भारत ने 19 रन से बैंगलोर वन डे जीतकर सीरीज पर कब्जा कर लिया। लगातार 4 वन डे जीतकर भारत इस सीरीज में 4-0 से आगे हो गया। वैसे तो ये मैच भी डकवर्थ लुइस का शिकार हुआ लेकिन इस मैच में रोमांच अंत तक बरकरार रहा।
इंग्लैंड ने टॉस जीता, पहले गेंदबाजी का फैसला
बैंगलोर में छिटपुट बारिश तो एक-दो दिन से चल ही रही थी। इस बात का ध्यान में रखकर जब पीटरसन ने टॉस जीता तो पहले गेंदबाजी करने का फैसला लिया। कहीं ना कहीं ये दिमाग में जरूर रहा होगा कि यदि डकवर्थ लुइस नियम का इस्तेमाल इस मैच में हुआ तो बाद में खेलने वाली टीम को फायदा शायद जरूर हो। इस बार सहवाग के साथ सचिन ओपनिंग के लिए मैदान में उतरे। आठ महीने के बाद सचिन की वापसी के बाद पहले ही मैच में ओपनिंग कराने का फैसला ठीक नहीं लग रहा था। वैसा ही हुआ, सचिन को मात्र 11 रन के निजी स्कोर पर ब्रोड ने क्लीन बोल्ड कर दिया। लेकिन शुरूआत से ही सहवाग अपना बल्ला चला रहे थे और जब सचिन आउट हुए तो भारत का स्कोर था 38 रन और उसमे सहवाग के रन थे 26। गंभीर ने आते के साथ ही हाथ दिखाने शुरू किए। अभी टीम इंडिया के 14 ओवर में एक विकेट के नुकसान पर 82 रन ही बने थे कि बारिश ने मैच में बाधा डाल दी।
बारिश ने डाली मैच में बाधा
बारिश के साए में लग रहा था कि मैच पूरा होगा ही नहीं पर थोड़ी देर में ही बारिश रुक गई और फिर 44 ओवर का मैच कर दिया गया। पर मैदान पर थोड़ी देर बाद ही मैच शुरू होगया लेकिन अभी तक किसी को ये पता नहीं चल पा रहा था कि इस अंतरराष्ट्रीय मैच में पावरप्ले कितने ओवर का हो गया है। कई बार ये सामने आया कि 9,4 और 4 ओवर के रूप में पावरप्ले खेला जाएगा। पर जब तक ये साफ हो पाता तब तक तो 17 ओवर में भारत ने 1 विकेट के नुकसान पर 106 रन बना लिए थे। भारत के समय अनुसार रात 8.30 बजे अंपायरों ने पिच और मैदान का मुआयना किया और फिर ये फैसला लिया कि मैच 22 ओवर का होगा और भारत को अब मात्र 5 ओवर और शेष खेलने होंगे। लेकिन टारगेट में बदलाव आएगा जब कि डकवर्थ लुइस नियम लागू होगा। यदि भारत 22 ओवर में 5 विकेट तक 144 रन बनाता है तो इंग्लैंड को 181 रन बनाने होंगे 22 ओवर में।
भारत ने दिया 166 का लक्ष्य, डकवर्थ ने किया उसे 198
बारिश के बाद के खेल की शुरूआत ही सहवाग के छक्के के साथ हुई। गंभीर और सहवाग बढ़-बढ़ कर मारने लगे। सहवाग 9 चौकों और 3 छक्कों की मदद से 69 रन पर स्वान का शिकार बने। गंभीर का बखूबी साथ निभाने आए युवराज। दोनों ने मिलकर जल्दी स्कोर को बढ़ाना शुरू किया। गंभीर भी 40 के निजी स्कोर पर स्वान का शिकार बने। लेकिन अगली ही गेंद पर युवराज ने छक्का जड़कर गंभीर की कमी को पूरा किया। फिर धोनी ने पहली ही गेंद खेलते हुए छक्का जड़कर मैच मे मजा ला दिया। धोनी को पटेल ने 9 रन पर एक शानदार गेंद पर क्लीन बोल्ड कर दिया। मैच की आखरी गेंद बाकी थी और यूसुफ पठान इस एक गेंद के लिए आए थे। पठान ने छक्का जड़कर भारत का स्कोर 4 विकेट पर 166 पहुंचा दिया। पर डकवर्थ लुइस नियम लगकर इंग्लैंड के सामने जीत के लिए 198 की चुनौती थी।
इंग्लैंड के लिए करो या मरो
भारत जहां सोच रहा था कि यदि 160-170 का लक्ष्य इंग्लैंड को दिया गया तो उस लक्ष्य पर लड़ा जा सकता है। पर इंग्लैंड की रणनीति अलग ही थी। जहीर खान के पहले ओवर में सिर्फ 1 रन निकला। मुनाफ पटेल के पहले ओवर की दूसरी गेंद पर खतरनाक बोपारा का लाजवाब कैच ईशांत ने पकड़ा। फिर इंग्लैंड के बल्लेबाज जमकर और संभलकर खेलने लगे। एक समय तो लगने लगा कि बेल और शाह की जोड़ी जम गई है। दोनों खिलाड़ी अच्छा खेल रहे थे।
गंभीर से छूटा कैच
भारतीय खिलाड़ी पूरी कोशिश करने में लगे थे कि कैसे भी इन को आउट कर दें पर दोनों कोई भी मौका नहीं दे रहे थे। पर भज्जी की गेंद पर 8वें ओवर की तीसरी गेंद पर शाह का कैच उछला और गंभीर कैच को लपकने के लिए आगे बढ़े पर बॉल हाथ से निकलकर जमीन पर जा गिरी। भज्जी ने तुरंत कप्तान की तरफ मुड़ कर देखा जैसे कि शिकायत कर रहे हों कि देख लो मेरी तरफ से तो पूरी कोशिश थी पर गंभीर ने कैच छोड़ दिया। उस समय शाह 29 रन पर खेल रहे थे और इग्लैंड के रन थे 38। पर अगली ही गेंद पर बेल को भज्जी ने क्लीन बोल्ड कर दिया। फिर ईशांत ने अगले ओवर में पीटरसन को बोल्ड कर दिया अब लगा कि भारत की वापसी होने लगी है। पर अब फ्लिंटॉफ और शाह की जोड़ी को तोड़ने में भारत कामयाब नहीं हुआ। 17 वें ओवर तक दोनों बल्लेबाजों ने जहां पर चाहे वहां पर रन बटोरे। शाह का वो छूटा कैच भारत को महंगा पड़ने लग रहा था।
लगा भारत के हाथ से मैच गया, पर....
शाह और फ्लिंटॉफ ने जमकर सभी गेंदबाजों की धुनाई की। 17वें ओवर में इंग्लैंड ने आखिरी पावरप्ले लेने का फैसला किया। भारत की तरफ से जहीर खान को गेंद सौंपी गई। पावरप्ले के इस ओवर में कुल 4 रन निकले और एक कामयाबी भी मिली। खतरा बन चुके शाह को जहीर ने सचिन के हाथों कैच करवाकर भारत की मैच में वापसी करवा दी। अगले ही ओवर में फ्लिंटॉफ को ईशांत ने आउट कर दिया। भारत पावरप्ले को बहुत ही अच्छे ढंग से खेलने में कामयाब हुआ। जो खतरा बन रहे थे वो दोनों खिलाड़ी इस पावरप्ले में आउट होगए। अब लगा कि भारत मैच जीत जाएगा। इंग्लैंड के 18 ओवर के खत्म होने के बाद 145 पर पांच विकेट गिर चुके थे और उनको 24 गेंदों पर 54 रन बनाने थे। जहीर ने पटेल को 11 पर आउट किया और फिर मुनाफ ने अपने फालोथ्रू पर स्वान को रनआउट किया। अगली ही गेंद पर कोलिंगवुड को तेंदुलकर के हाथों लपकवाकर मुनाफ ने इंग्लैंड को आठवां झटका दिया। अब इंग्लैंड को 1 गेंद पर 20 रन जीत के लिए चाहिए थे। मुनाफ ने अंतिम गेंद पर रन ना देकर भारत को 19 रन से जीत दिला दी। सहवाग की शानदार पारी के लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच और बाइक दी गई। इस बार सहवाग ने मैदान में बाइक को घुमाया ना कि धोनी ने। पर इस मैच में युवी ने इंग्लैंड के खिलाफ सबसे ज्यादा छक्के मारने वाले सौरव गांगुली का रिकॉर्ड तोड़ दिया। युवी ने 26 मैच में 23 छक्के जमाए।
आपका अपना
नीतीश राज
"MY DREAMS" मेरे सपने मेरे अपने हैं, इनका कोई मोल है या नहीं, नहीं जानता, लेकिन इनकी अहमियत को सलाम करने वाले हर दिल में मेरी ही सांस बसती है..मेरे सपनों को समझने वाले वो, मेरे अपने हैं..वो सपने भी तो, मेरे अपने ही हैं...
Monday, November 24, 2008
Friday, November 21, 2008
डकवर्थ लुईस नियम ने कम किया जीत का मजा
क्रिकेट में क्या कभी बाद में बैटिंग करने वाली टीम विकेट की जगह रनों से जीतती है। जी हां, जब भी कभी डकवर्थ लुइस नियम लागू होता है तब ऐसा ही होता है। डकवर्थ लुइस नियम है क्या? शायद ही कुछ को पता हो। डकवर्थ और लुइस थे जिन्होंने इस नियम को बनाया था। डकवर्थ लुइस वो नियम है जब कभी मैच किसी कारणवश पूरा नहीं हो पाता या कि कोई बाधा आजाती है तो इसका इस्तेमाल किया जाता है। जो भी टीम पहले खेलती है उससे मिले लक्ष्य को एक फार्मूल में डाल दिया जाता है जो कि कंप्यूटर पर पहले से सेव होता है(जैसे कि जन्मपत्री के लिए करते हैं हम, कंप्यूटर पर पहले से ही सोफ्टवेयर डला होता है बस आंकड़े भरने होते हैं)। इस नियम के अंतर्गत 15 ओवर का खेल होना जरूरी है। फिर 16 ओवर से लेकर पूरे ओवर तक के बार(BAR) सामने आ जाते हैं। उनमें हर ओवर के हिसाब से विकेट और रन का लक्ष्य दिया होता है साथ ही यदि इतने ओवर तक बाद में खेलने वाली टीम के ५ विकेट गिरते हैं तो उनके रन निर्धारित रनों से ज्यादा होने चाहिए। और ये कागज स्कोरर, दोनों टीमों के कप्तान और या यूं कहें कि हर खिलाड़ी को इस आंकड़ों के बारे में जानकारी होती है। और सभी खिलाड़ी इसी को ध्यान में रखकर खेलते हैं।
ना ही कोई खिलाड़ी और ना ही देखने वाले इस तरह के फैसले से खुश होते हैं। फिर क्या है कि आईसीसी अपने इन नियमों में फेरबदल क्यों नहीं करती। कोई भी टीम शायद ये नहीं चाहती होगी कि कभी भी इस तरह से फैसला हो।
यदि भारत और इंग्लैंड के बीच हुए तीसरे वन डे की बात करें तो,
पहली बात- मैच 45 मिनट की देरी से शुरू हुआ। तो उसका खामियाजा खेल पर क्यों?
दूसरी बात- जब मैच 45 मिनट की देरी से शुरू हुआ तो सिर्फ 2 ओवर कम क्यों किए गए।
तीसरी बात- जब मैच 45 मिनट देरी से शुरू हुआ तो लंच के समय में कमी क्यों नहीं की गई। जब कि नियम ये है कि 60 मिनट का खेल यदि बाधित होता है तो फिर दोनों कप्तानों की सलाह पर ये 10 मिनट का लंच टाइम कम किया जाता है। पर 15 मिनट यदि खेल कम बाधित होता है तो उसके लिए नियम कुछ नहीं कहते।
चौथी बात- धोनी-पीटरसन ने ये कहा कि उन्हें पता था कि अंत में मैच का निर्णय डकवर्थ से ही पूरा होगा। तो क्या आईसीसी और अंपायर पैनल को समय को आधार बनाकर नहीं चलना चाहिए था जिसके कारण मैच पूरा हो सके।
भारत को इस मैच में जीत तो मिल गई लेकिन क्या इस जीत से हम अपने आपको उस तरह से जोड़ पा रहे हैं जिस तरह हम पिछले दो मैचों की जीत से अपने को जोड़ पाए थे। शायद नहीं। मैच पर लाखों लोगों की निगाह टिकी हुई थी लेकिन शायद ही कोई चाहता होगा कि मैच का अंत कुछ इस तरह से हो। सब चाहते थे कि भारत जीते पर पूरे तरीके से, अंत तक खेलते हुए।
अंत तक मैच फंसा हुआ था। भारत को जीत के लिए 9 ओवर में 43 रन चाहिए थे। भारत की रन रेट वैसे इंग्लैंड से ऊपर चल रही थी। लेकिन भारत ने अपने 5 क्रीम प्लेयर खो दिए थे। यदि धोनी और यूसुफ में से कोई भी आउट हो जाता तो 241 का स्कोर ही पहाड़ लगने लगता। या दो विकेट जल्दी निकल जाते और तब मैच बाधित होता तो भी मैच भारत के हाथ से निकल जाता। पर ये सब तब है जब ऐसा होता तो पर अभी सच ये है कि भारत 3-0 से सीरीज में आगे है।
3-0 से आगे भारत
इंग्लैंड ने टॉस जीता और इस बार पहले खुद बल्लेबाजी करने का फैसला किया। इस बार नीचे जमकर खेल रहे बोपारा से ओपनिंग कराई गई। इंग्लैंड का ये तुरुप का पत्ता इस बार काम भी कर गया और पहले विकेट की साझेदारी 79 रन की हुई जब कि बेल को मुनाफ ने धोनी के हाथों विकेट के पीछे कैच करवाया जब कि बेल 46 रन के निजी स्कोर पर खेल रहे थे। कप्तान ने अपने को इस बार तीसरे नंबर पर उतारा और लगा कि इंग्लैंड की इस मैच को लेकर नई रणनीति शायद कारगार हो जाए पर फिर भज्जी ने पीटरसन को 13 के स्कोर पर पवैलियन की राह दिखा दी। धोनी ने कमाल की स्टंपिंग का परिचय देते हुए कोलिंगवुड को आउट किया। पर शायद बोपारा ये बात भूल गए कि इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपरों में से एक धोनी के सामने क्रीज से पैर बाहर निकालने का मतलब सिर्फ और सिर्फ पवैलियन की राह होती है। 8 चौके की मदद से बोपारा ने 60 रन बनाए। धोनी ने इन दो स्टेंपिंग से दुनिया के उभरते हुए कीपरों को ये बताया कि आखिरकर कीपरिंग की कैसे जाती है। फ्लिंटॉफ और शाह के आने से लगा कि शायद इंग्लैंड बड़ा स्कोर खड़ा करने में कामयाब हो जाएगा पर भारत के स्पिनरों ने इन बल्लेबाजों की एक नहीं चलने दी। 48.4 गेंद पर भारत के सामने 241 रन का लक्ष्य रखकर इंग्लैंड की पूरी टीम पवैलियन लौट चुकी थी। हरभजन सिंह ने 3 विकेट लिए मुनाफ-ईशांत को 2-2 विकेट मिले।
भारत के दिमाग में डकवर्थ का ख्याल शुरूआत से ही था। पर भारत के दो विकेट 34 रन पर गिर गए। गंभीर(14) और रैना(1) कानपुर में बिना कमाल दिखाए ही सस्ते में लौट गए। पर दूसरी तरफ सहवाग टीम के स्कोर को बढ़ाते रहे। फिर रोहित शर्मा के साथ मिलकर भारत के स्कोर को 100 के ऊपर तक पहुंचाया और फिर रोहित को स्वान ने आउट किया। फिर वीरु का साथ निभाने आए पिछले दो मैचों के हीरो युवराज सिंह और अपने हाथ दिखाए। बाद में खेलने उतरी भारत को पिच से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। तभी सहवाग 68 के निजी स्कोर पर फ्लिंटॉफ का शिकार बन गए। सहवाग ने 76 गेंदों पर 8 चौक और 1 छक्के की मदद से 68 की पारी खेली। धोनी और यूसुफ पठान ने अच्छा खेल दिखाते हुए भारत का स्कोर 40 ओवर में 198 रन बना लिए थे जब मैच खराब रोशनी के कारण रोक देना पड़ा और भारत 16 रन से जीत गया।
पर सच ये है कि भारत ने ये मैच जीत लिया पर इस फैसले के कारण जीत का वो मजा आना था वो नहीं आया जिसके हम हकदार थे।
आपका अपना
नीतीश राज
ना ही कोई खिलाड़ी और ना ही देखने वाले इस तरह के फैसले से खुश होते हैं। फिर क्या है कि आईसीसी अपने इन नियमों में फेरबदल क्यों नहीं करती। कोई भी टीम शायद ये नहीं चाहती होगी कि कभी भी इस तरह से फैसला हो।
यदि भारत और इंग्लैंड के बीच हुए तीसरे वन डे की बात करें तो,
पहली बात- मैच 45 मिनट की देरी से शुरू हुआ। तो उसका खामियाजा खेल पर क्यों?
