Monday, September 29, 2008

“बाटला के L-18 का सच, अर्द्धसत्य नहीं, पूर्ण सच है”

‘बाटला के एल-18 का सच, अर्द्धसत्य नहीं, पूर्ण सच है’। ये मैं नहीं कह रहा हूं ये वो तीन आतंकवादी कह रहे हैं जो कि एनकाउंटर के बाद से दक्षिण दिल्ली से पकड़े गए हैं। शकील, जिया और साकिब ये तीनों रो रहे हैं अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से रहम की जगह मौत मांग रहे हैं। ये पुलिस से भी मौत मांग रहे हैं। कस्टडी में जब भी इनको कोई पुलिसवाला दिख जाता है तभी ये रोना शुरू कर के गिड़गि़ड़ाते हुए उनसे अपने गुनाहों का वास्ता देते हुए सज़ा की भीख मांगते हैं। क्या आपने कभी आतंकवादियों को भीख मांगते हुए देखा है? शायद नहीं ही देखा होगा ये तो वो जालिम होते हैं जो कि औरों से भीख मंगवाते हैं। लेकिन आज ये खुद भीख मांग रहे हैं अपनी मौत की। दिन में रोते हैं, रात में रोते हैं, जमीन-दीवार पर सर मार-मार कर रोते हैं। लेकिन सच जो कि अर्द्धसत्य नहीं कि ये भीख उन्हें कोई भी नहीं दे सकता।
अभी कई बार पढ़ा कि लोग सवाल उठा रहे हैं कि एल-18 में जो एनकाउंटर हुआ वो फर्जी था। मैंने सबकी दलीलें सुनी हैं, साथ में ‘बड़े-बड़े’ लोगों की दलीलें भी सुनी हैं। दलीलें हैं हमने वहां पर आसपास के परिवार वालों से बातें की। जितने मुंह उतनी बातें। अब ये समझ में नहीं आता कि जब हर जगह से अलग-अलग कहानी सुनने को मिल रही हैं तो फिर ये कैसे कहा जा सकता है कि उन सारी कहानियों में से कोई एक भी सही है। फिर पुलिस के बयान को भी एक दलील मान कर सच माना जा सकता है।
हर कोई जानना चाहता है सच। ये सच या तो सैफ बता सकता है जो कि वहां से पकड़ा गया या फिर एक शख्स और है जो असलियत बता सकता है। कुछ का मानना है कि भई, सैफ को तो वहां लाया गया था उसे कैसे पता होगा। तो जवाब है, क्यों आंखों पर पट्टी बांध रखी थी क्या सैफ ने। चलो, मान लें कि सैफ को कुछ भी नहीं पता।
उस दूसरे शख्स को पूछते हैं कि भई, क्या हुआ था। वो हैं कांस्टेबल बलवंत। उस मुठभेड़ में गोली इस शख्स को भी लगी। एम्स ट्रामा सेंटर में इलाज चल रहा है। एक हाथ जो कि चोटिल हुआ वो बच पाया तो बहुत ही होगा। ये बात जो मैं बताने जा रहा हूं वो बलवंत ने किसी मीडियाकर्मी या फिर पुलिस-डॉक्टर को नहीं बताई है। ये बात उसने अपने साथ काम करने वाले एक साथी को बताई है वो भी सबके सामने नहीं बिल्कुल निजी तौर पर।
बलवंत ने अपने साथी के पूछने पर ये बताया कि पूरा घटनाक्रम कैसे-क्या हुआ बताया ही नहीं जा सकता लेकिन मोटा-मोटा क्या हुआ बता देता हूं। उन्होंने बोलना शुरू किया,
‘हम साहब(स्व.इंस्पेक्टर शर्मा) के साथ उपर गए। सेल्समैन बनें हमारे सहयोगी ने हमें कमरा-कमरे का नक्शा यानी समान कहां-कहां रखा है, हथियार दिखे कि नहीं और जो भी उसने देखा था, कम शब्दों में, सब बता दिया था। साहब आगे थे हम सब लोग पीछे, अपनी-अपनी जगह चुनते हुए, खड़े होते रहे, मैं साहब के साथ ही था। साहब ने जाते ही दरवाजे में ठोकर मारी और खोलने के लिए आवाज़ लगाई। लेकिन जब खोलने में देर होने लगी तो साहब ने दरवाजे में दो तीन ठोकरें और जड़ दीं साथ ही ‘जल्दी खोलो’ की आवाज़ भी लगाई। फिर क्या हुआ असल में समझ में नहीं आया, नहीं पता चला कि क्या हुआ। चीख चिल्लाहट के बीच गोलियां चलने लगी और उसके आगे कि तो तुम रोज ही पढ़ते रहते होगे’

