Wednesday, July 2, 2008

खत्म हुई छुटिटयां...

आज की सुबह कुछ अलग ही लग रही थी। हमारी सोसाइटी का नजारा बदला-बदला सा था। सड़क पर स्कूल बसें दौड़ रही थी जो इस बात का सबूत थी कि बच्चों की छुट्टियां खत्म हुई, साथ ही, माता-पिता की भी। फिर शुरू हो गया नौनिहालों को वक्त पर तैयार करने का सिलसिला। कुछ तो इसे ड्यूटि की तरह ही लेते हैं। तरह –तरह की स्कूल यूनिफॉर्म में बच्चे आज दिख रहे थे। वैसे कई जगह स्कूल कल ही खुल गए लेकिन मेरे बेटे का स्कूल आज खुला। बीती छुट्टियों की तरह कल तक हम लेट ही सो कर उठे। बेटे को आगाह कर दिया था, बस, अब और लेट तक नहीं। देर तक सोने का कार्यक्रम खत्म। अब जल्दी सोना और जल्दी उठना। आस-पास में सुबह से ही बच्चों की आवाज़ें आ रही थी। कोई उठते हुए रोता, तो कोई उठने के बाद। किसी को नहाने में दिक्कत, तो किसी को खाने में परेशानी। जब बच्चे नीचे पहुंच रहे थे तो एक अलग तरह की रौनक उनमें थी, ‘चलो स्कूल चलें’ वाली बात। आज अधिक्तर माता-पिता को देखकर उड़न परी पीटी उषा या फिर मिल्खा सिंह की याद आ रही थी। कभी लगता की अभिभावक आगे हैं, तो कभी लगता कि बच्चों ने बाजी मार ली। छोटे से हाथ में बड़ी सी बोतल(पानी की) अपने से ज्यादा वजनी बैग और मटकते मटकते चले आते हैं स्कूल बस के इंतजार में। जब तक बस नहीं आती तब तक स्पोट पर मौजा ही मौजा। वैसे, मैं आप को बता दूं कि जहां मैं रहता हूं उस सोसाइटी में तकरीबन आस-पास या यूं कहें दूर के भी कुछ स्कूलों की बसें आती हैं। मेरा घर सोसाइटी गेट के बिल्कुल सामने है और दूसरा फ्लोर भी, तो नजारा बिल्कुल साफ दिखता है। सुबह बाल्कनी में खड़े होकर चाय की चुस्कियों के साथ ये सब, एक अलग अनुभूति देता है। कभी हमें भी हमारे माता-पिता ऐसे ही दौड़-दौड़ कर छोड़ने जाते होंगे। लेकिन लगता है कि वो हम से ज्यादा ऑर्गनाइज रहते थे। मैं किसी भी बच्चे के ग्रैंडपेरेंट को भागते हुए नहीं देखता, अब भी। वो अब भी ऑर्गनाइज है। शायद आज देर रात तक काम करना या फिर शिफ्ट में काम करना हमारी मजबूरी बन गयी है। जब बड़े बुजुर्ग सो कर उठने वाले होते हैं तब कई बार हम सोने की तैयारी करते हैं। हमने अपनी सहुलियतों के लिए लोन ही इतने ले रखे हैं कि उन्हें पूरा करने के लिए हमें ये सब करना भी पड़ता है। शायद हमने अपने पैर ज्यादा पसार दिए हैं। बेटे के आने पर पता चलेगा कि आज उसका दिन स्कूल में कैसा बीता।

आपका अपना,
नीतीश राज

3 comments:

  1. bhai bahut badhiya post. july ka mahina hai ab yah nara khoob yaad avega :skool chale ham"

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  2. सही है. अच्छा विवरण लिखा. बताईयेगा, कैसा रहा पहला दिन बेटे का/ :)

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  3. समीर लाल जी, आप को जरूर बताऊंगा कि बेटे का पहला दिन कैसा रहा। अभी कुछ और चीजों में उलझा हुआ हूं लेकिन उस पर लिखूंगा जरूर।

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पोस्ट पर आप अपनी राय रख सकते हैं बसर्ते कि उसकी भाषा से किसी को दिक्कत ना हो। आपकी राय अनमोल है, उन शब्दों की तरह जिनका कोईं भी मोल नहीं।

“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”