दूसरी बात- जब मैच 45 मिनट की देरी से शुरू हुआ तो सिर्फ 2 ओवर कम क्यों किए गए।
तीसरी बात- जब मैच 45 मिनट देरी से शुरू हुआ तो लंच के समय में कमी क्यों नहीं की गई। जब कि नियम ये है कि 60 मिनट का खेल यदि बाधित होता है तो फिर दोनों कप्तानों की सलाह पर ये 10 मिनट का लंच टाइम कम किया जाता है। पर 15 मिनट यदि खेल कम बाधित होता है तो उसके लिए नियम कुछ नहीं कहते।
चौथी बात- धोनी-पीटरसन ने ये कहा कि उन्हें पता था कि अंत में मैच का निर्णय डकवर्थ से ही पूरा होगा। तो क्या आईसीसी और अंपायर पैनल को समय को आधार बनाकर नहीं चलना चाहिए था जिसके कारण मैच पूरा हो सके।
भारत को इस मैच में जीत तो मिल गई लेकिन क्या इस जीत से हम अपने आपको उस तरह से जोड़ पा रहे हैं जिस तरह हम पिछले दो मैचों की जीत से अपने को जोड़ पाए थे। शायद नहीं। मैच पर लाखों लोगों की निगाह टिकी हुई थी लेकिन शायद ही कोई चाहता होगा कि मैच का अंत कुछ इस तरह से हो। सब चाहते थे कि भारत जीते पर पूरे तरीके से, अंत तक खेलते हुए।
अंत तक मैच फंसा हुआ था। भारत को जीत के लिए 9 ओवर में 43 रन चाहिए थे। भारत की रन रेट वैसे इंग्लैंड से ऊपर चल रही थी। लेकिन भारत ने अपने 5 क्रीम प्लेयर खो दिए थे। यदि धोनी और यूसुफ में से कोई भी आउट हो जाता तो 241 का स्कोर ही पहाड़ लगने लगता। या दो विकेट जल्दी निकल जाते और तब मैच बाधित होता तो भी मैच भारत के हाथ से निकल जाता। पर ये सब तब है जब ऐसा होता तो पर अभी सच ये है कि भारत 3-0 से सीरीज में आगे है।
3-0 से आगे भारत
इंग्लैंड ने टॉस जीता और इस बार पहले खुद बल्लेबाजी करने का फैसला किया। इस बार नीचे जमकर खेल रहे बोपारा से ओपनिंग कराई गई। इंग्लैंड का ये तुरुप का पत्ता इस बार काम भी कर गया और पहले विकेट की साझेदारी 79 रन की हुई जब कि बेल को मुनाफ ने धोनी के हाथों विकेट के पीछे कैच करवाया जब कि बेल 46 रन के निजी स्कोर पर खेल रहे थे। कप्तान ने अपने को इस बार तीसरे नंबर पर उतारा और लगा कि इंग्लैंड की इस मैच को लेकर नई रणनीति शायद कारगार हो जाए पर फिर भज्जी ने पीटरसन को 13 के स्कोर पर पवैलियन की राह दिखा दी। धोनी ने कमाल की स्टंपिंग का परिचय देते हुए कोलिंगवुड को आउट किया। पर शायद बोपारा ये बात भूल गए कि इस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपरों में से एक धोनी के सामने क्रीज से पैर बाहर निकालने का मतलब सिर्फ और सिर्फ पवैलियन की राह होती है। 8 चौके की मदद से बोपारा ने 60 रन बनाए। धोनी ने इन दो स्टेंपिंग से दुनिया के उभरते हुए कीपरों को ये बताया कि आखिरकर कीपरिंग की कैसे जाती है। फ्लिंटॉफ और शाह के आने से लगा कि शायद इंग्लैंड बड़ा स्कोर खड़ा करने में कामयाब हो जाएगा पर भारत के स्पिनरों ने इन बल्लेबाजों की एक नहीं चलने दी। 48.4 गेंद पर भारत के सामने 241 रन का लक्ष्य रखकर इंग्लैंड की पूरी टीम पवैलियन लौट चुकी थी। हरभजन सिंह ने 3 विकेट लिए मुनाफ-ईशांत को 2-2 विकेट मिले।
भारत के दिमाग में डकवर्थ का ख्याल शुरूआत से ही था। पर भारत के दो विकेट 34 रन पर गिर गए। गंभीर(14) और रैना(1) कानपुर में बिना कमाल दिखाए ही सस्ते में लौट गए। पर दूसरी तरफ सहवाग टीम के स्कोर को बढ़ाते रहे। फिर रोहित शर्मा के साथ मिलकर भारत के स्कोर को 100 के ऊपर तक पहुंचाया और फिर रोहित को स्वान ने आउट किया। फिर वीरु का साथ निभाने आए पिछले दो मैचों के हीरो युवराज सिंह और अपने हाथ दिखाए। बाद में खेलने उतरी भारत को पिच से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। तभी सहवाग 68 के निजी स्कोर पर फ्लिंटॉफ का शिकार बन गए। सहवाग ने 76 गेंदों पर 8 चौक और 1 छक्के की मदद से 68 की पारी खेली। धोनी और यूसुफ पठान ने अच्छा खेल दिखाते हुए भारत का स्कोर 40 ओवर में 198 रन बना लिए थे जब मैच खराब रोशनी के कारण रोक देना पड़ा और भारत 16 रन से जीत गया।
पर सच ये है कि भारत ने ये मैच जीत लिया पर इस फैसले के कारण जीत का वो मजा आना था वो नहीं आया जिसके हम हकदार थे।
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नीतीश राज
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Thursday, November 20, 2008
‘लिफ्ट याने मदद, पर ऐसी घटना से लगता है ना करो मदद’
ऑफिस की भागदौड़ के बाद जब हम ऑफिस से निकले तो रात के ११ बजने को थे। वैसे भी शाम को कुछ काम और काम से बड़ा उसको सही ढंग से ऑनएयर करने का प्रेशर कुछ ज्यादा ही रहता है। मैं और मेरे सहयोगी एक साथ हम नीचे उतरे सोचा कि चलो कहीं चलकर कुछ खा लें, फिर दोनों घर की तरफ रुखस्त हों। वैसे भी हम दोनों के रास्ते जुदा हैं एक पूर्व रहता है और दूसरा पश्चिम।
सहयोगी ने ऑफर किया कि चलो पहाड़गंज में एक अच्छा होटल है चलो वहीं चलकर कुछ खा पी लेते हैं, और फिर वो मुझे वापिस ऑफिस छोड़ कर घर चले जाएंगे। भूख के कारण मुझे भी ये फैसला उचित लगा। दोनों की हालत लगभगा एक जैसी थी, दोनों ने जल्दी-जल्दी ड्रिंक और खाना खत्म किया और फिर दोनों घर की तरफ निकल लिए।
अगले दिन जब ऑफिस पहुंचे तो फिर काम में हम दोनों जुट चुके थे। बीच में एक ख़बर आई कि लिफ्ट के बहाने दो लड़कियों ने एक आदमी को हजारों का नहीं लाखों का चूना लगा दिया। पैसे, घड़ी, सोने की चेन, सोने की दो अंगूठी, कार सब लेकर गायब होगई। अब वो आदमी पुलिस के धक्के खा रहा था। मेरा सहयोगी कुछ देर तक अपने दोनों हाथ सर के पीछे करके बैठ गया। मैंने पूछा क्या हुआ। वो खबर की तरफ ज्यादा मुखातिब था, मेरी बात शायद उसने ठीक से सुनी नहीं। मैंने दोबारा पूछा। उसने बताया कि ब्रेक पर बताऊंगा।
ब्रेक में उसने बताया कि कल जब वो मुझे छोड़ कर घर जा रहा था तो दो लड़कियों ने उससे भी लिफ्ट मांगी थी। उसने सोचा कि चलो सलवार सूट में सीधी-साधी लड़कियां हैं। उन दोनों लड़कियों को भी वहीं तक जाना था जहां पर मेरे सहयोगी को जाना था। दोनों को लिफ्ट दे दी, यूं ही तीनों में आपस में बात होने लगी। फिर एक लड़की ने पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। मेरे सहयोगी ने हां में सर हिलाते हुए जवाब के साथ सवाल पूछ लिया कि और आप लोगों ने? दोनों ने ना में सर हिला दिया। फिर लड़कियों ने एक रेस्त्रां में जा कर कुछ खाने की बात कही। सहयोगी को उस रेस्त्रां की पूरी हिस्ट्री पता थी उस को समझने में देर नहीं लगी कि वो शायद किसी जाल में फंसता जा रहा है। क्योंकि उस जगह पर कॉर्ल गर्ल और शराब दोनों देर रात तक आसानी से मुहैया होते हैं।
अब मेरे सहयोगी ने अपना पीछा उन दोनों से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी और फिर पता चली वो असलियत जिस के लिए मेरे सहयोगी ने अपने आप को तैयार कर लिया था। यदि आप खाना नहीं खा सकते तो दो-दो ड्रिंक ही कर लीजिए। हमें आपकी मनपसंद जगह पर भी जाने से एतराज नहीं हैं। हमसे सस्ते रेट आपको नहीं मिलेंगे। यदि आपके पास जगह नहीं है तो हमारे पास है लेकिन उसका एक्सट्रा लगेगा, पर आपके लिए हम उसमें भी डिस्काउंट करवा देंगे। यदि पैसे कम है तो आप अपने दोस्तों को भी बुला सकते हैं हम उन्हें भी सर्विस दे देंगे पर दाम फिक्स हैं। यदि कहीं नहीं जाना तो हम अपनी सर्विस आपको आपकी कार में भी दे सकते हैं। लंबी और बड़ी गाड़ी में हमको भी दिक्कत नहीं होगी।
मेरे सहयोगी ने दोनों को बड़े ही प्यार से बहला फुसलाकर वहां से चलता किया पर उसको एक काम जरूर करना पड़ा कि जहां से उनको बैठाया था वहां पर वापस छोड़ना पड़ा। क्योंकि पुलिस की धमकी से मेरा दोस्त खुद फंस सकता था और लड़कियों की एक आवाज से सहयोगी अस्पताल और हवालात दोनों जगह बड़े ही आराम से घूम कर आसकता था। सच मेरे सहयोगी ने बहुत ही अक्लमंदी का परिचय देते हुए दोनों से पीछा छुड़ाया।
बाद में उसने बताया कि, वो इन सब बातों के दौरान सिर्फ उन दोनों लड़कियों की शक्ल देख रहा था। और सोच रहा था कि क्यों उस समय भगवान ने ये अक्ल दे दी कि भली समझकर लिफ्ट दे दी। सभी राहगीरों पर से उठते अपने विश्वास को अपने अंदर कहीं टूटता हुआ महसूस कर रहा था। और शायद कहीं किसी जगह छोटे से कोने में ये सच भी हमारे अंदर पनप रहा है।
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नीतीश राज
सहयोगी ने ऑफर किया कि चलो पहाड़गंज में एक अच्छा होटल है चलो वहीं चलकर कुछ खा पी लेते हैं, और फिर वो मुझे वापिस ऑफिस छोड़ कर घर चले जाएंगे। भूख के कारण मुझे भी ये फैसला उचित लगा। दोनों की हालत लगभगा एक जैसी थी, दोनों ने जल्दी-जल्दी ड्रिंक और खाना खत्म किया और फिर दोनों घर की तरफ निकल लिए।
अगले दिन जब ऑफिस पहुंचे तो फिर काम में हम दोनों जुट चुके थे। बीच में एक ख़बर आई कि लिफ्ट के बहाने दो लड़कियों ने एक आदमी को हजारों का नहीं लाखों का चूना लगा दिया। पैसे, घड़ी, सोने की चेन, सोने की दो अंगूठी, कार सब लेकर गायब होगई। अब वो आदमी पुलिस के धक्के खा रहा था। मेरा सहयोगी कुछ देर तक अपने दोनों हाथ सर के पीछे करके बैठ गया। मैंने पूछा क्या हुआ। वो खबर की तरफ ज्यादा मुखातिब था, मेरी बात शायद उसने ठीक से सुनी नहीं। मैंने दोबारा पूछा। उसने बताया कि ब्रेक पर बताऊंगा।
ब्रेक में उसने बताया कि कल जब वो मुझे छोड़ कर घर जा रहा था तो दो लड़कियों ने उससे भी लिफ्ट मांगी थी। उसने सोचा कि चलो सलवार सूट में सीधी-साधी लड़कियां हैं। उन दोनों लड़कियों को भी वहीं तक जाना था जहां पर मेरे सहयोगी को जाना था। दोनों को लिफ्ट दे दी, यूं ही तीनों में आपस में बात होने लगी। फिर एक लड़की ने पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। मेरे सहयोगी ने हां में सर हिलाते हुए जवाब के साथ सवाल पूछ लिया कि और आप लोगों ने? दोनों ने ना में सर हिला दिया। फिर लड़कियों ने एक रेस्त्रां में जा कर कुछ खाने की बात कही। सहयोगी को उस रेस्त्रां की पूरी हिस्ट्री पता थी उस को समझने में देर नहीं लगी कि वो शायद किसी जाल में फंसता जा रहा है। क्योंकि उस जगह पर कॉर्ल गर्ल और शराब दोनों देर रात तक आसानी से मुहैया होते हैं।
अब मेरे सहयोगी ने अपना पीछा उन दोनों से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी और फिर पता चली वो असलियत जिस के लिए मेरे सहयोगी ने अपने आप को तैयार कर लिया था। यदि आप खाना नहीं खा सकते तो दो-दो ड्रिंक ही कर लीजिए। हमें आपकी मनपसंद जगह पर भी जाने से एतराज नहीं हैं। हमसे सस्ते रेट आपको नहीं मिलेंगे। यदि आपके पास जगह नहीं है तो हमारे पास है लेकिन उसका एक्सट्रा लगेगा, पर आपके लिए हम उसमें भी डिस्काउंट करवा देंगे। यदि पैसे कम है तो आप अपने दोस्तों को भी बुला सकते हैं हम उन्हें भी सर्विस दे देंगे पर दाम फिक्स हैं। यदि कहीं नहीं जाना तो हम अपनी सर्विस आपको आपकी कार में भी दे सकते हैं। लंबी और बड़ी गाड़ी में हमको भी दिक्कत नहीं होगी।
मेरे सहयोगी ने दोनों को बड़े ही प्यार से बहला फुसलाकर वहां से चलता किया पर उसको एक काम जरूर करना पड़ा कि जहां से उनको बैठाया था वहां पर वापस छोड़ना पड़ा। क्योंकि पुलिस की धमकी से मेरा दोस्त खुद फंस सकता था और लड़कियों की एक आवाज से सहयोगी अस्पताल और हवालात दोनों जगह बड़े ही आराम से घूम कर आसकता था। सच मेरे सहयोगी ने बहुत ही अक्लमंदी का परिचय देते हुए दोनों से पीछा छुड़ाया।
बाद में उसने बताया कि, वो इन सब बातों के दौरान सिर्फ उन दोनों लड़कियों की शक्ल देख रहा था। और सोच रहा था कि क्यों उस समय भगवान ने ये अक्ल दे दी कि भली समझकर लिफ्ट दे दी। सभी राहगीरों पर से उठते अपने विश्वास को अपने अंदर कहीं टूटता हुआ महसूस कर रहा था। और शायद कहीं किसी जगह छोटे से कोने में ये सच भी हमारे अंदर पनप रहा है।
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Wednesday, November 19, 2008
नंबर 1 टीम मैन है एम एस धोनी
सौरव गांगुली ने कहा था कि धोनी के पास वो एक्स्ट्र लक है जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत एक कप्तान को होती है। एम एस धोनी के हाथों में कप्तानी की बागडोर देकर कुंबले को भी अच्छा लगा होगा और सौरव को भी ये देखकर अच्छा लगा होगा कि जो स्पार्क टीम इंडिया को उन्होंने दिया था वो वैसा ही है।
महेंद्र सिंह धोनी को शायद ही कोई खिलाड़ी इस पूरे नाम से कभी बुलाता हो वर्ना वो सबके लिए धोनी या फिर माही है। टीम क्या पूरे भारत और क्रिकेट जगत के लिए धोनी को इन दो नामों से ही जाना जाता है। धोनी इस समय बल्लेबाजी में वन डे रैंकिंग में 784 अंकों के साथ नंबर 1 पर हैं। मेरी नजर में वो नंबर 1 बल्लेबाज ही नहीं हैं बल्कि नंबर 1 कप्तान भी हैं और यहां तक पहुंचने के लिए धोनी का जोश में होश ना खोना ही सबसे अहम है।
