Tuesday, August 26, 2008

क्या ट्रॉफियों के ऊपर भारी पड़ेंगे ये पदक?

बीजिंग ओलंपिक 2008 तो हो गए। भारत ने तीन पदक जीतकर अपने लिए तो इतिहास भी रच दिया। पर एक सवाल यहां मेरे जहन में उठ रहा है। क्या एक पदक किसी ट्रॉफी के बराबर होता है या फिर ऊंचा या फिर....? क्या ये तीन पदक उन करोड़पति ट्रॉफी पर भारी पड़ पाएंगे? एक बार 1983 में ये हमें मिली जिस पर पूरे देश को नाज है। पर एक बार सपना दिखाकर कहीं छूट गई। पिछले साल एक बार और ऐसा कमाल हुआ और फिर से एक नई ट्रॉफी देश में आगई। पर अब, क्या ये तीन पदक उस भ्रम को तोड़ पाएंगे, जो आज की युवा पीढ़ी संजोए रखती है और साथ ही उनका परिवार, जो कि भेड़ चाल में आंख मूंदे चले जा रहे हैं। इस देश में क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है। एक-एक खिलाड़ी की कीमत करोड़ों में लग रही है, 45 दिन खेलकर के करोड़ों कमा जाते हैं। और वहीं दूसरी तरफ ओलंपिक में कामयाबी हासिल करने के बाद भी क्या वो इतना कमा पाएंगे जितना कि ये क्रिकेटर कमा जाते हैं।
भारत के लिए इस बार का ओलंपिक कुछ ज्यादा ही अहम रहा। तीन पदक भी मिले,108 साल के इतिहास में पहली बार तीन पदक(वैसे ओलंपिक को शुरू हुए 112 साल)। पहला व्यक्तिगत गोल्ड पदक अभिनव बिंद्रा के नाम, गोल्ड पाते हुए बेशक अभिनव बहुत सहज दिखे हों पर देश बिल्कुल सहज नहीं था। पहली बार किसी ने एकल प्रतियोगिता में पदक जीता था, वो भी गोल्ड मेडल। जहां भारत की झोली में स्वर्ण पदक सिर्फ हॉकी में ही आए, जिसको लाने का गौरव पूरी टीम को जाता है वहां पर एक खिलाड़ी के द्वारा लाया ये पदक हमारे लिए कहीं पर भी उन 8 गोल्ड मेडल से कम नहीं है।

मुक्केबाजी में पहली बार पदक मिला चाहे वो कांस्य ही क्यों ना हो। स्वर्ण का सपना तो टूट गया विजेंदर, अखिल और जितेंदर का, पर स्वर्णिम अक्षरों में नाम जरूर लिखवा लिया विजेंदर ने। बॉक्सिंग में पहली बार देश को कोई भी पदक हाथ लगा और पहली बार तीन खिलाड़ी क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे, अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रर्दशन।
1952 के बाद कुश्ती में पदक। सुशील कुमार से कोई इतनी उम्मीद नहीं लगाए बैठा था। लेकिन उसने अपना नाम भी के एन जाधव जी के साथ स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया।

सारा देश गौरवान्वित महसूस कर रहा है। पर क्या ये गौरव कुछ दिन तक ही रहेगा या फिर इसकी गूंज दूर तलक भी जाएगी, लंदन तक? क्या क्रिकेट का जो जुनून देश के सर चढ़कर बोलता है, वैसा ही जुनून इनका भी देश के सर चढ़कर बोलेगा? यदि सरकार नहीं सुधरी तो नहीं बोलेगा। विजेंदर को जिस होटल में ठहराने की बात थी वो भी जब कि वो देश का नाम रोशन करके आया हो। उससे तो नहीं लगता कि सरकार जागेगी। किसी भी क्रिकेटर को रुकवाया गया होता तो पता चलता साफ ठहरने से मना कर दिया होता। ये सरकार के नुमाइंदे दलाल है और दलाली के सिवा कुछ नहीं कर सकते।

