कहां जा रहे हैं आप लोग? जी, घर जा रहे हैं। घर? कहां रहते हैं आप लोग, यहां क्या काम के सिलसिले में आना हुआ था या काम करते हैं। जी, हम सभी यूपी के हैं और गोरखपुर जा रहे है। यहां काम करने के लिए आए थे, पर अब घर जा रहे हैं।
ये सुनने के बाद तुरंत सीन बदल जाता है। तकरीबन १०-१२ लड़के धुनाई करने लगते हैं चारों की। चारों कभी हाथ जोड़ते हैं कभी माफी मांगते हैं मुंबई में आने की, लेकिन वो लोग नहीं मानते। वो चारों इस बात का भी वास्ता देते हैं कि अब जो हम जा रहे हैं तो वापिस नहीं आएंगे। अपने और भाईयों से भी कह देंगे कि मुंबई से वापिस चले आओ, सभी को बोलेंगे कि मुंबई नहीं जाना है।
पर कोई इस बात से पिंघलने वाला नहीं था। मारा-पीटा गया सभी को मुर्गा बनाया गया काफी देर तक ये नाटक चलता रहा। इस बीच धर्मदेव को काफी चोट लग चुकी थी। वो तीनों उन से गुहार लगाने लगे कि हमें छोड़ दो नहीं तो इस की मौत हो जाएगी। लेकिन उन दरिंदों ने एक नहीं सुनी और उनको छोड़ने की जगह और यातना देने लगे।
धर्मदेव तो मर गया लेकिन उसके उन तीनों साथियों को पुलिस अपने साथ थाने ले गई। तीनों को बैठाकर रखा गया। एक दम से पूरे देश में जैसे कि इस खबर ने हड़कंप मचाना शुरू कर दिया। मायावती ने केंद्र से हस्ताक्षेप की मांग की औऱ मुआवजे का एलान भी कर दिया। वहीं मुलायम सिंह और अमर सिंह ने अपने-अपने पासे फेंक दिए। केंद्र ने अफरातफरी में महाराष्ट्र सरकार से इस हादसे की रिपोर्ट मांगी। तुरंत जवाब भेजा गया “ये कोई भी प्रांतीय या क्षेत्रवाद का मुद्दा नहीं है, सीट को लेकर दो गुटों में कहासुनी के बाद मारापीटी हुई और जिसमें एक की जान चली गई”।
क्या ये जवाब सच लगता है? दीवाली की रात को मुंबई में कौन सी ऐसी लोकल थी जिसमें कि इतने ज्यादा यात्री थे कि सीट को लेकर मार पिटाई हो गई? इतनी देर तक ये ड्रामा चलता रहा, तो कहां थी रेलवे पुलिस? इस सवालों को उठाते पर तभी हमें भी इस खबर को ‘टोन डाउन’ करने के लिए कहा गया। इसके पीछे सोच ये थी कि कहीं इन खबरों से कुछ चुनिंदा लोगों को तो फायदा होता है लेकिन नुकसान पूरे देश का होता है। तुरंत उत्तर भारतीय शब्द को हटा दिया गया। कहीं पर भी इस बात का जिक्र नहीं किया गया कि धर्मदेव कहां का रहने वाला है।
पर तभी खबर आई कि धर्मदेव के भाई को शव नहीं सौंपा गया और फिर उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया पुलिस के द्वारा। पहले की मार ही नहीं भूले थे उसके साथी और दोस्तों को इस अत्याचार ने और डरा दिया। दोस्तों और साथियों ने कह दिया कि इस से तो बेहतर है थोड़ा कम कमाएंगे लेकिन रहेंगे अपने मुल्क में। धर्मदेव के पिता ने २० लाख के मुआवजे की रकम लेने से मना कर दिया और कहा कि मैं ‘२० लाख देता हूं मुझे राज ठाकरे दे दो’। इस बात से पता चलता है कि उत्तर भारतीयों के मन में भी राज ठाकरे ने घृणा की राजनीति आखिरकार भर ही दी है। ये नफरत की आग सब झुलसा देगी। ये एक बाप की आह थी जो राज ठाकरे को कहीं का भी नहीं छोड़ेगी।
उसके एक साथी शिव ने तो रोते-रोते कह दिया कि वो सब इस हादसे के बाद वापस अपने ‘मुल्क’ चले जाएंगे। इस मुल्क शब्द ने मुझे थोड़ा झकझोर दिया। क्या मुंबई गैर मुल्क हो गया है?
धर्मदेव की मौत हो गई।
धर्मदेव तो चला गया पीछे छोड़ गया वो दहशत जो कि हर उत्तर भारतीय के मन में पैदा होगई है। हर उस गैर परांतीय के मन में एक अनजाना डर बैठा गई है उसकी मौत, जो कि शायद दूर होने के लिए काफी वक्त की दरकार करे।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
Friday, October 31, 2008
ये क्षेत्रवाद की आग है, जो राजनीतिक गलियारे से लेकर आम लोगों तक डर और नफरत का रूप ले चुकी है
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”
मैं इस मुद्दे पर आपकी प्रतिक्रिया और सूचना का इंतजार कर रहा था। मुल्क-गैर मुल्क वाली बात सकते में डालनेवाली बात है। हालात अच्छे नहीं हैं, इसका कोई समाधान नजर नहीं आता, राजनीतिक पार्टियॉं खुद को सुर्खियों में रखने के लिए अनाप-सनाप बक रहीं हैं। किसी की मंशा साफ नहीं है।
ReplyDeleteकल कया हो किसी को नही मालुम यह देश किस ओर जा रहा है किसी को नही पता ओर यह कमीने नेता अपनी अपनी रोटिय सेख रहै है.
ReplyDeleteजितेंद्र भगत जी, इसके एक हल के बारे में सोच रहा हूं कि क्या ऐसा किया जाए जिसके कारण ये घृणित राजनीति जल्द से जल्द खत्म हो। लेकिन उस पर रिसर्च वर्क चल रहा है, जैसे ही पूरा होता है मैं आपके सामने रख दूंगा।
ReplyDeleteघृणा एक जबरदस्त वोट खैंचू एलीमेण्ट है। इसका उत्तरोत्तर अधिकाधिक प्रयोग होगा। चुनाव आने दें।
ReplyDeleteचुनाव आयोग को चाहिए की फ़ौरन ऐसी राजनैतिक पार्टियों को चुनाव लड़ने की प्रक्रिया से निरस्त करे ..ऐसे तत्वों से अपराधी या असामाजिक तत्वों की तरह बर्ताव करे ...आर्थिक नुक्सान की भरपाई करे ..अथवा उसके ऐवेज में कड़ी सजा का प्रावधान हो....डंडा ओर कानून अगर सख्ती ओर सही तरीके से लागू किया जाए तो सब सीधे हो जायेंगे .पर नीयत होनी चाहिए ....मुझे दुःख यही है की मराठी बुद्दिजीवियों की इन सबके विरोध में कोई मजबूत आवाज सुनाई नही दे रही है....सबने अपने हिस्से की चुप्पी ओड ली है
ReplyDeleteHa ye sub band hona chayiee kyon ki....jismay hogi kabiliyet voh hoga us job ka hak dar.....or All India may sabhi ko.hai..job kerne ka hak......
ReplyDeleteSunil