शायद कोई सोच भी नहीं सकता कि धोनी के पास विकेट के पीछे से दुश्मन पर दांव चलाने का हुनर है। नागपुर टेस्ट का दूसरा दिन, पहली पारी में भारत के पास 441 रन का बड़ा स्कोर था और दूसरे दिन का खेल खत्म होने तक ऑस्ट्रेलिया ने 189-2 बना लिए थे। मैच के तीसरे दिन आस्ट्रेलिया अपनी पारी दो विकेट पर 189 रन से आगे बढाने उतरा। धोनी ने पहले ही सोच रखा था कि पहले सत्र तक उन्हें क्या करना है और पूरे उस सत्र में महज 42 निकले वो भी पूरे 24 ओवर में। धोनी ने नई रणनीति बनाई मैदान की 8 खिलाड़ी आफ साइड में औऱ सिर्फ 2 फील्डर आन साइड में रखे थे और गेंदबाजों को बोल दिया कि गेंद सिर्फ आफ स्टंप के बाहर रखो। हसी औऱ कैटिच लगातार ऑफ स्टंप के बाहर की गेंदों को खेलते-खेलते उकता गये। तमाम क्रिकेट पंडित धोनी को कोस रहे थे लेकिन धोनी जानते थे कि वो क्या कर रहे हैं, उन्हें सिर्फ अपना मकसद दिख रहा था। नतीजा ये रहा कि जो टीम 2 विकेट पर 189 रन बटोर चुकी थी वो अगले 166 रनों में बाकी आठ विकेट गंवा बैठी।
दूसरी पारी में भी धोनी ने तेज औऱ फिरकी गेंदबाजों को बड़ी सूझबूझ से लगाया। दूसरी पारी में कंगारू 50वें ओवर में मैच छोड़ चुके थे। इस दौरान सिर्फ भज्जी ही एक ऐसे गेंदबाज थे जिन्होंने 19 ओवर तक फेंके वर्ना सब ने बराबर के लगभग ही ओवर डाले थे। मैथ्य़ू हेडन भज्जी की गेंदो को बार-बार बाउंड्री के बाहर भेज रहे थे। लेकिन धोनी ने भज्जी को हटा कर अपने मंसूबों पर पानी नहीं फेरा। और फिर भज्जी की एक गेंद ने हेडन को गच्चा दे दिया औऱ फिर तो कंगारु मैच को पकड़ सकने में भी कामयाब नहीं रह पाए। टीम इंडिया ने 2-0 से कंगारुओं को सीरीज में मात देकर जो इतिहास रचा है उसे जब-जब याद किया जायेगा माही का जिक्र जरुर आयेगा।
वैसे गर देखें तो धोनी टीम मैन है। कुंबले को कंधे पर उठाने का हौसला बहुत ही कम दिखा सकते थे। जब सीरीज की ट्रॉफी दी जा रही थी तो धोनी ने कुंबले को साथ लेजाकर, कुंबले को ये सम्मान दिया कि जिसे खुद कुंबले के साथ-साथ सब याद रखना चाहेंगे। धोनी ने ये ही काम श्रीलंका में भी किया था। वहीं दूसरी तरफ सौरव गांगुली अपना अंतिम मैच खेल रहे थे और धोनी ने दादा से अंतिम मैच के अंतिम क्षणों में कप्तानी देकर एक ऐसा काम किया जो शायद कोई और नहीं कर पाता और दूसरों के लिए एक मिसाल भी रख दी। और जब-जब इन दोनों सितारों के संन्यास की बात आएगी तब धोनी का नाम हमेशा आएगा।
अब इंग्लैंड के साथ भी माही का जुझारुपन दिख रहा है। साथ ही टीम मैन वाली बात भी हमेशा सामने आती है। बाइक मिली युवराज को धोनी ने पूरे मैदान में खुद युवराज का सारथी बनकर घुमाई। इसी जज्बे के साथ धोनी और धोनी की टीम जिसने २०-२० वर्ल्ड कप जीता था अभी तक इंग्लैंड से इस सीरीज में २-० से आगे हैं। धोनी को मछ्ली की आंख दिख रही है हम भी चाहेंगे कि धोनी अपने लक्ष्य से ना भटके।
आपका अपना
नीतीश राज
महेंद्र सिंह धोनी को शायद ही कोई खिलाड़ी इस पूरे नाम से कभी बुलाता हो वर्ना वो सबके लिए धोनी या फिर माही है। टीम क्या पूरे भारत और क्रिकेट जगत के लिए धोनी को इन दो नामों से ही जाना जाता है। धोनी इस समय बल्लेबाजी में वन डे रैंकिंग में 784 अंकों के साथ नंबर 1 पर हैं। मेरी नजर में वो नंबर 1 बल्लेबाज ही नहीं हैं बल्कि नंबर 1 कप्तान भी हैं और यहां तक पहुंचने के लिए धोनी का जोश में होश ना खोना ही सबसे अहम है।
शायद कोई सोच भी नहीं सकता कि धोनी के पास विकेट के पीछे से दुश्मन पर दांव चलाने का हुनर है। नागपुर टेस्ट का दूसरा दिन, पहली पारी में भारत के पास 441 रन का बड़ा स्कोर था और दूसरे दिन का खेल खत्म होने तक ऑस्ट्रेलिया ने 189-2 बना लिए थे। मैच के तीसरे दिन आस्ट्रेलिया अपनी पारी दो विकेट पर 189 रन से आगे बढाने उतरा। धोनी ने पहले ही सोच रखा था कि पहले सत्र तक उन्हें क्या करना है और पूरे उस सत्र में महज 42 निकले वो भी पूरे 24 ओवर में। धोनी ने नई रणनीति बनाई मैदान की 8 खिलाड़ी आफ साइड में औऱ सिर्फ 2 फील्डर आन साइड में रखे थे और गेंदबाजों को बोल दिया कि गेंद सिर्फ आफ स्टंप के बाहर रखो। हसी औऱ कैटिच लगातार ऑफ स्टंप के बाहर की गेंदों को खेलते-खेलते उकता गये। तमाम क्रिकेट पंडित धोनी को कोस रहे थे लेकिन धोनी जानते थे कि वो क्या कर रहे हैं, उन्हें सिर्फ अपना मकसद दिख रहा था। नतीजा ये रहा कि जो टीम 2 विकेट पर 189 रन बटोर चुकी थी वो अगले 166 रनों में बाकी आठ विकेट गंवा बैठी।
दूसरी पारी में भी धोनी ने तेज औऱ फिरकी गेंदबाजों को बड़ी सूझबूझ से लगाया। दूसरी पारी में कंगारू 50वें ओवर में मैच छोड़ चुके थे। इस दौरान सिर्फ भज्जी ही एक ऐसे गेंदबाज थे जिन्होंने 19 ओवर तक फेंके वर्ना सब ने बराबर के लगभग ही ओवर डाले थे। मैथ्य़ू हेडन भज्जी की गेंदो को बार-बार बाउंड्री के बाहर भेज रहे थे। लेकिन धोनी ने भज्जी को हटा कर अपने मंसूबों पर पानी नहीं फेरा। और फिर भज्जी की एक गेंद ने हेडन को गच्चा दे दिया औऱ फिर तो कंगारु मैच को पकड़ सकने में भी कामयाब नहीं रह पाए। टीम इंडिया ने 2-0 से कंगारुओं को सीरीज में मात देकर जो इतिहास रचा है उसे जब-जब याद किया जायेगा माही का जिक्र जरुर आयेगा।
वैसे गर देखें तो धोनी टीम मैन है। कुंबले को कंधे पर उठाने का हौसला बहुत ही कम दिखा सकते थे। जब सीरीज की ट्रॉफी दी जा रही थी तो धोनी ने कुंबले को साथ लेजाकर, कुंबले को ये सम्मान दिया कि जिसे खुद कुंबले के साथ-साथ सब याद रखना चाहेंगे। धोनी ने ये ही काम श्रीलंका में भी किया था। वहीं दूसरी तरफ सौरव गांगुली अपना अंतिम मैच खेल रहे थे और धोनी ने दादा से अंतिम मैच के अंतिम क्षणों में कप्तानी देकर एक ऐसा काम किया जो शायद कोई और नहीं कर पाता और दूसरों के लिए एक मिसाल भी रख दी। और जब-जब इन दोनों सितारों के संन्यास की बात आएगी तब धोनी का नाम हमेशा आएगा।
अब इंग्लैंड के साथ भी माही का जुझारुपन दिख रहा है। साथ ही टीम मैन वाली बात भी हमेशा सामने आती है। बाइक मिली युवराज को धोनी ने पूरे मैदान में खुद युवराज का सारथी बनकर घुमाई। इसी जज्बे के साथ धोनी और धोनी की टीम जिसने २०-२० वर्ल्ड कप जीता था अभी तक इंग्लैंड से इस सीरीज में २-० से आगे हैं। धोनी को मछ्ली की आंख दिख रही है हम भी चाहेंगे कि धोनी अपने लक्ष्य से ना भटके।
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भारत अर्श पर, ऑस्ट्रेलिया फर्श पर, अब इंग्लैंड होगा फर्श पर
भारत की रैंकिंग ऑस्ट्रेलिया को हराने के बाद से बढ़ गई और भारत दूसरे पायदान पर आकर टेस्ट रैंकिंग में खड़ा हो गया। जहां भारत ने 40 मैच खेलते हुए 4659 अंक हासिल किए और रैंकिंग अंक 116 मिले हैं वहीं दूसरी तरफ द.अफ्रीका के भी रैंकिंग अंक 116 ही हैं पर उसके 34 मैचों के साथ 3953 अंक हैं। भारत दूसरे पायदान पर खड़ा हो पाया क्योंकि उसने पहले नंबर पर खड़े घमंडी कंगारुओं को 2-0 से सीरीज में मात दी। वैसे ऑस्ट्रेलिया के 121 अंक हैं और अभी तो खास तौर पर वो पहले पायदान पर आराम से खड़ा हुआ है पर भारत दूसरे पायदान पर कैसे आया ये वाकई एक सफर है खासतौर पर पिछली सीरीज में तो।
ये चमत्कार हुआ है टीम वर्क से, इस बार हम श्रीलंका में हुई सीरीज की तरह दब कर नहीं खेले। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच फर्क इतना था कि टीम इंडिया के शेर दहाड़ते हुए दिखे और कंगारू पूरी तरह लाचार।
जहां भारत के गेंदबाज और सलामी बल्लेबाज के साथ-साथ स्पिन का जादू भी चला तो वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया की पूरी टीम फिसड्डी दिखी। जहां ईशांत शर्मा चार मैचों में 27.06 की औसत और 55.2 की स्ट्राइक रेट के साथ 15 विकेट चटकाकर सबसे कामयाब गेंदबाज रहे, वहीं दूसरी ओर ब्रेट ली 4 मैच में आठ विकेट ही झटक सके। वो भी 61.62 के औसत और 111 के स्ट्राइक रेट से। ली की धार इस बार फीकी रही जबकि जॉनसन ऑस्ट्रेलियाई खेमें से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले बने रहे जिन्होंने 4 मैच में 13 विकेट लिए। अमित मिश्रा और हरभजन सिंह के जादू ने भी सीरीज़ का पलड़ा भारत की तरफ झुकाने में अहम किरदार निभाया। हरभजन ने 3 मैच में 15 विकेट लेकर ईशांत के साथ रहकर नंबर वन की कुर्सी पर छाए रहे। तो दूसरी तरफ अमित ने 3 मैच में 14 विकेट झटककर कुंबले की कमी को पूरा किया।
यदि हम अब नजर डालें भारतीय बल्लेबाजी पर तो, गौतम गंभीर तीन मैचों में 77.16 के औसत से 463 रन बनाकर अव्वल रहे और दूसरे नंबर पर रहे सचिन 4 मैच में 396 रन बनाए वहीं हसी ने 4 मैच में 394 रन बनाए और मैथ्यू हेडन की हालत पूरी सीरीज में खराब रही।
भारत के गेम प्लान के सामने कंगारुओं का गेमप्लान ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। पूरी सीरीज के दौरान ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में पंटर और ली के बीच की खींचातानी से पन्ने भरे रहे। पंटर की कप्तानी पर दिग्गजों ने सवाल खड़े किए। ये एक ऐसा मौका था जब कि पंटर की सेना पर तीर छोड़े जा रहे थे और वो कुछ कर भी नहीं पा रही थी। ये वर्ल्ड क्रिकेट में भारत की नई उड़ान है ये नंबर वन की कुर्सी की ओर बढ़ा एक मजबूत कदम है ये बदला है, बदला उस टीम से जिसने पिछली बार बेइमानी से भारत को सीरीज़ में हाराया था।
अब इंग्लैंड की बारी है। इंग्लैंड के कप्तान पीटरसन और फ्लिंटॉफ ने सीरीज शुरू होने से पहले कहा था कि पूरी सीरीज में वो भारत के ऊपर हावी रहेंगे। साथ ही सीरीज शुरु होने से पहले अभ्यास मैच में इंग्लैंड ने दो मैच खेले थे और एक जीता था और एक हारा था। दूसरे मैच में इंग्लैंड की पूरी टीम 100 के आंकड़े को भी छू नहीं पाई थी और 98 पर ऑल आउट होगई थी और मैच 124 रन से गवां दिया था। तब पीटरसन ने कहा था कि हम तो यूं ही खेल रहे थे। शायद अब दो मैच के बाद भी लगता तो ये ही है कि वो यूं ही खेल रहे हैं। जहां इंग्लैंड में अखबारों के पन्ने पूरी तरह से भारतीय टीम की तारीफ से अटे पड़े हैं वहीं दूसरी तरफ पीटरसन और उनकी टीम पर बार-बार निशाना साधा जा रहा है।
अब देखना तो ये होगा कि युवराज-गंभीर की आंधी को पीटरसन की सेना कैसे रोक पाएगी। राजकोट, इंदौर और अब कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में ये देखना होगा कि क्या भारत फिर से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा पाएगा जबकि अब तो ईशांत भी पूरी तरह फिट हो चुके हैं।
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ये चमत्कार हुआ है टीम वर्क से, इस बार हम श्रीलंका में हुई सीरीज की तरह दब कर नहीं खेले। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच फर्क इतना था कि टीम इंडिया के शेर दहाड़ते हुए दिखे और कंगारू पूरी तरह लाचार।
जहां भारत के गेंदबाज और सलामी बल्लेबाज के साथ-साथ स्पिन का जादू भी चला तो वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया की पूरी टीम फिसड्डी दिखी। जहां ईशांत शर्मा चार मैचों में 27.06 की औसत और 55.2 की स्ट्राइक रेट के साथ 15 विकेट चटकाकर सबसे कामयाब गेंदबाज रहे, वहीं दूसरी ओर ब्रेट ली 4 मैच में आठ विकेट ही झटक सके। वो भी 61.62 के औसत और 111 के स्ट्राइक रेट से। ली की धार इस बार फीकी रही जबकि जॉनसन ऑस्ट्रेलियाई खेमें से सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले बने रहे जिन्होंने 4 मैच में 13 विकेट लिए। अमित मिश्रा और हरभजन सिंह के जादू ने भी सीरीज़ का पलड़ा भारत की तरफ झुकाने में अहम किरदार निभाया। हरभजन ने 3 मैच में 15 विकेट लेकर ईशांत के साथ रहकर नंबर वन की कुर्सी पर छाए रहे। तो दूसरी तरफ अमित ने 3 मैच में 14 विकेट झटककर कुंबले की कमी को पूरा किया।
यदि हम अब नजर डालें भारतीय बल्लेबाजी पर तो, गौतम गंभीर तीन मैचों में 77.16 के औसत से 463 रन बनाकर अव्वल रहे और दूसरे नंबर पर रहे सचिन 4 मैच में 396 रन बनाए वहीं हसी ने 4 मैच में 394 रन बनाए और मैथ्यू हेडन की हालत पूरी सीरीज में खराब रही।
भारत के गेम प्लान के सामने कंगारुओं का गेमप्लान ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। पूरी सीरीज के दौरान ऑस्ट्रेलियाई मीडिया में पंटर और ली के बीच की खींचातानी से पन्ने भरे रहे। पंटर की कप्तानी पर दिग्गजों ने सवाल खड़े किए। ये एक ऐसा मौका था जब कि पंटर की सेना पर तीर छोड़े जा रहे थे और वो कुछ कर भी नहीं पा रही थी। ये वर्ल्ड क्रिकेट में भारत की नई उड़ान है ये नंबर वन की कुर्सी की ओर बढ़ा एक मजबूत कदम है ये बदला है, बदला उस टीम से जिसने पिछली बार बेइमानी से भारत को सीरीज़ में हाराया था।
अब इंग्लैंड की बारी है। इंग्लैंड के कप्तान पीटरसन और फ्लिंटॉफ ने सीरीज शुरू होने से पहले कहा था कि पूरी सीरीज में वो भारत के ऊपर हावी रहेंगे। साथ ही सीरीज शुरु होने से पहले अभ्यास मैच में इंग्लैंड ने दो मैच खेले थे और एक जीता था और एक हारा था। दूसरे मैच में इंग्लैंड की पूरी टीम 100 के आंकड़े को भी छू नहीं पाई थी और 98 पर ऑल आउट होगई थी और मैच 124 रन से गवां दिया था। तब पीटरसन ने कहा था कि हम तो यूं ही खेल रहे थे। शायद अब दो मैच के बाद भी लगता तो ये ही है कि वो यूं ही खेल रहे हैं। जहां इंग्लैंड में अखबारों के पन्ने पूरी तरह से भारतीय टीम की तारीफ से अटे पड़े हैं वहीं दूसरी तरफ पीटरसन और उनकी टीम पर बार-बार निशाना साधा जा रहा है।
