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शाम 6.49 के करीब पहला धमाका। मैं ऑफिस में अपनी सीट पर था जैसे ही सूचना मिली तो रिएक्शन ये ही था कि कहीं कल की कड़ी तो आज अहमदाबाद में नहीं जुड़ रही? फिर तो ये सिलसिला रुका नहीं। ऑफिस में अफरातफरी मच गई। एक के बाद एक खबर कि धमाकों की संख्या बढ़कर इतनी हो गई है। ये सीरियल ब्लास्ट है। मरने वालों और घायलों की संख्या घटती-बढ़ती रही। दिमाग इस बात को मानने से इंकार कर रहा था कि इतनी जगह पर धमाके होने के बाद भी मरने वालों और घायलों की संख्या इतनी कम कैसे है। जबकि ये ब्लास्ट जहां भी हुए थे सभी भीड़भाड़ वाले इलाके ही थे। साथ ही शनिवार होने की वजह से बाजारों में भीड़ भी ज्यादा होती है क्योंकि यहां पर शनिवार को साप्ताहिक बाजार भी लगते हैं। आतंकवादियों ने फिर से साइकिल का इस्तेमाल विस्फोटों में किया है।
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पहले भी आतंकवादियों के निशाने पर गुजरात रह चुका है। अक्षरधाम पर हुए आतंकवादी हमले को कौन भूल सकता है। लेकिन इतने कम समय में 17 धमाके वो भी 13 जगहों पर, ये अब तक का सबसे बड़ा सीरियल ब्लास्ट है। 13 जगहों पर धमाके, इस से साबित होता है कि आतंकवादियों ने कितने दिन पहले से ही होमवर्क करके अपने आप को पुख्ता कर रखा होगा, क्योंकि किसी भी जगह पर कोई भी चूक नहीं हुई। अपने में ही ये आतंकवादियों के लिए एक बड़ी सफलता कही जा सकती है और साथ ही केंद्र सरकार, राज्य सरकार और खुफिया विभाग की नाकामयाबी। इन धमाकों में 29 की मौत हो गई और 90 के करीब घायल हुए।
दो दिन से लगातार हो रहे धमाकों के बाद से इंटेलिजेंस विभाग पर सवाल उठने लगे हैं। एक के बाद एक राज्य में ऐसे धमाके होते रहेंगे तो इसे इस विभाग की विफलता और लापरवाही ही कहा जा सकता है। लेकिन केंद्र ने बताया कि तीन दिन पहले ही राज्य सरकार को इस के लिए चेताया जा चुका था। लेकिन राज्य सरकार ने इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया। वैसे केंद्र हर हफ्ते राज्य सरकारों को खुफिया रिपोर्ट भेजता है।
अहमदाबाद का मंजर कुछ बैंगलोर के मंजर जैसा ही था। लेकिन ये मंजर काफी भयानक था। जयपुर में भी ये मंजर कुछ इसी तरह का था। जयपुर में सात धमाकों में 63 लोगों की जान चली गई थी। अहमदाबाद के लिए सबसे सुकून की बात ये थी कि ये सारे धमाके उतने तीव्र नहीं थे वरना हालात और भी भयानक हो सकते थे। लेकिन इन धमाकों को जिस तरह से अंजाम दिया गया उससे साफ पता चलता है कि बैंगलोर और
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अपने पिछले आर्टिकल में मैंने लिखा था कि 'ब्लास्ट पर राजनीति, थू है इन पर...'। आज इन धमाकों ने अधिकतर राजनेताओं के मुंह पर ताला लगा दिया और आज वो ही अधिकारी मीडिया के सामने आए जिनके अधिकार क्षेत्र में ये आता है। एक-दो नेता राजनीति करने आए भी सामने तो मीडिया या यूं कहें कि लोगों ने भी उनको बोलने नहीं दिया। आज दोषारोपण तो हुआ, छींटाकंशी भी हुई पर छीछालेदार राजनीति नहीं हुई। कोई भी मरने वालों के शव पर राजनीति की गंदी चालें नहीं चल रहा था। अब देखना तो ये है कि रविवार का दिन इन धमाकों की भेंट ना चढ़े....।
आपका अपना
नीतीश राज
अरे रुक जा रे बंदे
ReplyDeletedesh ke kathit thekedaaron ko sarkaar giraane bachaane se fursat mile tab to bamaut marne waalon par ghadiyaali aansoo bahayen.badhai dumdaar kalam ki
ReplyDeleteआज भारत ही नहीं पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में आ चुका है। इस तरह का घिनौना काम करने वाले इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं। शर्म आती है जिस तरह से भारत में आतंकवादी हमलों में तेज़ी आई है और सुरक्षा तंत्र इसे रोक पाने में असमर्थ रहा है। दोष तो व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार का है। वैसे रही-सही कसर नेतागिरी पूरा कर देती है जो ऐसी घटनाओं का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करते हैं।
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