Wednesday, August 27, 2008

महंगाई ने किया घर के बजट का बंटाधार-व्यंग्य

हाय रे महंगाई, मार डाला। अब ये हर जगह सुनाई देने लगा है। हर गृहणी को हर रोज सबसे बड़ी लड़ाई लड़नी पडती है मैन्यू के लिए, कि आखिरकार बनाएं क्या। कोई सब्जी सस्ती हो ही नहीं रही। कब तक दालों से काम चलाएं। पर वो भी तो आसमान छूने लगी हैं। राशन का बजट भी इस बार महंगाई को देखते हुए बढ़ाया था पर ये महंगाई दर की तरह काबू से बाहर। मियां जी की अलग आफत, रोज-रोज ऑफिस में नाना प्रकार के पकवान ले जाते थे पर अब चुनिंदा सब्जियों से गुजारा कर रहे हैं। नौबत ये आन पड़ी है कि दाल तक ऑफिस का सफर तय करने लगी है। पर दाल भी तो सस्ती कहां रह गई। अब सोचते हैं कि खाएं क्या?

महीने की शुरुआत में ही वेतन नौ दो ग्यारह। खुशी तो पहले ही दिन होती है फिर तो महीना खींचने की औपचारिक्ता ही शेष रह जाती है। शुरू के पांच दिन में ही पूरे महीना का हिसाब तय हो कर वेतन पर ग्रहण लग जाता है। पर देनदारों की लंबी सूची खत्म होने का नाम ही नहीं लेती है। फिर से वो ही जद्दोजहद, 25 दिन बाद का इंतजार।

अपने देश में ‘अतिथि देवो भव’ लेकिन महंगाई अभी कहलवा रही है ‘प्रभु अभी मतो भव’। इस महंगाई में ये हाल है कि ना बाबा ना अभी कुछ दिन तो ‘नो टू गेस्ट’। फिर भी गर मेहमान आजाएं तो और मुसीबत। क्या बनाएं क्या ना बनाएं। फिर मेहमाननवाजी भी तो करनी ही है।

कल मार्केट गया तो दो चार सब्जी लेने के बाद ही जेब में कुछ बचा नहीं। पर सोचा की हरी मिर्च ले लूं। पांच की हरी मिर्च देना।
‘ये क्या दे रहे हो भाई, कुछ डालो तो’। पलटकर बोला, ‘70 रु. किलो है’। ‘मैने पांच की मांगी है दो की नहीं’। ‘ये पांच की ही है बोलो तो सात की कर दूं-100 ग्राम’।
सोचा दो और देने पड़ेंगे, चलो अभी तो ये ही दो। अब चटनी भी महंगी हो गई।
पहले कहा जाता था कि गरीब अपना पेट “नमक की रोटी और प्याज” से भर लेता है। वो भी बेचारा अब प्याज और रोटी खाने के लिए तरस रहा है। आज प्याज की कीमत 18रु. किलो. है, जिसमें गिनती की 18 प्याज भी नही चढ़ती। अब गरीब खाए क्या? रोटी नमक के साथ खाए या फिर दाल के चार दाने डालकर नमकीन पानी के साथ। दिन का बीस रु. कमाने वाला क्या अफोर्ड कर पाएगा 18रु. किलो. की प्याज? आज जब सब्जी लेने जाओ तो दस बार सोचना पङता है कि जाने को तो चले जाएंगे लेकिन जा कर लाएंगे क्या? हमसे ज्यादा हाल तो उनका बुरा है जो दिन के ४०-५० रुपये ही कमा पाते हैं।

नोट-ऐसा नहीं की मेहमाननवाजी का आप मौका ही ना दें। भई, अतिथि देवो भव, मेहमान सराखों पर। सभी का स्वागत है।

आपका अपना
नीतीश राज

9 comments:

  1. बहुत सटीक मगर हम तो फिर भी आयेंगे ही!!!

    बहुत बढ़िया!!!!!!

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  2. अतिथि देवो भव, अभी मती भव! क्या पीड़ा है!

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  3. अभी तो फिर भी राहत है
    किलो पाव या ग्राम के
    हिसाब से तो खरीद रहे हो
    तब क्‍या करोगे
    जब पीस पीस का रेट
    पढ़ोगे और जिस दिन
    सब्जियों का शेयर बाजार
    खुलेगा, उसका एक अलग
    सेंसेक्‍स दिखेगा, चढ़ेगा
    एक एक सब्‍जी ऑनलाईन बिकेगी
    शेयर बाजार में शेयरों की तरह
    उस पर भी डिवीडेंड और बोनस
    मिला करेगा, एक ऑनलाईन
    ट्रेडिंग खाता अभी से खुलवा लो
    सब्‍जीफलडायरेक्‍टडॉटकाम पर।
    - अविनाश वाचस्‍पति

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  4. बहुत सही कह रहे हैं आप ..... इस महंगाई ने तो खुद का जीना हराम कर दिया है .....मेहमानों का स्वागत कहां से हो।

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  5. महंगाई तो सर चढ़ के बोल रही है जी :) सुंदर लेख .इसी पर मैंने भी लिखा था समय मिले तो एक नज़र इस पर भी डाले :)शुर्किया
    http://ranjanabhatia.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.html#comments

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  6. सुन्दर!
    मुझे अपनी किराना की कीमतें और मंहगाई वाली पोस्ट याद आ रही है!

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  7. बहुत तगडी है महंगाई की मार !
    अभी तो देखते जाईये , आगे आगे
    होता क्या ? महीने के आखिरी दिन
    चल रहें है ! पर क्या करे ? ४ दिन
    बाद तो तनख्वाह आ ही जायेगी ! :)
    फ़िर अगले महीने ..?

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  8. समीर जी आपका दिल खोलकर स्वागत है। पर आप आने वाले बनिये। साथ ही सभी का। निराशा नहीं होने देंगे।

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  9. हम लोग तो फ़िर भी गुजारा कर रहे हे, जर उन लोगो को देखो जो रोजाना मजदुरी करते हे रिकक्षा चला कर अपना ओर अपने परिवार का पेट भरते हे..
    धन्यवाद एक सच्चाई बताने के लिये

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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”