अब देखना तो ये होगा कि युवराज-गंभीर की आंधी को पीटरसन की सेना कैसे रोक पाएगी। राजकोट, इंदौर और अब कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में ये देखना होगा कि क्या भारत फिर से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा पाएगा जबकि अब तो ईशांत भी पूरी तरह फिट हो चुके हैं।
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नीतीश राज
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Tuesday, November 18, 2008
युवराज ने फिर धोया अंग्रेजों को
पहला ४, दूसरा १५, तीसरा २९ पर भारत के विकेट गिर चुके थे। इस बार धोनी ने जीता था टॉस और पिछली बार की तरह पहले बल्लेबाजी फैसला गलत साबित होने वाला लग रहा था। पर जैसे कि गांगुली ने कहा था कि कप्तान के लिए जिस एक्सट्र लक की जरूरत होती है वो धोनी के पास है और हुआ भी कुछ ऐसा ही। पिछले मैच में युवराज ने महज ७८ गेंद पर नाबाद १३८ रन की पारी खेली थी। ठीक इस बार भी १२२ गेंद पर ११८ रन की शानदार पारी खेली जिसमें १५ चौके और २ लंबे छक्के थे।
ये यंग युवराज का जलवा है
इसे कहते हैं शानदार पारी। युवराज ने वापसी के बाद तो अपना जलवा दोनों मैचों में दिखाया है वो लाजवाब है। दूसरे वन डे में जब रनों के युवराज मैदान में आए तो सिर्फ आठवें ओवर में २९ रन पर ३ विकेट गिर चुके थे। फिटनेस से जूझ रहे २६ साल के युवराज के लिए ये परीक्षा की घड़ी के सामान थी। राजकोट में पीठ के दर्द के कारण एक दिन पहले तक लग रहा था कि युवी फिटनेस टेस्ट पास कर भी पाएंगे या नहीं। युवराज का साथ दिया दूसरी तरफ वन डे के राहुल द्रविड़ की जगह ले चुके मिस्टर भरोसेमंद गौतम गंभीर ने। गंभीर ने ५६ गेंदों पर अपनी हाफ सेंचुरी पुरी की और इसके साथ धोनी और गंभीर ने इस साल २००८ में १००० रन पूरे कर लिए। इस साल सिर्फ दो खिलाड़ी ही हैं जिन्हें ये खिताब मिला है। युवराज और गंभीर ने १३४ रन की साझेदारी की और भारत को सम्मानजनक स्कोर की तरफ बढ़ा दिया।
यूसुफ का साथ
अब बारी थी कप्तान की लेकिन कप्तान धोनी कमाल नहीं दिखा सके और महज १५ रन पर कोलिंगवुड ने उनके स्टंप बिखेर दिए। फिर आया वो शख्स जो टीम इंडिया को बड़े स्कोर की तरफ ले गया। यूसुफ पठान ने युवराज का साथ देते हुए टीम को एक ऐसी जगह पर ले गए जहां पर इंग्लैंड के बल्लेबाजों के लिए पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। युवराज ने कहा था कि वो तो सोच रहे थे कि २२५ रन का लक्ष्य काफी होगा इस पिच पर। और भारत ने बनाए २९२ रन जिसमें यूसुफ पठान के महज २९ गेंदों पर ५० रन शामिल हैं जिसमें ४ छक्के और २ चौके हैं। सहवाग, रैना, रोहित और युवराज स्टूअर्ट ब्रोर्ड के शिकार बने।
जोर का झटका धीरे से
इंग्लैंड पहले ही आधा मैच हार चुकी थी, ऐसी सोच रखने वालों को जोर का झटका जरा धीरे से लगा। पहले ओवर की आखिरी गेंद पर रैना ने जबरदस्त फुर्ती दिखाते हुए रोहित की तरफ खेली गई बैल की ड्राइव को बीच में लपककर स्टंप पर सटीक थ्रो से बैल को रन आउट कर दिया। प्रायर और शाह के बीच ९६ रन की साझेदारी हुई। इस बीच प्रायर को दो जीवनदान भी मिले और इंग्लैंड का स्कोर १०० का आंकड़ा पार कर गया। जहीर खान, आरपी सिंह, मुनाफ पटेल तीनों तेज गेंदबाज कुछ खास नहीं कर पाए।
पहले बल्ले से रक्षक, फिर गेंद से भक्षक
युवराज ने अपना सबसे पहला शिकार शाह को बनाया, शाह की शानदार पारी १ छक्का और ८ चौकों की मदद से ५८ के निजी स्कोर पर समाप्त हुई। फिर प्रायर को अगले ओवर में कोई और जीवनदान युवराज ने नहीं दिया और क्लीन बोल्ड कर दिया। ये युवराज का दूसरा ओवर था लेकिन फिर फ्लिंटॉफ और कप्तान पीटरसन की जोड़ी ने मिलकर तेजी से रन चुराने शुरू किए। दोनों ने मिलकर १२ ओवर में ७४ रन की साझेदारी की। इस बीच ९ रन प्रति ओवर की औसत से रन चाहिए थे इंग्लैंड की टीम को, इसको कम करने के लिए ३२वें ओवर में पीटरसन ने तीसरा पावर प्ले लिया। इसका पूरा फायदा उठाते हुए फ्लिंटॉफ ने भज्जी के एक ही ओवर में ३ छक्के जड़ दिए। अंतिम पावरप्ले में इंग्लैंड ने ५९ रन बटोरे। अब १३ ओवर में चाहिए थे ११० रन। पर अपने आठवें ओवर में युवराज ने खतरा बनते पहले फ्लिंटॉफ को आउट किया और फिर पीटरसन को भी चलता कर दिया। प्रायर, शाह, फ्लिंटॉफ, पीटरसन सभी युवराज की तेज गति की गेंदों को समझ नहीं पाए। प्रायर और पीटरसन को क्लीनबोल्ड फिर शाह और फ्लिंटॉफ एलबीडब्ल्यू आउट किया।
बल्ले से ना सही गेंद से ही सही
बाकी बची कसर वीरेंद्र सहवाग ने पूरी कर दी। अभी सोचा जा रहा था कि कोलिंगवुड, बोपारा और पटेल कुछ कमाल कर सकते हैं पर तीनों खिलाड़ी कुछ कमाल नहीं कर पाए। वहीं सहवाग ने खतरनाक बनते पटेल को पहले आउट किया फिर ब्रोड और हारमीशन को भी चलता किया। सहवाग ने ५ ओवर में २८ रन देकर ३ विकेट झटके।
सीरीज में भारत २-० से आगे हैं और लगातार दो मैच जीतकर मेजबानों के हौसले जहां बुलंद हैं तो वहीं मेहमान ये सोचने पर मजबूर हैं कि क्या वो युवराज की आंधी को कभी रोक पाएंगे। फ्लिंटॉफ भी पंगा नहीं लेना चाहते क्योंकि पिछली बार पंगा लिया था तो ६ छक्कों की सौगात युवी ने भेंट के रूप में दी थी, अभी भूले तो नहीं होंगे फ्लिंटॉफ।
आपका अपना
नीतीश राज
ये यंग युवराज का जलवा है
इसे कहते हैं शानदार पारी। युवराज ने वापसी के बाद तो अपना जलवा दोनों मैचों में दिखाया है वो लाजवाब है। दूसरे वन डे में जब रनों के युवराज मैदान में आए तो सिर्फ आठवें ओवर में २९ रन पर ३ विकेट गिर चुके थे। फिटनेस से जूझ रहे २६ साल के युवराज के लिए ये परीक्षा की घड़ी के सामान थी। राजकोट में पीठ के दर्द के कारण एक दिन पहले तक लग रहा था कि युवी फिटनेस टेस्ट पास कर भी पाएंगे या नहीं। युवराज का साथ दिया दूसरी तरफ वन डे के राहुल द्रविड़ की जगह ले चुके मिस्टर भरोसेमंद गौतम गंभीर ने। गंभीर ने ५६ गेंदों पर अपनी हाफ सेंचुरी पुरी की और इसके साथ धोनी और गंभीर ने इस साल २००८ में १००० रन पूरे कर लिए। इस साल सिर्फ दो खिलाड़ी ही हैं जिन्हें ये खिताब मिला है। युवराज और गंभीर ने १३४ रन की साझेदारी की और भारत को सम्मानजनक स्कोर की तरफ बढ़ा दिया।
यूसुफ का साथ
अब बारी थी कप्तान की लेकिन कप्तान धोनी कमाल नहीं दिखा सके और महज १५ रन पर कोलिंगवुड ने उनके स्टंप बिखेर दिए। फिर आया वो शख्स जो टीम इंडिया को बड़े स्कोर की तरफ ले गया। यूसुफ पठान ने युवराज का साथ देते हुए टीम को एक ऐसी जगह पर ले गए जहां पर इंग्लैंड के बल्लेबाजों के लिए पहुंचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। युवराज ने कहा था कि वो तो सोच रहे थे कि २२५ रन का लक्ष्य काफी होगा इस पिच पर। और भारत ने बनाए २९२ रन जिसमें यूसुफ पठान के महज २९ गेंदों पर ५० रन शामिल हैं जिसमें ४ छक्के और २ चौके हैं। सहवाग, रैना, रोहित और युवराज स्टूअर्ट ब्रोर्ड के शिकार बने।
जोर का झटका धीरे से
इंग्लैंड पहले ही आधा मैच हार चुकी थी, ऐसी सोच रखने वालों को जोर का झटका जरा धीरे से लगा। पहले ओवर की आखिरी गेंद पर रैना ने जबरदस्त फुर्ती दिखाते हुए रोहित की तरफ खेली गई बैल की ड्राइव को बीच में लपककर स्टंप पर सटीक थ्रो से बैल को रन आउट कर दिया। प्रायर और शाह के बीच ९६ रन की साझेदारी हुई। इस बीच प्रायर को दो जीवनदान भी मिले और इंग्लैंड का स्कोर १०० का आंकड़ा पार कर गया। जहीर खान, आरपी सिंह, मुनाफ पटेल तीनों तेज गेंदबाज कुछ खास नहीं कर पाए।
पहले बल्ले से रक्षक, फिर गेंद से भक्षक
युवराज ने अपना सबसे पहला शिकार शाह को बनाया, शाह की शानदार पारी १ छक्का और ८ चौकों की मदद से ५८ के निजी स्कोर पर समाप्त हुई। फिर प्रायर को अगले ओवर में कोई और जीवनदान युवराज ने नहीं दिया और क्लीन बोल्ड कर दिया। ये युवराज का दूसरा ओवर था लेकिन फिर फ्लिंटॉफ और कप्तान पीटरसन की जोड़ी ने मिलकर तेजी से रन चुराने शुरू किए। दोनों ने मिलकर १२ ओवर में ७४ रन की साझेदारी की। इस बीच ९ रन प्रति ओवर की औसत से रन चाहिए थे इंग्लैंड की टीम को, इसको कम करने के लिए ३२वें ओवर में पीटरसन ने तीसरा पावर प्ले लिया। इसका पूरा फायदा उठाते हुए फ्लिंटॉफ ने भज्जी के एक ही ओवर में ३ छक्के जड़ दिए। अंतिम पावरप्ले में इंग्लैंड ने ५९ रन बटोरे। अब १३ ओवर में चाहिए थे ११० रन। पर अपने आठवें ओवर में युवराज ने खतरा बनते पहले फ्लिंटॉफ को आउट किया और फिर पीटरसन को भी चलता कर दिया। प्रायर, शाह, फ्लिंटॉफ, पीटरसन सभी युवराज की तेज गति की गेंदों को समझ नहीं पाए। प्रायर और पीटरसन को क्लीनबोल्ड फिर शाह और फ्लिंटॉफ एलबीडब्ल्यू आउट किया।
बल्ले से ना सही गेंद से ही सही
बाकी बची कसर वीरेंद्र सहवाग ने पूरी कर दी। अभी सोचा जा रहा था कि कोलिंगवुड, बोपारा और पटेल कुछ कमाल कर सकते हैं पर तीनों खिलाड़ी कुछ कमाल नहीं कर पाए। वहीं सहवाग ने खतरनाक बनते पटेल को पहले आउट किया फिर ब्रोड और हारमीशन को भी चलता किया। सहवाग ने ५ ओवर में २८ रन देकर ३ विकेट झटके।
सीरीज में भारत २-० से आगे हैं और लगातार दो मैच जीतकर मेजबानों के हौसले जहां बुलंद हैं तो वहीं मेहमान ये सोचने पर मजबूर हैं कि क्या वो युवराज की आंधी को कभी रोक पाएंगे। फ्लिंटॉफ भी पंगा नहीं लेना चाहते क्योंकि पिछली बार पंगा लिया था तो ६ छक्कों की सौगात युवी ने भेंट के रूप में दी थी, अभी भूले तो नहीं होंगे फ्लिंटॉफ।
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नीतीश राज
Saturday, November 15, 2008
क्या केक ऐसे काटा जाता है, नहीं, राज ठाकरे आपने तो केक चीरा है
कुछ लोग करतूत ही ऐसी करते हैं जिसे की कोई हजम नहीं कर सकता। 14 जून 2008 याने की इस साल का ही वीडियो सामने आया है जिसमें राज ठाकरे का जन्मदिन मनाया जा रहा था। इस वीडियो में दिख रहा है कि कैसे कोई किसी से कितनी नफरत कर सकता है कि अपने निजी जश्न में भी वो उसपर वार करने से नहीं चूकता। ये है राज
ठाकरे के दिल में उत्तर भारतीयों के खिलाफ नफरत।
जन्मदिन का वीडियो या फिर नफरत का
वीडियो में दिख रहा है कि एक ऐसा केक काटा जा रहा है जिसपर लिखा था-भैया। भैया, इसका मतलब किसी को समझाने कि जरूरत नहीं है। भैया का मतलब होता है बिहार- यूपी के लोग।
सबसे ज्यादा एतराज केक को काटने में है। जिस तरह से केक को काटा गया उसे शायद हम में से कोई भी ये नहीं कह सकता कि वो केक काटा गया। साफ दिखता है कि केक काटा नहीं गया उसे चीरा गया। सीधे-सीधे राज ठाकरे ने केक को पहले बाएं से दाएं और
फिर दाएं से बाएं चीर दिया जिसपर लिखा था भैया। 40 सेकेंड के वीडियो में ये सब दिखाया गया है।
केक पर वैसे तो नाम ही लिखा जाता है उस शख्स का जिसका कि जन्मदिन होता है। उस केक पर लिखा था भैया, लेकिन क्या राज ठाकरे को भैया के नाम से जाना जाता है या उन्हें कोई राज ठाकरे के नाम से पुकारता है जिसे कि एमएनएस के लोग गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। तो ये बात तो यहीं पर खारिज हो जाती है कि राज ठाकरे को भैया के नाम का केक गिफ्ट किया गया।
राज की बहन या फिर कार्यकर्ता
फिर राज ठाकरे को कोई भैया कहकर बहन पुकारती हो और उसने ये तोहफे के तौर पर भेंट किया हो। बात तुरंत कहते के साथ ही सामने आई। एमएनएस की महिला शाखा की सचिव रीता गुप्ता राज ठाकरे की बहन के रूप में सामने आई। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि ये तो बड़ा ही पर्सनल वीडियो था इसे कैसे कोई सामने ला सकता है। साथ ही वो राज ठाकरे को भैया कहकर पुकारती हैं। तो उन्होंने गिफ्ट किया था अपनी ब्रेकरी में बना केक राज के जन्मदिन पर।
चलिए ये बात तो साफ हो गई कि केक बहन ने दिया था। पर केक काटने का तरीका सही था। रीता गुप्ता जी बार-बार इस सवाल को घुमा जाती। क्योंकि कोई जंगली भी इस तरीके से केक को नहीं काटता। मुझे सबसे ज्यादा आपत्ति सिर्फ इस बात से ही है।
वीडियो पर सियासत
राज ठाकरे के तहलका मचाने वाले इस वीडियो को जारी करने वाले शख्स है किशोर समरीते। किशोर समरीते मध्यप्रदेश के लांजी क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक है। सवाल ये है समरीते के पास ये वीडियो कहां से आया.. समरीते इसका खुलासा नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि उनके एक दोस्त ने उन्हें ये वीडियो दिया है। सवाल ये भी है छह महीने पुराने इस वीडियो को अचानक प्रेस को क्यों दिया। माना जा रहा है कि समरीते अपनी सियासत चमकाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे है
राज ठाकरे के इस केक मामले पर सियासत भी गरमा गई है। जहां सभी पार्टी इस की निंदा कर रही हैं। वहीं राज ठाकरे को लालू प्रसाद यादव ने फिर से मेंटल करार दे दिया है।
सही मायने में तो राज ठाकरे ने इस केक को केक माना ही नहीं है। ये है राज ठाकरे की नफरत उत्तर भारतीयों के लिए। लेकिन राज ठाकरे का अपने जन्मदिन को मनाने का तरीका बड़ा ही अनोखा और विचित्र लगा। तो राज ठाकरे इस तरह मनाते हैं अपना जन्मदिन और फैलाते हैं नफरत की आग।
आपका अपना
नीतीश राज
ठाकरे के दिल में उत्तर भारतीयों के खिलाफ नफरत।