तो ये थी बलवंत की अपने साथी से बातचीत। अब और तो शायद ही प्रमाण कोई दे सकता हो। फिर और भी बातें हुईं, वो कुछ महकमे की, कुछ घर परिवार की, कुछ स्व. शर्मा जी के परिवार की।
पुलिस ने एल-18 से जो चीजें बरामद की हैं उनमें से कई चीजें ऐसी हैं जो कि इन आतंकवादियों को ओवरस्मार्ट साबित करती हैं। 900 से ज्यादा फोटों उनके लैपटॉप से बरामद हुई हैं। इन तस्वीरों में ब्लास्ट की तस्वीरें हैं। कुछ वीडियों भी मिले हैं जो कि ब्लास्ट के तुरंत बाद के हैं। उन तस्वीरों में कुछ तो वो हैं जैसे कि मणिनगर में साइकिल की जिसमें कि शकील और जिया ने बम लगाया था। उन सभी कारों की तस्वीरें हो जो कि अहमदाबाद में उपयोग की गईं। बम और टाइमर कार के अंदर प्लांट करते हुए की तस्वीरें हैं। कार के अंदर बम रखा हुआ है, फोटो पर समय बता रहा है शाम के 5.45 और फिर दूसरी तस्वीर भी वहीं कि ब्लास्ट के 5 मिनट बाद की 6.25। साथ ही ऐसा करते हुए इनको लगता था कि पुलिस हो या स्थानीय लोग इन्हें मीडिया का समझेंगे कोई भी हाथ नहीं लगाएगा। इसके अलावा और क्या सबूत दें। और लीजिए सबूत। ये सब फोटो और वीडियो सीडी और मेल के साथ एटैच करके भेजी जाती थीं। देखिए हमने कितने अच्छे ढ़ंग से काम को अंजाम दिया है। कई-कई सिम और ब्लास्ट के बाद और पहले भी एक ही सिम पर कॉल किया गया।
जैसे ही पुलिस को टिप मिली थी इन लड़कों के बारे में जो कि एल-18 में रहते हैं तो उस दिन से ही इनका फोन सर्विलांस पर लग चुका था। पुलिस ने इनकी बातें सुनीं। इनके कारगुजारियों के किस्से भी सुने। लेकिन कभी भी बातचीत में इन्होंने हथियार के बार में जिक्र नहीं किया। ये ही कारण था कि स्व. इस्पेक्टर शर्मा बिना किसी लाइफ गार्ड के दरवाजा खटखटाने चले गए।
सब ये सोच जरूर रहे होंगे कि शकील, जिया और साकिब रो क्यों रहे थे। पुलिस की मार से या क्या कारण था। स्पेशल सेल ने उनको अहमदाबाद ब्लास्ट और बैंगलोर ब्लास्ट के साथ-साथ दिल्ली के दर्द की तस्वीरें भी दिखाईं हैं। इन तस्वीरों को देख कर वो अपने को माफ नहीं कर पा रहे हैं। अब वो बताते हैं कि उन्हें तो मुंबई के दंगों, बाबरी मस्जिद, गोधरा के दंगों की तस्वीरें दिखाई हैं। बोला गया उनको तकरीरें दी गईं हैं और कई न्यूज चैनलों की वो स्टोरी दिखाई गईं हैं जो कि ब्लास्ट के बाद किसी मुस्लिम परिवार पर कवर की गईं थी। वो बताते हैं कि हमें तो कभी रॉ सामान नहीं मिलता था। हम से कहा जाता कि ये सामान वहां रखकर आ जाना है। सिर्फ रखने का झंझट रहता था और वो भी पहले से ही तयशुदा रहता था कि कैसे-क्या करना हैं।
आधा सच जानकर ना जाने ये नौजवान क्यों बहक जाते हैं। पूर्ण सच की तलाश कठिन तो होती है पर नामुमकिन नहीं। लेकिन सच सच ही होता है उसमें से ना घटाया जा सकता है और ना ही उसमें कुछ जोड़ा जा सकता है। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आने के बाद कुछ सच और सामने आएंगे।