बहुत कुछ तो युवाओं पर भी निर्भर करता है। अब ये उदाहरण ही ले लीजिए। रीएलिटी शो क्या शुरू हुए लाखों की तादाद में युवा वर्ग आगे आया। इनमें से आगे वो आए जो कि काम चोर थे, आलसी थे, निकम्मे थे या फिर दिन में ही जागते हुए ख्याली पुलाव बनाने वाले, मिनटों में अमीर बनने का सपना देखने वाले थे। अधिकतर युवाओं को ये भी नहीं पता था कि जिस जगह वो जा रहे हैं वहां पर ट्रैनिंग की भी जरूरत होती है। कुछ को तो मुगालते ने ही मार डाला था कि वो अमिताभ, अक्षय, शाहरुख या फिर आमिर, सलमान, सैफ की तरह दिखते हैं। वो ही हाल लड़कियों का था लेकिन ये बात खुद ऑर्गेनाइजरों ने भी मानी की जितनी लड़कियां वहां पर पहुंची थी उसमें अधिकतर सोच कर आईं थी और जानती थीं कि वो किस लिए यहां पर आई हैं। क्या ये युवा वर्ग तैयार है इतनी मेहनत के लिए जितनी की ये मुक्केबाज, पहलवान, शूटर और क्रिकेटर करते हैं। ये पहलवान तो एक कमरे में 12 एक साथ रहते हैं। अभिनव एक हॉल में 10-12 घंटे बंद रहकर शूटिंग की प्रैक्टिस किया करते थे। क्या इतना अभ्यास करने के लिए वो तैयार हैं तो फिर हम भी लंदन में करिश्मा दिखाने के लिए तैयार है।

ये सोती हुई सरकार यदि नहीं जागी तो देश के युवाओं की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। 1980 तक ओलंपिक में चीन पहले 10 देशों की सूची में नहीं आता था। और 2008 में चीन 51 गोल्ड के साथ नंबर 1 पर है और हमारा नंबर 50वां है। क्या हम ये सोच सकते हैं कि आने वाले 28 साल बाद हम पहले नंबर पर होंगे या फिर पहले 5 देशों में शुमार हो पाएंगे? क्या क्रिकेट को छोड़कर इन खेलों पर भी ध्यान दिया जाएगा?

आपका अपना
नीतीश राज
(अपनी राय के साथ-साथ इन दो सवालों के लिए आप वोट भी कर सकते हैं।)

7 comments:

  1. उम्मीद पर दुनिया कायम है-अच्छा चिंतन किया है.

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  2. बहुत अच्छा लिखा है आपने ..आशा तो है की आगे भी ऐसा ही होगा ..

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  3. आगे देखें क्या होता है। अति शीघ्र अत्यधिक परिवर्तन की उम्मीद मुझे नहीं है।

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  4. बहुत सार्थक सवाल उठाये हैं आपने....जिन्होंने पदक जीते हैं उन्हें देश में पहले कौन जानता था ये उनकी मेहनत का नतीजा ही है जिस पर आज हम सब नाज कर रहे हैं...हम उन्हें कितना अपने पलक पावड़ों पर बिठाते हैं ये आने वाला समय बताएगा...
    नीरज

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  5. बहुत अच्छा चिंतन है आपका ! शायद
    सब अच्छा ही होगा ! निराशा की बजाए
    आशा का दामन थामे और हम को प्रयत्न
    भी करते रहना होगा ! पर नीतिश जी आपके
    और हमारे हाथ में जितना है वो तो हम
    कर सकते हैं पर जिनको करना चाहिए वो
    कुछ करेंगे , मुझे शक है ! शुभकामनाएं !

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  6. क्रिकेट के अलावा और किसी खैल को सुविधायें कब मिलेगी कुछ कह ही नही सकते, सरकार को अपनी जेबे भरने से फुरसत तो मिले पहले।

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  7. हमारे खिलाडी तो दुनिया के सारे पदक ला सकते हे , लेकिन यह अधिकारी ओर नेता जो इन खिलाडियो का हक मार कर तानशाह बने फ़िरते हे, ओर अपने आप को अमीर कहते हे, इन खिलादियो का हक खा कर

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