जन्मदिन का वीडियो या फिर नफरत का
वीडियो में दिख रहा है कि एक ऐसा केक काटा जा रहा है जिसपर लिखा था-भैया। भैया, इसका मतलब किसी को समझाने कि जरूरत नहीं है। भैया का मतलब होता है बिहार- यूपी के लोग।
सबसे ज्यादा एतराज केक को काटने में है। जिस तरह से केक को काटा गया उसे शायद हम में से कोई भी ये नहीं कह सकता कि वो केक काटा गया। साफ दिखता है कि केक काटा नहीं गया उसे चीरा गया। सीधे-सीधे राज ठाकरे ने केक को पहले बाएं से दाएं और
फिर दाएं से बाएं चीर दिया जिसपर लिखा था भैया। 40 सेकेंड के वीडियो में ये सब दिखाया गया है।
केक पर वैसे तो नाम ही लिखा जाता है उस शख्स का जिसका कि जन्मदिन होता है। उस केक पर लिखा था भैया, लेकिन क्या राज ठाकरे को भैया के नाम से जाना जाता है या उन्हें कोई राज ठाकरे के नाम से पुकारता है जिसे कि एमएनएस के लोग गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। तो ये बात तो यहीं पर खारिज हो जाती है कि राज ठाकरे को भैया के नाम का केक गिफ्ट किया गया।
राज की बहन या फिर कार्यकर्ता
फिर राज ठाकरे को कोई भैया कहकर बहन पुकारती हो और उसने ये तोहफे के तौर पर भेंट किया हो। बात तुरंत कहते के साथ ही सामने आई। एमएनएस की महिला शाखा की सचिव रीता गुप्ता राज ठाकरे की बहन के रूप में सामने आई। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि ये तो बड़ा ही पर्सनल वीडियो था इसे कैसे कोई सामने ला सकता है। साथ ही वो राज ठाकरे को भैया कहकर पुकारती हैं। तो उन्होंने गिफ्ट किया था अपनी ब्रेकरी में बना केक राज के जन्मदिन पर।
चलिए ये बात तो साफ हो गई कि केक बहन ने दिया था। पर केक काटने का तरीका सही था। रीता गुप्ता जी बार-बार इस सवाल को घुमा जाती। क्योंकि कोई जंगली भी इस तरीके से केक को नहीं काटता। मुझे सबसे ज्यादा आपत्ति सिर्फ इस बात से ही है।
वीडियो पर सियासत
राज ठाकरे के तहलका मचाने वाले इस वीडियो को जारी करने वाले शख्स है किशोर समरीते। किशोर समरीते मध्यप्रदेश के लांजी क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के विधायक है। सवाल ये है समरीते के पास ये वीडियो कहां से आया.. समरीते इसका खुलासा नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि उनके एक दोस्त ने उन्हें ये वीडियो दिया है। सवाल ये भी है छह महीने पुराने इस वीडियो को अचानक प्रेस को क्यों दिया। माना जा रहा है कि समरीते अपनी सियासत चमकाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे है
राज ठाकरे के इस केक मामले पर सियासत भी गरमा गई है। जहां सभी पार्टी इस की निंदा कर रही हैं। वहीं राज ठाकरे को लालू प्रसाद यादव ने फिर से मेंटल करार दे दिया है।
सही मायने में तो राज ठाकरे ने इस केक को केक माना ही नहीं है। ये है राज ठाकरे की नफरत उत्तर भारतीयों के लिए। लेकिन राज ठाकरे का अपने जन्मदिन को मनाने का तरीका बड़ा ही अनोखा और विचित्र लगा। तो राज ठाकरे इस तरह मनाते हैं अपना जन्मदिन और फैलाते हैं नफरत की आग।
आपका अपना
नीतीश राज
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राजनीति
ऑस्ट्रेलिया के बाद अंग्रेजो के छूटे छक्के
ऑस्ट्रेलिया को टेस्ट सीरीज में धूल चटाने के बाद भारत ने अंग्रेजों के छक्के छुडा़ दिए। राजकोट में धोनी के रनवीरों ने ऐसा खेल खेला जिसे देख अंग्रेजों की हालत पतली हो गई। टॉस जीतने का बाद भारत को पहले बल्लेबाजी कराने का पीटरसन का फैसला उनके लिए हार का कारण बन गया। बाकी का काम भारतीय बल्लेबाजों ने कर दिया।
भारत की शानदार बल्लेबाजी
भारत की सलामी जोड़ी वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने अपने बल्ले का जादू दिखाना शुरु कर दिया। माना जा रहा था कि जो भी पहले बल्लेबाजी करेगा उसे शुरुआत के एक घंटे तक परेशानी तो होगी ही। पर वीरु की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी ने ये टीम इंडिया के ड्रेर्सिंग रुम में ये विश्वास तो पैदा कर ही दिया कि भारत एक बड़े स्कोर की तरफ जरुर बढ़ चला है। वीरू ने 10 चौके और 3 छक्कों की मदद से 73 गेंदों पर 85 रन की पारी खेली और उनका बखूबी साथ दिया गंभीर ने। गंभीर ने 63 गेंदों पर 51 रन बनाए जिसमें 8 चौके शामिल थे। 20 ओवर में 127 के स्कोर पर गंभीर को पटेल ने आउट किया। फिर रैना ने आकर ताबड़तोड़ 3 छक्कों की मदद से 44 गेंद पर 43 रन बनाए।
राजकोट का युवराज
भारतीय पारी की सबसे खास बात रही युवराज की विस्फोटक नाबाद पारी। युवराज ने 78 गंदों पर 16 चौकों और 6 शानदार छक्कों की मदद से 138 रन बनाए। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ सबसे तेज शतक जमाने का कीर्तिमान भी जमाया और किसी भी भारतीय का दूसरा सबसे जल्दी शतक। अपने ही देश में टीम इंडिया ने बनाया अब तक का सबसे बड़ा स्कोर। साथ ही पूरी दुनिया में भारत का दूसरा सबसे विशाल स्कोर। इंग्लैंड की ये तीसरी सबसे बड़ी और शर्मनाक हार है। युवराज ने इंग्लैंड के सभी गेदंबाजों को खूब धुना। युवराज ने फ्लिंटॉफ की 13 गेंदों पर 34 रन ठोंके, हारमिसन की 26 गेंदों पर 48 रन बनाए और साथ ही स्टूअर्ट ब्रोड की 15 गेंदों पर 26 रन बटोरे। कप्तान धोनी ने 32 गेंदों पर 39 रन बनाए जिसमें 1 छक्का और 3 चौके थे। युवराज ने 100 रन सिर्फ चौकों और छक्कों से ही बना दिए पूरी पारी में सिर्फ 38 रन दौड़ कर लिए। पांच महीने के बाद युवराज ने राजकोट के रण में अपना तूफान बरपा कर ये तो बता दिया कि उनको टीम से बाहर रखना सही फैसला नहीं है। अब भारत ने अब तक का अपना दूसरा सबसे बड़ा स्कोर इंग्लैंड के सामने खड़ा कर दिया। इंग्लैंड को 388 रन की चुनौती देकर भारत 75 फीसदी मैच जीत चुका था।
गेंदबाजों ने किया कमाल
अब देखना ये था कि गेंदबाज कितनी जल्दी इस मैच को खत्म करते हैं। इंग्लैंड के स्कोर बोर्ड पर जब 12 रन ही बने थे तब मुनाफ ने प्रायर को सहवाग के हाथों लपकवाकर चलता कर दिया। फिर 150 वां वन डे खेल रहे जहीर ने कमाल दिखाते हुए एक के बाद एक तीन विकेट झटक लिए। 11 वें ओवर में बैल और फिर डेंजर मैन फ्लिंटॉफ को आउट कर भारत की जीत पर मुहर लगा दी। अब सारा का सारा दारोमदार कप्तान पीटरसन पर आगया। पीटरसन ने कुछ शानदार शॉट लगाए और 7 चौकों और 2 छक्कों की मदद से 63 रन बनाए पर रोहित शर्मा की शानदार फील्डिंग की बदौलत पीटरसन रन आउट हो गए। अब तो सिर्फ औपचारिकता मात्र शेष रह गई थी। पर बोपारा ने 5 दमदार छक्कों की बदौलत 54 रन सिर्फ 38 गेंद पर बना दिए। पर ये पारी सिर्फ इंग्लैंड को सबसे बड़ी और शर्मनाक हार होने से भर बचा पाई। और 38 ओवर में 229 पर इंग्लैंड की पारी सिमट गई। भारत 158 रन के राजकोट का रण जीत गया। युवराज को शानदार बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया। भारत 7 मैचों की सीरीज में 1-0 से आगे है।
अब नहीं कोई मलाल
युवराज को मैन ऑफ द मैच चुना गया और फिर मिली उनको बाइक। धोनी ने बाइक देखी और युवराज को पीछे बिठा कर चल दिए ग्राउंड का चक्कर लगाने। धोनी का टीम के साथ और साथ ही हर खिलाड़ी के साथ रमना बहुत ही अच्छा लगता है। शायद ये भी एक स्टाइल है हमारे युवा कप्तान की। बस देखना ये होगा कि युवराज अगले मैच के लिए पूरी तरह से फिट हो जाएं। आज की जीत के बाद तो ये ही लगता है कि टीम इंडिया को अपने पांच सीनियर खिलाड़ी की जगह लेने वाले सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी मिल गए हैं।
आपका अपना
नीतीश राज
भारत की शानदार बल्लेबाजी
भारत की सलामी जोड़ी वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने अपने बल्ले का जादू दिखाना शुरु कर दिया। माना जा रहा था कि जो भी पहले बल्लेबाजी करेगा उसे शुरुआत के एक घंटे तक परेशानी तो होगी ही। पर वीरु की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी ने ये टीम इंडिया के ड्रेर्सिंग रुम में ये विश्वास तो पैदा कर ही दिया कि भारत एक बड़े स्कोर की तरफ जरुर बढ़ चला है। वीरू ने 10 चौके और 3 छक्कों की मदद से 73 गेंदों पर 85 रन की पारी खेली और उनका बखूबी साथ दिया गंभीर ने। गंभीर ने 63 गेंदों पर 51 रन बनाए जिसमें 8 चौके शामिल थे। 20 ओवर में 127 के स्कोर पर गंभीर को पटेल ने आउट किया। फिर रैना ने आकर ताबड़तोड़ 3 छक्कों की मदद से 44 गेंद पर 43 रन बनाए।
राजकोट का युवराज
भारतीय पारी की सबसे खास बात रही युवराज की विस्फोटक नाबाद पारी। युवराज ने 78 गंदों पर 16 चौकों और 6 शानदार छक्कों की मदद से 138 रन बनाए। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ सबसे तेज शतक जमाने का कीर्तिमान भी जमाया और किसी भी भारतीय का दूसरा सबसे जल्दी शतक। अपने ही देश में टीम इंडिया ने बनाया अब तक का सबसे बड़ा स्कोर। साथ ही पूरी दुनिया में भारत का दूसरा सबसे विशाल स्कोर। इंग्लैंड की ये तीसरी सबसे बड़ी और शर्मनाक हार है। युवराज ने इंग्लैंड के सभी गेदंबाजों को खूब धुना। युवराज ने फ्लिंटॉफ की 13 गेंदों पर 34 रन ठोंके, हारमिसन की 26 गेंदों पर 48 रन बनाए और साथ ही स्टूअर्ट ब्रोड की 15 गेंदों पर 26 रन बटोरे। कप्तान धोनी ने 32 गेंदों पर 39 रन बनाए जिसमें 1 छक्का और 3 चौके थे। युवराज ने 100 रन सिर्फ चौकों और छक्कों से ही बना दिए पूरी पारी में सिर्फ 38 रन दौड़ कर लिए। पांच महीने के बाद युवराज ने राजकोट के रण में अपना तूफान बरपा कर ये तो बता दिया कि उनको टीम से बाहर रखना सही फैसला नहीं है। अब भारत ने अब तक का अपना दूसरा सबसे बड़ा स्कोर इंग्लैंड के सामने खड़ा कर दिया। इंग्लैंड को 388 रन की चुनौती देकर भारत 75 फीसदी मैच जीत चुका था।
गेंदबाजों ने किया कमाल
अब देखना ये था कि गेंदबाज कितनी जल्दी इस मैच को खत्म करते हैं। इंग्लैंड के स्कोर बोर्ड पर जब 12 रन ही बने थे तब मुनाफ ने प्रायर को सहवाग के हाथों लपकवाकर चलता कर दिया। फिर 150 वां वन डे खेल रहे जहीर ने कमाल दिखाते हुए एक के बाद एक तीन विकेट झटक लिए। 11 वें ओवर में बैल और फिर डेंजर मैन फ्लिंटॉफ को आउट कर भारत की जीत पर मुहर लगा दी। अब सारा का सारा दारोमदार कप्तान पीटरसन पर आगया। पीटरसन ने कुछ शानदार शॉट लगाए और 7 चौकों और 2 छक्कों की मदद से 63 रन बनाए पर रोहित शर्मा की शानदार फील्डिंग की बदौलत पीटरसन रन आउट हो गए। अब तो सिर्फ औपचारिकता मात्र शेष रह गई थी। पर बोपारा ने 5 दमदार छक्कों की बदौलत 54 रन सिर्फ 38 गेंद पर बना दिए। पर ये पारी सिर्फ इंग्लैंड को सबसे बड़ी और शर्मनाक हार होने से भर बचा पाई। और 38 ओवर में 229 पर इंग्लैंड की पारी सिमट गई। भारत 158 रन के राजकोट का रण जीत गया। युवराज को शानदार बल्लेबाजी के लिए मैन ऑफ द मैच चुना गया। भारत 7 मैचों की सीरीज में 1-0 से आगे है।
अब नहीं कोई मलाल
युवराज को मैन ऑफ द मैच चुना गया और फिर मिली उनको बाइक। धोनी ने बाइक देखी और युवराज को पीछे बिठा कर चल दिए ग्राउंड का चक्कर लगाने। धोनी का टीम के साथ और साथ ही हर खिलाड़ी के साथ रमना बहुत ही अच्छा लगता है। शायद ये भी एक स्टाइल है हमारे युवा कप्तान की। बस देखना ये होगा कि युवराज अगले मैच के लिए पूरी तरह से फिट हो जाएं। आज की जीत के बाद तो ये ही लगता है कि टीम इंडिया को अपने पांच सीनियर खिलाड़ी की जगह लेने वाले सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी मिल गए हैं।
आपका अपना
नीतीश राज
Friday, November 14, 2008
"देशद्रोही पर पाबंदी कहां तक सही है"
महाराष्ट्र सरकार ने 'देशद्रोही' फिल्म की स्क्रीनिंग पर बैन लगा दिया है। देशद्रोही पूरे देश में रिलीज हो रही है पर सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं होगी। महाराष्ट्र सरकार ने महाराष्ट्र सिनेमा रेगुलेशन ऐक्ट के तहत 60 दिनों के लिए फ़िल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि इस फिल्म के कारण महाराष्ट्र में तनाव फैल सकता है। मुख्य वजह जो मानी जा रही है वो हैं इस फिल्म के डॉयलग, जो कि मराठी और गैर मराठी हिंसा के मुद्दों पर रोशनी डालते हैं। फिल्म की कहानी में नफरत भी है, क्षेत्रवाद भी, राजनीति भी, एक आम इंसान का दर्द भी है, और इन सब मुद्दों के बीच मुंबई झुलस रही है। फिल्म के कई डॉयलग को सुनकर लगेगा कि वाकई ये ही काफी हैं तनाव फैलाने के लिए। लेकिन ये डॉयलग महाराष्ट्र की सच्चाई को भी बताते हैं। साथ ही साथ कुछ डॉयलग ऐसे भी हैं जो कि बताते हैं कि जो मुद्दा कुछ समय से महाराष्ट्र की जमीन पर जंग छेड़े हुए हैं वो वाकई में तो कुछ भी नहीं है सिर्फ राजनीति है। कुछ संवादों से ये भी लगता है कि दिल से दिल को मिलाने की कोशिश भी की गई है।
मुंबई जिस क्षेत्रवाद की आग में जल रही है फिल्म का एक-एक डॉयलाग उसमें नफरत का घी छिड़कता नजर आता है। यूपी से मुंबई गया एक शख्स अपने अंदाज में यूं ही बस कंडक्टर को भईया कहकर संबोधित करता है। "मुझे भईया मत कहो...तुम यूपी बिहार वालों ने मुंबई को कबूतरखाना बना दिया है" उस मराठी कंडक्टर को वो भईया गाली की तरह लगती है और उसे बस से धक्के मार कर निकाल देता है। क्या ये महाराष्ट्र का सच है?