आपका अपना
नीतीश राज

15 comments:

  1. बड़ा ही अफसोसजनक..क्या कहा जाये. देखिये पोस्टमार्टम में क्या आता है मगर शर्मा जी तो नहीं ही आयेंगे. श्रृद्धांजलि!!

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  2. क्या कहे.. अर्धसत्य या पूर्णसत्य का.. पर हालत विकट है

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  3. Nitishji, aatankwadi kuchh tasveeren dekh kar itne vichlit ho jate hain ki nirdoshon ka khoon bahane ko tayyar ho jate hain aur baad men kuchh aur tasveeren dekh kar itna afshos karte hain ki rone lagte hain, khuda se khud ke liye mout mangne lagte hain, yah sab ghdiyali aanshu hain.

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  4. सच कहा, न जाने हम क्यूं सत्य को स्वीकार करने से डरते हैं। सिर्फ इसलिए आतंकवादियों के साथ सहानुभूति जताना कि वो एक समुदाय विषेश से हैं, सर्वथा गलत है। हमें आगे बढ़ कर सच कर स्वीकर करना ही होगा बजाय सवाल उठाने के।

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  5. दो दिन से छुट्टी पर था ओर आपकी दिल्ली में ही था ,शनिवार को एक ओर बम्ब ने एक १३ साल के बच्चे ओर एक नौजवान की जान ले ली .
    हमारे देश में जब कानून बना तब आतंकवाद जैसी कोई चीज़ नही थी ..इसलिए उसका कोई कानून नही है ?हमारे देश में आतंकवाद को अभी तक परिभाषित नही किया गया है जबकि दूसरे देशो में इसका प्रावधान है
    खुफिया तंत्र की कमजोरी
    ,राज्यों में तालमेल की कमी
    पुलिस में प्रशिक्षण की कमी
    सो काल्ड मानवाधिकार वाले या छद्म -धर्म-निरपेक्ष राजनीतक दल
    आतंकवाद के लिए कोई सख्त कानून नही...अमेरिका में ९-११ के बाद कम से कम आतंवाद पर प्रधानमंत्री ओर प्रेजिडेंट को पूरे अधिकार दे दिए जाते है ..ओर कोई भी राजनितिक दल इसमे अड़ंगा नही अडाता है यहाँ हा-ना की चिकल्लस चलती है फ़िर आग में रोटिया सेंकने का खेल .....
    परसों के दिल्ली ब्लास्ट के बाद
    जिस नौजवान की जान गई वो मुस्लिम है ,उसके पिता का कहना था आतंकवादियों को सड़क पे गोली मारनी चाहिए .....


    काश ऐसे विचार हर आदमी खुल कर करता!

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  6. मैं आप से पूरी तरह सहमत हूँ अनुराग जी, सचमुच आतंक वादियों को गोली मारी जाए...उन्हें फांसी दी जाए लेकिन बेकसूरों को नही, असली मुजरिमों को...बिना किसी सबूत के किसी बेक़सूर का इन्कौन्तर भी आतंकवाद है और मेरे ख्याल से उस से भी बड़ा आतंकवाद है, अगर ये साबित हो जाए तो इस में शामिल उन तमाम लोगों को गोली मार दी जाए....इन्साफ यही होगा...गोली उन्हें भी मारी जाए जो मासूम ईसाइयों को सरेआम कत्ल कर रहे हैं...फांसी उन्हें भी दी जाए...जो आजाद घूम रहे हैं...

