आप की देशभक्त को लेकर क्या परिभाषा है? मुहिम राजनेता भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ होनी चाहिए।
जिसके रिकॉर्ड पर दाग लगा याने कानून उसे बाहर करे। हम उसे सहयोग और स्पोर्ट नहीं करेंगे। लेकिन उसके लिए हम लोगों को जिगरा चाहिए। तब एकजुट होने की बात आती है।