कई संवाद तो ऐसे हैं जिनपर पहले तो सेंसर बोर्ड की तरफ से कांट छांट हो चुकी है और साथ ही एमएनएस को भी उन पर आपत्ति थी। जैसे कि--
"तुम यूपी बिहार वालों ने अनाथ आश्रम बना दिया है मुंबई को" या फिर "बस ड्राइवर कहता है, बीएसटी की जगह भईया ट्रांसपोर्ट कर देना चाहिए"।
जब से फिल्म के प्रोमो दिखने लगे तब से ही फिल्म सुर्खियां बटोरने लगी। आए दिन हर चैनल पर प्रोमो दिखने लगा। फिल्म को बनाने की लागत आई है 5 करोड़ लेकिन प्रचार में खर्च हुए हैं लगभग 7 करोड़। इस फिल्म की रिलीज पर पहले मुंबई पुलिस ने रोक लगाई। विवाद फिर भी नहीं थमा। और आखिरकार राज्य सरकार ने इस फिल्म पर रोक लगा ही दी।
वैसे इस फिल्म के निर्माता-एक्टर कमाल राशिद खान ने हर पल फिल्म के प्रोमो दिखाकर खूब भुनाने की कोशिश की है। पुलिस फिल्म देखे या सेंसर बोर्ड की आपत्ति या फिर किसी भी तरह का विरोध हर बात को पब्लिसिटी की तरह इस्तेमाल किया गया। ये फिल्म पहले से तय तारीख के मुताबिक 14 नवंबर को रिलीज होने वाली थी। निर्माता ने इसका फैसला भी कई दिन पहले ले लिया था। लेकिन देशद्रोही के प्रोमो में इसकी तारीख 7 नवंबर ही रहने दी गई। आखिर इसका भी लाभ मिलना ही था।
फिल्म पर सियासत
कमाल जानते हैं कि फ़िल्म यूपी-बिहार वालों को जम गई तो चल जाएगी। पर महाराष्ट्र सरकार की पाबंदी के बाद कमाल ख़ान महाराष्ट्र सरकार के फ़ैसले पर हैरान हैं। वो अब कोर्ट तक जाने का भी मन बना चुके हैं। फिल्म में क्षेत्र-भाषा का मुद्दा है तो कुछ राजनेता भी फ़िल्म के समर्थन में कूद पड़े हैं। आरजेडी के नेता रामकृपाल यादव फ़िल्म पर लगे बैन को लेकर महाराष्ट्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कमाल कहते हैं कि देशद्रोही में वही दिखाने की कोशिश की गई है जो मुंबई की सच्चाई है। ये तो महज़ संयोग है कि फ़िल्म ऐसे वक़्त में रिलीज़ हो रही है जब महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक मराठी-गैरमराठी का मुद्दा तूल पकड़ चुका है।
बहती गंगा में दूसरी फिल्म भी रिलीज को तैयार
हिंदी फीचर फिल्म देशद्रोही ने महाराष्ट्र समेत पूरे देश में तहलका मचा दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में फिल्म पर पाबंदी भी लगा दी है। इसी मुद्दे पर बनी और काफी समय से लटकी रवि किशन की भोजपुरी फिल्म भूमिपुत्र भी दो हफ्तों में थियेटर्स में लग जाएगी। रवि किशन की फिल्म भूमिपुत्र के ये सीन जल्दी ही आपको टीवी पर नजर आएंगे। इस फिल्म में बेरोजगार नौजवान रविकिशन रोजी रोटी की तलाश में मुंबई आता है। यहां उसे मराठियों के गुस्से का सामना करना पड़ता है लेकिन धीरे धीरे वो मराठियों का अच्छा दोस्त बन जाता है। वैसे तो ये फिल्म सात महीने पहले ही बनकर तैयार हो चुकी थी पर निर्माता एएम खान का कहना है कि पहले माननीय राज ठाकरे का टेंशन था पर अब सब ठीक है, तो जल्द से जल्द रिलीज कर देंगे। पहले इस फिल्म का नाम भोला बजरंगी रखा गया था लेकिन जैसे ही राज ठाकरे ने भूमिपुत्र का मसला गर्म किया तो फिल्म का नाम बदलकर भूमिपुत्र कर दिया गया।
देशद्रोही ने लेकिन कई सवालों को जन्म दिया है
सबसे बड़ा और अहम सवाल ये उठता है कि जब एक क्षेत्र में आग लगी हो तो क्या ऐसी फिल्म बना कर लोगों की भावनाओं से खेलना चाहिए। राजनेता तो राजनीति करते हैं पर क्या फिल्मकारों के ये नहीं सोचना चाहिए कि वो नेता नहीं हैं। वो तो इन से अलग सोच सकते हैं। आज इस समय वो ही बात याद आ रही है कि छटाक भर की पोस्ट और किलो भर के टैग(याद तो होगा ही सबको वो विवाद)। फिल्म की लगात ५ करोड़ और प्रचार का खर्चा ७ करोड़। इतनी ही रकम लगानी थी तो अच्छे अदाकार भी ले लेते, थोड़ा लेखक को भी दे देते। ये क्या लगता है कि सारे पैसे ही डॉयलग राइटर को दे दिए हैं। वहीं दूसरी तरफ, राज्य सरकार ने इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाकर क्या साबित करना चाहा है। राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे तो सिर्फ एक पक्ष से ही हर बार अपेक्षा क्यों रखी जाती है। यदि हालात बिगड़ सकने की बात सरकार मानती है तो ये क्यों नहीं मानती कि हां, विवाद बढ़ चुका है और अब ये आग किसी भी घर के चिराग को नहीं बुझाएगी।
बहरहाल आज ये फिल्म पर्दे पर तो आ जाएगी पर क्या गर्म मुद्दों पर बनी ये फिल्म सूखे पड़े मार्केट में कोई बहार ला सकेगी।
आपका अपना
नीतीश राज
मुंबई जिस क्षेत्रवाद की आग में जल रही है फिल्म का एक-एक डॉयलाग उसमें नफरत का घी छिड़कता नजर आता है। यूपी से मुंबई गया एक शख्स अपने अंदाज में यूं ही बस कंडक्टर को भईया कहकर संबोधित करता है। "मुझे भईया मत कहो...तुम यूपी बिहार वालों ने मुंबई को कबूतरखाना बना दिया है" उस मराठी कंडक्टर को वो भईया गाली की तरह लगती है और उसे बस से धक्के मार कर निकाल देता है। क्या ये महाराष्ट्र का सच है?
कई संवाद तो ऐसे हैं जिनपर पहले तो सेंसर बोर्ड की तरफ से कांट छांट हो चुकी है और साथ ही एमएनएस को भी उन पर आपत्ति थी। जैसे कि--
"तुम यूपी बिहार वालों ने अनाथ आश्रम बना दिया है मुंबई को" या फिर "बस ड्राइवर कहता है, बीएसटी की जगह भईया ट्रांसपोर्ट कर देना चाहिए"।
जब से फिल्म के प्रोमो दिखने लगे तब से ही फिल्म सुर्खियां बटोरने लगी। आए दिन हर चैनल पर प्रोमो दिखने लगा। फिल्म को बनाने की लागत आई है 5 करोड़ लेकिन प्रचार में खर्च हुए हैं लगभग 7 करोड़। इस फिल्म की रिलीज पर पहले मुंबई पुलिस ने रोक लगाई। विवाद फिर भी नहीं थमा। और आखिरकार राज्य सरकार ने इस फिल्म पर रोक लगा ही दी।
वैसे इस फिल्म के निर्माता-एक्टर कमाल राशिद खान ने हर पल फिल्म के प्रोमो दिखाकर खूब भुनाने की कोशिश की है। पुलिस फिल्म देखे या सेंसर बोर्ड की आपत्ति या फिर किसी भी तरह का विरोध हर बात को पब्लिसिटी की तरह इस्तेमाल किया गया। ये फिल्म पहले से तय तारीख के मुताबिक 14 नवंबर को रिलीज होने वाली थी। निर्माता ने इसका फैसला भी कई दिन पहले ले लिया था। लेकिन देशद्रोही के प्रोमो में इसकी तारीख 7 नवंबर ही रहने दी गई। आखिर इसका भी लाभ मिलना ही था।
फिल्म पर सियासत
कमाल जानते हैं कि फ़िल्म यूपी-बिहार वालों को जम गई तो चल जाएगी। पर महाराष्ट्र सरकार की पाबंदी के बाद कमाल ख़ान महाराष्ट्र सरकार के फ़ैसले पर हैरान हैं। वो अब कोर्ट तक जाने का भी मन बना चुके हैं। फिल्म में क्षेत्र-भाषा का मुद्दा है तो कुछ राजनेता भी फ़िल्म के समर्थन में कूद पड़े हैं। आरजेडी के नेता रामकृपाल यादव फ़िल्म पर लगे बैन को लेकर महाराष्ट्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं। कमाल कहते हैं कि देशद्रोही में वही दिखाने की कोशिश की गई है जो मुंबई की सच्चाई है। ये तो महज़ संयोग है कि फ़िल्म ऐसे वक़्त में रिलीज़ हो रही है जब महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक मराठी-गैरमराठी का मुद्दा तूल पकड़ चुका है।
बहती गंगा में दूसरी फिल्म भी रिलीज को तैयार
हिंदी फीचर फिल्म देशद्रोही ने महाराष्ट्र समेत पूरे देश में तहलका मचा दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में फिल्म पर पाबंदी भी लगा दी है। इसी मुद्दे पर बनी और काफी समय से लटकी रवि किशन की भोजपुरी फिल्म भूमिपुत्र भी दो हफ्तों में थियेटर्स में लग जाएगी। रवि किशन की फिल्म भूमिपुत्र के ये सीन जल्दी ही आपको टीवी पर नजर आएंगे। इस फिल्म में बेरोजगार नौजवान रविकिशन रोजी रोटी की तलाश में मुंबई आता है। यहां उसे मराठियों के गुस्से का सामना करना पड़ता है लेकिन धीरे धीरे वो मराठियों का अच्छा दोस्त बन जाता है। वैसे तो ये फिल्म सात महीने पहले ही बनकर तैयार हो चुकी थी पर निर्माता एएम खान का कहना है कि पहले माननीय राज ठाकरे का टेंशन था पर अब सब ठीक है, तो जल्द से जल्द रिलीज कर देंगे। पहले इस फिल्म का नाम भोला बजरंगी रखा गया था लेकिन जैसे ही राज ठाकरे ने भूमिपुत्र का मसला गर्म किया तो फिल्म का नाम बदलकर भूमिपुत्र कर दिया गया।
देशद्रोही ने लेकिन कई सवालों को जन्म दिया है
सबसे बड़ा और अहम सवाल ये उठता है कि जब एक क्षेत्र में आग लगी हो तो क्या ऐसी फिल्म बना कर लोगों की भावनाओं से खेलना चाहिए। राजनेता तो राजनीति करते हैं पर क्या फिल्मकारों के ये नहीं सोचना चाहिए कि वो नेता नहीं हैं। वो तो इन से अलग सोच सकते हैं। आज इस समय वो ही बात याद आ रही है कि छटाक भर की पोस्ट और किलो भर के टैग(याद तो होगा ही सबको वो विवाद)। फिल्म की लगात ५ करोड़ और प्रचार का खर्चा ७ करोड़। इतनी ही रकम लगानी थी तो अच्छे अदाकार भी ले लेते, थोड़ा लेखक को भी दे देते। ये क्या लगता है कि सारे पैसे ही डॉयलग राइटर को दे दिए हैं। वहीं दूसरी तरफ, राज्य सरकार ने इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाकर क्या साबित करना चाहा है। राज्य में कानून व्यवस्था बनी रहे तो सिर्फ एक पक्ष से ही हर बार अपेक्षा क्यों रखी जाती है। यदि हालात बिगड़ सकने की बात सरकार मानती है तो ये क्यों नहीं मानती कि हां, विवाद बढ़ चुका है और अब ये आग किसी भी घर के चिराग को नहीं बुझाएगी।
बहरहाल आज ये फिल्म पर्दे पर तो आ जाएगी पर क्या गर्म मुद्दों पर बनी ये फिल्म सूखे पड़े मार्केट में कोई बहार ला सकेगी।
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नीतीश राज
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Thursday, November 6, 2008
मेरी नजर से, कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें
मेरी नजर से कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें हैं जो कि मैं हमेशा ही याद रखना चाहूंगा। वैसे तो हाल ही में मैंने अपने एक आर्टिकल में मोहाली टेस्ट के बाद ही ये कह दिया था कि अब कुंबले को हम भूलने लगे हैं और बेहतर हो कि कुंबले संन्यास ले लें। सारी दुनिया ये जानती है कि वो ढीले फील्डर के रूप में जाने जाते रहे हैं चाहे उन्होंने ६० कैच ही क्यों ना पकड़े हों। अनिल बल्लेबाजी भी कुछ खास नहीं माने जाते रहे, भले ही उन्होंने एक शतक वो भी नाबाद और पांच अर्द्धशतक लगाए हों जबकि वो अंतिम पायदान पर ही आते थे। शुरुआत में गेंदबाजी में विभिन्नता(वैरिएशन) के कारण जाने जाते रहे जबकि वो बॉल उतना घुमा नहीं पाते थे। हां, लेकिन उनकी रफ्तार किसी भी मध्यम तेज गेदबाज की तरह होती थी। कोई भी नहीं कहता था कि ये इंजीनियर कम गेंदबाज इतना सफल हो पाएगा।
चश्मा पहनें वो शांत, गंभीर, लंबा, इंजीनियर लड़का
चश्मा पहने एक लंबा लड़का, जिसकी टांगें उसको एक अलग शख्स के रूप में दिखाती थी। कोई भी ये नहीं कहता कि ये लड़का क्रिकेट की दुनिया में चल भी पाएगा। पर अपने जुझारूपन के कारण उसने अपने करियर की शुरूआत की और फिर जो शुरुआत की तब से कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। इंग्लैंड के खिलाफ ९ अगस्त १९९० में मैनचेस्टर में कुंबले ने अपनी पारी की शुरूआत की। इक्तेफाक देखिए १९९० में पहले ही मैच में कुंबले ने तीन विकेट लिए थे और अपनी आखिरी पारी कोटला में भी उन्होंने तीन विकेट ही लिए। वो मैच भी ड्रॉ हुआ था और ये मैच भी ड्रॉ हुआ। उस समय की टीम में नरेंद्र हिरवानी जैसे दिग्गज हुआ करते थे, जिन्होंने एक मैच में १६ विकेट लेने का करिश्मा दिखाया था, पर गायब कब हुए पता ही नहीं चला। लेकिन धीरे-धीरे इस खिलाड़ी ने टीम में जगह पक्की कर ली, कभी फिलिपर गेंद डालकर तो कभी मीडियम पेसर की रफ्तार से गेंद डालकर।