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  7. उन लम्हों में जब इन युवाओं के भटकने की गुंजाईश रहती है तब उन्हें अपने समाज से सहारा मिलना चाहिए अफ़सोस वो सहारा नही है अब रोने बिलखने से क्या होगा?

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  8. डॉ अनुराग आप की सोच बिल्कुल सही है। अभी हाल में ही मैंने एक सीरीज शुरू की है कि हम क्या हैं soft nation या weak nation। इस सीरीज की दो कड़ी निकल चुकी हैं और बाकी की कड़ियों में मैं ये ही बताऊंगा कि हम क्या गलती अब भी कर रहे हैं आतंकवाद से लड़ने के लिए। दूसरे देश इस से कैसे निपटते हैं और हम इस से कैसे। वहीं हमारी राजनीति इस आतंकवाद के मुद्दे पर क्या कहती और करती है वोट की राजनीति इन सब पर तफसील से बात हैं। पहली कड़ी में भारत में सिख आतंकवाद के बाद की पहली जड़ और दूसरी कड़ी में रूस कैसे निपटा आतंकवाद से इन पर बात हो चुकी है। दो दिन के अंदर ही तीसरी कड़ी दे दूंगा उस पर काम चल रहा है थोड़ा सा रिसर्च बाकी रह गया है।

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  9. नीतिश जी आपकी सॉफ्ट और वीक नेसन वाली कडिया मैं भी बड़े ध्यान से पढ़ रहा हूँ और अगली के इंतजार में हूँ ! आप बहुत बढिया लिख रहे हैं ! उसके लिए आपको धन्यवाद ! और हालत मुझे तो बड़े विकट दिखाई पड़ रहे हैं !

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  10. बड़ी चिंतानाजनक स्थितियां है क्या कहा जा सकता है . आतंकवादियो की कोई जाति धर्म नही होता पकडे जाने पर दिखावटी रोना रोते है कहते कुछ है करते कुछ है . जानकारी देने के लिए आभार

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  11. आपकी ये पोस्ट प्रसून जी जेसे पत्रकारों की आँखे खोलेगी

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  12. आप ने तो नीति जी बिलकुल सच लिख दिया, लेकिन अब इन के रोने धोने से क्या लाभ....
    जो इतने लोग मर रहे हे, ओर कशमीर को नरक बना दिया ... इस की कसुर बार हमारी सरकार भी बहुत हद तक हे... जब आधा भारत मर जाये गा लोग एक दुसरे से नफ़रत करे गे तब कानुन बनेगा???

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  13. नीति‍श भाई, आपकी सारी कडि‍यॉं बेजोड़ और सच का आइना है। इस मुहि‍म को जारी रखें।

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  14. शहीदों की चिताओं पर अब हर बरस होंगे झमेले ....वतन पे मरने वालों का क्या यही अंजाम होगा

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  15. ये तो कोई दिमाग से खाली ही सोच सकता है कि बटला हाउस के एल 18 में मौजूद लोगों ने गोलियां नहीं बल्कि फूल बरसाए थे। लेकिन हमारे युवकों का इस तरह पथभ्रष्‍ठ हो जाना गहरी चिंता का विषय है और जब तक हम इसकी तह में नहीं जाएंगे तब तक बेकसूर लोग मारे जाते रहेंगे।...लेकिन जो लोग एल 18 में मारे गए पथभ्रष्‍ट युवकों की मौत पर चिल्‍ला रहें हैं उन्‍हें ये समझ लेना चाहिए कि गोली का जबाव गोली ही होता है। साथ ही अगर कोई किसी कौम को ही आतंकवादी सिद्ध करने की कोशिश करता है तो भी अलगाववादियों की ही श्रेणी में गिना जाना चाहिए।

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”