१९९९ में फिरोजशाह कोटला में कीर्तिमान
स्कोरबोर्ड पर १०१ रन बन चुके थे और एक भी विकेट पाकिस्तान का गिरा नहीं था। प्रसाद और श्रीनाथ दोनों गेंदबाजों को कामयाबी नहीं मिली थी। पहले सत्र में तो सभी गेंदबाजों को अनवर-आफरीदी की जोड़ी ने खूब ठोंका। लेकिन दूसरे सत्र की शुरूआत में ही कुंबले ने आफरीदी को मोंगिया के हाथों कैच आउट करवा दिया। फिर अगली ही गेंद पर इजाज अहमद को चलता कर दिया। ऑन द हैट्रिक थे कुंबले पर हैट्रिक ले नहीं पाए। दो ओवर के बाद ही इंजमाम ने एक लेजी सॉट खेली और गेंद खुद स्टंप को चूम गई। इस ओवर की पांचवीं गेंद पर यूसुफ योहाना को भी कुंबले ने अपना शिकार बना दिया। आफरीदी और युहाना दोनों ही इस बात से संतुष्ट नजर नहीं आए थे। जबकि आफरीदी तो साफ कॉट बिहाइंड थे और युहाना तो स्टंप के सामने ही पगबाधा हुए थे। फिर मोइन खान का स्लिप पर गांगुली ने शानदार कैच लपका। साथ ही सईद अनवर का कैच लक्ष्मण ने लपका। फिर भारत के सामने थे सिर्फ सलीम मलिक और कप्तान वसीम अकरम। कुंबले कहते हैं कि, ‘यदि इनको आउट कर दें तो फिर समझो कि मैच हमारे कब्जे में, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं दिख रहा था’। एक साल पुराने भी नहीं हुए हरभजन सिंह की गेंद पर वसीम ने जमकर चौकों की बरसात शुरू कर दी। पर तुरंत ही सलीम मलिक को कुंबले ने क्लीन बोल्ड कर दिया। मुस्ताक अहमद और सकलेन मुश्ताक को दो लगातार गेंदों पर आउट कर दिया। फिर कुंबले ऑन द हैट्रिक थे लेकिन ओवर खत्म हो चुका था। और ये किसी को भी पता नहीं था कि अगले ओवर में ये जोड़ी टिकी रहेगी। तभी श्रीनाथ को गेंदबाजी सौंपी गई और वहां कुंबले मैदान में भगवान से ये दुआ करने लग गए कि ये आखिरी विकेट भी कुंबले को ही मिले। श्रीनाथ ने सारी गेंदें बाहर फेंकी इस कारण दो गेंद वाइड भी हो गई। कोई विकेट लेना नहीं चाहता था। फिर कुंबले के हाथ में गेंद आई और वसीम अकरम को सिली पाइंट पर लक्ष्मण को कैच आउट करवा दिया और लिख दिया इतिहास जो कभी टूट नहीं सकता। इस रिकॉर्ड की बराबरी हो सकती है पर कोई तोड़ नहीं सकता।
२००२ में टूटे जबड़े से भी जीवट प्रदर्शन
मैंने अपने एक आर्टिकल में इस बात का पहले ही जिक्र किया हुआ है। टूटे जबड़े से भी कुंबले ने जुझारुपन दिखाते हुए लारा को आउट कर अपना काम कर दिया था। इतनी चोट लगने के बावजूद भी कुंबले ने १४ ओवर फेंके थे। भारत वेस्टइंडीज से वो मैच ड्रॉ करने में कामयाब रहा था।
ग्रेग चैपल का ख़ौफ़
ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि काफी समय तक सब कुछ सिर्फ और सिर्फ चैपल तक ही सिमट कर रह गया। जितने भी सीनियर खिलाड़ी थे उन सब पर चैपल ने निशाना साधा। सबसे पहले गांगुली, फिर द्रविड़ को अपने साथ मिलाकर गांगुली और द्रविड़ को भिड़ाना। शायद ये अध्याय भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए काला अध्याय था। फिर इस समय के महान खिलाड़ी सचिन पर भी साधा निशाना। कुंबले और लक्ष्मण दोनों ऐसे खिलाड़ी थे जो कि कभी भी बाहर का रास्ता देख सकते थे। कई बार कुंबले ने द्रविड़ के साथ इस बारे में बात भी की। द्रविड़ हमेशा ही समझाते कि अभी तो कुछ नहीं होने जा रहा है। फिर एक बार सचिन के साथ बात करते हुए कुंबले ने संन्यास की बात भी कही थी। सचिन का जवाब था कि बस परफोर्म करते रहो और यदि फिर भी कुछ होता है तो पहले निशाने पर मैं हूं उसके बाद किसी और का नंबर आएगा। उस समय सचिन की फॉर्म पर सवालिया निशान तो लग ही रहे थे। चैपल ने यहां तक कह दिया था कि सचिन सिर्फ अपने लिए खेलते हैं। कुंबले उस दौर को अपने क्रिकेट जीवन का सबसे कठिन समय मानते थे। इस दौरान ही एक-दो बार कुंबले ने पूरी टीम को अपने घर पर दावत भी दी। एयरपोर्ट से कुंबले के घर सचिन सीधे चले आते थे बिना झिझक के। इस समय में चाहे कुंबले पहले से भी कम बोलने लगे थे। वो ख़ौफ़ का वक्त था, जो वक्त निकल गया।
कप्तानी के साथ कोटला से विदाई
अपने ३७वें जन्मदिन के मौके से कुछ दिनों पहले ही कुंबले को कप्तानी की कमान सौंपी गई थी। कोई भी नहीं जानता था कि
पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में कुंबले को कप्तान बनाया जाएगा। २७ साल के बाद पाकिस्तान को हराने में कामयाब रहे। फिर सबसे विवादास्पद सीरीज जिसे की खुद कुंबले भी कठिन सीरीज मानते हैं। २-१ से भारत सीरीज हार गया था। साउथ अफ्रीका के खिलाफ से कुंबले की कप्तानी, गेंदबाजी, फील्डिंग पर असर दिखने लगा। श्रीलंका में तो जिस टीम से टेस्ट टीम हार कर आई थी उसी श्रीलंकाई टीम को हमारी वन डे टीम ने धो दिया था। इस सीरीज में तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। सही समय पर, सही अंदाज में कुंबले ने संन्यास ले लिया।
नागपुर टेस्ट और अंतिम बार ड्रेसिंग रूम में कुंबले
कोटला में ही कह दिया था कुंबले ने कि वो नागपुर में भी ड्रेसिंग रूम का हिस्सा जरूर होना चाहेंगे। कहीं ना कहीं ये जरूर लगता ही है कि यदि चोट नहीं लगी होती तो नागपुर टेस्ट ही कुंबले का आखिरी टेस्ट होता। पर कुंबले ने अच्छा किया कि कोटला में संन्यास ले लिया। सारा ध्यान ठीक तरीके से कुंबले पर ही रहा वर्ना शायद वो बंट जाता और फिर शायद कहीं पर कुंबले की अपनी बात भी दब जाती।
नागपुर टेस्ट काफी अहम टेस्ट है। सौरव गांगुली इस टेस्ट के बाद ही संन्यास लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। साथ ही पहले टेस्ट में गांगुली ने शतक जमाया था क्या जाते हुए आखिरी टेस्ट में भी गांगुली ये करिश्मा दिखा पाएंगे। वहीं वीवीएस लक्ष्मण अपना १०० वां टेस्ट मैच खेलेंगे। १००वें टेस्ट में क्या वो सैंकड़ा लगा कर छठे खिलाड़ी बन पाएंगे। वैसे सिर्फ रिकी पॉन्टिंग ही एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो कि अपने १००वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमा चुके हैं। साथ ही हरभजन सिंह को दरकार है सिर्फ एक विकेट की, फिर वो भी ३०० क्लब में शामिल हो जाएंगे।
लेकिन ये तो पक्का है कि हां, जंबो और दादा की कमी टीम इंडिया को खलेगी जरूर, याद बहुत आएंगे। सच एक युग और अध्याय को विराम लग जाएगा। एक तरफ सबसे ज्यादा मैच जीताने वाले गेंदबाज और दूसरी तरफ भारत के सबसे सफल कप्तान। इन्हें एक युग तो कहेंगे ही।
आपका अपना
नीतीश राज
चश्मा पहनें वो शांत, गंभीर, लंबा, इंजीनियर लड़का
चश्मा पहने एक लंबा लड़का, जिसकी टांगें उसको एक अलग शख्स के रूप में दिखाती थी। कोई भी ये नहीं कहता कि ये लड़का क्रिकेट की दुनिया में चल भी पाएगा। पर अपने जुझारूपन के कारण उसने अपने करियर की शुरूआत की और फिर जो शुरुआत की तब से कभी पीछे मुड़कर भी नहीं देखा। इंग्लैंड के खिलाफ ९ अगस्त १९९० में मैनचेस्टर में कुंबले ने अपनी पारी की शुरूआत की। इक्तेफाक देखिए १९९० में पहले ही मैच में कुंबले ने तीन विकेट लिए थे और अपनी आखिरी पारी कोटला में भी उन्होंने तीन विकेट ही लिए। वो मैच भी ड्रॉ हुआ था और ये मैच भी ड्रॉ हुआ। उस समय की टीम में नरेंद्र हिरवानी जैसे दिग्गज हुआ करते थे, जिन्होंने एक मैच में १६ विकेट लेने का करिश्मा दिखाया था, पर गायब कब हुए पता ही नहीं चला। लेकिन धीरे-धीरे इस खिलाड़ी ने टीम में जगह पक्की कर ली, कभी फिलिपर गेंद डालकर तो कभी मीडियम पेसर की रफ्तार से गेंद डालकर।
१९९९ में फिरोजशाह कोटला में कीर्तिमान
स्कोरबोर्ड पर १०१ रन बन चुके थे और एक भी विकेट पाकिस्तान का गिरा नहीं था। प्रसाद और श्रीनाथ दोनों गेंदबाजों को कामयाबी नहीं मिली थी। पहले सत्र में तो सभी गेंदबाजों को अनवर-आफरीदी की जोड़ी ने खूब ठोंका। लेकिन दूसरे सत्र की शुरूआत में ही कुंबले ने आफरीदी को मोंगिया के हाथों कैच आउट करवा दिया। फिर अगली ही गेंद पर इजाज अहमद को चलता कर दिया। ऑन द हैट्रिक थे कुंबले पर हैट्रिक ले नहीं पाए। दो ओवर के बाद ही इंजमाम ने एक लेजी सॉट खेली और गेंद खुद स्टंप को चूम गई। इस ओवर की पांचवीं गेंद पर यूसुफ योहाना को भी कुंबले ने अपना शिकार बना दिया। आफरीदी और युहाना दोनों ही इस बात से संतुष्ट नजर नहीं आए थे। जबकि आफरीदी तो साफ कॉट बिहाइंड थे और युहाना तो स्टंप के सामने ही पगबाधा हुए थे। फिर मोइन खान का स्लिप पर गांगुली ने शानदार कैच लपका। साथ ही सईद अनवर का कैच लक्ष्मण ने लपका। फिर भारत के सामने थे सिर्फ सलीम मलिक और कप्तान वसीम अकरम। कुंबले कहते हैं कि, ‘यदि इनको आउट कर दें तो फिर समझो कि मैच हमारे कब्जे में, लेकिन ये काम इतना आसान नहीं दिख रहा था’। एक साल पुराने भी नहीं हुए हरभजन सिंह की गेंद पर वसीम ने जमकर चौकों की बरसात शुरू कर दी। पर तुरंत ही सलीम मलिक को कुंबले ने क्लीन बोल्ड कर दिया। मुस्ताक अहमद और सकलेन मुश्ताक को दो लगातार गेंदों पर आउट कर दिया। फिर कुंबले ऑन द हैट्रिक थे लेकिन ओवर खत्म हो चुका था। और ये किसी को भी पता नहीं था कि अगले ओवर में ये जोड़ी टिकी रहेगी। तभी श्रीनाथ को गेंदबाजी सौंपी गई और वहां कुंबले मैदान में भगवान से ये दुआ करने लग गए कि ये आखिरी विकेट भी कुंबले को ही मिले। श्रीनाथ ने सारी गेंदें बाहर फेंकी इस कारण दो गेंद वाइड भी हो गई। कोई विकेट लेना नहीं चाहता था। फिर कुंबले के हाथ में गेंद आई और वसीम अकरम को सिली पाइंट पर लक्ष्मण को कैच आउट करवा दिया और लिख दिया इतिहास जो कभी टूट नहीं सकता। इस रिकॉर्ड की बराबरी हो सकती है पर कोई तोड़ नहीं सकता।
२००२ में टूटे जबड़े से भी जीवट प्रदर्शन
मैंने अपने एक आर्टिकल में इस बात का पहले ही जिक्र किया हुआ है। टूटे जबड़े से भी कुंबले ने जुझारुपन दिखाते हुए लारा को आउट कर अपना काम कर दिया था। इतनी चोट लगने के बावजूद भी कुंबले ने १४ ओवर फेंके थे। भारत वेस्टइंडीज से वो मैच ड्रॉ करने में कामयाब रहा था।
ग्रेग चैपल का ख़ौफ़
ग्रेग चैपल का भारतीय क्रिकेट पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि काफी समय तक सब कुछ सिर्फ और सिर्फ चैपल तक ही सिमट कर रह गया। जितने भी सीनियर खिलाड़ी थे उन सब पर चैपल ने निशाना साधा। सबसे पहले गांगुली, फिर द्रविड़ को अपने साथ मिलाकर गांगुली और द्रविड़ को भिड़ाना। शायद ये अध्याय भारतीय क्रिकेट इतिहास के लिए काला अध्याय था। फिर इस समय के महान खिलाड़ी सचिन पर भी साधा निशाना। कुंबले और लक्ष्मण दोनों ऐसे खिलाड़ी थे जो कि कभी भी बाहर का रास्ता देख सकते थे। कई बार कुंबले ने द्रविड़ के साथ इस बारे में बात भी की। द्रविड़ हमेशा ही समझाते कि अभी तो कुछ नहीं होने जा रहा है। फिर एक बार सचिन के साथ बात करते हुए कुंबले ने संन्यास की बात भी कही थी। सचिन का जवाब था कि बस परफोर्म करते रहो और यदि फिर भी कुछ होता है तो पहले निशाने पर मैं हूं उसके बाद किसी और का नंबर आएगा। उस समय सचिन की फॉर्म पर सवालिया निशान तो लग ही रहे थे। चैपल ने यहां तक कह दिया था कि सचिन सिर्फ अपने लिए खेलते हैं। कुंबले उस दौर को अपने क्रिकेट जीवन का सबसे कठिन समय मानते थे। इस दौरान ही एक-दो बार कुंबले ने पूरी टीम को अपने घर पर दावत भी दी। एयरपोर्ट से कुंबले के घर सचिन सीधे चले आते थे बिना झिझक के। इस समय में चाहे कुंबले पहले से भी कम बोलने लगे थे। वो ख़ौफ़ का वक्त था, जो वक्त निकल गया।
कप्तानी के साथ कोटला से विदाई
अपने ३७वें जन्मदिन के मौके से कुछ दिनों पहले ही कुंबले को कप्तानी की कमान सौंपी गई थी। कोई भी नहीं जानता था कि
पाकिस्तान के खिलाफ घरेलू सीरीज में कुंबले को कप्तान बनाया जाएगा। २७ साल के बाद पाकिस्तान को हराने में कामयाब रहे। फिर सबसे विवादास्पद सीरीज जिसे की खुद कुंबले भी कठिन सीरीज मानते हैं। २-१ से भारत सीरीज हार गया था। साउथ अफ्रीका के खिलाफ से कुंबले की कप्तानी, गेंदबाजी, फील्डिंग पर असर दिखने लगा। श्रीलंका में तो जिस टीम से टेस्ट टीम हार कर आई थी उसी श्रीलंकाई टीम को हमारी वन डे टीम ने धो दिया था। इस सीरीज में तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा था। सही समय पर, सही अंदाज में कुंबले ने संन्यास ले लिया।
नागपुर टेस्ट और अंतिम बार ड्रेसिंग रूम में कुंबले
कोटला में ही कह दिया था कुंबले ने कि वो नागपुर में भी ड्रेसिंग रूम का हिस्सा जरूर होना चाहेंगे। कहीं ना कहीं ये जरूर लगता ही है कि यदि चोट नहीं लगी होती तो नागपुर टेस्ट ही कुंबले का आखिरी टेस्ट होता। पर कुंबले ने अच्छा किया कि कोटला में संन्यास ले लिया। सारा ध्यान ठीक तरीके से कुंबले पर ही रहा वर्ना शायद वो बंट जाता और फिर शायद कहीं पर कुंबले की अपनी बात भी दब जाती।
नागपुर टेस्ट काफी अहम टेस्ट है। सौरव गांगुली इस टेस्ट के बाद ही संन्यास लेने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। साथ ही पहले टेस्ट में गांगुली ने शतक जमाया था क्या जाते हुए आखिरी टेस्ट में भी गांगुली ये करिश्मा दिखा पाएंगे। वहीं वीवीएस लक्ष्मण अपना १०० वां टेस्ट मैच खेलेंगे। १००वें टेस्ट में क्या वो सैंकड़ा लगा कर छठे खिलाड़ी बन पाएंगे। वैसे सिर्फ रिकी पॉन्टिंग ही एक मात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जो कि अपने १००वें टेस्ट की दोनों पारियों में शतक जमा चुके हैं। साथ ही हरभजन सिंह को दरकार है सिर्फ एक विकेट की, फिर वो भी ३०० क्लब में शामिल हो जाएंगे।
लेकिन ये तो पक्का है कि हां, जंबो और दादा की कमी टीम इंडिया को खलेगी जरूर, याद बहुत आएंगे। सच एक युग और अध्याय को विराम लग जाएगा। एक तरफ सबसे ज्यादा मैच जीताने वाले गेंदबाज और दूसरी तरफ भारत के सबसे सफल कप्तान। इन्हें एक युग तो कहेंगे ही।
आपका अपना
नीतीश राज
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Wednesday, November 5, 2008
मेरी नजर से, कुंबले की कोटला से विदाई
कभी-कभी अनायास ही कुछ ऐसा हो जाता है जिसके बारे में मालुम तो पहले से होता है लेकिन अनायास कारणों से अनायास ही निर्णय लेना पड़ जाता है। क्रिकेट में कहते हैं कि एक गेंद ही होती है जो तकदीर बदल देती है। वसीम अकरम की एक गेंद ही थी जो के.श्रीकांत के हेल्मेट पर लगी थी और वो रिटायर्ड हर्ट हो गए थे। हेल्मेट होने के बावजूद भी श्रीकांत को वो गेंदे इतनी चोट पहुंचा गई थी कि फिर कभी भी वो वसीम अकरम को ठीक से खेल नहीं पाए और हर मैच में उनका ही शिकार हो जाते। श्रीकांत का करियर खत्म हो गया। कैच लपकने की कोशिश में जंबो की बाएं हाथ की छोटी उंगली में इतनी गहरी चोट लगी कि ११ टांके लगे और फिर वो फैसला हो गया जिसे की उन्होंने सीरीज के आखिरी मैच के लिए बचा के रख रखा था, एक मैच पहले ही कुंबले को संन्यास लेना पड़ा।
कोटला टेस्ट में कुंबले को चोट लगी तब उनकी पत्नी चेतना दिल्ली एयरपोर्ट पर बैंगलोर के लिए फ्लाइट लेने के इंतजार में खड़ीं थीं। तभी पता चला कि कुंबले को हाथ में चोट लगी है और उनको अपोलो अस्पताल में भेज दिया गया है। तुरंत वो अपोलो पहुंची और फिर पता चला कि ऊंगली में ११ टांके लगे हैं और शायद ये भी हो सकता है कि नागपुर टेस्ट के साथ-साथ वो ये टेस्ट भी ना खेल पाएं। दोनों ने मिलकर ये फैसला किया कि बस ये टेस्ट ही आखिरी टेस्ट होगा क्योंकि अगले टेस्ट में कुंबले को शायद मौका भी ना मिले। वो खेलते हुए संन्यास लेना चाहते थे, मैदान में रहते हुए संन्यास।
आखिरकार १९ साल के लंबे खेल करियर को विराम लग ही गया। आए दिन कयास लगाए जा रहे थे कि अनिल कुंबले भी सौरव गांगुली की तरह कभी भी संन्यास का एलान कर देंगे। इस सीरीज में इस जीवट खिलाड़ी के ऊपर शक किया जाने लगा था कि आखिर कब तक कुंबले? लोगों कि तरफ से आवाज़ भी आने लगी कि क्या टीम पर बोझ बन गए हैं जंबो?
इस सब सवालों पर एकदम से विराम लगाते हुए ऑस्ट्रेलिया के साथ कोटला में तीसरे टेस्ट के आखिरी दिन जब कमेंट्री के दौरान ये एलान हुआ कि कुंबले संन्यास ले रहे हैं, थोड़ी देर तक तो सुनने वालों को इस बात का पर यकीन ही नहीं हुआ पर तभी स्क्रीन पर लिखा आया----
“Anil Kumble Decides To Retire From International Cricket.
Please Wait Till The End To Cheer Anil Kumble”.
सारी दुनिया को यकीं हो गया कि कुंबले संन्यास ले रहे हैं। उसी कोटला मैदान पर संन्यास का फैसला लिया जिस पर उन्होंने १९९९ में एक पारी में १० विकेट लेने का कीर्तिमान हासिल किया था जिसे सिर्फ एक खिलाड़ी ही उनके साथ बांट रहा है। साथ ही ये वो रिकॉर्ड है जिसे कि कोई भी तोड़ नहीं सकता बस पा सकता है। सब बस मैच खत्म होने का इंतजार करने लगे।
और मैच खत्म हो गया। सभी खिलाड़ी कुंबले से हाथ मिलाने लगे और गले मिलने का सिलसिला शुरू होगया। कुंबले को सम्मान देने के लिए कमेंट्रीटेटर ने लोगों से अपील की कि सभी खड़े होकर इस महान गेंदबाज को सम्मान दें।
फिर पूरा कोटला खड़ा होगया अपने पैरों पर और वहीं कुंबले को हाथों में उठा लिया उनके पुराने दोस्त और सहयोगी राहुल द्रविड़ और जहीर खान ने। पिच से मैदान के एक छोर तक की दूरी ही काफी लगने लगी और वहां ये आवाज़ आने लगी कि कुंबले को और ऊंचा उठाया जाए। पूरे समय १९ साल से कदम-दर-कदम साथ चल रहे सचिन यहां भी उनके साथ ही चल रहे
थे। सहवाग दौड़ते हुए आए साथ में आर पी सिंह भी। तभी पीछे से एक शख्स और दौड़ता हुआ आया जो बार-बार कहने लगा कि मैं बैठाता हूं कंधे पर कुंबले को। आर पी सिंह ने इशारा किया कि बैठाओ हम उठाते हैं कुंबले को और वो शख्स अपने कंधे पर बैठा कर जंबो को आगे बढ़ चला।
जी हां, महेंद्र सिंह धोनी को कप्तानी की कमान भी सौंपी गई है और माही ने ही अपने कंधों का एहसास कराकर जंबो को बता दिया कि ये कंधे भी तुम्हारे कंधों की तरह ही मजबूत हैं। और फिर वो जंबो को लेकर मैदान का चक्कर लगाने लगे।
यदि देखें तो जंबो सच में जंबो ही हैं लेकिन धोनी को ऐसा करते देख अच्छा ही लगा और सच, ये भी लगा कि हां सिर्फ ऑस्ट्रेलियन ही अपनों की विदाई ऐसे नहीं करते हम भी कह सकते हैं कुछ इसी शान से अपनों को बाय बाय, कुंबले।
कोटला में कुंबले के अंतिम पल
मेरी नजर से कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें अगले अंक में।
आपका अपना
नीतीश कुमार
कोटला टेस्ट में कुंबले को चोट लगी तब उनकी पत्नी चेतना दिल्ली एयरपोर्ट पर बैंगलोर के लिए फ्लाइट लेने के इंतजार में खड़ीं थीं। तभी पता चला कि कुंबले को हाथ में चोट लगी है और उनको अपोलो अस्पताल में भेज दिया गया है। तुरंत वो अपोलो पहुंची और फिर पता चला कि ऊंगली में ११ टांके लगे हैं और शायद ये भी हो सकता है कि नागपुर टेस्ट के साथ-साथ वो ये टेस्ट भी ना खेल पाएं। दोनों ने मिलकर ये फैसला किया कि बस ये टेस्ट ही आखिरी टेस्ट होगा क्योंकि अगले टेस्ट में कुंबले को शायद मौका भी ना मिले। वो खेलते हुए संन्यास लेना चाहते थे, मैदान में रहते हुए संन्यास।
आखिरकार १९ साल के लंबे खेल करियर को विराम लग ही गया। आए दिन कयास लगाए जा रहे थे कि अनिल कुंबले भी सौरव गांगुली की तरह कभी भी संन्यास का एलान कर देंगे। इस सीरीज में इस जीवट खिलाड़ी के ऊपर शक किया जाने लगा था कि आखिर कब तक कुंबले? लोगों कि तरफ से आवाज़ भी आने लगी कि क्या टीम पर बोझ बन गए हैं जंबो?
इस सब सवालों पर एकदम से विराम लगाते हुए ऑस्ट्रेलिया के साथ कोटला में तीसरे टेस्ट के आखिरी दिन जब कमेंट्री के दौरान ये एलान हुआ कि कुंबले संन्यास ले रहे हैं, थोड़ी देर तक तो सुनने वालों को इस बात का पर यकीन ही नहीं हुआ पर तभी स्क्रीन पर लिखा आया----
“Anil Kumble Decides To Retire From International Cricket.
Please Wait Till The End To Cheer Anil Kumble”.
सारी दुनिया को यकीं हो गया कि कुंबले संन्यास ले रहे हैं। उसी कोटला मैदान पर संन्यास का फैसला लिया जिस पर उन्होंने १९९९ में एक पारी में १० विकेट लेने का कीर्तिमान हासिल किया था जिसे सिर्फ एक खिलाड़ी ही उनके साथ बांट रहा है। साथ ही ये वो रिकॉर्ड है जिसे कि कोई भी तोड़ नहीं सकता बस पा सकता है। सब बस मैच खत्म होने का इंतजार करने लगे।
और मैच खत्म हो गया। सभी खिलाड़ी कुंबले से हाथ मिलाने लगे और गले मिलने का सिलसिला शुरू होगया। कुंबले को सम्मान देने के लिए कमेंट्रीटेटर ने लोगों से अपील की कि सभी खड़े होकर इस महान गेंदबाज को सम्मान दें।
फिर पूरा कोटला खड़ा होगया अपने पैरों पर और वहीं कुंबले को हाथों में उठा लिया उनके पुराने दोस्त और सहयोगी राहुल द्रविड़ और जहीर खान ने। पिच से मैदान के एक छोर तक की दूरी ही काफी लगने लगी और वहां ये आवाज़ आने लगी कि कुंबले को और ऊंचा उठाया जाए। पूरे समय १९ साल से कदम-दर-कदम साथ चल रहे सचिन यहां भी उनके साथ ही चल रहे
थे। सहवाग दौड़ते हुए आए साथ में आर पी सिंह भी। तभी पीछे से एक शख्स और दौड़ता हुआ आया जो बार-बार कहने लगा कि मैं बैठाता हूं कंधे पर कुंबले को। आर पी सिंह ने इशारा किया कि बैठाओ हम उठाते हैं कुंबले को और वो शख्स अपने कंधे पर बैठा कर जंबो को आगे बढ़ चला।
जी हां, महेंद्र सिंह धोनी को कप्तानी की कमान भी सौंपी गई है और माही ने ही अपने कंधों का एहसास कराकर जंबो को बता दिया कि ये कंधे भी तुम्हारे कंधों की तरह ही मजबूत हैं। और फिर वो जंबो को लेकर मैदान का चक्कर लगाने लगे।
यदि देखें तो जंबो सच में जंबो ही हैं लेकिन धोनी को ऐसा करते देख अच्छा ही लगा और सच, ये भी लगा कि हां सिर्फ ऑस्ट्रेलियन ही अपनों की विदाई ऐसे नहीं करते हम भी कह सकते हैं कुछ इसी शान से अपनों को बाय बाय, कुंबले।
कोटला में कुंबले के अंतिम पल
मेरी नजर से कुंबले की कुछ चुनिंदा यादें अगले अंक में।
आपका अपना
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“जब भी बोलो, सोच कर बोलो,
मुद्दतों सोचो, मुख्तसर बोलो”